रोज़ा के फ़ज़ाइल व मसाईल
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*आओ इल्म आम करें*
*🍨इफ़्तार की दुआ इफ्तार के बाद पढ़नी चाहिए🍉*
*📖मसअला::-* रोज़ा इफ़्तार करने की दुआ इफ़्तार करने के बाद पढ़े कि यही सुन्नते रसूले करीम है । अगर किसी ने पहले ही पढ़ ली तो सुन्नत पर अमल न होगा और वह सवाब नहीं मिलेगा जो सुन्नत पर अमल करने का है ।
🌸हज़रत मआज़ बिन ज़ोहरा रज़ियल्लाहो अन्हो बयान करते हैं कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम इफ़्तार कर लेते तो यह दुआ फ़रमाते
*अल्लाहुम्मालकासुम्तुव अला रिज़्क़िका अफ़तरतु*
*(📚 मिश्कात सफ़ह,175 )*
📜इस हदीस के तहत हज़रत मुल्ला अली क़ारी रहमतुल्लाहे अलैह फ़रमाते हैं कि इब्ने मलिक ने कहा कि आप सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम यह दुआ इफ़्तार के बाद पढ़ते । हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहो तआला अनहुमा बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : मुझे रोज़े में जल्दी इफ़्तार करने और सेहरी में ताख़ीर का हुक्म दिया गया है ।
*(📚 सुनने कुबरा जिल्द 4 सफ़ह,238 )*
🌰हज़रत सुलैमान बिन आमिर रज़ियल्लाहो तआला अन्हो बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : जब तुम में कोई इफ़्तार करे तो उसे चाहिये । कि खजूर से करे , क्यों कि इसमें बरकत है , अगर खजूर न हो तो I पानी से करे क्यों कि पानी पाक होता है ।
*( 📚तिर्मिज़ी , जिल्द 1 सफ़ह, 83 )*
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*📝पोस्ट नम्बर... 001*
*📖हदीस::-* इब्ने माजा हजरते अनस रयिल्लाहु तआला अन्हु से रावी कहते हैं हजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: यह महीना आया इसमें एक रात हजार महीनों से बेहतर है ! जो इससे महरूम रहा हर चीज से महरूम रहा और इसकी खैर से वही महरूम जो पूरा महरूम है !
*📖हदीस::-* बैहकी शोअबुल ईमान में इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी जब रमजान का महीना आता रसूलुल्लाह सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम कैदियों को रिहा फरमा देते और साइल को अता फरमाते !
*📖हदीस::-* बैहकी शोअबुल ईमान में इने उमर रयिल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि नबी सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जन्नत इब्तिदाए साल यअनी शुरू साल से साले आइन्दा(आने वाले साल) तक रमजान के लिए आरास्ता की जाती है(सजाई जाती है) जब रमजान का पहला दिन आता है तो जन्नत के पत्तों से अर्श के नीचे एक हवा हूरों पर चलती है वह कहती हैं ऐ रब! तू अपने बन्दों से हमारे लिए उनको शौहर बना जिन से हमारी आँखें ठण्डी हों और उनकी आँखें हम से ठण्डी हों !
*📖हदीस::-* इमाम अहमद अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं रमज़ान की आखिर शब में उम्मत की मगफिरत होता है ! अर्ज की गयी क्या वह शबे कद्र है ? फरमाया: नहीं, लेकिन काम करने वाले को उस वक्त मजदूरी पूरी दी जाती है जब वह काम पूरा कर ले !
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,69)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 002*
*📖हदीस::-* सहीहैन व सुनन तिर्मिज़ी व नसई व सही इब्ने खुजैमा में सहल इब्ने साद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं, जन्नत के आठ दरवाज़े हैं उनमें एक दरवाजे का नाम रैहान है उस दरवाजे से वही जायेंगे जो रोजे रखते हैं !
*📖हदीस::-* बुखारी व मुस्लिम में अबू हुरैरा रयिल्लाहु तआला अन्हु से मरवी हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है, जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए रोजा रखेगा उसके अगले गुनाह बख्श दिये जायेंगे और जो ईमान की वजह से और सवाब के लिए शबे कद्र का कियाम करेगा उसके अगले गुनाह बख़्श दिये जायेंगे !
*📖हदीस::-* इमाम अहमद व हाकिम और तबरानी कबीर में और इब्ने अबिदुनिया और बैहकी शोअबुल ईमान में अब्दुल्लाह इब्ने अम्र रयिल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह।
सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं रोजा व कुर्बान बन्दे के लिए शफाअत करेंगे ! रोजा कहेगा ऐ रब! मैंने खाने और ख़्वाहिशों से इसे दिन में रोक दिया मेरी शफाअत इसके हक में कबूल फ़रमा ! कुरआन कहेगा ऐ रब! मैंने इसे रात में सोने से बाज रखा मेरी शफाअत इसके बारे में कबूल कर ! दोनों की शफाअतें कबूल होंगी !
*📖हदीस::-* सहीहैन में अबू हुरैरा रयिल्लाहु तआलो अन्हु से मरवी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं आदमी के हर नेक काम का बदला दस से सात सौ तक दिया
जाता है, अल्लाह तआला ने फ़रमाया मगर रोज़ा, कि वह मेरे लिए है और उसकी जज़ा मैं दूंगा !
बन्दा अपनी ख़्वाहिश और खाने को मेरी वजह से तर्क करता है ! रोज़ादार के लिए दो खुशियाँ हैं! एक इफ्तार के वक्त और अपने रब से मिलने के वक्त और रोज़ादार के मुँह की बू अल्लाह तआला के नजदीक मुश्क से ज्यादा पाकीजा है और रोज़ा सिपर(ढाल) है !
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,69)*
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*📿रमज़ान के फज़ाइल व मसाइल*
*📝पोस्ट नम्बर... 003*
*📖हदीस::-* इमाम अहमद और बैहकी रिवायत करते हैं कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया रोज़ा सिपर(ढाल) है और दोज़ख़ से हिफाज़त का किला इसी के करीब-करीब जाबिर व उस्मान इब्ने अबिलआस व माज़ इन जबल रज़ियल्लाहु तआला से मरवी है !
*📖हदीस::-* अबू यअला व बैहकी सलमा इबने कैस और अहमद बज्जार अबू हुरेरह रदियल्लाह तआला अन्हमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जिसने अल्लाह तआला की रजा के लिए एक दिन का रोजा रखा अल्लाह तआला उसको जहन्नम से इतना दूर कर देगा जैसे कि कौआ जब बच्चा था उस वक्त से उड़ता रहा यहाँ तक कि बूढ़ा होकर मरा !
*📖हदीस::-* अबू यअला व तबरानी अबू हुरैरा रयिल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अगर किसी ने एक दिन नफ्ल रोजा रखा और जमीन भर उसे सोना दिया जाये जब भी उसका सवाब पूरा न होगा उसका तो सवाब कियामत के दिन मिलेगा !
*📖हदीस::-* इब्ने माजा अबू हुरैरा रयिल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया हर शय के लिये जकात है और बदन की जकात रोजा है जो रोजा निस्फ़(आधा) सब्र है !
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,70)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 004*
*📖हदीस::-* नसई व इब्ने खुजैमा व हाकिम अबू उमामा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रावी अर्ज की या रसूलुल्लाह मुझे किसी अमल का हुक्म फरमाये ! इरशाद फ़रमाया: रोजे को लाजिम लो कि इसके बराबर कोई अमल नही ! उन्होंने फिर वही अर्ज की ! वही जवाब इरशाद हुआ !
*📖हदीस::-* बुखारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी व नसई अबू सईद रदियल्लाहु तआला अन्ह से रावी है हुज़ूर अकदस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो बन्दा अल्लाह की राह में एक रोजा रखे अल्लाह तआला उसके मुँह को दोजख से सत्तर बरस की राह दूर फ़रमा देगा !
✨और इसी के मिस्ल नसई तिर्मिज़ी व इने माजा अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रावी और तबरानी अबू दरदा और तिर्मिजी अबू उमामा रज़ियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत करते हैं फ़रमाया कि उसके और जहन्नम के दरमियान अल्लाह तआला इतनी बड़ी खन्दक कर देगा जितना आसमान व जमीन के दरमियान फासिला है !
✨और तबरानी की रिवायत
अम्र इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि दोजख उससे सौ बरस की राह दूर होगी और अबू यअला की रिवायत मआज इब्ने अनस रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से है कि रमजान के दिनों के अलावा अल्लाह तआला की राह में रोजा रखा तो तेज घोड़े की रफ्तार से सौ बरस की मसाफ़त(दूरी) पर जहन्नम से दूर होगा !
*📖हदीस::-* बैहकी अब्दुल्लाह इब्ने अम्र इब्ने आस रज़ियल्लाह तआला अन्हुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं रोज़ादार की दुआ इफ्तार के वक्त में रद्द नहीं की जाती हैं !
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71)*
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*📿रमज़ान के फज़ाइल व मसाइल*
*📝पोस्ट नम्बर... 005*
*📖हदीस::-* इमाम अहमद व तिर्मिजी व इब्ने माजा व इब्ने खुज़ैमा व इने हबान अबू हुरैरा
रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत करते है रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते है तीन शख्स की दुआ रद्द नहीं की जाती रोजादार जिस वक्त इफ्तार करता है और बादशाहे आदिल और मजलूम की दुआ इसको अल्लाह तआला अब्र से ऊपर बलन्द करता है और इसके लिए आसमान के दरवाजे खोले जाते है और रब तआला फरमाता है अपनी इज्जत व जलाल की कसम जरूर तेरी मदद करूँगा अगचे थोड़े जमाने बअद।
*📖हदीस::-* इब्ने हब्बान व बैहकी अबू सईद खूदरी रवियल्लाहु तआला अन्हु से रावी कि नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते है जिसने रमजान का रोजा रखा और उसकी हदों को पहचाना और जिस चीज़ से बचना चाहिए उससे बचा तो जो पहले कर चुका है उसका कफ़्फ़ारा हो गया
*📖हदीस ::-* इब्ने माजा अब्बास रदियल्लाह तआला अन्हुमा से रावी कि हुजूरे अकरम सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम फरमाते है जिसने मक्के में माहे रमजान पाया और रोजा रखा और रात में जितना मयस्सर आया कियाम किया तो अल्लाह तआला उसके लिए और जगह के एक लाख रमजान का सवाब लिखेगा और दिन एक गर्दन आजाद करने का सवाब और हर रोज जिहाद में घोड़े पर सवार कर देने का सवाब और हर दिन में हसना (नेकी और हर रात में हसना लिखेगा।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71-72)*
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*📝पोस्ट नम्बर:- 6⃣*
*📖हदीस::-* बैहकी जाबिर इब्ने अब्दुल्ला रदियल्लाहु तआला अन्तुमा से रावी कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते है मेरी उम्मत को माहे रमजान में पांच बातें दी गई कि।मुझसे पहले किसी नबी को न मिली अव्वल.यह कि जब रमजान की पहली रात होती है अल्लाह तआला उनकी तरफ नज़रे रहमत फरमाता है और जिसकी तरफ नज़रे रहमत फरमायेगा उसे कभी
अजाब न करेगा दूसरी यह कि शाम के वक्त उनके मुंह की बु अल्लाह तआला के नजदीक मुश्क से ज्यादा अच्छी है तीसरी यह कि हर दिन और रात में फरिश्ते उनके लिए इस्तिगफार करते है !चौथी यह कि अल्लाह तआला जन्नत को हुक्म फरमाता है कहता है तैयार हो जा और मेरे बन्दों के लिए मुज़य्यन होजा (सज जा) करीब है कि दुनिया की सख्ती से यहाँ आकर आराम करें!पाँचवीं यह कि जब आखिर रात होती है तो उन सबकी मगफिरत फरमा देता है। किसी ने अर्ज की क्या वह शबे क़द्र है। फरमाया नहीं क्या तू नहीं देखता कि काम करने वाले काम करते है जब काम से फारिग होते है उस वक्त मजदूरी पाते है।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71-72)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 007*
*🔮हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने आमीन कहाँ*
*📖हदीस::-* हाकिम ने कअब इब्ने अजरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया सब लोग मिम्बर के पास हाज़िर हो हम हाजिर हुए जब हुजूर सल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मिम्बर के पहले दर्ज पर पढ़े कहा आमीन दूसरे पर पढे कहा आमीन तीसरे पर बड़े कहा आमीन जब. मिम्बर से तशरीफ लाये हमने
अर्ज की आज हमने हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से ऐसी बात सुनी कि कभी न सुनते थे। फरमाया जिब्रिल ने आकर अर्ज की वह शख्स दूर हो जिसने रमजान पाया और अपनी मगफिरत न कराई मैंने कहा आमीन। जब दूसरे दर्ज़े पर बड़ा तो कहा वह शरमा दूर हो जिसके
पास मेरा ज़िक्र हो और मुझ पर दुरुदन न भेजे। कहा आमीन। जब में तीसरे दर्ज़े पर चढ़ा कहा
वह शमा दूर हो जिसके मां-बाप दोनों या एक को बुढ़ापा आये और उनकी खिदमत करके जन्नत
में न जाये मैंने कहा आगीन। इसी के मिस्ल अबू हुरैरा व हसन इने मालिक इने हुवैरस रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम से इब्ने हब्बान ने रिवायत की।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71-72)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 008*
*📖हदीस::-* अस्वहानी ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब रमजान की पहली रात होती है अल्लाह तआला अपनी मखलूक की तरफ नजरे रहमत फरमाता है और जब अल्लाह किसी बन्दे की तरफ नज़रे रहमत फरमाये तो उसे कभी अज़ाब न देगा और हर रोज़ दस साख को जहन्नम से आजाद फरमाता है और जब उन्तीसवी रात होती है तो महीने भर जितने आजाद किये उनके मजमुए के बराबर उस एक रात में आजाद करता है। फिर जब ईदुल फित्र की रात आती है मलाइका (फरिश्ते)खुशी करते है और अल्लाह तआला अपने नूर की खास तजल्ली फरमाता है फरिश्तों से फरमाता है ऐ गिरोहे मलाइका उस मजदूर का क्या बदला है जिसने काम पूरा कर लिया। परिश्ते अर्ज करते है उसको पूरा अज़्र दिया जाये। अल्लाह तआला फरमाता है तुम्हें गवाह करता हूँ कि मैने उन सब को बख्स दिया।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71-72)*
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*📝पोस्ट नम्बर:-9⃣*
*📖हदीस::-* इब्ने खुजैमा ने अबू मसऊद गफ़्फ़ारी रदियल्लाहु तआला अन्हु से एक तवील हदीस रिवायत की उसमें यह भी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया अगर
बन्दों को मालूम होता कि रमज़ान क्या चीजे है तो मेरी उम्मत तमन्ना करती कि पूरा साल रमजान ही हो।
*📖हदीस::-* बज़्ज़ार व इब्ने खुज़ैमा व इब्ने हब्बान अम्र इब्ने मुर्रा जोहनी रज़ियल्लाहु तआला
अन्हु से रावी कि एक शख्स ने अर्ज की.या रसूलल्लाह फरमाईये तो अगर में इसकी गवाही दूं कि
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं और हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल
है और पाँचों नमाजे पढ़ू और जकात अदा करूँ और रमज़ान के रोजे रखूं और उसकी रातों का
कियाम करूं तो मैं किन लोगों में से होऊँगा। फरमाया सिद्दीकीन और शोहदा में से।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71-72)*
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*📿रमज़ान के फज़ाइल व मसाइल*
*📝पोस्ट नम्बर... 🔟*
*🌟मसाइले फ़िक़्हिया*
*📖मसअला:-* रोजा शरीअत की बोलचाल में मुसलमान का इबादत की नियत से सुबहे सादिक से गुरुब आफताब तक अपने को कस्दन जानबूझ कर खाने पीने जिमा हमबिस्तरी से बाज़ रखना औरत का हैज़ व निफास से खाली होना शर्त है।
*📖मसअला:-* रोजे के तीन दर्जे है एक आम लोगों का रोज़ा कि यही पेट और शर्मगाह को खाने पीने, जिमा हमबिस्तरी से रोकना,दूसरा खवास का रोज़ा कि उनके अलावा कान,आँख ज़बान
हाथ, पाँव और तमाम आजा को गुनाह से बाज रखना, तीसरा खासुलखास का रोजा कि
अल्लाह तआला के अलावा तमाम चीज़ों से अपने को पूरी तरह जुदा करके सिर्फ उसी की
तरफ मुतवज्जेह रहना।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71-73)*
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*📿रमज़ान के फज़ाइल व मसाइल*
*📝पोस्ट नम्बर... 1️⃣1️⃣*
*🌟मसाइले फ़िक़्हिया*
*📖मसअला:-* रोजा की पाँच किस्में है 1.फर्ज 2. वाजिब ३.नफ्ल,4,मकरूहे तनजीही 5, मकरूहे तहरीमी
♻फर्ज व वाजिब की दो किस्में है मुअय्यन व गैरे मुअय्यन । फर्जे मुअय्यन जैसे कजाए रमजान यअनी रमजान का रोज़ा जो छूट गया और रोजए कफ्फारा जो कफ्फारा लाजिम होने पर रखा जाये वाजिबे मुअय्यन जैसे नज़रे मुअय्यन वाजिबे गैरे मुअय्यन जैसे नज़रे मुतलक नफ़्ल दो है नफ्ले मसनून नफ्ले मुस्तहब लफ़्ले मसनून जैसे आशूरा यअनी दसवीं मुहर्रम का रोजा और उसके साथ नवीं का भी और नपले मुस्तहब हर महीने में तेरहवीं, चौदहवीं पन्द्रहवीं और अरफे का रोजा पीर और जुमेरात का रोज़ा शश ईद के रोजे यअनी ईद के छह रोजे दाऊद अलैहिस्सलाम के रोजे यअनी एक दिन रोजा एक दिन इफ्तार मकरूहे तनजीही जैसे सिर्फ हफ्ते के दिन रोजा रखना,नैरोज़ मेहरगान के दिन का रोज़ा सौमे दहर यअनी हमेशा रोजा रखना सौमे सुकूत यअनी
जिसमें कुछ बात न करे, सौमे विसाल कि रोजा रखकर इफ्तार न करे और दूसरे दिन फिर रोजा
रखे यह सब मकरूहे तनजीही है। मकरूहे तहरीमी जैसे ईद और अय्यामे तशरीक (बकरीद और
उसके बअद के तीन दिन)के रोजे।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,71-72)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 1️⃣2️⃣*
*🌟मसाइले फ़िक़्हिया*
*📖मसअला::-* रोजे के मुख्तलिफ असबाब वजहे है रोजए रमज़ान का सबब माहे रमजान का आना रोजए नजर का सबब मन्नत मानना। रोजए कफ्फारा का सबब कसम तोड़ना या कत्ल या जिहार वगैरा।
*📖मसअला::-* माहे रमजान का रोज़ा फर्ज जब होगा कि वह वक्त जिसमें रोजे की इब्तिदा शुरूआत कर सके यअनी सुबह साक्कि से जहवए कुबरा तक कि इसके बाद रोजे की नियत नहीं हो सकती लिहाजा रोजा नहीं हो सकता और रात में नियत हो सकती है मगर रोजे की महल नहीं। (यअनी रात रोजे का वक्त नहीं मगर नियत हो जायेगी)लिहाजा अगर मजनून को रमज़ान की किसी रात में
होश आया और सुबह जुनून की हालत में हुई या जहवए कुबरा के बाद किसी दिन होश आया तो
उस पर रमजान के रोजे की कजा नहीं जबकि पूरा रमजान इसी जुनून में गुजर जाये और एक
दिन भी ऐसा वक्त मिल गया जिसमें नियत कर सकता है तो सारे रमजान की कजा
लाज़िम है।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,72-73)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 1️⃣3️⃣*
*🌟मसाइले फ़िक़्हिया*
*📖मसअला::-* रात में रोजे की नियत की और सुबह गशी की हालत में हुई और यह गशी कई दिन तक रही तो सिर्फ पहले दिन का रोज़ा हुआ बाकी दिनों का कजा रखे अगषे पूरे रमज़ान भर गशी रही अगर्चे नियत का वक्त न मिला।
*📖मसअला::-* रमजान के रोजे की अदा और नज़रे मुअय्यन और नफ़्ल के रोजों की नियत का वक़्त गुरूबे आफताब से जहवए कुबरा तक है इस वक्त में जब नियत कर ले यह रोजे हो जायेंगे।
लिहाजा आफताब डूबने से पहले नियत की कल रोज़ा रडूंगा फिर बेहोश हो गया और जहवए
कुबरा के बाद होश आया तो यह रोजा न हुआ और आफताब डूबने के बद नियत की थी तो हो
गया।
*📖मसअला::-* जहवए कुबरा नियते वक्त नहीं बल्कि इससे पेश्तर पहले नियत हो जाना जरूरी है और अगर खास वक्त यअनी जिस वक्त आफंताब खत्ते निस्फुन्नहारे शरई पर पहुँच गया नियत की तो रोज़ा न हुआ।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,72-73)*
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*📖मसअला::-* नियत के बारे में नफ़्ल आम है सुन्नत व मुस्तहब व मकरूह सब को शामिल है कि
इन सब के लिए नियत का वही वक़्त है!
*📖मसअला::-* जिस तरह और जगह बताया गया कि नियत दिल के इरादे का नाम है जबान से
कहना शर्त नहीं यहाँ भी वही मुराद है मगर जबान से कह लेना मुस्तहब है अगर रात में नियत करे *तो यूँ कहे :-*
*📄तर्जमा:-* "मैंने नियत की कि अल्लाह तआला के लिए इस रमजान का फर्ज रोजा कल रखुगा"।
*और दिन में नियत करे तो यह कहे :-*
तर्जमा :- "मैंने नियत की कि अल्लाह तआला के लिए आज रमज़ान का फर्ज रोजा रखुगा"।
और अगर तबर्रुक व तलबे तौफीक के लिए नियत के अल्फाज में इन्शाअल्लाह तआला भी मिला लिया तो हरज नहीं और अगर पक्का इरादा न हो मुजबजब हो यअनी कभी हाँ कभी न हो तो नियत ही कहाँ हुई।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,73,74)*
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*📖मसअला::-* दिन में नियत करे तो यह जरूर है क यह नियत करे कि 4 सुबहे सादिक से रोज़ादार हूँ और अगर यह नियत है कि अब से रोज़ादार हूँ सुबह से नहीं तो रोजा न हुआ।
*📖मसअला::-* अगर्चे उन तीन किस्म के रोजे की नियत दिन में भी हो सकती है मगर रात में नियत कर लेना मुसतहब है।
यूँ नियत की कि कल कहीं दअवत हुई तो रोजा नहीं और न हुई तो रोजा है यह नियत सही नहीं बहरहाल वह रोज़ादार नहीं।
*📖मसअला::-* रमजान के दिन में न रोजे की नियत है न यह कि रोजा नहीं अगर्चे मालूम है कि यह महीना रमजान का है तो रोज़ा न हुआ।
*📖मसअला::-* रात में नियत की और फिर उसके बअद रात ही में खाया पिया तो नियत जाती न रही वही पहली काफी है फिर से नियत करना जरूरी नहीं ।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,73,74)*
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*📖मसअला::-* औरत हैज व निफास वाली थी उसने रात में कल रोजा रखने की नियत की और सुबहे सादिक से पहले हैजे व निफास से पाक हो गई तो रोजा सही हो गया।
*📖मसअला::-* दिन में वह नियत काम की है कि सुबहे सादिक से नियत करते वक्त तक रोजे के खिलाफ कोई अम्र (काम) न पाया गया हो । लिहाजा अगर सुबहे सादिक के बअद भूलकर भी खा पी लिया हो या जिमा *(हमबिस्तरी)* कर लिया तो अब नियत नहीं हो सकती मगर मोअतमद, यह है कि भूलने की हालत में अब भी नीयत सही है।
*📖मसअला::-* जिस तरह नमाज में कलाम की नियत की मगर बात न की तो नमाज फासिद न होगी यूँही रोजा में तोड़ने की नियत से रोजा नहीं टूटेगा जब तक तोड़ने वाली चीज न करे।
*📖मसअला::-* अगर रात में रोजे की नियत की फिर पक्का इरादा कर लिया कि नहीं रखेगा तो वह नियत जाती रही अगर नई नियत न की और दिन भर भूका प्यासा रहा और जिमा *(हमबिस्तरी)* से बचा तो रोजा न हुआ।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह, 73,74)*
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*📖मसअला::-* सहरी खाना भी नियत है खाह रमजान के रोजे के लिए हो या किसी और रोजे के
लिए मगर जब सहरी खाते वक्त यह इरादा.है कि सुबह को रोजा न होगा तो सहरी खाना नियत
नहीं।
*📖मसअला::-* रमजान के हर रोजे के लिए नई नियत की ज़रूरत है पहली या किसी तारीख में पूरे रमज़ान के रोजे की नियत कर ली तो यह नियत सिर्फ उसी एक दिन के हक में है बाकी दिनों के लिए नहीं।
*📖मसअला::-* यह तीनों यअनी रमजान के अदा और नफ्ल व नज़रे मुअय्यन मुतलकन रोजे की नियत से हो जाते हैं खास इन्हीं की नियत जरूरी नहीं।
यूँही नफ्ल की नियत से भी अदा हो जाते हैं बल्कि गैरे मरीज व गैरे मुसाफिर ने रमज़ान में किसी और वाजिब की नियत की जब भी उसी रमजान का होगा।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह, 73,74)*
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*📖मसअला::* मुसाफ़िर और मरीज़ अगर रमजान शरीफ में नफ्ल या किसी दूसरे वाजिब की नियत करें तो जिसकी नियत करेंगे वह होगा रमज़ान का नहीं और मुतलक राज की नियत करे तो रमज़ान का होगा।
*📖मसअला::* नज़रे मुअय्यन यअनी फलाँ दिन रोज़ा रयूँगा इसमें अगर उस दिन किसी और वाजिब की नियत से रोज़ा रखा तो जिस की नियत से रोजा रखा यह हुआ,मन्नत की कजा दे।
*📖मसअला::* रमजान के महीने में कोई रोज़ा रखा और उसे यह मलूम न था कि यह माहे रमजान है जब भी रमज़ान ही का रोज़ा हुआ।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,75)*
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*📖मसअला::* कोई मुसलमान दारुलहरब में कैद था और हर साल यह सोचकर कि रमजान का महीना आ गया रमजान के रोजे रखे बअद को मअलूम हुआ कि किसी साल भी रमजान में न हुए बल्कि हर साल रमज़ान से पेश्तर (पहले) हुए तो पहले साल का तो हुआ ही नहीं कि रमजान से पेश्तर रमज़ान का रोज़ा हो नहीं सकता और दूसरे तीसरे साल की निस्बत यह है कि अगर मुतलक रमजान की नियत की थी तो हर साल के रोजे गुज़रे हुए साल के रोजे की कज़ा है और
अगर हर साल के रमज़ान की नियत से रखे तो किसी साल के न हुए।
*📖मसअला::* अगर सूरते मजकुरा में (यअनी ऊपर जो सूरत ज़िक्र हुई उसमें) तहर्रि की यअनी सोचा और दिल में यह बात जमी कि यह रमज़ान का महीना है और रोज़ा रखा मगर हकीकत में रोजे शव्वाल के महीने में हए तो अगर रात से नियत की तो हो गये क्यूँकि कजा में कज़ा की नियत शर्त नहीं बल्कि अदा की नियत से भी कजा हो जाती है फिर अगर रमजान व शव्वाल दोनों तीस-तीस दिन या उन्तीस-उन्तीस दिन के है तो एक रोज़ा और रखे कि ईद का रोजा मना है और अगर रमज़ान तीस का था और शव्वाल उन्तीस का तो दो और रखे और रमज़ान उन्तीस का था और यह तीस का तो हो गये और अगर वह महीना ज़िलहिज्जा का था तो अगर दोनों तीस तीस या उन्तीस के हैं तो चार रोजे और रखे और रमज़ान तीस का था यह उन्तीस का तो पाँच और बिलअक्स यअनी इसका उल्टा हुआ तो तीन रखे गरज़ मना किये हुए रोजे निकालकर तअदाद पूरी करनी होगी जितने रमज़ान के दिन थे।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,75)*
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*📖मसअला::* अदाए रमज़ान और नज़रे मुअय्यन और नफ्ल के अलावा बाकी रोज़े मसलन कज़ाए रमजान नज़रे गैरे मुअय्यन और नफल की कजा *यअनी नफ्ली रोजा रखकर तोड़ दिया था उसकी कजा* नज़रे मुअय्यन की कजा और कफ्फारे का रोजा और हरम में शिकार करने की वजह से जो
रोज़ा वाजिब हुआ वह और हज में वक्त से पहले सर मुन्डाने का रोज़ा और तमत्तो का रोजा इन
सब में बिल्कुल सुबहे सादिक चमकते वक़्त या रात में नियत करना जरूरी है और यह भी जरूरी है कि जो रोजा रखना है खास उस मुअय्यन की नियत करे और इस रोज़ों की नियत अगर दिन में की तो नफ़्ल हुए फिर भी उनका पूरा करना जरूरी है तोड़ेगा तो कजा वाजिब होगी अगर्चे यह उसके इल्म में हो कि जो रोज़ा रखना चाहता है वह नहीं होगा बल्कि नफ्ल होगा।
*📖मसअला::* यह गुमान करके कि उसके जिम्मे रोजे की कज़ा है रोज़ा रखा अब मअलूम हुआ कि गुमान गलत था तो अगर फौरन तोड़ दे तो तोड़ सकता है अगर्चे बेहतर यह है कि पूरा कर ले और अगर फौरन न तोड़ा तो अब नहीं तोड़ सकता, तोड़ेगा तो कजा वाजिब है।
*📖मसअला::* रात में कजा रोजे की नियत की सुबह को उसे नफ्ल करना चाहता है तो नहीं कर
सकता।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,75)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 2⃣1️⃣*
*🌟मसाइले फ़िक़्हिया*
*📖मसअला::* नमाज पढ़ते में रोजे की नियत की तो यह नियत सही है।
*📖मसअला::* कई रोजे कजा हो गये तो नियत में यह होना चाहिए कि इस रमजान के पहले रोजे की कजा दूसरे की कजा और अगर कुछ इस साल के कज़ा हो गये कुछ पिछले साल के बाकी है तो यह नियत होनी चाहिए कि इस रमजान की और उस रमजान की कज़ा और अगर दिन और
साल को मुअय्यन न किया जब भी हो जायेंगे।
*📖मसअला::* रमजान का रोजा जानबूझ कर तोड़ा था तो उस पर उस रोजे की कजा है और साठ रोजे।कपफारे के अब उसने इक्सठ रोजे रख लिए कजा का दिन मुअय्यन न किया तो हो गया।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,76)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 2⃣2⃣*
*🌟मसाइले फ़िक़्हिया*
*📖मसअला::* यौमे शक (शक के दिन)यअनी शबान की तीसवीं तारीख को नफ्ले खालिस की नियत से रोजा रख सकते हैं और नफ़्ल के सिवा कोई और रोजा रखा तो मकरूह है ख्वाह नियत मुअय्यन की हो या तरतुद *(यानी शक वाली हालत)* के साथ यह सब सूरतें मकरूह है फिर अगर रमजान की नियत है तो मकरूहे तहरीमी है, वरना मुकीम के लिये तन्जीही और मुसाफिर ने अगर किसी वाजिब की नियत की तो कराहत नहीं फिर अगर उस दिन का रमज़ान होना साबित हो जाये तो मुकीम के लिए बहरहाल रमज़ान का रोजा है और यह जाहिर हुआ कि वह शाबान का दिन था और नियत किसी वाजिब की थी तो जिस वाजिब की नियत थी वह हुआ और अगर।कुछ हाल न खुला तो वाजिब की नियत बेकार गई और मुसाफिर ने जिसकी नियत की बहरहाल वही हुआ।
*मसअला::* अगर तीसवीं तारीख ऐसे दिन हुई कि उस दिन रोजा रखने को आदी था तो उसे रोजा रखना अफजल है मसलन कोई शख्स पीर या जुमेरात का रोज़ा रखा करता है और तीसवीं उसी दिन पड़ी तो रखना अफजल है। यूँही अगर चन्द रोज़ पहले से रख रहा था तो अब शक वाले दिन में कराहत नहीं,कराहत उसी सूरत में है कि रमज़ान से एक या दो दिन पहले रोज़ा रखा जाये यअनी सिर्फ तीस शाबान को या उन्तीस और तीस को
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,76)*
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*📖मसअला::* अगर न तो उस दिन रोजा रखने का आदी था न कई रोज़ पहले से रोजे रखे तो अब खास लोग रोजा रखें और अवाम न रखें बल्कि अवाम के लिए यह हुक्म है कि जहवए कुबरा तक रोजे की तरह रहें अगर उस वक्त तक चाँद का सुबूत हो जाये तो रमज़ान के रोज़े की नियत कर लें वरना खा पी लें। खवास से मुराद यहाँ उलमा ही नहीं बल्कि जो शख्स यह जानता हो कि शक वाले दिन में इस तरह रोज़ा रखा जाता है वह खवास में है वरना अवाम में।
*📖मसअला::* शक वाले दिन के रोजे में यह पक्का इरादा कर ले कि यह रोज़ा नफ्ल है तरद्दुद
(यअनी शक वाली हालत) न' रहे,यूँ न हो कि अगर रमजान है तो यह रोजा रमजान का वरना नफ्ल का या यूँ कि अगर आज रमज़ान का दिन है तो यह रोज़ा रमजान का है वरना किसी और वाजिब का कि यह दोनों सूरतें मकरूह है फिर अगर उस दिन का रमजान होना साबित हो जाये तो फर्जे रमजान अदा होगा वरना दोनों सूरतों में नफ्ल है और गुनाहगार बहरहाल हुआ और यूँ भी नियत न करे कि यह दिन रमजान का है तो रोज़ा हुआ और अगर नफ़्ल का पूरा इरादा है मगर कभी दिल मैं यह ख्याल गुज़र जाता है कि शायद आज रमज़ान का दिन हो तो इसमें हरज नहीं ।
*📖मसअला::* अवाम को जो, यह हुक्म दिया गया कि जहवए कुबरा तक इन्तिज़ार करें जिसने इस पर अमल किया मगर भूल कर खा लिया फिर उस दिन का रमज़ान होना ज़ाहिर हुआ तो रोजे की नियत कर लें हो जायेगा कि इन्तिजार करने वाला रोज़ादार के हुक्म में है और भूल कर खाने से रोजा नहीं टुटता।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,76)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 2⃣4⃣*
*🌸उन चीजों का बयान जिनसे रोज़ा नहीं जाता*
*🌟मसाइले फ़िक़्हिया*
*📖मसअला::* अगर न तो उस दिन रोजा रखने का आदी था न कई रोज़ पहले से रोजे रखे तो अब खास लोग रोजा रखें और अवाम न रखें बल्कि अवाम के लिए यह हुक्म है कि जहवए कुबरा तक रोजे की तरह रहें अगर उस वक्त तक चाँद का सुबूत हो जाये तो रमज़ान के रोज़े की नियत कर लें वरना खा पी लें। खवास से मुराद यहाँ उलमा ही नहीं बल्कि जो शख्स यह जानता हो कि शक वाले दिन में इस तरह रोज़ा रखा जाता है वह खवास में है वरना अवाम में।
*📖मसअला::* शक वाले दिन के रोजे में यह पक्का इरादा कर ले कि यह रोज़ा नफ्ल है तरद्दुद
(यअनी शक वाली हालत) न' रहे,यूँ न हो कि अगर रमजान है तो यह रोजा रमजान का वरना नफ्ल का या यूँ कि अगर आज रमज़ान का दिन है तो यह रोज़ा रमजान का है वरना किसी और वाजिब का कि यह दोनों सूरतें मकरूह है फिर अगर उस दिन का रमजान होना साबित हो जाये तो फर्जे रमजान अदा होगा वरना दोनों सूरतों में नफ्ल है और गुनाहगार बहरहाल हुआ और यूँ भी नियत न करे कि यह दिन रमजान का है तो रोज़ा हुआ और अगर नफ़्ल का पूरा इरादा है मगर कभी दिल मैं यह ख्याल गुज़र जाता है कि शायद आज रमज़ान का दिन हो तो इसमें हरज नहीं ।
*📖मसअला::* अवाम को जो, यह हुक्म दिया गया कि जहवए कुबरा तक इन्तिज़ार करें जिसने इस पर अमल किया मगर भूल कर खा लिया फिर उस दिन का रमज़ान होना ज़ाहिर हुआ तो रोजे की नियत कर लें हो जायेगा कि इन्तिजार करने वाला रोज़ादार के हुक्म में है और भूल कर खाने से रोजा नहीं टुटता।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,76)*
*📖मसअला::* भूलकर खाया या पिया या जिमा किया रोज़ा फासिद न हुआ ख्वाह वह रोजा फर्ज हो या नफ्ल और रोजे की नियत से पहले यह चीजें पाई गयीं या बअद में मगर जब याद दिलाने पर भी याद न आया कि रोज़ादार है तो अब फासिद हो जायेगा ब-शर्ते कि याद दिलाने के बअद यह
अफआल वाकेज हुए हों मगर इस सूरत में कफ्फारा लाज़िम नहीं।
*📖मसअला::* किसी रोज़ादार को इन अफआल में देखे तो याद दिलाना वाजिब है याद न दिलाया तो गुनाहगार होगा मगर जबकि वह रोज़ादार बहुत कमज़ोर हो कि याद दिलायेगा तो वह खाना छोड़ देगा और कमजोरी इतनी बढ़ जायेगी कि रोजा रखना दुश्वार होगा और खा लेगा तो रोज़ा भी अच्छी तरह पूरा कर लेगा और दीगर इबादतें भी ब-खूबी अदा कर लेगा तो इस सूरत में याद न दिलाना बेहतर है। बाज मशाइख ने कहा जवान को देखे तो याद दिला दे और बूढे को देखे तो याद न दिलाने में हरज नहीं मगर यह हुक्म अकसर के लिहाज से है कि जवान अकसर कवी होते है और बूढ़े अक्सर कमजोर और अस्ल हुक्म यह है कि जवानी और बुढ़ापे को कोई दखल नहीं बल्कि कुवत व जुअफ (कमजोरी)का लिहाज है लिहाजा अगर जवान इस कद्र कमजोर हो तो याद न दिलाने में हरज नहीं और बूढ़ा कवी हो तो याद दिलाना वाजिब ।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,81,82,83)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 2⃣5⃣*
*🌸उन चीजों का बयान जिनसे रोज़ा नहीं जाता*
*📖मसअला::* मक्खी या धूल या गुबार हल्क में जाने से रोज़ा नहीं टूटता ख्वाह वह गुबार आटे का हो कि चक्की पीसने या आटा छानने में उड़ता है या गल्ले का गुबार हो या हवा से खाक. उड़ी या जानवरों के खुर या टाप से गुबार उड़ कर हल्क में पहुँचा अगर्चे रोज़ादार होना याद था और अगर खुद कस्दन धुआँ पहुँचाया तो फासिद हो गया जबकि रोज़ादार होना याद हो ख्वाह वह किसी चीज़ का धुआँ हो और किसी तरह पहुँचाया हो यहाँ तक कि अगर की बत्ती वगैरा खुशबू सुलगती थी उसने मुँह करीब करके धुंए को नाक से खींचा रोज़ा जाता रहा। यूँही हुक्का पीने से भी रोजा टूट जाता है अगर रोजा. याद हो और हुक्का पीने वाला अगर पीये तो कफ्फारा भी लाज़िम आयेगा।
*📖मसअला::* भरी सिंगी लगवायी या तेल या सुर्मा लगाया तो रोजा न गया अगर्चे तेल या सुर्मे का मज़ा हल्क में महसूस होता 'हो बल्कि थूक में सुर्मे का रंग भी दिखाई देता हो जब भी नहीं टूटा।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,81,82,83)*
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*📝पोस्ट नम्बर... 2⃣6⃣*
*🌸उन चीजों का बयान जिनसे रोज़ा नहीं जाता*
*📖मसअला::* बोसा लिया मगर इन्जाल न हुआ तो रोजा नहीं। टूटा यूही औरत की तरफ बल्कि उसकी शर्मगाह की तरफ नजर की मगर हाथ न लगाया और इन्जाल हो गया अगर्चे बार-बार नज़र करने या जिमा वगैरा के ख्याल करने से इन्जाल हुआ अगर्चे देर तक ख्याल जमाने से ऐसा हुआ हो उन सब सूरतों में रोज़ा नहीं टूटा।
*📖मसअला::* गुस्ल किया और पानी की खुनकी अन्दर महसूस हुई या कुल्ली की और पानी बिल्कुल फेंक दिया सिर्फ कुछ तरी मुँह में बाकी रह गयी थी थूक के साथ उसे निगल गया या दवा कूटी और हल्क में उसका मजा महसूस हुआ या हड़ चूसी और थूक निगल गया मगर थूक के साथ हड़ का कोई जुज हल्क में न पहुँचा या कान में पानी चला गया या तिनके से कान खुजाया और उस पर कान का मैल लग गया फिर वही मैल लगा हुआ तिनका कान में डाला अगर्ने चन्द बार किया हो या दाँत या मुँह में खफीफ (बहुत थोड़ी)चीज़ मअमूली सी रह गई कि लुआब के साथ खुद ही उतर जायेगी और वह उतर गई या दाँतों से खून निकलकर हल्क तक पहुँचा मगर हल्क से नीचे न उतरा तो उन सब सूरतों में रोज़ा न गया।
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*📝पोस्ट नम्बर... 2⃣7⃣*
*🌸उन चीजों का बयान जिनसे रोज़ा नहीं जाता*
*📖मसअला::* रोज़ादार के पेट में किसी ने नेज़ा या तीर भोंक दिया अगर्चे उसकी भाल या पैकान (फल) पेट के अन्दर रह गई,या उसके पेट में झिल्ली तक जख्म था किसी ने कंकरी मारी कि अन्दर चली गयी तो रोज़ा नहीं टूटा और अगर खुद उसने यह सब किया और भाल या पैकान या कंकरी अन्दर रह गयी तो जाता रहा।
*📖मसअला::* बात करने में थूक से होंट तर हो गये और उसे पी गया,मुँह से राल टपकी मगर तार टूटा न था उसे चढ़ा कर पी गया नाक में रेंठ आ गयी बल्कि नाक से बाहर हो गई मगर मुनकता (अलग) न हुई थी कि उसे चढ़ा कर निगल गया या खंकार मुँह में आया और खा गया अगर्चे कितना ही हो रोजा न जायेगा मगर इन बातों से एहतियात चाहिये।
*📖मसअला::* मक्खी हल्क में चली गयी रोज़ा न गया और कस्दन निगली तो जाता रहा।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,81,82,83)*
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*🌸उन चीजों का बयान जिनसे रोज़ा नहीं जाता*
*📖मसअला::* गैरे सबीलैन में जिमा किया (शर्म गाहों के अलावा मज़ा हासिल किया)तो जब तक इन्जाल न हो रोज़ा न टूटेगा। यूँही हाथ से मनी निकालने में अगर्चे यह सख्त हराम हैं कि हदीस में उसे मलऊन फरमाया।
*📖मसअला::* चौपाया या मुर्दा से जिमा किया और इन्जाल न हुआ तो रोज़ा न गया और इन्जाल हुआ तो जाता रहा मादा जानवर का बोसा लिया या उसकी फर्ज (फर्ज पेशाब की जगह)को छुआ तो रोज़ा न गया *अगर्चे इन्जाल हो गया अगर्चे यह काम गैर इस्लामी व नाजाइज़ हैं*
*📖मसअला::* एहातेलाम हुआ या गीबत की तो रोज़ा न गया अगर्चे गीबत बहुत सख्त कबीरा गुनाह है कुआन मजीद में गीबत करने की निस्बत गीबत ज़िना से भी सख्त तर है अगर्चे गीबत की वजह से रोजे की नूरानियत जाती रहती है।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,81,82,83)*
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*🌸उन चीजों का बयान जिनसे रोज़ा नहीं जाता*
*📖मसअला::* जनाबत की हालत में सुबह की बल्कि अगर्चे सारे दिन जुनुब रहा रोज़ा न गया मगर इतनी देर तक कस्दन(जान बूझ कर) गुस्ल न करना कि नमाज़ कज़ा हो जाये गुनाह व हराम है।
📜हदीस में फरमाया कि जुनुब (बे-गुस्ल) जिस घर में होता है उसमें रहमत के फ़रिश्ते नहीं आते।
*📖मसअला::* जिन्न यअनी परी से जिमा किया तो जब तक इन्जाल न हो रोज़ा न टूटेगा *यअनी जबकि इन्सानी शक्ल में न हो और इन्सानी शक्ल में हो तो वही हुक्म है जो इन्सान से जिमा करने का है।*
*📖मसअला::* तिल या तिल के बराबर कोई चीज़ चबाई और थूक के साथ हल्क से उतर गई तो
रोज़ा न गया मगर जबकि उसका मज़ा हल्क में महसूस होता हो तो रोज़ा जाता रहा ।
*📚(बहारे शरीअत हिस्सा,5 सफ़ह,81,82,83)*
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