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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
💡बीमारी एक बहुत बड़ी नेअमत है। इसके फायदे बेशुमार है। अगरचे आदमी को ज़ाहिर में इससे तकलीफ पहुँचती है मगर हकीकत में उसकी वजह से राहत व आराम का एक बड़ा खजाना हाथ आता है।
✨बहुत मोटी सी बात जिसे हर आदमी समझ सकता है बल्कि जानता है कि कोई कितना ही खुदा व रसूल से ग़ाफ़िल हो मगर जब बीमार पड़ जाता है तो खुदा और रसूल का नाम लेता और तौबा व इस्तिगफार करता है। और यह तो बड़े रुतबे वालों की शान है कि तकलीफ का भी उसी तरह इस्तेकबाल करते है जैसे राहत व आराम का। मगर हम जैसे कम से कम इतना तो करें कि सब्र व इत्मिनान से काम लें और गिरिया व ज़ारी करके रो पीट कर आते हुए सवाब को हाथ से जाने न दे।
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
💡बीमारी एक बहुत बड़ी नेअमत है। बहुत से नादान जिनमे मर्द भी औरतें भी, बीमारी या किसी जिस्मानी तकलीफ में बहुत बेजा बातें बोल उठते हैं और बेढंगी हरकत करने लगते हैं बल्कि कभी कभी जबान से ऐसी बात निकाल देते हैं जिनसे ईमान ही ख़तरे में पड़ जाता है बल्कि (अल्लाह अपनी पनाह में रखे) अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल की तरफ जुल्म की निस्बत कर देते है।
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।*
1- मुसलमान को जो तकलीफ व मलाल और मुसीबत व गम पहुँचती है यहाँ तक कि कांटा जो उसको चुभा था अल्लाह तआला उनके सबब उसके गुनाह मिटा देता है।
*📖बुखारी व मुस्लिम*
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*▶ POST NO.:- 03*
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।*
2- मुसलमान को जो तकलीफ पहुँचती है मर्ज़ हो या उसके सिवा कुछ और, अल्लाह तआला उसके सबब उसकी बुराइयाँ गिरा देता है। जैसे दरख्त से पत्ते झड़ते हैं।
3- बुखार को बुरा न कहो कि वह आदमी के गुनाहों को इस तरह दूर करता है जैसे आग की भट्टी लोहे के मैल को।
*📖बुखारी व मुस्लिम*
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।*
बंदे के लिये इल्मे इलाही में कोई मर्तबा मुकर्रर होता है। और वह अपने आमाल के सबब उस रूतबा को पहुंच नहीं पाता तो अल्लाह उसके बदन या माल या औलाद को बला व मुसीबत में डाल देता है। फिर उसे सब्र अता फरमाता है। यहाँ तक कि उसे उस मर्तबा तक पहुंचा देता है जो उसके लिए इल्मे इलाही में है।
*📖अहमइ व अबुदाऊद*
*✨मसला:-* दुख व मुसीबत से घबरा कर दुनिया की तकलीफों और परेशानियों से बचने के लिए मौत की चाहत नाजाइज़ है।
ऐ अजीज़/अजीज़ा! वहां के लिए क्या जमा की यहाँ से भागता है। अगर मौत की सख्ती से वाकिफ हो तो आरजु करे। काश तमाम दुनिया की तकलीफ मुझ पर हो और कुछ दिन मौत से मोहलत मिले।
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं:-*
दुख के सबब से मौत की आरजू न करो।अगर नाचार हो जाओ तो कहो "खुदाया मुझे जिन्दा रख जब तक जिंदगी मेरे हक़ में बेहतर है। और मुझे वफात दे जिस वक़्त मौत मेरे हक में बेहतर हो।"
✨हां जब दीन में फितना देखे और दीनी नुक़सानात का ख़ौफ हो तो अपने मरने की दुआ जाएज़ है। हदीस में है "तुम मे से कोई मौत की आरज़ू न करे मगर जबकि भरोसा नेकी करने पर न रखता हो।"
*📖दुर्र मुख़्तार वगैरह*
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*▶ POST NO.:- 06*
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*✨मरीज की इयादत (बीमार की खबर पूछना) को जाना सुन्नत है। इसकी भी बड़ी फ़ज़ीलत है। कुछ हदीसें दर्ज की जाती है:-*
💡जो मुसलमान किसी मुसलमान की इयादत के लिये सुबह को जाए तो शाम तक उसके लिए सत्तर हजार फरिश्ते इस्तिगफार करते हैं। और उसके लिए जन्नत में एक बाग होगा।
💡जब तू मरीज के पास जाए तो उससे कह की वह तेरे दुआ करे क्योंकि उस बीमार की दुआ फ़रिश्तों की दुआ के समान है।
*📖तिर्मिज़ी व इब्ने माजा*
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*✨मरीज की इयादत (बीमार की खबर पूछना) को जाना सुन्नत है। इसकी भी बड़ी फ़ज़ीलत है।*
*💡मसला:-* मरीज़ की अयादत को जाए और मर्ज़ की सख्ती को देखे तो मरीज़ के सामने यह जाहिर न करे कि तुम्हारी हालत खराब है और न इस तरह सिर हिलाये जिससे हालत खराब होना समझा जाता है। मरीज़ के सामने तो ऐसी बात करनी चाहिए जो उसके दिल को भली मालूम हो। उसका मिजाज़ पूछे और तसल्ली दे।
*💡फायदा:-* किसी शख्स को बीमारी या ऐसी हालत में देखे जिसे पसन्द नही किया जाता तो यह दुआ पढ़े। इंशा-अल्लाह उससे महफूज रहेगा।
*اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الّذِىْ عَافَانِىِ مِمَّنْ ابْتَلَاكَ بِهٖ*
*وَفَضَّلَنِىْ عَلٰى كَثِيْرٌ مِمَّنْ خَلَقَ تَفْصِيْلًا*
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*▶ POST NO.:- 08*
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*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
✨हर आदमी की जितनी उम्र मुकर्रर है न उससे कुछ घटे न बढ़े। आदमी लाख जतन करे जब वह मुकर्रर उम्र पूरी हो जाती है तो मलकुलमौत (मौत का फरिश्ता) यानी हज़रत इज़राइल अलैहिस्सलाम रूह कब्ज करने आते हैं और उसकी जान निकल लेते हैं। इसी का नाम मौत है।
✨रूह कब्ज़ होने का वक़्त बहुत सख्त वक़्त है। क्योंकि इसी पर तमाम आमाल का दारोमदार है। और ईमान के तमाम नतीजे जो आख़िरत में जाहिर होंगे इसी पर मुरत्तब (आधारित) होते हैं।
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*▶ POST NO.:- 09*
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*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
✨मौत आने के वक़्त शैतान ईमान छीन लेने की फिराक में रहता है। जिसे अल्लाह तआला उसके धोके से बचाए और ईमान पर खात्मा नसीब फरमाए वही अपनी मुराद को पहुंचता है।
✨ जब मौत का वक़्त करीब आये और यह अलामतें पायी जाए यानी सांस उखड़ने और जल्दी जल्दी चलने लगे, पांव सुस्त हो जाये, नाक टेढ़ी और मुह की खाल सख्त हो जाये, और दोनों कनपटियां बैठ जाये तो सुन्नत यह है कि दाहिनी करवट पे लिटा कर क़िब्ला की तरफ उसका मुंह कर दे। और यह भी जाएज़ है कि चित लिटाये और क़िब्ले को पाँव करे कि ऐसे भी क़िब्ले को मुंह हो जाएगा। मगर इस सूरत में सर को थोड़ा ऊंचा रखे।
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*▶ POST NO.:- 10*
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*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*✨मसला:-* जान निकलने की हालत में जब तक रूह गले को न आई हो उसे तलक़ीन करे यानी उसके पास बुलंद आवाज से कलमए तय्यब या कलमए शहादत पढ़े ताकि वह सुन कर पढ़े। मगर उससे यह न कहें कि कलमा पढ़। तुम्हें क्या मालूम वह किस तकलीफ और सख्ती में है। तलक़ीन के वक़्त उसके पास नेक और परहेजगार लोगों का होना बहुत अच्छी बात है। और उस वक़्त वहां सूरह यासीन शरीफ की तिलावत होना और खुशबू होना मुस्तहब है। जैसे लुभान या अगरबत्ती सुलगा दें।
*📖(आलमगीरी)*
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*▶ POST NO.:- 11*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*✨मसला:-* मौत के वक़्त हैज़ व निफ़ास वाली औरतें उसके पास हाजिर हो सकती है। लेकिन जिस औरत का हैज़ व निफ़ास खत्म हो गया और ग़ुस्ल नई किया उसे और नापाक आदमी को नहीं न आना चाहिए। और कोशिश करें कि मकान में कोई तसवीर और कुत्ता न हो क्योंकि जहां ये होते हैं रहमत के फरिश्ते नहीं आते। मौत के वक़्त अपने और उसके लिये दुआए खैर करते रहे कोई बुरी बात जबान से न निकले क्योंकि उस वक़्त जो कुछ कहा जाता है फरिश्ते उस पर आमीन कहते है।
*(आगे की पोस्ट में पढ़िए "जब रूह निकल जाए तब क्या करें" और कुछ नाजाइज़ रस्मो के बारे मे)*
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*▶ POST NO.:- 12*
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*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*("जब रूह निकल जाए तब क्या करें")*
*✨मसला:-* जब रूह निकल जाए तो एक चौड़ी पट्टी जबड़े के निचे से सर पर ले जाकर गांठ दे दें ताकि मुँह खुला न रहे। और आंखे बंद कर दी जाए। और उंगलियां और हाथ पैर सीधे कर दिये जाए। यह काम उसके घर वालों में जो ज्यादा नरमी के साथ कर सकता है। बाप या बेटा वह करे। और उसके पेट पर लोहा या गीली मिट्टी या और कोई भारी चीज़ रख दें ताकि पेट फूल न जाए। मगर जरूरत से ज्यादा वजनी न हो कि बाइसे तकलीफ है। मय्यत के सारे बदन को किसी कपड़े से छुपा दें और जमीन की सील से बचाए।
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*▶ POST NO.:- 13*
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*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*("जब रूह निकल जाए तब क्या करें")*
*✨मसला:-* मय्यत के जिम्मे क़र्ज़ या किसी का रुपया-पैसा देना हो तो जल्द से जल्द अदा करें क्योंकि हदीस शरीफ में है कि मय्यत अपने दैन (कर्ज़) में गिरफ्तार रहती है। और एक रिवायत में है कि उसकी रूह लटकी रहती है जब तक दैन (कर्ज़) अदा न कर दिया जाए।
*✨मसला:-* मय्यत के पास तिलावते क़ुरआन मजीद जाइज़ है, जब कि उसका तमाम बदन कपड़े से छुपा हो। और तस्बीह व दीगर अज़कार में हर्ज़ नही।
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*▶ POST NO.:- 14*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*("जब रूह निकल जाए तब क्या करें")*
*✨मसला:-* मय्यत के पास जमीन पर बैठना अफजल है। और चार पाई तख्त कुर्सी वगैरह पर बैठे तो उसकी मुमानत भी नहीं।
*✨मसला:-* जिस घर में मौत हो जाये वहां चुल्हा जलाना, खाना पकाना, शरीयत में मना नही है। न इसमें कोई गुनाह है। हां चुकी मौत की परेशानी के सबब वह लोग पकाते नही। इसलिए यह सुन्नत है कि पहले दिन सिर्फ घर वालों के लिये खाना भेजा जाए। और उन्हें दबाव डाल कर खिलाया जाए। न दूसरे दिन भेजे न घर से ज्यादा आदमियों के लिए भेजे, न और लोग इसमें से खाए।
*📖फतावा रजविया*
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*▶ POST NO.:- 15*
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*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को नहलाना फर्ज़े किफाया है। कुछ लोगों ने ग़ुस्ल दे दिया तो सबका पूरा हो गया।
*✨मसला:-* जहाँ मौत हुई है अगर वहां एक नहलाने वाले के सिवा और भी कई लोग नहलाने वाले हो तो नहलाने पर उजरत (मजदूरी) ली जा सकती है। मगर अफ़ज़ल यह है कि न लें। और अगर दूसरे नहलाने वाले न हो तो उजरत लेना जाइज़ नही।
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*▶ POST NO.:- 16*
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*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को नहलाने का तरीका यह है कि जिस तख्त पर नहलाने का इरादा हो उस तख्त पर खुश्बू की तीन, पांच या सात बार धुनी दे। और फिर तख्त पर मय्यत को लिटा कर नाफ़ से लेकर घुटनों तक कपड़े से छुपा दे।
फिर नहलाने वाला अपने हाथ मे कपड़ा लपेट कर पहले इस्तीनजा कराए। फिर वज़ू कराए। यानी पहले मुँह धोए फिर कुहनियों समेत हाथ धोए। फिर सिर का मसह करे फिर पांव धोए। मगर मय्यत के वज़ू में गट्टों तक हाथ धोना, कुल्ली करना, नाक में पानी डालना नही है कोई कपड़ा या रुई की फुरेरी भिगो कर दांतो, मसूड़ो, होटों, और नथनों पर फेर दे।
फिर सिर और दाढ़ी को गुले खैरू या पाक साबुन से धोए वरना खाली पानी भी काफी है। फिर मय्यत को पहले बाये करवट पर लिटा कर पूरे बदन पर बेरी के पत्तों का गर्म किया पानी बहाए। फिर दायीं करवट पर लिटा कर उसी तरह पानी बहाए। फिर आखिर में सर से पांव तक काफूर का पानी बहाए। फिर बदन को किसी पाक कपड़े से पोछ कर सूखा दे।
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*▶ POST NO.:- 17*
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*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* एक मरतबा सारे बदन पानी बहाना फ़र्ज़ है और तीन मर्तबा सुन्नत है। जहाँ मय्यत को ग़ुस्ल दें मुस्तहब है कि वहाँ पर पर्दा कर लें। नहलाने नहलाने वाला/वाली और मददगार के सिवा दूसरा कोई न देखे। नहलाते वक़्त इस तरह लिटाए जैसे कब्र में रखते हैं यानी मय्यत को दाहिनी करवट पर लिटाए और उसका मुंह क़िब्ले को करें। यह न हो सके तो क़िब्ले की तरफ पांव कर दें या जो आसान हो।
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*▶ POST NO.:- 18*
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*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को नहलाने वाला/वाली पाक साफ हो। नापाक या हैज़ वाली औरत ने ग़ुस्ल दिया तो मकरूह है। मगर ग़ुस्ल हो जाएगा। और अगर बेवुज़ू नहलाया तो कराहत भी नहीं। नहलाने वाला शख्स या औरत ऐसे हो कि अच्छी तरह ग़ुस्ल दें। और जो अच्छी बात देखे जैसे चेहरा चमक उठा, या मय्यत के बदन से खुशबू आयी तो उसे लोगों के सामने बयान करें और कोई बुरी बात देखे तो किसी से न कहे।
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*▶ POST NO.:- 19*
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*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* औरत अगर मर जाये तो उसका शौहर न उसे नहला सकता है न छू सकता है। और देखने की मुमानअत नही। और लोगों में जो यह मशहूर है कि शौहर, औरत के जनाजे को न कन्धा दे सकता है न कब्र में उतार सकता है न मुँह देख सकता है। यह बिल्कुल गलत है। सिर्फ नहलाना या उसके बदन को हाथ लगाना मना है।
*✨मसला:-* नापाक मर्द या हैज़ व निफ़ास वाली औरत का इंतेक़ाल हुआ तो एक ही ग़ुस्ल काफी है। क्योंकि ग़ुस्ल वाजिब होने के कितने ही असबाब हों सब एक ही ग़ुस्ल से अदा हो जाते हैं।
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*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* कई मय्यत कुछ दिन पुरानी हो जाती है तो अगर मय्यत का बदन ऐसा हो गया हो कि हाथ लगाने से खाल उधड़ेगी तो हाथ न लगाएं सिर्फ बदन पर पानी बहा कर ग़ुस्ल दें।
*✨मसला:-* मय्यत के दोनों हाथ करवटों (साइड) में रखे। सीने पर न रखें की यह कुफ़्फ़ार का तरीका है। कहीं कहीं नाफ़ के निचे इस तरह रखते हैं जैसे नमाज़ के क़ियाम में, यह भी न करें।
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*▶ POST NO.:- 21*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत के ग़ुस्ल के लिये नए घड़े, या नए लोटे की जरूरत नही। घर के इस्तेमाली घड़े या लोटे से दे सकते हैं। और कुछ लोग ये जहालत करते हैं कि मय्यत के ग़ुस्ल के बाद उस घड़े को तोड़ डालते हैं या लोटे बाल्टी वगैरह फैंक देते है। यह नाजाइज़ व हराम हैं क्यूंकि ये माल की बर्बादी है। और यह ख्याल करना कि वोह नापाक हो गये ये यह फ़िज़ूल बात है। कुछ लोग बचे हुए पानी को भी फेक देते हैं ये पानी की फ़िज़ूल खर्ची है उसे इस्तेमाल में लाये।
*(आगे की पोस्ट में पढ़िए मय्यत के कफन के बारे मे।)*
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*▶ POST NO.:- 22*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को कफ़न देना फर्ज़े किफ़ाय है। मय्यत के कफ़न के तीन दर्जे हैं:- 1-कफ़ने जरूरत 2-कफ़ने किफायत 3-कफ़ने सुन्नत।
💡मर्द के लिए कफ़ने सुन्नत के तीन कपड़े हैं चादर, तहबन्द, कुर्ता मगर तहबन्द सर से पांव तक होना चाहिये।
💡औरत के लिये कफ़ने सुन्नत पाँच कपड़े हैं चादर, तहबन्द, कुर्ता, ओढ़नी, सीना बन्द।
💡कफ़ने किफायत मर्द के लिये दो कपड़े हैं। चादर व तहबन्द और औरत के लिए तीन कपड़े चादर, तहबन्द, ओढ़नी।
💡 और कफने जरूरत मर्द व औरत के लिये यह है कि जो मुय्यसर आ जाये और कम से कम इतना हो कि सारा बदन ढक जाए।
*Note:- अगर कोई मसला समझ न आये जरूर पूछें क्योंकि यह बहुत जरूरी मसला है।*
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*▶ POST NO.:- 23*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* कफन पहनाने का तरीका यह है कि मय्यत को ग़ुस्ल देने के बाद उसका बदन किसी पाक कपड़े से पोंछ लें ताकि कफन गिला ना हो। फिर कफन को धुनी दे दें, और फिर कफन यूँ बिछाए की पहले बड़ी चादर फिर तहबन्द फिर कमीज़ और फिर मय्यत को उस पर लिटाए और कमीज़/कफनी फहनाए और दाढ़ी व तमाम बदन पर खुशबू मलें। और माथे, नाक, हाथ, घुटने, कदम पर काफूर लगाए। फिर तहबन्द लपेटे, पहले बायें तरफ फिर दाएं तरफ लपेटे फिर चादर लपेटे पहले बायें तरफ फिर दाहिने तरफ फिर चादर को सर और पांव की तरफ बांध दे। के उड़ने का डर न रहे।
💡और औरत के लिये ये है कि औरत को कफनी/कमीज़ पहनाकर उसके बाल के दो हिस्से कर ले और कफनी के ऊपर सीने पर डाल दें। और ओढ़नी आधी पीठ के निचे से बिछा कर सर पर लाये और मुँह पर निकाब की तरह डाल दें ताकि सीना पर रहे। फिर तहबन्द और चादर लपेटे फिर सबके ऊपर सीना बन्द पिस्तान के ऊपर से रान तक लाकर बांधे।
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*▶ POST NO.:- 24*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* सुन्नत के मुताबिक कफ़न का इंतेजाम न हो सके तो मर्द के लिये दो कपड़े चादर, तहबन्द ही काफी है और औरत के लिये तीन कपड़े जो मुयस्सर आ जाये।
💡और ये भी न हो सके तो कम से कम मय्यत को इतना कफ़न दे कि सारा बदन ढक जाए। और बिला जरूरत मर्द को दो कपड़े व औरत को तीन कपड़ो से कम में कफ़न देना नाजाइज़ व मकरूह है।
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*▶ POST NO.:- 25*
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*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* कफ़न का कपड़ा अच्छा होना चाहिये। हदीस शरीफ में है कि मुर्दो को अच्छा कफ़न दो क्योंकि वह आपस मे मुलाकात करते और अच्छे कफ़न से खुश होते हैं। सफेद कफ़न बेहतर है क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम ने फरमाया "अपने मुर्दे सफेद कपड़ों में दफ़नाओ"। और पुराने कपड़े का भी कफ़न हो सकता है जबकि धुला हुआ हो।
*✨मसला:-* कुसुम या जाफरान का रंगा हुआ या रेशम का कफ़न मर्द को ममनूअ है। और औरत के लिए जाइज़ है।
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
💡बीमारी एक बहुत बड़ी नेअमत है। इसके फायदे बेशुमार है। अगरचे आदमी को ज़ाहिर में इससे तकलीफ पहुँचती है मगर हकीकत में उसकी वजह से राहत व आराम का एक बड़ा खजाना हाथ आता है।
✨बहुत मोटी सी बात जिसे हर आदमी समझ सकता है बल्कि जानता है कि कोई कितना ही खुदा व रसूल से ग़ाफ़िल हो मगर जब बीमार पड़ जाता है तो खुदा और रसूल का नाम लेता और तौबा व इस्तिगफार करता है। और यह तो बड़े रुतबे वालों की शान है कि तकलीफ का भी उसी तरह इस्तेकबाल करते है जैसे राहत व आराम का। मगर हम जैसे कम से कम इतना तो करें कि सब्र व इत्मिनान से काम लें और गिरिया व ज़ारी करके रो पीट कर आते हुए सवाब को हाथ से जाने न दे।
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*▶ POST NO.:- 02*
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
💡बीमारी एक बहुत बड़ी नेअमत है। बहुत से नादान जिनमे मर्द भी औरतें भी, बीमारी या किसी जिस्मानी तकलीफ में बहुत बेजा बातें बोल उठते हैं और बेढंगी हरकत करने लगते हैं बल्कि कभी कभी जबान से ऐसी बात निकाल देते हैं जिनसे ईमान ही ख़तरे में पड़ जाता है बल्कि (अल्लाह अपनी पनाह में रखे) अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल की तरफ जुल्म की निस्बत कर देते है।
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।*
1- मुसलमान को जो तकलीफ व मलाल और मुसीबत व गम पहुँचती है यहाँ तक कि कांटा जो उसको चुभा था अल्लाह तआला उनके सबब उसके गुनाह मिटा देता है।
*📖बुखारी व मुस्लिम*
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*▶ POST NO.:- 03*
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।*
2- मुसलमान को जो तकलीफ पहुँचती है मर्ज़ हो या उसके सिवा कुछ और, अल्लाह तआला उसके सबब उसकी बुराइयाँ गिरा देता है। जैसे दरख्त से पत्ते झड़ते हैं।
3- बुखार को बुरा न कहो कि वह आदमी के गुनाहों को इस तरह दूर करता है जैसे आग की भट्टी लोहे के मैल को।
*📖बुखारी व मुस्लिम*
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*▶ POST NO.:- 04*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं।*
बंदे के लिये इल्मे इलाही में कोई मर्तबा मुकर्रर होता है। और वह अपने आमाल के सबब उस रूतबा को पहुंच नहीं पाता तो अल्लाह उसके बदन या माल या औलाद को बला व मुसीबत में डाल देता है। फिर उसे सब्र अता फरमाता है। यहाँ तक कि उसे उस मर्तबा तक पहुंचा देता है जो उसके लिए इल्मे इलाही में है।
*📖अहमइ व अबुदाऊद*
*✨मसला:-* दुख व मुसीबत से घबरा कर दुनिया की तकलीफों और परेशानियों से बचने के लिए मौत की चाहत नाजाइज़ है।
ऐ अजीज़/अजीज़ा! वहां के लिए क्या जमा की यहाँ से भागता है। अगर मौत की सख्ती से वाकिफ हो तो आरजु करे। काश तमाम दुनिया की तकलीफ मुझ पर हो और कुछ दिन मौत से मोहलत मिले।
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*▶ POST NO.:- 05*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*🥀हुजूर अक़दस सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम फरमाते हैं:-*
दुख के सबब से मौत की आरजू न करो।अगर नाचार हो जाओ तो कहो "खुदाया मुझे जिन्दा रख जब तक जिंदगी मेरे हक़ में बेहतर है। और मुझे वफात दे जिस वक़्त मौत मेरे हक में बेहतर हो।"
✨हां जब दीन में फितना देखे और दीनी नुक़सानात का ख़ौफ हो तो अपने मरने की दुआ जाएज़ है। हदीस में है "तुम मे से कोई मौत की आरज़ू न करे मगर जबकि भरोसा नेकी करने पर न रखता हो।"
*📖दुर्र मुख़्तार वगैरह*
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*▶ POST NO.:- 06*
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*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*✨मरीज की इयादत (बीमार की खबर पूछना) को जाना सुन्नत है। इसकी भी बड़ी फ़ज़ीलत है। कुछ हदीसें दर्ज की जाती है:-*
💡जो मुसलमान किसी मुसलमान की इयादत के लिये सुबह को जाए तो शाम तक उसके लिए सत्तर हजार फरिश्ते इस्तिगफार करते हैं। और उसके लिए जन्नत में एक बाग होगा।
💡जब तू मरीज के पास जाए तो उससे कह की वह तेरे दुआ करे क्योंकि उस बीमार की दुआ फ़रिश्तों की दुआ के समान है।
*📖तिर्मिज़ी व इब्ने माजा*
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*▶ POST NO.:- 07*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- बीमारी का बयान*
*✨मरीज की इयादत (बीमार की खबर पूछना) को जाना सुन्नत है। इसकी भी बड़ी फ़ज़ीलत है।*
*💡मसला:-* मरीज़ की अयादत को जाए और मर्ज़ की सख्ती को देखे तो मरीज़ के सामने यह जाहिर न करे कि तुम्हारी हालत खराब है और न इस तरह सिर हिलाये जिससे हालत खराब होना समझा जाता है। मरीज़ के सामने तो ऐसी बात करनी चाहिए जो उसके दिल को भली मालूम हो। उसका मिजाज़ पूछे और तसल्ली दे।
*💡फायदा:-* किसी शख्स को बीमारी या ऐसी हालत में देखे जिसे पसन्द नही किया जाता तो यह दुआ पढ़े। इंशा-अल्लाह उससे महफूज रहेगा।
*اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ الّذِىْ عَافَانِىِ مِمَّنْ ابْتَلَاكَ بِهٖ*
*وَفَضَّلَنِىْ عَلٰى كَثِيْرٌ مِمَّنْ خَلَقَ تَفْصِيْلًا*
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*▶ POST NO.:- 08*
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*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
✨हर आदमी की जितनी उम्र मुकर्रर है न उससे कुछ घटे न बढ़े। आदमी लाख जतन करे जब वह मुकर्रर उम्र पूरी हो जाती है तो मलकुलमौत (मौत का फरिश्ता) यानी हज़रत इज़राइल अलैहिस्सलाम रूह कब्ज करने आते हैं और उसकी जान निकल लेते हैं। इसी का नाम मौत है।
✨रूह कब्ज़ होने का वक़्त बहुत सख्त वक़्त है। क्योंकि इसी पर तमाम आमाल का दारोमदार है। और ईमान के तमाम नतीजे जो आख़िरत में जाहिर होंगे इसी पर मुरत्तब (आधारित) होते हैं।
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*▶ POST NO.:- 09*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
✨मौत आने के वक़्त शैतान ईमान छीन लेने की फिराक में रहता है। जिसे अल्लाह तआला उसके धोके से बचाए और ईमान पर खात्मा नसीब फरमाए वही अपनी मुराद को पहुंचता है।
✨ जब मौत का वक़्त करीब आये और यह अलामतें पायी जाए यानी सांस उखड़ने और जल्दी जल्दी चलने लगे, पांव सुस्त हो जाये, नाक टेढ़ी और मुह की खाल सख्त हो जाये, और दोनों कनपटियां बैठ जाये तो सुन्नत यह है कि दाहिनी करवट पे लिटा कर क़िब्ला की तरफ उसका मुंह कर दे। और यह भी जाएज़ है कि चित लिटाये और क़िब्ले को पाँव करे कि ऐसे भी क़िब्ले को मुंह हो जाएगा। मगर इस सूरत में सर को थोड़ा ऊंचा रखे।
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*▶ POST NO.:- 10*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*✨मसला:-* जान निकलने की हालत में जब तक रूह गले को न आई हो उसे तलक़ीन करे यानी उसके पास बुलंद आवाज से कलमए तय्यब या कलमए शहादत पढ़े ताकि वह सुन कर पढ़े। मगर उससे यह न कहें कि कलमा पढ़। तुम्हें क्या मालूम वह किस तकलीफ और सख्ती में है। तलक़ीन के वक़्त उसके पास नेक और परहेजगार लोगों का होना बहुत अच्छी बात है। और उस वक़्त वहां सूरह यासीन शरीफ की तिलावत होना और खुशबू होना मुस्तहब है। जैसे लुभान या अगरबत्ती सुलगा दें।
*📖(आलमगीरी)*
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*▶ POST NO.:- 11*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*✨मसला:-* मौत के वक़्त हैज़ व निफ़ास वाली औरतें उसके पास हाजिर हो सकती है। लेकिन जिस औरत का हैज़ व निफ़ास खत्म हो गया और ग़ुस्ल नई किया उसे और नापाक आदमी को नहीं न आना चाहिए। और कोशिश करें कि मकान में कोई तसवीर और कुत्ता न हो क्योंकि जहां ये होते हैं रहमत के फरिश्ते नहीं आते। मौत के वक़्त अपने और उसके लिये दुआए खैर करते रहे कोई बुरी बात जबान से न निकले क्योंकि उस वक़्त जो कुछ कहा जाता है फरिश्ते उस पर आमीन कहते है।
*(आगे की पोस्ट में पढ़िए "जब रूह निकल जाए तब क्या करें" और कुछ नाजाइज़ रस्मो के बारे मे)*
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*▶ POST NO.:- 12*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*("जब रूह निकल जाए तब क्या करें")*
*✨मसला:-* जब रूह निकल जाए तो एक चौड़ी पट्टी जबड़े के निचे से सर पर ले जाकर गांठ दे दें ताकि मुँह खुला न रहे। और आंखे बंद कर दी जाए। और उंगलियां और हाथ पैर सीधे कर दिये जाए। यह काम उसके घर वालों में जो ज्यादा नरमी के साथ कर सकता है। बाप या बेटा वह करे। और उसके पेट पर लोहा या गीली मिट्टी या और कोई भारी चीज़ रख दें ताकि पेट फूल न जाए। मगर जरूरत से ज्यादा वजनी न हो कि बाइसे तकलीफ है। मय्यत के सारे बदन को किसी कपड़े से छुपा दें और जमीन की सील से बचाए।
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*▶ POST NO.:- 13*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मौत आने का बयान*
*("जब रूह निकल जाए तब क्या करें")*
*✨मसला:-* मय्यत के जिम्मे क़र्ज़ या किसी का रुपया-पैसा देना हो तो जल्द से जल्द अदा करें क्योंकि हदीस शरीफ में है कि मय्यत अपने दैन (कर्ज़) में गिरफ्तार रहती है। और एक रिवायत में है कि उसकी रूह लटकी रहती है जब तक दैन (कर्ज़) अदा न कर दिया जाए।
*✨मसला:-* मय्यत के पास तिलावते क़ुरआन मजीद जाइज़ है, जब कि उसका तमाम बदन कपड़े से छुपा हो। और तस्बीह व दीगर अज़कार में हर्ज़ नही।
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*▶ POST NO.:- 14*
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*("जब रूह निकल जाए तब क्या करें")*
*✨मसला:-* मय्यत के पास जमीन पर बैठना अफजल है। और चार पाई तख्त कुर्सी वगैरह पर बैठे तो उसकी मुमानत भी नहीं।
*✨मसला:-* जिस घर में मौत हो जाये वहां चुल्हा जलाना, खाना पकाना, शरीयत में मना नही है। न इसमें कोई गुनाह है। हां चुकी मौत की परेशानी के सबब वह लोग पकाते नही। इसलिए यह सुन्नत है कि पहले दिन सिर्फ घर वालों के लिये खाना भेजा जाए। और उन्हें दबाव डाल कर खिलाया जाए। न दूसरे दिन भेजे न घर से ज्यादा आदमियों के लिए भेजे, न और लोग इसमें से खाए।
*📖फतावा रजविया*
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*▶ POST NO.:- 15*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को नहलाना फर्ज़े किफाया है। कुछ लोगों ने ग़ुस्ल दे दिया तो सबका पूरा हो गया।
*✨मसला:-* जहाँ मौत हुई है अगर वहां एक नहलाने वाले के सिवा और भी कई लोग नहलाने वाले हो तो नहलाने पर उजरत (मजदूरी) ली जा सकती है। मगर अफ़ज़ल यह है कि न लें। और अगर दूसरे नहलाने वाले न हो तो उजरत लेना जाइज़ नही।
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*▶ POST NO.:- 16*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को नहलाने का तरीका यह है कि जिस तख्त पर नहलाने का इरादा हो उस तख्त पर खुश्बू की तीन, पांच या सात बार धुनी दे। और फिर तख्त पर मय्यत को लिटा कर नाफ़ से लेकर घुटनों तक कपड़े से छुपा दे।
फिर नहलाने वाला अपने हाथ मे कपड़ा लपेट कर पहले इस्तीनजा कराए। फिर वज़ू कराए। यानी पहले मुँह धोए फिर कुहनियों समेत हाथ धोए। फिर सिर का मसह करे फिर पांव धोए। मगर मय्यत के वज़ू में गट्टों तक हाथ धोना, कुल्ली करना, नाक में पानी डालना नही है कोई कपड़ा या रुई की फुरेरी भिगो कर दांतो, मसूड़ो, होटों, और नथनों पर फेर दे।
फिर सिर और दाढ़ी को गुले खैरू या पाक साबुन से धोए वरना खाली पानी भी काफी है। फिर मय्यत को पहले बाये करवट पर लिटा कर पूरे बदन पर बेरी के पत्तों का गर्म किया पानी बहाए। फिर दायीं करवट पर लिटा कर उसी तरह पानी बहाए। फिर आखिर में सर से पांव तक काफूर का पानी बहाए। फिर बदन को किसी पाक कपड़े से पोछ कर सूखा दे।
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*▶ POST NO.:- 17*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* एक मरतबा सारे बदन पानी बहाना फ़र्ज़ है और तीन मर्तबा सुन्नत है। जहाँ मय्यत को ग़ुस्ल दें मुस्तहब है कि वहाँ पर पर्दा कर लें। नहलाने नहलाने वाला/वाली और मददगार के सिवा दूसरा कोई न देखे। नहलाते वक़्त इस तरह लिटाए जैसे कब्र में रखते हैं यानी मय्यत को दाहिनी करवट पर लिटाए और उसका मुंह क़िब्ले को करें। यह न हो सके तो क़िब्ले की तरफ पांव कर दें या जो आसान हो।
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*▶ POST NO.:- 18*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को नहलाने वाला/वाली पाक साफ हो। नापाक या हैज़ वाली औरत ने ग़ुस्ल दिया तो मकरूह है। मगर ग़ुस्ल हो जाएगा। और अगर बेवुज़ू नहलाया तो कराहत भी नहीं। नहलाने वाला शख्स या औरत ऐसे हो कि अच्छी तरह ग़ुस्ल दें। और जो अच्छी बात देखे जैसे चेहरा चमक उठा, या मय्यत के बदन से खुशबू आयी तो उसे लोगों के सामने बयान करें और कोई बुरी बात देखे तो किसी से न कहे।
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*▶ POST NO.:- 19*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* औरत अगर मर जाये तो उसका शौहर न उसे नहला सकता है न छू सकता है। और देखने की मुमानअत नही। और लोगों में जो यह मशहूर है कि शौहर, औरत के जनाजे को न कन्धा दे सकता है न कब्र में उतार सकता है न मुँह देख सकता है। यह बिल्कुल गलत है। सिर्फ नहलाना या उसके बदन को हाथ लगाना मना है।
*✨मसला:-* नापाक मर्द या हैज़ व निफ़ास वाली औरत का इंतेक़ाल हुआ तो एक ही ग़ुस्ल काफी है। क्योंकि ग़ुस्ल वाजिब होने के कितने ही असबाब हों सब एक ही ग़ुस्ल से अदा हो जाते हैं।
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*▶ POST NO.:- 20*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* कई मय्यत कुछ दिन पुरानी हो जाती है तो अगर मय्यत का बदन ऐसा हो गया हो कि हाथ लगाने से खाल उधड़ेगी तो हाथ न लगाएं सिर्फ बदन पर पानी बहा कर ग़ुस्ल दें।
*✨मसला:-* मय्यत के दोनों हाथ करवटों (साइड) में रखे। सीने पर न रखें की यह कुफ़्फ़ार का तरीका है। कहीं कहीं नाफ़ के निचे इस तरह रखते हैं जैसे नमाज़ के क़ियाम में, यह भी न करें।
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*▶ POST NO.:- 21*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के ग़ुस्ल का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत के ग़ुस्ल के लिये नए घड़े, या नए लोटे की जरूरत नही। घर के इस्तेमाली घड़े या लोटे से दे सकते हैं। और कुछ लोग ये जहालत करते हैं कि मय्यत के ग़ुस्ल के बाद उस घड़े को तोड़ डालते हैं या लोटे बाल्टी वगैरह फैंक देते है। यह नाजाइज़ व हराम हैं क्यूंकि ये माल की बर्बादी है। और यह ख्याल करना कि वोह नापाक हो गये ये यह फ़िज़ूल बात है। कुछ लोग बचे हुए पानी को भी फेक देते हैं ये पानी की फ़िज़ूल खर्ची है उसे इस्तेमाल में लाये।
*(आगे की पोस्ट में पढ़िए मय्यत के कफन के बारे मे।)*
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*▶ POST NO.:- 22*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* मय्यत को कफ़न देना फर्ज़े किफ़ाय है। मय्यत के कफ़न के तीन दर्जे हैं:- 1-कफ़ने जरूरत 2-कफ़ने किफायत 3-कफ़ने सुन्नत।
💡मर्द के लिए कफ़ने सुन्नत के तीन कपड़े हैं चादर, तहबन्द, कुर्ता मगर तहबन्द सर से पांव तक होना चाहिये।
💡औरत के लिये कफ़ने सुन्नत पाँच कपड़े हैं चादर, तहबन्द, कुर्ता, ओढ़नी, सीना बन्द।
💡कफ़ने किफायत मर्द के लिये दो कपड़े हैं। चादर व तहबन्द और औरत के लिए तीन कपड़े चादर, तहबन्द, ओढ़नी।
💡 और कफने जरूरत मर्द व औरत के लिये यह है कि जो मुय्यसर आ जाये और कम से कम इतना हो कि सारा बदन ढक जाए।
*Note:- अगर कोई मसला समझ न आये जरूर पूछें क्योंकि यह बहुत जरूरी मसला है।*
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*▶ POST NO.:- 23*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* कफन पहनाने का तरीका यह है कि मय्यत को ग़ुस्ल देने के बाद उसका बदन किसी पाक कपड़े से पोंछ लें ताकि कफन गिला ना हो। फिर कफन को धुनी दे दें, और फिर कफन यूँ बिछाए की पहले बड़ी चादर फिर तहबन्द फिर कमीज़ और फिर मय्यत को उस पर लिटाए और कमीज़/कफनी फहनाए और दाढ़ी व तमाम बदन पर खुशबू मलें। और माथे, नाक, हाथ, घुटने, कदम पर काफूर लगाए। फिर तहबन्द लपेटे, पहले बायें तरफ फिर दाएं तरफ लपेटे फिर चादर लपेटे पहले बायें तरफ फिर दाहिने तरफ फिर चादर को सर और पांव की तरफ बांध दे। के उड़ने का डर न रहे।
💡और औरत के लिये ये है कि औरत को कफनी/कमीज़ पहनाकर उसके बाल के दो हिस्से कर ले और कफनी के ऊपर सीने पर डाल दें। और ओढ़नी आधी पीठ के निचे से बिछा कर सर पर लाये और मुँह पर निकाब की तरह डाल दें ताकि सीना पर रहे। फिर तहबन्द और चादर लपेटे फिर सबके ऊपर सीना बन्द पिस्तान के ऊपर से रान तक लाकर बांधे।
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*▶ POST NO.:- 24*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* सुन्नत के मुताबिक कफ़न का इंतेजाम न हो सके तो मर्द के लिये दो कपड़े चादर, तहबन्द ही काफी है और औरत के लिये तीन कपड़े जो मुयस्सर आ जाये।
💡और ये भी न हो सके तो कम से कम मय्यत को इतना कफ़न दे कि सारा बदन ढक जाए। और बिला जरूरत मर्द को दो कपड़े व औरत को तीन कपड़ो से कम में कफ़न देना नाजाइज़ व मकरूह है।
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*▶ POST NO.:- 25*
*▶ मय्यत के मुताल्लिक बयान.!💡*
*⤵Topic:- मय्यत के कफ़न का बयान*
*✨मसला:-* कफ़न का कपड़ा अच्छा होना चाहिये। हदीस शरीफ में है कि मुर्दो को अच्छा कफ़न दो क्योंकि वह आपस मे मुलाकात करते और अच्छे कफ़न से खुश होते हैं। सफेद कफ़न बेहतर है क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैह वसल्लम ने फरमाया "अपने मुर्दे सफेद कपड़ों में दफ़नाओ"। और पुराने कपड़े का भी कफ़न हो सकता है जबकि धुला हुआ हो।
*✨मसला:-* कुसुम या जाफरान का रंगा हुआ या रेशम का कफ़न मर्द को ममनूअ है। और औरत के लिए जाइज़ है।
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घर में मय्यत होने के कितने दिन के बाद बाल, दाढी काट सकते हैॽ
ReplyDeleteAssalamualeykum iddat m kya padhna h aur kitna kalma padhna h plss bataaye meri ammi iddat m h plsssss jaldi bataaye
ReplyDeletenapak aurat mayyat ko hath laga sakti hai ya nahi
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