नमाज़ के फजाईल व मसाईल
*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-1⃣*
🔮नमाज़ अहमुल-फराइज़ है, तमाम इबादात में नमाज़ सबसे अफ्जल है, क्यामत के दिन सब से पहले नमाज़ ही की पुरसिश होगी दीगर इबादात के बारे में बाद में पूछा जाएगा, नमाज़ ऐसी इबादत है जो तमाम अंबिया-ए-किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम की उम्मतों में रही मगर उसकी शक्ल मुख़्तलिफ और तकाजे अलग रहे और यह कि पाँचों नमाजें किसी उम्मते साबेका में नहीं रहीं यह सिर्फ उम्मते मुहम्मदीया अला साहिबहस्सलातु वस्सना की खुसूसियत है कि इस उम्मते मरहूमा को पाँचों नमाज़ों का मजमूआ दिया गया अगली उम्मतों में किसी पर दो वक्त की नमाज़ फर्ज थी,किसी पर तीन वक्त की, पाँचों नमाजें किसी उम्मत में नहीं थीं, अल्लाह तआला ने पाँच नमाज़ों की खुसूसियत से इस उम्मत का एजाज व इकराम बढ़ाया।
📿नमाज़ के फज़ाइल बयान से बाहर और हद्दे तसव्वुर से बाला हैं अहादीस व आसारे नमाज़ की
फजीलतों से गूंज रहे हैं, बन्दा मोमिन जब नमाज के लिए बारगाहे रब्बुल-इज़्ज़त में तवाजु व इंकिसारी के साथ खड़ा होता है तो परवरदिगारे आलम उसकी इस अदा से फ़रिश्तों में मुबाहात व तकिरा फरमाता है कि देखो मेरा बन्दा कैसा अच्छा काम कर रहा है एक नमाज़ी का वकार उस से बढ़ कर क्या होगा कि खालिके काइनात उसकी इस अदा का ज़िक्र फरमाता है अल्लाह ताबरक व तआला ने नमाज़ का तौफा अता फरमा कर हम पर बेपनाह एहसान व इकराम फ़रमाया है।!
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,534)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-2⃣*
✨नमाज पंजगाना अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल की वह नेमते उज्मा है कि उसने अपने करमे अजीम खास हम को अता फरमाई हम से पहले किसी उम्मत को न मिली।
🔹बनी इस्राईल पर दो ही वक़्त की फर्ज थी वह भी सिर्फ चार रकाअतें, दो सुबह, दो शाम, वह
भी उन से न निभी हजूर सैयदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम हदीसे मेराज मुबारक में इरशाद फरमाते हैं यानी फिर पचास नमाज़ों की पाँच रहीं, मूसा अलैहिस्सलात् वस्सलाम ने अर्ज की कि हुजूर फिर जाएं और अपने रब से तख़्फीफ चाहें कि उसने बनी इस्राईल पर दो नमाजें फर्ज फरमाई थीं वह उन्हें भी बजा न लाए।
💫और उम्मतों का हाल खुदा जाने मगर इतना जरूर है कि यह पाँचों उन में से किसी को न मिलें,
उलमा ने बेखिलाफ उसकी तशरीह फरमाई।
⚡मवाहिब शरीफ उम्मते मरहूमा के बयान खसाइस में है कि पाँचों नमाज़ों का मजमूआ उस उम्मत की खुसूसियत है उनके अलावा किसी में यह नमाजें जमा नहीं हुई।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,534)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-3⃣*
💫हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने नमाज़े *इशा की निस्बत फरमाया कि उस नमाज़ को देर करके पढ़ो कि तुम उस से तमाम उम्मतों पर फजीलत दिए गये हो तुम* से पहले किसी उम्मत ने यह नमाज़ न पढ़ी।
🔹जाहिर हुआ कि जब नमाजे इशा हमारे लिए खास है तो पाँचों का मजमूआ भी हमारे सिवा किसी उम्मत को न मिला, हमारे *नबी सैयदुल-अंबिया सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम के सिवा* किसी नबी को यह पाँचों न मिलना उलमा इसकी भी तस्रीहें फरमाते हैं कि :
🕌पाँचों नमाज़ों का मज्मूआ हुजूर की खुसूसियत है किसी नबी के लिए यह नमाजें जमा नहीं हुई यह पाँचों नमाजें और अंबिया में मुतफर्रिक थीं और इस उम्मत में जमा कर दी गईं।
💫हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु से हदीसे मेराज में रिवायत है कि *हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को खास तौर से तीन चीज़ दी गई।*
*1. पाँच नमाजें।*
*2. सूरः बकरा की आख़िरी आयात ।*
*3. उम्मत में से उनकी मरिफरत जिन्होंने ने शिर्क नहीं किया।*
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,534)*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-4⃣*
*💎नमाज पंजगाना की फजीलत पर एक रिवायत📜*
📿इमाम फकीह अबूल्लैस समरकन्दी रहमतुल्लाह तआला अलैह ने हजरत कअब अहबार रजि अल्लाहु तआला अन्हु से नकल किया कि उन्होंने फरमाया मैंने तौरेत मुकद्दस के किसी मकाम में पढ़ा।
*📄ऐ मूसा फ़ज़्र की दो रकाअतें अहमद और उसकी उम्मत अदा करेगी जो उन्हें पढ़ेगा उस दिन रात के सारे गुनाह उसके बख़्श दूंगा और वह मेरे जिम्मा में होगा।*
✨ऐ मूसा जुहर की चार रकाअतें अहमद और उसकी उम्मत पढ़ेगी उन्हें पहली रकाअत के एवज बख्श दूँगा और दूसरी के बदले उनका पल्ला भारी कर दूंगा और तीसरी के एवज़ फ़रिश्ते मुवक्किल कर दूँगा कि तस्बीह करेंगे और उनके लिए दुआए मरिफरत करते रहेंगे, और चौथी के बदले उनके लिए आसमान के दरवाजे कुशादा कर दूंगा, बड़ी-बड़ी आँखों वाली (हूरें) उन पर मुश्ताकाना नजर डालेंगी।
*💫ऐ मूसा अस्र की चार रकाअतें अहमद और उनकी उम्मत अदा करेगी तो हफ्त आसमान व जमीन में कोई फरिश्ता बाकी न बचेगा सब ही उनकी मग़फ़िरत चाहेंगे और मलाइका जिसकी मरिफरत चाहें मैं उसे हरगिज़ अज़ाब न दूंगा।*
✨ऐ मूसा मरिरब की तीन रकाअतें हैं इन्हें अहमद और उनकी उम्मत पढ़ेगी आसमान के सहारे दरवाजे उनके लिए खोल दूँगा जिस हाजत का सवाल करेंगे उसे पूरा ही कर दूंगा।
*📿ऐ मूसा शफ़क डूब जाने के वक्त यानी इशा की चार रकाअतें हैं पढ़ेंगे इन्हें अहमद और उनकी उम्मत वह दुनिया व माफीहा से उनके लिए बेहतर है वह उन्हें गुनाहों से ऐसा निकाल देगी जैसे अपनी माओं के पेट से पैदा हुए।*
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,534)*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-5⃣*
*💎नमाज पंजगाना की फजीलत पर एक रिवायत📜*
📄हिस्सा 2
*इसी रिवायत में वुजू और रोजे वगैरह का जिक्र भी फरमाया गया है* ऐ मूसा वुजू करेगा अहमद और उसकी उम्मत जैसा कि मेरा हुक्म है मैं उन्हें अता फरमाऊंगा हर कतरे के एवज़ कि आसमान से टपके एक जन्नत, जिसका अर्ज आसमान व जमीन की चौड़ाई के बराबर होगा।
📄ऐ मूसा एक महीना के सालाना रोजे रखेगा अहमद और उसकी उम्मत और वह माहे रमजान है अता फरमाऊंगा हर रोज़ उनके रोज़ों के एवज़ एक शहर जन्नत और अता करूंगा उसमें नफ़्ल के बदले फर्ज़ का सवाब और उसमें लैलतुल-कद्र करूंगा जो इस महीने में शर्मसारी व सिद्के कल्ब से एक बार इस्तिगफार करेगा अगर इसी शब या इस महीने भर में मर गया उसे तीस शहीदों का सवाब अता।फरमाऊंगा।
💫ऐ मूसा उम्मते मुहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम में कुछ ऐसे मर्द हैं कि हर शर्फ पर काइम हैं ला-इला-हा इल्लल्लाह की शहादत देते हैं तो उनकी जजा उसके एवज अंबिया
अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम का सवाब है और मेरी रहमत उन पर वाजिब और मेरा गज़ब उन से दूर,और उन में से किसी पर बाबे तौबा बन्द न करूंगा जब तक वह ला-इला-हा इल्लल्लाह की गवाही देते रहेंगे।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,534)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-6⃣*
*📿कौन सी नमाज़ किस नबी ने पहले पढ़ी :*
🌟यूं तो हर नबी और उसकी उम्मत में नमाजें रहीं मगर कौन सी नमाज़ किसी नबी ने सबसे पहले पढ़ी इस सिलसिले में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुद्दिसा सिर्रुह फरमाते हैं कि इस में चार कौल हैं अव्वल कौल इमाम उबैदुल्लाह बिन आइशा मम्दूह कि -
*जब आदम अलैहिस्सलातु वस्सलाम की तौबा कुबूल हुई वह फज का वक्त था उन्होंने दो रकाअतें पढ़ीं वह नमाजे सुबह हुई।*
✨इसहाक अलैहिस्सलातु वस्सलाम का फिदिया (यह रिवायत मरजूह है सही यह है कि फिदिया हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम का आया था।) वक़्ते जुहर आया इब्राहीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने चार पढ़ीं वह ज़ुहर मुकर्रर हुई।
*उज़ैर अलैहिस्सलातु वस्सलाम सौ बरस के बाद जिन्दा किए गये उन्होंने चार पढी वह अस्र हुई।।*
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,534)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-7⃣*
*📿कौन सी नमाज़ किस नबी ने पहले पढ़ी :*
*📄हिस्सा-2*
🌸दाऊद अलैहिस्सलातु वस्सलात की तौबा वक़्ते मगिरब कुबूल हुई *चार रकाअतें पढ़ने खड़े हुए थक कर तीसरी पर बैठ गये मगिरब की तीन ही रहीं।*
और इशा सबसे पहले हमारे *नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने पढ़ी।*
📄दोम : कौल इमाम अबुल-फ़ज़ल सबसे पहले फ़ज़्र को दो रकाअतें हज़रत आदम
*जुहर को चार रकाअतें हजरत इब्राहीम।*
*अस्र हजरत यूनुस।*
*मरिरब हज़रत ईसा।*
*इशा हज़रत मूसा ने पढ़ी,* अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम इमाम ज़न्दोस्ती किताबुरौंजा हर नमाज़ एक नबी ने पढ़ी है उसका खुलासा यह है :
📿आदम अलैहिस्सलातु वस्सलाम जब जन्नत से जमीन पर तशरीफ लाए दुनिया आँखों में तारीक थी और उधर रात की अंधेरी आई, उन्होंने रात कहाँ देखी थी बहुत खाइफ हुए जब सुबह चमकी दो रकाअतें शुक्रे इलाही की पढ़ीं, एक उसका शुक्र कि तारीकी शब से नजात मिली, दूसरा उसका कि दिन की रोशनी पाई, उन्होंने नफ्ल पढ़ी थीं हम पर फर्ज की गई कि हम से गुनाहों की तारीकी दूर हो और इताअत का नूर हासिल हो।
🌟जवाल के बाद सबसे पहले इब्राहीम अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने चार रकाअतें पढ़ीं जबकि
इस्माईल अलैहिस्सलातु वस्सलाम का फिदिया उतरा है, पहली उसके शुक्र में कि बेटे का गम दूर
हुआ, दूसरा फिदिया आने के सबब, तीसरी रजाए इलाही मौला सुब्हानहू तआला का शुक्र, चौथी
उसके शुक्र में कि अल्लाह अज़्जा व जल्ला के हुक्म पर इस्माईल अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने गर्दन
रख दी, यह उनके लिए नफ्ल थीं हम पर फर्ज हुई, कि मौला तआला हमें कत्ले नफ्स पर कुदरत दे जैसी उन्हें ज़बहे वल्द पर कुदरत दी और हमें भी गम से नजात दे और यहूद व नसारा को हमारा फिदिया करके नार से हमें बचा ले और हम से भी राजी हो।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,537)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-8⃣*
*📿कौन सी नमाज़ किस नबी ने पहले पढ़ी :*
*📄हिस्सा-3*
📿नमाजे अस्र सबसे पहले यूनुस अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने पढ़ी कि उस वक्त मौला तआला ने
उन्हें चार जुल्मतों से नजात दी।
*(1) जुल्मते लग्ज़िश (2) जुल्मते गम (3) जुल्मते दरिया (4) जुल्मते शिकमे माही।*
यह उनके लिए नफ्ल थीं हम पर फर्ज हुईं, कि मौला तआला जुल्मते गुनाह, व जुल्मते कब्र, व
जुल्मते क्यामत, व जुल्मते दोज़ख़ से पनाह दे।
🌠मरिरब सबसे पहले ईसा अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने पढ़ी पहली अपने नफ्स से नफी उलूहियत, दूसरी अपनी माँ से नफी उलूहियत, तीसरी अल्लाह अज़्जा व जल्ल के लिए इस्बाते उलूहियत के लिए, यह उनके नफ्ल हम पर फर्ज हुए कि रोजे क्यामत हम पर हिसाब आसान हो, नार से नजात हो, इस बड़ी घबराहट से पनाह हो।
🌟सबसे पहले इशा मुसा अलैहिस्सलातू वस्सलाम ने पढी जब मदाइन से चल कर रास्ता भुल गये बीबी का गम, औलाद की फिक्र, भाई पर अन्देशा, फिरऔन से खौफ, जब वादिए ऐमन में रात के वक्त मौला तआला ने उन्हें इन सब फिक्रों से नजात बख़्शी, चार नफ़्ल शुक्राने के पढ़े हम पर फर्ज हुई कि अल्लाह तआला हमें भी राह दिखाए, हमारे भी काम बनाए, हमें अपने महबूबों से मिलाए, दुश्मनों पर फतह दे आमीन।
*सोम : कौल बाज़ उलमा👇🏻*
फ़ज़्र आदम अलैहिमस्सलाम।
जुहर इब्राहीम अलैहिमस्सलाम।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,537)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*पोस्ट नम्बर::-9⃣*
*📿कौन सी नमाज़ किस नबी ने पहले पढ़ी :*
*📄हिस्सा-4*
*सोम : कौल बाज़ उलमा👇🏻*
*अस्र सुलेमान अलैहिमस्सलाम मरिरब ईसा अलैहिमस्सलाम ने पढ़ी और इशा खास उस उम्मत को मिली चहारुम वह हदीस कि इमाम राफई ने शरह मुसनद में जिक्र फरमाई सुबह आदम अलैहिमस्सलाम ।*
जुहर दाऊद अलैहिमस्सलाम अस्र सुलेमान अलैहिमस्सलाम।
मगिरब याकूब अलैहिमस्सलाम
ईशा यूनुस अलैहिमस्सलातु वस्सलाम से है
*इन अक्वाल को पेश करके आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरैलवी कुद्दिसा सिर्रुहू फरमाते हैं :*
इन सब अक्वाल में कहीं न कहीं गिरिफ्त ज़रूर है फकीर की नज़र में जाहिरन कौले अखीर को सब पर तरजीह है क्योंकि वह हदीस से साबित है या कम से कम सहाबी या ताबई की रिवायत है उलमाए माबाद के अक्वाल पर हर तरह मुकद्दम रहेगी खुसूसन ऐसे मुआमले में जिस में राय व क्यास को दखल नहीं।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,537)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-🔟*
*नमाज़ कब से मशरूअ व मुकर्रर हुई?*
*🌟नमाज़ शुरू रोज बेअसते शरीफा से मुकर्रर व मशरू है*
हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम पर अव्वल बार जिस वक़्त वही उतरी और नुबुव्वते करीमा जाहिर हुई उसी वक़्त हुज़ूर ने बतालीम ज़िब्रीले अमीन अलैहिस्सलातु वस्सलाम ने नमाज़ पढ़ी।
🌸और उसी दिन बतालीमे अक़्दस हज़रत उम्मुल-मुमिनीन ख़दीजतुल-कुबरा रज़ि अल्लाहु
तआला अन्हा ने पढ़ी।
📄दूसरे दिन अमीरुल-मुमिनीन अली मुर्तजा कर्रमल्लाहु तआला वज्हहू ने हुज़ूर के साथ पढ़ी
कि अभी *सूरः मुजम्मिल नाज़िल भी न हुई थी* तो ईमान के बाद पहली शरीअत नमाज़ है।
*(📚फैज़ाने आला हज़रत सफ़ह,538)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣*
*मुहाफिज़त नमाज़ की फजीलत :*
*📖हिस्सा 1*
💫नमाज़ के वक़्त पर मुहफिज़त लाज़िम है मुतअद्दद अहादीस में उसकी ताकीद व तरगीब और उसके तर्क़ पर तहदीद व वईद आई है।
*📖हदीस 1::* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि जो शख़्स इन पाँचों नमाज़ों की उनके रुकूअ व सुजूद व औकात पर मुहाफिज़त करे और यक़ीन जाने कि वह अल्लाह जल्ला व उला की तरफ़ से हैं जन्नत में जाए फरमाया जन्नत उसके लिए वाजिब हो जाए या फरमाया दोजख पर हराम हो जाए।
*📖हदीस 2::* पाँच चीज़ें हैं कि जो उन्हें ईमान के साथ लाएगा जन्नत में जाएगा जो पंजगाना नमाज़ों की उनके वुज़ू उनके रुकूअ. उनके औकात पर मुहाफिज़त करे और रोज़ा व हज व जकात व गुस्ले जनाबत बजा लाए।
*📖हदीस 3::* पाँच नमाज़ें अल्लाह तआला ने फर्ज़ की हैं जो उनका वुज़ू अच्छी तरह करे और उन्हें उनके वक़्त पर पढ़े और उनका रुकूअ पूरा करे उसके लिए अल्लाह अज़्जा व जल्ल पर अहद है कि उसे बख़्श दे और जो ऐसा न करे तो इसके लिए अल्लाह तआला पर कुछ अहद नहीं चाहे बख़्शे चाहे अजाब करे।
*(📚फैज़ाने आला हज़रत सफ़ह,538)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2⃣*
*मुहाफिज़त नमाज़ की फजीलत :*
*📄हिस्सा 2*
*📖हदीस 4::* अल्लाह अज्जा व जल्ल फरमाता है मैंने तेरी उम्मत पर पाँच नमाजें फर्ज की और अपने पास अहद मुकर्रर कर लिया कि जो उनके वक्तों पर उनकी मुहाफिजत करता आएगा उसे जन्नत में दाखिल करूंगा और जो मुहाफिजत न करेगा उसके लिए मेरे पास कुछ अहद नहीं।
*📖हदीस 5::* रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम अपने रब जल्ला व उला से रिवायत फरमाते हैं वह इरशाद करता है जो नमाज उसके वक़्त में ठीक-ठीक अदा करे उसके लिए मुझ पर अहद है कि उसे जन्नत में दाखिल फरमाऊं और जो वक्त में न पढ़े और ठीक अदा न करे उसके लिए मेरे पास कोई अहद नहीं, चाहूँ उसे दोजख में ले जाऊं और चाहूँ तो जन्नत में।
*📖हदीस 6::* एक दिन हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम ने सहाब-ए-किराम रजि अल्लाहु तआला अन्हुम से फरमाया : जानते हो तुम्हारा रब क्या फरमाता है? अर्ज की खुदा व रसूल खूब दाना हैं, फरमाया जानते हो तुम्हारा रब क्या फरमाता है : अर्ज की खुदा व रसूल खूदा दाना हैं, फरमाया जानते हो तुम्हारा रब क्या फरमाता है : अर्ज की खुदा व रसूल खूब दाना है फरमाया तुम्हारा रब जल्ला व उला फरमाता है मुझे अपने इज़्ज़त व जलाल की कसम जो शख्स नमाज़ वक्त पर पढ़ेगा उसे जन्नत में दाखिल फरमाऊंगा और जो उसके गैर वक्त में पढ़ेगा चाहूँ उस पर रहम करूं, चाहूँ अज़ाब ।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,539)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣3⃣*
*मुहाफिज़त नमाज़ की फजीलत :*
*📖हिस्सा 4*
*📖हदीस 7::* जो पाँचों नमाजें अपने-अपने वक्त पर पढ़े उनका वुजू व क्याम व खुशू व रुकूअ व सुजूद पूरा करे वह नमाज सफेद रौशन हो कर यह कहती निकले कि अल्लाह तेरी निगहबानी फरमाए जिस तरह तूने मेरी हिफाज़त की, और जो गैर वक़्त पर पढ़े और वुजू व खुशू व रुकूअ व सुजूद पूरा न करे वह नमाज़ सियाह तारीक हो कर यह कहती हुई निकले कि अल्लाह तुझे ज़ाए करे जिस तरह तूने मुझे जाए किया, यहाँ तक कि जब उस मकाम पर पहुँचे जहाँ तक अल्लाह तआला चाहे पुराने चीथड़े की तरह लपेट कर उसके मुँह पर मारी जाए।
*📖हदीस 8::* हज़रत फुजाला जहरानी रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं मुझे हुजूरे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने मसाइले दीन तालीम फरमाए उनमें यह भी तालीम फरमाया कि नमाजे पंजगाना की हिफाजत कर।
*📖हदीस 9::* अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं मैंने सैयदुल-मुरसलीन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से पूछा सब में ज़्यादा क्या अमल अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल को प्यारा है फरमाया नमाज़ उसके वक्त पर अदा करना।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,539)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣4⃣*
*मुहाफिज़त नमाज़ की फजीलत :*
*📖हिस्सा 5*
*हदीस 10::* एक शख्स ने ख़िदमते अक्दस हुजूर सैयदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम में हाजिर हो कर अर्ज की या रसूलुल्लाह इस्लाम में सबसे ज़्यादा क्या चीज़ अल्लाह तआला को प्यारी है फरमाया नमाज़ वक्त पर पढ़नी, जिसने नमाज़ छोड़ी उसके लिए दीन न रहा, नमाज़ दीन का सुतून है।
*📖हदीस 11::* तीन चीजें है जो उनकी हिफाज़त करे वह सच्चा वली है और जो उन्हें जाए करे वह पक्का दुश्मन, वह तीन चीजें यह हैं नमाज़ और रोज़े और गुस्ले जनाबत।
*📖हदीस 12::* अमीरुल-ममिनीन उमर फारूके आज़म रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु अपने आमिलों को फरमान भेजे कि तुम्हारे तमाम कामों में मुझे ज्यादा फिक्र नमाज़ की है जो उसे हिफ़्ज़ और उस पर मुहाफिजत करे उसने अपने दीन की हिफाजत कर ली और जिसने उसे जाए किया वह और कामों को ज्यादा तर जाए करेगा।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,539)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣5⃣*
*🔥तर्के नमाज पर भयानक वईदें:*
*तर्के नमाज से मुतअल्लिक जो वईदें वारिद हुई हैं उन में से बाज रिवायात मुलाहिजा फरमाएं :*
💫अबू हुरैरह रजि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं असहाबे मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम नमाज के सिवा किसी अमल के तर्क को कुफ्र न जानते।
*इसीलिए बहुत सहाबा व ताबईन तारिकुस्सलात को काफिर कहते।*
💫सैयदना अमीरुल-मुमिनीन मौला अली मुश्किल कुशा कर्रमल्लाहु तआला वज्हहुल-करीम फरमाते हैं जो नमाज़ न पढ़े वह काफिर है
🔥अब्दुल्लाह बिन अब्बास रजिअल्लाहु तआला अन्हुमा फरमाते हैं जिसने नमाज छोड़ी वह काफिर हो गया।
🔥हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं : जिसने नमाज़ तर्क की वह बेदीन है *(मुरव्वजी)* जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ि अल्लाहु तआला अन्हुमा फरमाते हैं बेनमाज़ काफिर है।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,540)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣6⃣*
*🔥तर्के नमाज पर भयानक वईदें:*
*अबू दाऊद रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं बेनमाज़ के लिए ईमान नहीं।*
*👇🏻इमाम इस्हाक फरमाते हैं :*
सैयदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम से बसेहत साबित हुआ कि हुजूर ने
तारिकुस्सलात को काफिर फरमाया, और जमान-ए-अक्दस से उलमा की यही राय है कि जो
शख्स कस्दन बेउज़ नमाज़ तर्क करे यहाँ तक कि वक्त निकल जाए वह काफिर है।
*इमाम अय्यूब सख़्तियानी से मरवी हुआ तर्के नमाज बेखिलाफ कुफ्र है इब्ने हज्म कहता है:*
🔥अमीरुल-मुमीनीन उमर फारूके आजम व हजरत अब्दुर्रहमान बिन औफ व हज़रत मआज बिन जबल व हज़रत अबू हुरैरह वगैरेहिम असहाब सैयदुल-मुरसलीन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम व अलैहिम अज्मईन से वारिद हुआ कि जो शख्स एक नमाज़ फर्ज कस्दन छोड़ दे यहाँ तक कि उसका वक़्त निकल जाए वह काफिर मुर्तद है।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,540)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣7⃣*
*🔥तर्के नमाज पर भयानक वईदें:*
*👇🏻तौजीह व तावीले हदीस📖 :*
👉🏻इन रिवायात को पेश करने के बाद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुदिसा सिर्रुहू
फरमाते हैं कि बिल-जुम्ला इस कौल मजाहिबे अहले सुनत से किसी तरह खारिज नहीं कह सकते बल्कि वह एक जम्मे गफीर कुदमाए अहले सुन्नत सहाबा व ताबईन रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम अज्मईन का मज्हब है और बिला शुबह वह उस वक़्त और हालत के लिहाज से एक बड़ा कवी मज्हब था।
❄सदरे अव्वल के बाद जब इस्लाम में जुअफ आया और बाज अवाम के कल्ब में सुस्ती व कसलन जगह पाई नमाज में कामिल चुस्ती व मुस्तएदी कि सदरे अव्वल में मुतलकन हर मुसलमान का शिआर दाइम थी, अब बाज़ लोगों से छूट चली, नमाज़ जो कुफ्र व इस्लाम के दर्मियान फर्क करने वाली मुतलकन अलामत व निशानी थी वह अलामते फारेका होने की हालत न रही, लिहाज़ा जम्हूर अइम्मा ने काफिर न कहा बल्कि मुर्तकिब कबीरह और फासिक फरमाया क्योंकि दलाइले शरइया। से यह बात साबित हो चुकी है कि गुनाहे कबीरा का मुर्तकिब काफिर नहीं।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,540)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फज़ाइल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣8⃣*
*🔥तर्के नमाज़ पर भयानक वईदें:*
*👇🏻तौजीह व तावीले हदीस📖 :*
💫हमारे अइम्मा हन्फीया, व अइम्मा शाफईया, व अइम्मा मालकीया और बाज़ अइम्मा हंबलीया जमाहीर उलमाए दीन व अइम्मा मोतमेदीन का यही मज़हब है कि अगरचे तारिके नमाज़ सख़्त फाज़िर जानते हैं मगर दाइर-ए-इस्लाम से ख़ारिज नहीं कहते
⭐फिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी काहिसा सिर्रुह तारिके नमाज़ पर हुक्मे शरअ बयान करते हुए मजीद तहरीर फरमाते हैं:
📃बिल-जुम्ला वह फासिक हैं और सख्त फासिक मगर काफिर नहीं, वह शरअन सख्त सजाओं
का मुस्तहिक है अइम्मा सलासा मालिक व शाफई व अहमद रज़ि अल्लाहु तआला अन्हुम फरमाते
हैं उसे क़त्ल किया जाए।
🌸हमारे अइम्मा रिज़वानुल्लाहे तआला अलैहिम के नज़दीक फासिक फाज़िर मुर्तकिबे कबीर है उसे दाइमी तौर पर क़ैद करें यहाँ तक कि तौबा कर ले या कैद में मर जाए।
*इमाम महबूबी वगैरह मशाइखे हन्फीया फरमाते हैं कि इतना मारें कि खून बहा दें फिर कैद करें।*
📃मगर यह सजाएं यहाँ जारी नहीं इसीलिए उसके साथ खाना पीना मेल जोल, सलाम क़लाम वगैरह मुआमलात ही तर्क़ करें कि यूंही रजज़ हो।
*(📚फैज़ाने आला हज़रत सफ़ह,541)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फज़ाइल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣9⃣*
*🔥तर्के नमाज़ पर भयानक वईदें:*
*👇🏻तौजीह व तावीले हदीस📖 :*
🔮नमाज़ छोड़ने वाले के लिए अहादीस में जो वईदें वारिद हुई हैं उनकी तावील व तौजीह से
मुतअल्लिक एक सवाल के जवाब में आला हजरत इमाम अहमद रजा बरैलवी अलैहिर्रहमा निहायत वाजेह अंदाज़ में फरमाते हैं
⌛बिला शुबह हदीस में आया है कि हम में और मुश्रिकों में फर्क नमाज का है, उसमें शक नहीं कि
जो नमाज का तारिक है वह मुश्रिकों के फेअल में उनका शरीक है फिर अगर वह दिल से भी नमाज़ को फर्ज न जाने या हल्का समझे जब तो सच्चा मुश्रिक पूरा काफिर है वरना उसका यह काम काफिरों मुश्रिकों का सा है अगरचे वह हकीकतन काफिर मुश्रिक न ठहरे।
*एक और सवाल के जवाब में फरमाते* हैं किसी वक़्त की नमाज़ कस्दन तर्क करना सख़्त कबीरा शदीदह व जुर्मे अज़मी है जिस पर सख्त हौलनाक, जांगुजा वईदें कुरआने अजीम व अहादीसे सहीहा में वारिद है, मगर बद मज़हब अगरचे कैसा ही नमाज़ी हो अल्लाह अज्जा व जल्ला के नज़दीक सुनी बेनमाज़ से बदरजा बुरा है कि फिस्क अकीदह फिस्क अमल से सख़्त तर है।
*(📚फैज़ाने आला हज़रत सफ़ह,541)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣0⃣*
*🔥बिला उज्र नमाज़ कज़ा करने वाले के लिए वईद वैल :*
जो लोग वक्त खो कर नमाज पढ़ते हैं उनके लिए वैल की वईद आई है, (वैल जहन्नम की एक
वादी का नाम है) नमाज़ भूल जाने वाले से मुराद वह लोग हैं जो वक्त गुजार कर नमाज़ पढ़ते हैं।
💫हजरत सअद बिन अबी वकास रजि अल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं मैंने हुजूरे अक्दस सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम से पूछा वह कौन लोग हैं जिन्हें अल्लाह अज्जा व जल्ला कुरआने अज़ीम में फरमाता है खराबी है उन नमाज़ियों के लिए जो अपनी नमाज़ से बेखबर हैं फरमाया वह लोग जो वक्त गुजार कर पढ़ें।
📜एक रिवायत में यूं है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम से इस आयत (हुम अन सलातेहिम साहुन) के बारे में सवाल हुआ फरमाया उस से मुराद वक़्त खोना है।
*(📚फैजाने आला हजरत सफ़ह,541)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣1⃣*
*💫ज़रूरी मसअला जिससे लोग ग़ाफ़िल हैं* और ग़फ़लत की वजह से नमाज़ें खराब हो रही है ! यह है कि सज्दे में हर पांव की तीन तीन उंगलियों के पेट का ज़मीन पर लगना वाजिब है अगर ऐसा न किया तो नमाज़ का दुहराना ज़रूरी है वरना गुनाहगार होगा और सज्दे में दोनों पाँव की दसों उंगलियों के पेट ज़मीन पर लगना सुन्नत है !
*📜मसअला:-* जब दोनों सज्दे कर ले तो रकअत के लिए पंजो के बल घुटनों पर हाथ रखकर उठे ! यह सुन्नत है और कमजोरी वगैरह उज्र के सबब अगर ज़मीन पर हाथ रख कर उठे जब भी हर्ज नहीं ! अब दुसरी रकअत में "सुब्हान" और "अऊजु" न पढ़े ! दुसरी रकअत के सज्दों से फारिग़ होने के बाद बायां पांव बिछा कर दोनों सुरीन उस पर रखकर बैठना और दाहिना क़दम खड़ा रखना और दाहिने पांव की उंगलियां क़िब्ला रूख़ करना यह मर्द के लिए है !
*📚(निजामे शरीअत, सफ़ा 114)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣2⃣*
*🗣नीयत का मसला*
💖नीयत दिल के पक्के इरादे को कहते हैं ! महज़ जानना नीयत नही ! नीयत का अदना दर्जा यह है कि अगर उस वक्त कोई पुछे कौन सी नमाज़ पढ़ते हो तो बिला तअम्मुल बता सके अगर हालत ऐसी है कि सोच कर बताऐगा तो नमाज़ न होगी !
*📜मसला:-* ज़बान से कह लेना मुस्तहब है और इसमें अरबी ज़बान की तख़सीस नहीं उर्दू व फारसी में भी हो सकती है !
*📜मसला:-* फर्ज नमाज में नीयते फर्ज़ भी जरूरी है ! मुतलक नमाज़ की नीयत काफी नहीं और फर्ज नमाज़ में यह भी जरूरी है कि उस खास नमाज़ मसलन ज़ुहर या असर की नीयत करे !
*📜मसला:-* नीयत में तादाद रक़अत जरूरी नही अलबत्ता अफ़जल है !
*📜मसला:-* नफ्ल व सुन्नत व तरावीह में मुतलक़ नमाज़ की नीयत काफ़ी है मगर एहतियात यह है कि तरावीह में तरावीह की और सुन्नतों में सुन्नते रसूलल्लाह की नीयत करे !
*📜मसला:-* यह नीयत की मुँह मेरा किब्ला कि तरफ है ! शर्त नही ! अलबत्ता यह जरूरी है कि किब्ला से एराज की नीयत न हो !
*📜मसला:-* मुक्तदी को इक़तेदा की नीयत भी जरूरी है और इमाम को इमामत की नीयत करना मुक़तदी की नमाज़ सही होने के लिए जरूरी नही ! यहाँ तक कि अगर इमाम ने यह नियत कर ली कि मैं फलाँ शख्स का इमाम नहीं हूँ और उस शख्श ने उसकी इक़तेदा की तो नमाज़ तो हो गई मगर सवाब ए जमाअत न पाऐगा !
*📚(निजामे शरीअत, सफ़ा 97)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣3⃣*
*नमाज़ी के आगे से गुज़रने का इस्लामी तरीक़ा*
✨बरवक़्त जरूरत यह है कि जो शख्स गुजरना चाहता है अगर उसके पास कोई चीज़ सुतरे के क़ाबिल हो तो उसे नमाज़ी के सामने रखकर गुज़र जाऐ फिर उस चीज़ को उठाले और अगर दो शख़्श गुज़रना चाहते हैं और सुतरे के क़ाबिल कोई चीज़ नहीं तो उनमें एक नमाज़ी के सामने उसकी तरफ़ पीठ कर के खड़ा हो जाए और दुसरा उसकी आड़ पकड़ कर गुजर जाऐ फिर दुसरा उसकी पीठ के पीछे नमाज़ी की तरफ़ पुश्त करके खड़ा हो जाए और यह गुजर जाए फिर दुसरा जिधर से उस वक्त आया था उसी तरफ़ हट जाऐ !
*📖मसअला:-* मस्जिदुल हराम शरीफ मे नमाज़ पढ़ता हो तो उसके आगे तवाफ़ करते हुऐ लोग गुजर सकते हैं !
*📖मसअला:-* जलती आग नमाजी के आगे होना मकरूह है ! शमअ या चिराग़ में कराहत नही ! हाथ में कोई ऐसा माल हो जिसके रोकने की जरूरत होती है उसको लिए नमाज़ पढ़ना मकरूह है मगर जब ऐसी जगह हो कि बगैर उसके हिफ़ाजत नामुम्किन हो जाऐगी तो मकरूह नही !
*📖मसअला:-* कालीन और बिछौने पर नमाज़ पढ़ने मे हरज नहीं ! जब कि इतने नरम और मोटे न हों कि सज्दे में पेशानी न ठहरे वरना नमाज़ न होगी !
*📖मसअला:-* ऐसी चीज़ के सामने जो दिल को मशग़ूल रखे नमाज़ मकरूह है ! मसलन ज़ीनत और लहव व लइब वगैरह इसी तरह नमाज़ के लिए दौड़ना भी मकरूह है !
*📖मसअला:-* मस्जिद में कोई जगह अपने लिए खास कर लेना कि वहीं नमाज़ पढ़े मकरूह है !
*📚(निजामे शरीअत, सफ़ा 133)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣4⃣*
*💫नमाज़ तोड़ना कब जाइज़*
_✨सांप वगैरह मारने के लिए जब कि इज़ा का सही अन्देशा हो या कोई जानवर भाग गया ! उसके पकड़ने के लिए या बकरियों पर भेडिये के हमला करने के खौफ़ से नमाज़ तोड़ देना जाईज है ! यूँ ही अपने या पराऐ एक दिरहम यानी सवा चार आने और तकरीबन एक पाई के नुकसान का खौफ़ हो ! मसलन दुध उबल जाऐगा या गोश्त तरकारी रोटी वगैरह जल जाने का खौफ़ हो या एक दिरहम की कोई चीज़ चोर उचक्का ले भागा तो इन सब सुरतों में नमाज़ तोड़ देने की इजाज़त है !_
*🔹नमाज़ तोड़ना कब वाजिब है*
✨कोई मुसीबत ज़दा फरियाद कर रहा हो किसी नमाजी को पुकार रहा हो या मुतलकन किसी शख्श को पुकारताहो या कोई डुब रहा हो या कोई आग से जल जाऐगा या कोई अंधा राहगिर कूंवे में गिरा चाहता हो तो इन सब सुरतों में नमाज़ तोड़ देना वाजिब है जबकि यह उसके बचाने पर क़ादिर हो !
*📚(निजामे शरीअत, सफ़ा 134)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣5⃣*
*🔸लफ़्ज़े मासूम*
💫कभी न भुलियेगा कि मासूम होना नबी और फरिश्ते का खास्सा है उनके सिवा कोई मासूम नहीं इमामों को अम्बिया की तरह मासूम समझना जैसे शीआ समझते हैं गुमराही है और अक्सर लोग बच्चों को मासूम कह दिया करते हैं, बच्चों पर इस लफ़्ज़ को बोलने से इजतेनाब करना चाहिए !
*📄मसअला:-* दरमियाने तिलावत में कोई दुनियवी कामकरे तो _अऊज़ु बिल्लाह_ और _बिस्मिल्लाह_ फिर पढ़ ले और अगर दीनी काम किया जैसे सलाम या अज़ान का जवाब दिया तो _अऊज़ु बिल्लाह_ फिर पढ़ना उसके ज़िम्मे नहीं _बिस्मिल्लाह_ पढले !
*नमाज़ ए तहय्यतूल वज़ू*
✨वज़ू के बाद आजा खुश्क होने से पहले दो रकअत नमाज पढ़ना मुस्तहब है इस नमाज़ को तहय्यतुल वज़ू कहते हैं! वज़ू के बाद फर्ज वगैरह पढ़े तो तहय्यतुल वजू के काइम मकाम हो जाऐंगे !
*📚(निजामे शरीअत, सफ़ा 178)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣6⃣*
नमाज़ की पहली पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*पोस्ट नम्बर-: 1*
*📖तरजुमा कंजुल इमान-::* "ऐ ईमान वालों जब तुम नमाज़ पढ़ने का इरादा करो(और वुज़ू न होतो) तो अपने मुँह और कोहनियों तक हाथ को धोओ और सरों का मसह करो और टख़नों तक पाँव धोओ"!
✨मुनासिब मालूम होता है कि अब वुज़ू की फज़ीलत में चन्द हदीसें लिखी जाऐं फिर उसके मुतअल्लिक़ अहकाम ए फिक़्ही का बयान हो !
*📖हदीस-::* हज़रत अबू हुरैरह रदियल्लाहो अन्हु से रावी हुज़ूर ए अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम इरशाद फरमाते हैं कि कियामत के दिन मेरी उम्मत इस हालत में बुलाई जाऐगी कि मुँह, हाथ और पैर वुज़ू की वजह से चमकते होंगे तो जिस से हो सके चमक ज़्यादा करे !
*📖हदीस-::* उक्बा इब्ने आमिर रदियल्लाहो तआला अन्हु से मरवी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि जो मुसलमान वुज़ू करे और अच्छा वुज़ू करे फिर खड़ा हो और ज़ाहिर व बातिन से अल्लाह की तरफ़ ध्यान देकर दो रकअत नमाज़ पढ़े तो उसके लिए जन्नत वाजिब हो जाती है !
*📖हदीस-::* अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रदियल्लाहो तआला अन्हु से रावी है कि हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम फरमाते है कि जिसने बिस्मिल्लाह कह कर वुज़ू किया उसका सर से पांव तक सारा बदन पाक हो गया और जिसने बगैर बिस्मिल्लाह वुज़ू किया उसका उतना ही बदन पाक होगा जितने में वुज़ू का पानी गया !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 1, सफा 10,11)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣7⃣*
नमाज़ की पहली पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*अहकाम ए फिक़्ही*
*पोस्ट नम्बर-: 2*
वह आयते करीमा जो गुजिश्ता पोस्ट मे लिखी गई उससे यह साबीत हुआ कि वुज़ू में चार फर्ज़ हैं:-
1• मुँह धोना
2• कोहनियों समेत दोनों हाथ को धोना
3• सर का मसह करना
4• टखनों समेत दोनों पांव धोना
*📄फायदा:-*
किसी उज़्व को धोने के मानी हैं कि उस उज़्व के हर हिस्से पर कम से कम दो दो बुन्द पानी बह जाऐ ! भीग जाने या तेल की तरह चुपड़ लेने या एक आध बुंद बह जाने को धोना नही कहेंगे न उससे वुज़ू या गुस्ल अदा हो ! इस बात का ध्यान रखना बहुतजरूरी है ! लोग इसकी तरफ ध्यान नही देते और नमाज़ अकारत जाती है यानी बरबाद होती हैं!
बदन में कुछ जगह ऐसी हैं कि जब तक उनका खास ख्याल न किया जाऐ उन पर पानी नहीं बहेगा जिसकी तशरीह हर उज़्व मे की जाऐगी !
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*1⃣मुँह धोना:-* लम्बाई मे शुरू पेशानी से (यानी सर में पेशानी की तरफ़ का वह हिस्सा जहाँ से आम तौर पर बाल जमने शुरू होते हैं!) ठोड़ी तक और चौड़ाई मे एक कान से दुसरे कान तक मुँह है ! इस हद के अन्दर चमड़े के हर हिस्से पर एक बार पानी बहाना फर्ज है !
*📖मसअला नं.1:-* जिस के सर के अगले हिस्से के बाल गये या जमे नही उस पर वहीं तक मुँह धोना फर्ज़ है जहां तक आदत के मुवाफिक बाल होते हैं और अगर आदत के खिलाफ किसी के नीचे तक बाल जमें हों तो उन ज़्यादा बालों का जड़ तक धोना फर्ज है !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 13)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣8⃣*
नमाज़ की पहली पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*पोस्ट नम्बर-: 3*
*📖मसअला नं. 2:-* मुछों, भवों या बच्ची( यानी वह बाल जो नीचे होंट और ठोड़ी के बीच होते हैं) के बाल ऐसे घनें हों की खाल बिल्कुल न दिखाई दे तो चमड़े का धोना फर्ज नहीं और अगर उन जगहों के बाल घनें न हों तो जिल्द का धोना भी फर्ज है!
*📖मसअला नं. 3:-* अगर मुछें बढकर लबों(होंठ) को छुपा लें तो अगरचे मूंछें घनी हो उनको हटाकर लब धोना फर्ज है !
*📖मसअला नं. 4:-* दाढ़ी के बाल अगर घनें न हो तो चमड़े का धोना फर्ज है और अगर घने हों तो गले की तरफ़ दबाने से जिस कद्र चेहरे के घेरे में आऐ उनका धोना फर्ज है और जड़ों का धोना फर्ज नहीं ! और हल्क़े से नीचे हों तो उनका धोना जरूरी नही और अगर कुछ हिस्से घनें हों और कुछ छिदरे हों तो जहाँ घने हों वहाँ बाल और जहाँ छिदरे हों उस जगह जिल्द(खाल) का धोना फर्ज है !
*📖मसअला नं. 5:-* नथ का सूराख़ अगर बन्द न हो तो उस में पानी फर्ज है अगर तंग हो तो पानी डालने में नथ को हिलाऐ वरना नहीं !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 13)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-2⃣9⃣*
नमाज़ की पहली पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*पोस्ट नम्बर-: 3*
*📖मसअला नं. 6:-* लबों का हिस्सा जो आदत में लब बन्द करने के बिद ज़हिर रहता है उसका धोना फर्ज है अगर कोई खुब जोर से लब बन्द कर ले कि उस में कुछ हिस्सा छुप गया कि उस पर पानी न पहुँचा न कुल्ली की धुल जाता तो वुज़ू न हुआ !
*📖मसअला नं. 7:-* रूख़्सार(गाल) और कान के बीच जो जगह जिसे कन्पटी कहते हैं उसका धोना फर्ज है ! हां उस हिस्से में जितनी जगह दाढ़ी के घने बाल हों वहाँ बालों का और जहाँ बाल न हों तो जिल्द धोना फर्ज है !
*📖मसअला नं. 8:-* आँखों के ढेले और पपोटों की अन्दुरूनी सतह़ का धोना कुछ जरूरी नही बल्कि न चाहिए कि उस से नुकसान है !
*📖मसअला नं. 9:-* पलक का हर बाल पूरा धोना फर्ज है और अगर उस में कीचड़ वगैरा कोई सख्त चीज़ जम गई हो तो उसका छुडाना फर्ज है !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 13, 14)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣0⃣*
नमाज़ की पहली पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*अहकाम ए फिक़्ही*
*2:- हाथ धोना-* (इस हुक्म में कोहनियां भी शामिल है)
*📖मसअला नं. 10:-* अगर कोहनियों से नाखून तक कोई जगह जर्रा भर भी धुलने से रह जाऐगी तो वुज़ू न होगा !
*📖मसअला नं. 11:-* हर किस्म के जाइज नाजाईज गहने, छल्ले, अगूंठियां, पहुँचियां, कंगन काँच और लाख वगैरह की चुडियां और रेशम के लच्छे वगैरा अगर इतने हों कि नीचे पानी न बहे तो उतार कर धोना फर्ज है और अगर सिर्फ हिलाकर धोने से पानी बह जाता है तो हिलाना ज़रूरी है और अगर ढीले हों कि बिना हिलाऐ भी नीचे पानी बह जाऐगा तो कुछ जरूरी नही !
*📖मसअला नं. 12:-* हाथों की आठो घाईयां, उन्गलियों की करवट और नाखून के अन्दर जो जगह खाली है और कलाई का हर बाल जड़ से नोक तक उन सब पर पानी बह जाना जरूरी है ! अगर कुछ भी रह गया या बालों की जड़ों पर पानी बह गया और किसी एक बाल पर पानी न बहा तो वुज़ू न होगा ! मगर नाखूनों के अन्दर का मैल माफ़ है !
*📖मसअला नं. 13:-* अगर किसी की छह उंगलियां हैं तो सबका धोना फर्ज है और अगर एक मोढे पर दो हाथ निकले तो जो पूरा है उसकि धोना फर्ज है और दुसरे का धोना फर्ज नही मुस्तहब है मगर उस दुसरे हाथ का पुरा हिस्सा जो पुरे हाथ के फर्ज की जगह से मिला हो उतने का धोना फर्ज है !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 14)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣1⃣*
नमाज़ की पहली पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*अहकाम ए फिक़्ही*
*3:- सर का मसह करना-* (चौथाई सर का मसह करना फर्ज है)
*📖मसअला नं. 14:-* मसह करने के लिए हाथ तर होना चाहिए चाहे हाथ में तरी उज़्व के धोने के बाद रह गई हो या नये पानी से हाथ तर कर दिया हो !
*📖मसअला नं. 15:-* किसी उज़्व के मसह के बाद जो हाथ में तरी बाकी रह जाऐगी वह दुसरे उज़्व के मसह के लिए काफी नही होगी !
*📖मसअला नं. 16:-* सर पर बाल न हों तो जिल्द की चौथाई और जो बाल हों तो खास सर के बालों की चौथाई का मसह फर्ज है सर का मसह इसी को कहतें है !
*📖मसअला नं. 17:-* सर से जो बाल लटक रहे हों उस पर मसह करने से मसह न होगा !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 14)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣2⃣*
नमाज़ की पहली पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*अहकाम ए फिक़्ही*
*3:- पाँव धोना-* (चौथा फर्ज पाँव को गट्टों समेत एक धोना है! छल्ले और पाँव के गहनो का वही हुक्म है जो गुजिश्ता पोस्ट मे बयान किया गया !)
*📖मसअला नं. 18:-* कुछ लोग किसी बीमारी की वजह से पांव के अंगूठे में इतना खींच कर तागा बांध लेते हैं कि पानी का बहना तो दुर किनार तागे के नीचे तर भी नही होता उनको इससे बचना जरूरी है नही तो ऐसी सुरत में वज़ू नही होगा !
*📖मसअला नं. 19:-* किसी जगह छाला था और वह सूख गया उसकी खाल जुदा करके करके पानी बहाना जरूरी नही बल्कि उसी छाले की खाल पर पानी बहा लेना काफी है !
*📖मसअला नं. 20-* मछली का सिन्ना अगर वुज़ू के हिस्से पर चिपका रह गया तो वुज़ू न होगा कि पानी उसके नीचे न बहेगा !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 15)*
*➡पोस्ट जारी है....*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣3⃣*
नमाज़ को पहली शर्त
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*अहकाम ए फिक़्ही*
*💦"वुज़ू की सुन्नतें"*
*📖मसअला नं. 21-* अगर छोटे बर्तन में पानी है या पानी तो बड़े बर्तन में है मगर वहाँ कोई छोटा बर्तन भी मौजूद है और उसने बे धोये हाथ पानी में डाल दिया बल्कि उंगली का पोरा या नाखून डाला तो वह सारा का सारा पानी वुज़ू के काबिल न रहा जैसा कि हिदाया, फतहुल क़दीर और फतवा काज़ी खां में है क्युकि वह पानी वुज़ू मुस्तअमल (इस्तेमाल किया हुआ) हो जाता है !
📄 यह उस वक्त है कि जितना हाथ पानी में पहुँचा उस का कोई हिस्सा बे धुला हो वरना अगर पहले हाथ धो चुका और उस वक्त के बाद हदस न हुआ(वुज़ू टुटने का सबब न पाया गया) तो जिस कद्र हिस्सा धुला हुआ हो उतना पानी में डालने से मुस्तअमल न होगा अगरचे कोहनी तक हो बल्कि ग़ैर जुनुब(जिस गुस्ल फर्ज न हो यानी पाक शख़्स) ने अगर कुहनी तक हाथ धो लिया तो उसके बाद बगल तक हाथ डाल सकता है कि अब उसके हाथ पर कोई ह़दस बाकी नहीं ! हां जुनुब कुहनी से उपर उतना ही हिस्सा डाल सकता है जितना धो चुका है कि उसके साथे बदन पर हदस है !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 16)*
*➡जारी है...*
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🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣4⃣*
_नमाज़ की पहली शर्त_
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*💦"वुज़ू की सुन्नतें"*
*📖मसअला नं. 22-* वुज़ू शुरू यूँ करे कि पहले हाथों को गट्टो तक तीन तीन बार धोयें अगर पानी बड़े बर्तन में हो और कोई छोटा बर्तन भी नहीं कि उसमें पानी उंडेल कर हाथ धोये तो उसे चाहिए कि बायें हाथ की उंगली मिलाकर सिर्फ उंगलीयां पानी में डाले हथेली का कोई हिस्सा पानी में न पड़े और पानी निकाल कर दाहिना हाथ गट्टे तक तीन बार धोऐ फिर दाहिने हाथ को जहाँ तक धोया है बिला तकल्लुफ़ पानी में डाल सकता है ! और उससे पानी निकाल कर बायां हाथ धोऐ यह उस सुरत में है कि हाथ में कोई नजासत न लगी हो वरना बर्तन में हाथ डालना किसी तरह जाइज नही अगर नापाक हाथ बर्तन मे डालेगा तो पानी नापाक हो जाऐगा !
*📖मसअला नं. 23-* मुँह धोते वक्त दाढ़ी का खिलाल करे अगर एहराम बांधे हुए हो तो खिलाल न करे ! खिलाल का तरीका यह होगा कि उंगलियों को गले कि तरफ से दाखिल करे और सामने निकाले !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफ़ह,16)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣5⃣*
_नमाज़ की पहली शर्त_
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*वुज़ू में मकरूह चीजें*
1:- औरत के वुज़ू या गुस्ल के बचे पानी से वुज़ू करना !
2:- वुज़ू के लिए नजिस जगह बैठना !
3:- नजिस जगह वुज़ू का पानी गिराना !
4:- मस्जिद के अन्दर वुज़ू करना !
5:- वुज़ू के किसी उज्व से लोटे वगैरा में पानी का कतरा टपकाना !
6:- पानी में रेठ या खखार डालना !
7:- किब्ले की तरफ थुक खखार या कुल्ली डालना !
8:- बेजरूरत दुनिया कि बातें करना !
9:- ज्यादा पानी खर्च करना !
10:- इतना कम खर्च करना कि सुन्नत अदा न हो सके !
11:- मुँह पर पानी मारना !
12:- मुँह पर पानी डालते वक्त फुकना !
13:- एक हाथ से मुँह धोना ये राफजियों और हिन्दूओं का तरीका है !
14:- गले का मसह करना !
15:- बाऐं हाथ से कुल्ली करना या नाक में पानी डालना !
16:- दाहिने हाथ से नाक साफ करना !
17:- अपने वुज़ू के लिऐ कोई लोटा खास कर लेना !
18:- तीन नये पानी से सर का मसह तीन बार करना !
19:- जिस कपड़े से इस्तिन्जा खुश्क़ किया है उससे वुज़ू के हिस्से पोछना !
20:- धुप के गर्म पानी से वुज़ू करना !
21:- होंठ या आंखे जोर बंद करना और अगर कुछ सूखा रह जाऐ तो वुज़ू न होगा !
*सुन्नत का छोडना मकरूह है ऐसे ही मकरूह का छोडना सुन्न्त है!*
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 20)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣6⃣*
_नमाज़ की पहली शर्त_
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*📖मसअला:-* अगर वुज़ू न हो तो नमाज़ सज्दा ए तिलावत नमाज़ ए जनाजा और कुरान शरीफ़ छुने के लिए वुज़ू करना फर्ज है !
*📖मसअला:-* तवाफ के लिए वुज़ू वाजिब है !
*📖मसअला:-* गुस्ले जनाबत से पहले और जुनूब को खाने पीने सोने और अज़ान इकामत और जुमा और अरफा में ठहरने और सफा और मरवा के दरमियान सई करने के लिए वुज़ू कर लेना सुन्नत है !
*📖मसअला:-* जब वुज़ू जाता रहे वुज़ू कर लेना मुस्तहब है !
*📖मसअला:-* नाबालिग़ पर वुज़ू फर्ज नही मगर उन्हें वुज़ू कराना चाहिए ताकि आदत हो और वुज़ू करना आ जाऐ और वुज़ू के मसलों से आगाह हो जाऐं !
*📖मसअला:-* लोटे की टोटी न ऐसी तंग हो की पानी मुश्किल से गिरे और न ऐसी फैली हुई हो कि जरुरत से ज्यादा गिर जाऐ बल्कि दरमियानी हो !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 21)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣7⃣*
_नमाज़ की पहली शर्त_
*पाकी का बयान/वुज़ू का बयान*
*💧वुज़ू तोडने वाली चीजों का बयान*
*📖मसअला :-* पेशाब, पखाना, वदी, मजी, मनी, कीड़ा और पथरी मर्द या औरत के आगे या पीछे से निकले तो वुज़ू जाता रहेगा !
*📖मसअला :-* अगर मर्द का खतना नही हुआ है और सूराख़ से इन चीजों मे से कोई चीज़ निकली मगर अभी खतने की खाल के अन्दर ही जब भी वुज़ू जाता रहेगा !
*📖मसअला :-* यूँ ही औरत के सूराख़ यानी पेशाब की जगह से कोई नजासत(नापाकी) निकली मगर उपर की खाल के अन्दर है फिर भी वुज़ू जाता रहेगा !
*📖मसअला :-* औरत के आगे ऐसी रूतुबत जिसमें खुन की मिलावट न हो उससे वुज़ू नही टुटता अगर कपड़े में लग जाऐ तो कपड़ा पाक है !
*📖मसअला :-* मर्द या औरत के पीछे से हवा निकले तो वुज़ू टुट जाता है !
*📖मसअला :-* आंख, कान, नाफ़ और छाती वगैरह में दाना या नासुर या कोई बीमारी हो इन वजहों से जो आंसू या पानी बहे तो वुज़ू टुट जाऐगा !
*📚(बहारे शरीअत, हिस्सा 2, सफा 22)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣8⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*1📖अल-हदीस-::* सहीह मुस्लिम शरीफ में अबु हुरैरह रदियल्लाहु अन्हु से मरवी की हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया जो शख़्श अपने घर से तहारत कर फ़र्ज़ अदा करने के लिए मस्जिद को जाता है तो एक कदम पर एक गुनाह माफ़ होता है यानी एक गुनाह मिट जाता है और एक दर्ज़ा बुलन्द होता है !
*2📖अल-हदीस-::* तबरानी ने औसत में रिवायत किया कि हुज़ूर ने फरमाया की सब से पहले कयामत के दिन बन्दे से नमाज़ का हिसाब लिया जाएगा ! अगर दुरुस्त हुई तो तो बाकी अमाल भी ठीक रहेंगे और यह बिगड़ी तो सभी बिगड़े और एक रिवायत में है कि खाईब व खासिर हुआ !
*3📖अल-हदीस-::* अबु दाऊद शरीफ में है कि हुज़ूर ने फरमाया जब तुम्हारे बच्चे 7 बरस के हों तो उन्हें नमाज़ का हुक़्म दो, ओर जब 10 बरस के हों जाए तो उन्हें मार कर पढ़ाओ !
*4📖अल हदीस-::* बैहक़ी ने हज़रत उमर से रिवायत की एक साहब ने अर्ज़ की या रसूलुल्लाह! इस्लाम मे अल्लाह के नज़दीक सब से ज़्यादा महबूब क्या है ? फ़रमाया वक़्त के अंदर नमाज़ ! मैंने अर्ज़ की फिर क्या है ? फ़रमाया मां बाप के साथ नेकी ! मैंने अर्ज़ की फिर क्या ? फ़रमाया राहे खुदा में जेहाद !
*5📖अल-हदीस-::* तबरानी औसत में रावी की हुज़ूर ने फरमाया अल्लाह तआला के नज़दीक बन्दे कि यह हालत सब से ज़्यादा पसन्द है कि उसे सजदा करता देखेेे कि अपना मुंह खाक पर रगड रहा है !
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-3⃣9⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*6📖अल-हदीस-::* तिर्मिज़ी शरीफ़ की हदीस है हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं की फ़ज़र की नमाज़ उजाले में पढ़ो की इसमे बहुत सवाब है !!
*7📖अल-हदीस-::* दैल्मी की रिवायत हज़रत अनस रदियल्लाहु अन्हु से है की इससे तुम्हारी मग़फ़िरत हो जाएगी ! दैल्मी की दूसरी रिवायत इन्ही से है की जो फ़ज़र को रौशन करके पढ़ेगा अल्लाह उसके क़ब्र और क़ल्ब को मुनव्वर करेगा और उसकी नमाज़ कुबूल करेगा !
*8📖अल-हदीस-::* हज़रत अबू हुरेरह रदियल्लाह अन्हुु से रावी है कि हुज़ूर ने फ़रमाया मेरी उम्मत हमेशा फितरत यानी दीन ए हक़ पर रहेगी जब तक फ़ज़र को उजाले में पढ़ेगी !
*9📖अल-हदीस-::* बुखारी व मुस्लिम हज़रत अबू हुरेरह रदियल्लाह अन्हु से रावी हैं कि हुज़ूर ने फरमाया जोहर को ठंडा करके पढ़ो की सख्त गर्मी जहन्नम के जोश से है! दोज़ख ने अपने रब के पास शिकायत की मेरे बाज़ हिस्से बाज़ को खाये लेते हैं ! उसे दो मर्तबा सांस लेने की इजाज़त है एक गर्मी में ओर एक सर्दी में !
*10📖अल-हदीस-::* हज़रत आमिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलेह वसल्लम फ़रमाते हैं कि मेरी उम्मत हमेशा फितरते हक़ पर होगी जब तक मग़रिब में इतनी ताख़ीर न करे कि तारे गूंथ जाए !
*(📚शरीयत, हिस्सा 3, सफा 181)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣0⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*11📖अल-हदीस-::* अबू दाऊद इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी है कि हुज़ूर ने फरमाया तुम में के अच्छे लोग अज़ान कहें ओर क़ारी लोग इमामत करें ! कि उस ज़माने में जो ज़्यादा कुरआन पढा होता वही इल्म में ज़्यादा होता !
*12📖अल-हदीस-::* अबूश्शेख की रिवायत अबू हुरेरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से है कि फ़रमाया इमाम व मुअज्जिन को उन सब के बराबर सवाब है जिन्होंने उनके साथ नमाज़ पढ़ी !
*13📖अल-हदीस-::* इमाम मालिक की रिवायत इस तरह है कि फ़रमाया की जो इमाम से पहले अपना सर उठाता और झुकाता है उस की पेशानी के बाल शैतान के हाथ में है !
*14📖अल-हदीस-::* बुख़ारी व मुस्लिम शरीफ़ में अबू हुरेरह रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत की रावी फ़रमाते हैं क्या जो शख़्श इमाम से पहले सर उठाता है इससे नही डरता की अल्लाह तआला उसका सर गधे का सर कर दे !
*14📖अल-हदीस-::* बुख़ारी शरीफ की हदीस है की हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते हैं जब कोई नमाज़ पढाये तो नमाज़ में तख़फ़ीक़(नमाज़ लम्बी न) करे ! कि उन में बीमार और कमजोर और बूढा भी होता है ! ओर जब अपनी पढ़े तो जिस क़दर चाहे लम्बी करे !
*(📚 बहारे शरीयत, हिस्सा 3, सफा 259 )*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣1⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*16📖अल-हदीस-:* बुख़ारी व मुस्लिम हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने नमाज़ में कमर में हाथ रखने से मना फ़रमाया !
*17📖अल-हदीस-:* शरहे सुन्नत में हज़रत उमर से रिवायत है हुज़ूर ने फरमाया कमर पर हाथ रखना जहन्नमियों की राहत है !
*18📖अल-हदीस-:* बुख़ारी व मुस्लिम शरीफ़ में उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दिक़ा रदियल्लाहु तआला अन्हुमा से रिवायत है कि फ़रमाती हैं मैंने नमाज़ के अंदर इधर उधर देखने के बारे में हुज़ूर से पूछा तो फ़रमाया की ये उचक लेना है की बन्दे की नमाज़ से शैतान उचक ले जाता है !
*19📖अल-हदीस-:* इमाम अहमद जो हदीस की किताब है उसमें रिवायत है कि हुज़ूर ने फरमाया जो बन्दा नमाज़ में है अल्लाह तआला की रहमते ख़ास उसकी तरफ मुतवज़्ज़ह रहती है ! जब तक इधर उधर न देखे ! जब उसने अपना मुंह फेरा उसकी रहमत भी फिर जाती है !
*20📖अल-हदीस-:* हज़रत अबू हुरैरा कहते हैं कि मुझे मेरे खलील जनाब ए मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने तीन बातों से मना फ़रमाया-
*1-: मुर्गे की तरह ठोंग मारने से !*
*2-: कुत्ते की तरह बैठने से !*
*3-: इधर उधर लोमड़ी की तरह देखने से !*
*(📚बहारे शरीअत, हिस्सा 3, सफा 299 )*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣2⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*21📖अल-हदीस-::* तिर्मिज़ी ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी की फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम जुमे के दिन जिस साअत की ख्वाहिश की जाती है उसे अस्र के बाद से गुरूबे आफ़ताब तक तलाश करो !
*22📖अल-हदीस-::* अबू याला उन्हीं से रावी की हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते हैं जुमे के दिन और रात चौबीस घंटे में कोई ऐसा घंटा नही जिसमे अल्लाह तआला 6 लाख आजाद न करता हो जिन पर जहन्नम वाज़िब हो चुका है !
*23📖अल-हदीस-::* हुज़ूर ए अकरम फरमाते हैं जो मुसलमान जुमे के दिन या रात में मरेगा अल्लाह तआला उसे फितनये कब्र से बचा लेगा !
*24📖अल-हदीस-::* हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूर फ़रमाते हैं जुमे की रात रौशन रात है और जुमे का दिन चमकदार दिन !
*25📖अल-हदीस-::* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते पांच चीज़ जो एक दिन में करेगा अल्लाह तआला उसको जन्नती लिख देगा !
1 जो मरीज़ को पूछने जाए !
2 जनाज़े में हाज़िर हो !
3 रोज़ा रखे !
4 जुमे को जाए !
5 ग़ुलाम आज़ाद करे !
*(📚 बहारे शरीयत, हिस्सा 4, सफा 393, 394)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣3⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*26📖अल-हदीस-::* बैहक़ी में हज़रत हसन बसरी रदियल्लाहु अन्हु से रावी है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते है एक ऐसा ज़माना आएगा कि मस्जिदों में दुनिया की बातें होंगी तुम उनके साथ न बैठो की खुदा को उनसे कोई काम नही !
*27📖अल-हदीस-::* इब्ने माजा ने रिवायत की कि इब्ने अब्बास रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं अंसार के घर मस्जिद से दूर थे उन्होंने करीब आना चाहा इस पर यह आयत नाज़िल हुई~
*तर्जुमा कंजूल ईमान-:: जो उन्होंने नेक काम आगे भेजे वह और उनके निशाने क़दम हम लिखते हैं*
*28📖अल-हदीस-::* अबु हुरैरा रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर ए अकरम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं जो मस्जिद सुबह या शाम को जाए अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत में मेहमानी तैयार करता है जितनी बार जाए !
*29📖अल-हदीस-::* हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु से रावी की हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं कि तकलीफ में पूरा वज़ू करना और मस्जिद की तरफ़ चलना और एक नमाज़ के बाद दूसरी का इंतज़ार करना गुनाहों को अच्छी तरह धो देता है !
*30📖अल-हदीस-::* अबू मूसा अशअरी से रिवायत सबसे बढ़कर नमाज़ में उसका सवाब है जो ज़्यादा दूर से चल कर आये !
*(📚बहारे शरीयत, हिस्सा 3, सफा 312,313)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣4⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*31📖अल-हदीस-::* तिर्मिज़ी ने अनस रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी की फ़रमाते हैं सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम जुमे के दिन जिस साअत की ख्वाहिश की जाती है उसे अस्र के बाद से गुरूबे आफ़ताब तक तलाश करो !
*32📖अल-हदीस-::* अबू याला उन्हीं से रावी की हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते हैं जुमे के दिन और रात चौबीस घंटे में कोई ऐसा घंटा नही जिसमे अल्लाह तआला 6 लाख आजाद न करता हो जिन पर जहन्नम वाज़िब हो चुका है !
*33📖अल-हदीस-::* हुज़ूर ए अकरम फरमाते हैं जो मुसलमान जुमे के दिन या रात में मरेगा अल्लाह तआला उसे फितनये कब्र से बचा लेगा !
*34📖अल-हदीस-::* हज़रत अनस रदियल्लाहु तआला अन्हो से रिवायत है कि हुज़ूर फ़रमाते हैं जुमे की रात रौशन रात है और जुमे का दिन चमकदार दिन !
*35📖अल-हदीस-::* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते पांच चीज़ जो एक दिन में करेगा अल्लाह तआला उसको जन्नती लिख देगा !
1 जो मरीज़ को पूछने जाए !
2 जनाज़े में हाज़िर हो !
3 रोज़ा रखे !
4 जुमे को जाए !
5 ग़ुलाम आज़ाद करे !
*(📚 बहारे शरीयत, हिस्सा 4, सफा 393, 394 )*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣5⃣*
*नमाज़ के मुताल्लिक हदीसे पाक*
*36📖अल-हदीस-::* हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते हैं इस दिन को अल्लाह तआला ने मुसलमानों के लिए ईद किया तो जो जुमे को आये वह नहाए और खुश्बू हो तो लगाए !
*37📖अल-हदीस-::* अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से रावी की फ़रमाते हैं जुमे का ग़ुस्ल बाल की जड़ो से खताएँ खिंच लेता है !
*38📖अल-हदीस-::* हुज़ूर ए अकरम फरमाते हैं हर मुसलमान पर 7 दिन में एक दिन ग़ुस्ल है कि उस दिन में सर धोये और बदन !
*39📖अल-हदीस-::* हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने बुस्र रदियल्लाहु तआला अन्हो से रावी की एक शख़्श लोगों की गर्दन फलांगते हुए आये और हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम खुतबा फ़रमा रहे थे इरशाद फ़रमाया बैठ जा तूने इज़ा पहुचाई !
*40📖अल-हदीस-::* रिवायत अबू उमामा रदियल्लाहु तआला अन्हु से है जब इमाम खुतबे को निकलता है तो फ़रिश्ते दफ़्तर लपेट लेते हैं ! किसी ने उनसे कहा तो जो शख़्श इमाम के निकलने के बाद आये उसका जुमा न हुआ ! कहा हां हुआ तो लेकिन दफ़्तर में नही लिखा गया !
*(📚बहारे शरीयत, हिस्सा 4, सफा 396, 397 )*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣6⃣*
*🌟ज़ोहर की नमाज़ के जरूरी मसाइल*
*1-📖मस'अला-::* अगर किसीने ज़ोहर की जमाअत के पहले की चार ( 4 ) रकाअत सुन्नते न पढ़ी हो और जमाअत कायम हो जाए तो जमाअत में शरीक हो जाए जमाअत के बाद दो ( 2 ) रकाअत सुन्नत बा'दिया पढ़ने के बाद चार सुन्नत पढ़ले
*2-📖मस'अला-::* अगर चार रकाअत सुन्नते मोअक़ैदा पढ़ रहा है और जमाअत क़ाईम हो जाए तो दो ( 2 ) रकाअत पढ़ कर सलाम फैर दे और जमाअत में शरीक हो जाए और जमाअत के बाद दो रकाअत सुन्नत बा'दिया के बाद चार ( 4 ) रकाअत अज़ सरे नौ ( नये सिर से ) फिर से पढ़े
*3-📖मस'अला-::* ज़ोहर की नमाज़ के फ़र्ज़ से पहले जो चार ( ४ ) रकाअत सुन्नते मोअक़ैदा हैं वोह एक सलाम से पढ़े और क़ाद ऐ उला पहला क़ा'दा में सिर्फ अतहिय्यात पढ़कर तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो जाना चाहिये और अगर भूल कर दरूद शरीफ अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन, या अल्लाहुम्मा सल्ले अला सय्येदेना पढ़ लिया तो सजद ए सहव वाजिब हो जाएगा इलावा अज़ी ( वीशेष ) तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो तो सना और तअव्वुज़ भी न पढे ज़ोहर की नमाज़ के फ़र्ज़ के पहले की इन सुन्नतो की चारो रकअत में सुर ए फातेहा के बाद कोई सूरत भी जरूर पढ़े।
*(📚 मोमीन की नमाज़ सफ़ह, 178)*
*➡जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣7⃣*
*🌟जौहर की नमाज़ के जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* किसी को ज़ोहर की नमाज़ की जमाअ़त की सिर्फ एक ही रकाअत मिली या'नी वोह शख्स चौथी रकाअत में जमाअत में शामिल हुआ, तो इमाम के सलाम फैरने के बाद वोह तीन रकअत हस्बे ज़ेल तरतीब से पढ़ेगा,
इमाम के सलाम फैरने के बाद खड़ा हो जाए, अगर पहले सना, न पढ़ी थी तो अब पढ़ ले, और अगर पहले सना, पढ़ चुका है तो अब सिर्फ अउजो से शूरू करे, और पहली रकअत में सुर ए फातेहा और, सूरत दोनो पढ़ कर रुकूअ और सुज़ुद करके का'दा में बैठे, और का'दा में सिर्फ ' अतहिय्यात पढ़ कर खड़ा हो जाए, फिर दूसरी रकअत में भी सुर ए फातेहा और सूरत दोनो पढ़ कर रुकूअ और सुज़ुद करके बगैर का'दा किए हुए तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो जाए और तीसरी रकाअत में सिर्फ अल हम्दो शरीफ पठ कर रुकूअ और सुज़ुद करके का'द ए आखिरा, करके नमाज़ तमाम पूरी करे
*(📚 मोमिन की नमाज़ पेज 179)*
👉🏻नोट : नामजे असर और ईशा में भी इसी तरतीब से पढ़े
*➡Next पोस्ट असर की नमाज़ के तलूक से मसाईल इन्शा अल्लाह पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣8⃣*
*🌔नमाज़ ए असर के जरूरी मसाईल*
*📖मस'अला::-* ग़ुरूब आफताब के बीस ( 20 ) मिन्ट पहले का वक़्त ऐसा मकरूह वक़्त है, कि उसमें कोई भी नमाज़ पढ़नी जाइज़ नही, लैकिन अगर उस दीन की असर की नमाज़ नही पढ़ी तो उस वक़्त भी पढ़ ले अगरचे आफताब ग़ुरूब हो रहा हो तब भी पढ़ ले, लैकीन बिला उजे शरई इतनी ताखीर ( विलम्ब ) हराम है हदीस में इसको मुनाफिक की नमाज़ फरमाया गया है,
*📖मस'अला::-* असर की सुन्नते शुरू की थी और जमाअत क़ायम हो गई तो दो ( 2 ) रकाअत पढ़कर सलाम फैर दे और जमाअत में शरीक हो जाए, सुन्नतों के एआदा की जरूरत नही,
*( 📚मोमीन की नमाज 186)*
*➡Next पोस्ट असर की नमाज़ के तलूक से मसाईल इन्शा अल्लाह पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-4⃣9⃣*
*🌔नमाज़ ए असर के जरूरी मसाईल*
*📖 मस'अला::-* असर की नमाज के फर्ज़ के पहले जो चार ( 4 ) रकाअत है, वोह सुन्नते गैर मोअक़ैदा है, इन चारों ( 4 ) रकाअतो को एक सलाम से पढ़ना चाहिए और दो ( 2 ) रकाअत के बाद का'द ए उला' (पहला का'दा) करना चाहिये और का'द ए उला में अतहिय्यात के बाद दरूद शरीफ़ भी पढ़ना चाहिये, और तीसरी रकाअत के लिये खड़ा हो तो तीसरी रकाअत के सुरु में सना ( सुबहानकल्लाहुम्मा ) पूरी पढ़े और तअव्वुज़ ( अउजोबिल्लाह ) भी पूरा पढ़े, क्योंकि सुन्नते गैर मोअक़ैदा मिस्ले नफल यानी नफल कि तरह है, और नफल नमाज़ का हर का'दा मिस्ले का'दा ए आखिरा है, लिहाज़ा हर का'दा में अतहिय्यात और दरूद शरीफ पढ़ना चाहिये, और पहले का'दा के बाद वाली रकाअत यानी तीसरी रकाअत के शुरू में सना और तअव्वुज़ भी पढ़ना चाहिये और हर रकाअत में सुर ए फातेहा के बाद सूरत भी मिलना चाहिये,
*(📚मोमिन की नमाज सफ़ह,188 )*
*➡Next पोस्ट असर की नमाज़ के मुताल्लिक से मसाईल इन्शा अल्लाह पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣0⃣*
*🌸ईशा के नमाज के मुताल्लिक से जरुरी मसाइल*
*मस'अला::-* ईशा की नमाज़ में आखिरी दो ( 2 ) रकाअत नफल नमाज़ खड़े होकर पढना अफजल और दूना सवाब है, और बैठकर पढमे में भी कोई ए'तराज नही
*📖मस'अला::-* नमाज़े वीत्र की तीन ( 3 ) रकाअत है और उस मे का'द ए उला वाजिब है का'द ए उला में सिर्फ अतहिय्यात पढ़कर खड़ा हो जाना चाहिये अगर का'द ए उला में नही बैठा और भूल कर खड़ा हो गया तो लौटने की इजाज़त नही, बलिक सज़द ए सहव करे ।!
*(📚 मोमीन की नमाज़ सफ़ह, 198 )*
*➡Next पोस्ट ईशा की नमाज़ के मुताल्लिक से मसाईल इन्शा अल्लाह पोस्ट जारी रहेगा*
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🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣1⃣*
*🌸ईशा के नमाज के मुताल्लिक से जरुरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* वीत्र नमाज़ की तीनों रकाअतो में किरअत फ़र्ज़ है और हर रकाअत में सूरे ए फातेहा के बाद सूरत मिलाना वाजिब है
*📖मस'अला::-* वीत्र की तीसरी रकाअत में कीरअत के बाद और रुकूअ से पहले कानो तक हाथ उठाकर ,अल्लाहु अकबर कहकर हाथ बाध लेना चाहिये और दुआ ए क़ुनूत पढ़ कर रुकूअ करना चाहिये
*📖मस'अला::-* वित्र में दुआ ए क़ुनूत पढ़ना वाजिब है, अगर दुआ ए क़ुनूत पढ़ना भूल गया और रुकूअ में चला गया तो अब रुकूअ से वापस न लौटे बलिक नमाज़ पूरी करे और सज़दे ए सहव करे
*(📚रजविया जिल्द न 3 सफहा न 645 )*
*➡Next पोस्ट ईशा की नमाज़ के मुताल्लिक से मसाईल इन्शा अल्लाह पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣2⃣*
*🌸ईशा के नमाज के मुताल्लिक से जरुरी मसाइल*
*📖मसअला::-* दुआ ए क़ुनूत आहिस्ता पढ़नी चाहिये, इमाम हो या मुक़्तदी, या मून्फरिद हो अदा पढता हो, या क़ज़ा पढ़ता हो, रमजान शरीफ में पढ़ता हो, या और दिनों में पढता हो, हर सूरत (सजोग) में दुआ ए क़ुनूत आहिस्ता पढ़े
*📖मस'अला::-* जिसको दुआ ए क़ुनूत याद न हो वोह एक ( 1 ) मरतबा रब्बना - आतेना - फिद् - दुनिया हसनतंव - व - फिल - आख़िरते - हसनतंव - व-किना - अज़ाबन्नारे पढ़ ले या तीन ( 3 ) मरतबा अल्ला- हम्मग़ फिर लना' कहे
*(📚 आलमगिरी बहारे शरीअत)*
ﺭَﺑَّﻨَﺎ ﺁﺗِﻨَﺎ ﻓِﻲ ﺍﻟﺪُّﻧْﻴَﺎ ﺣَﺴَﻨَﺔً ﻭَﻓِﻲ ﺍﻟْﺂﺧِﺮَﺓِ ﺣَﺴَﻨَﺔً ﻭَﻗِﻨَﺎ ﻋَﺬَﺍﺏَ ﺍﻟﻨَّﺎﺭِ
RABBANA AATINA FID DUNYA HASANATAN WA FIL AAKHIRATI HASANATAN WA QINA AZABAN NAAR
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣3⃣*
*🌸ईशा के नमाज के मुताल्लिक से जरुरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* इशा की नमाज़ क़ज़ा हो गई तो वित्र की क़ज़ा पढ़नी वाजिब है, अगरचे कितना ही ज़माना गुज़र गया हो, क़स्दन क़ज़ा की हो या भल से क़ज़ा हो गई हो, जब इशा की क़ज़ा पढ़े तब वित्र की भी क़ज़ा पढ़े और वित्रमें दुआ ए क़ुनूत भी पढ़े, अलबता क़ज़ा पढ़ने में तक़बीरे क़ुनूत के लिये हाथ न उठाए जब कि लोगो के सामने पढता हो,ताकि लोगो को पता न चले कि येह क़ज़ा पढता है कियुकि नमाज़ क़ज़ा करना ग़ुनाह है, और गुनाह का इज़हार करना ( ज़ाहिर करना ) भी गुनाह है, लिहाज़ा क़ज़ा पढ़ते वक़्त किसी पर ज़ाहिर न होने दे कि क़ज़ा पढता है और अगर घर मे या तन्हाई में वीत्र की क़ज़ा पढता हो तो तक़बीरे क़ुनूत के लिये हाथ उठाए
*(📚 मोमीन की नमाज़ सफ़ह, 200)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣4⃣*
*📔खुत्बा के मुताल्लिक से जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* जो काम नमाज़ की हालत में करना हराम और मना है, खुत्बा होने की हालत में भी हराम और मना है, ( यानी खाना पीना बातचीत करना वगैरह )
*📖मस'अला::-* खुत्बा के पहले की चार ( 4 ) रकाअत सुन्नते मुअकैदा किसीने शुरू की थी कि खतीब ने खुत्बा शुरू कर दिया तो दो ( 2 ) रकाअत पर सलाम फैर दे और खुत्बा सुने और फ़र्ज़ पढ़ने के बाद सुन्नते बादिया ( फ़र्ज़ के बादवाली सुन्नते) पढ़ने के बाद ( 4 ) रकाअत अज़ सरे नौ फिर से पढे,
*📖मस'अला::-* खुत्बा के वक़्त खुत्बा सुननेवाला दो जानू बैठे यानी नमाज़ के का'दा में जिस तरह बैठते है , उस तरह बैठे
*(📚आलमगीरी रद्दल मोहतार गुन्या बहारे शरीअत )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣5⃣*
*📔खुत्बा के मुताल्लिक से जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* खुत्बा हो रहा हो तब सुनने वाले को एक घुट पानी पीना हराम है और किसी की तरफ गर्दन फैर कर देख ना भी हराम है
*मस'अला::-* खुत्बा के वक़्त सलाम का जवाब देना भी हराम है
*📖मस'अला::-* जुमआ की अज़ाने सानी के वक़्त अज़ान में हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम का नामे पाक सुनकर अंगूठा न चूमे और सिर्फ दिल मे दरूद शरीफ पढे और कुछ न करे , जुबान को zumibs *( हरकत Agitatoin) भी न दे*
*(📚 मोमीन की नमाज़ पेज 218)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣6⃣*
*🌼खुत्बा के मुताल्लिक से जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* खुत्बा सुनने की हालत में हरकत हिलना डुलना मना है, और बिला जरुरत खड़े होकर खुत्बा सुनना ख़िलाफ़े सुंन्नत है, अवाम में यह मा मूल प्रथा है कि जब खतीब खुत्बा के आखिरा में इन लफ़्ज़ों पर पहुचता है, व ल जिक्रुल्लाहे तआला, आ ला तो उसको सुनते ही लोग नमाज के लये खड़े हो जाते है येह हराम है कि हुनुज़ अभी खुत्बा खत्म नही हुआ चंद अल्फाज बाकी है और खुत्बा की हालत में कोई भी अमल काम करना हराम है,
*( 📚फतावा रजविया जिल्द न 3 सफहा न 743)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣7⃣*
*💫जूमआ के कूछ, अफजल सुन्नत,और मुस्तहब काम*
*📖मस'अला::-* हजामत बनवाना और नाखून नख काटना जुम्मा की नमाज़ के बाद अफ़ज़ल उत्तम है
*📖मस'अला::-* जूमआ की नमाज के लिये पहले से जल्दी से जाना और मिस्वाक करना और अच्छे व सफेद कपड़े पहनना तेल और खुशबू लगाना मुस्तहब है, जुम्मा के दिन ग़ुस्ल स्नान करना सुन्नत है
*(📚आलमगीरी बहारे शरीअत)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣8⃣*
*🦠नमाज में खुजली करना कैसा✨*
*📖मस ल'अला::-* ऐक रुकन में तीन ( 3 ) मरतबा खुजाने खुजलाना से नमाज फासिद हो जाएगी यानी इस तरह खुजाया कि एक मरतबा खुजा कर हाथ हटा लिया फिर दूसरी मरतबा खुजा कर हाथ हटा लिया फ़िर तीसरी मरतबा खुजाया तो नमाज़ फासिद हो जाएगी और अगर सिर्फ एक बार हाथ रखकर चन्द मरतबा हरकत दी तो एक ही मरतबा खुजाना कहा जाएगा,
*📖मस'अला::-* अगर हालते नमाज में बदन के किसी मक़ाम पर खुजली आए तो बेहतर यह है कि ज़ब्त करे और अगर ज़ब्त न हो सके और उसके सबब से नमाज में दिल परेसान हो तो खुजा ले मगर एक रुक्न मस्लन क़याम या क़ुउद या रुकूअ या सुज़ुद में तीन ( 3 ) मरतबा न खुजाए सिर्फ दो ( 2 ) मरतबा तक खुजाने की इजाज़त है
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा न 3 सफहा न 156)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-5⃣9⃣*
*नमाज़ में आस्तीन चढाना और मर्द अपने बालो को जुड़ा बांधना कैसा*
*📖मस'अला::-* आधी 1/2 कलाई से ज़्यादा आस्तीन बचढाना भी मकरूहे तहरिमी है ख्वाह पहले से चढी हुई हो या हालते नमाज में चढाई हो,
*📖मस'अला::-* नमाज़ में आस्तीन उपर को इस तरह चढ़ना कि हाथो की कोहनी खुल जाए नमाज़ मकरुहे तहरीमी वाज़ेबुल ए आदा होगी अगर फिर से दोबारा नही पढ़ी तो गुनेगार होगा मोमीन की नमाज
*📖मस'अला::-* मर्द के लिये बालो का जुड़ा बाधकर नमाज़ पढ़ना मकरूहे तहरीमी है और अगर नमाज की हालत में जुड़ा बाधा तो नमाज फ़ासिद हो जाएगी, औरत को सर के बालों का जुड़ा बांधकर नमाज पढ़ने में किसी किस्म की कोई मुमानेअत और कराहत नही बल्कि बेहतर येह है की औरत सर के बालों को खुला रखने के बजाए बदले जुड़ा बाढ़कर नमाज पढ़े क्योंकि औरत स्त्री के बाल भी औरत छुपाने की चीज़ है अगर जुड़ा न बाधेगी तो बाल परेशान बिखरे होंगे और इनकेशाफ ज़ाहिर होना का खौफ सदेह है
*(📚 फतावा रजविया जिल्द न 3 सफहा न 417 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣0⃣*
*💎नमाज की हालत में कांकरिया हटाना और नमाज़ी के सामने बैठ ना कैसा*
*📖मस'अला::-* हालते नमाज में सज़दा की जगह से कंकरिया हटाना मकरूहे तहरीमी है, लैकिन अगर कंकरिया नही हटाता तो सुन्नत तरीके से सज़दा नही कर सकता, तो सिर्फ एक 1 मरतबा हटाने की इजाज़त है और हतुल इमकान ( कोशिश भर ) न हटाना बेहतर है और अगर कंकरिया ,हटाए बगैर सज़दे का वाज़िब तरीका अदा न होता हो तो कंकरिया हटाना वाजिब है अगरचे एक मरतबा से ज़ियादा मरतबा हटाना पड़े
*📖मस'अला::-* किसी शख़्स के मुंह चेहरा की तरफ नमाज पढ़ना मकरुहे तहरीमी, सख्त नाज़ाईज़ और गुनाह है, अगर किसी शख्स के मुंह की तरफ सामना कर के नमाज शरू की तो नमाज पढ़नेवाले पर गुनाह है, और अगर नमाज़ी ने किसी के मुंह के सामने नमाज शुरू नही की थी बलिक वोह पहले से अपनी नमाज पढ़ रहा था और कई शख्स आकर नमाज़ी के सामने मुंह करके बैठ गया तो उस बैठने वाले पर गुनाह है
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा न 3 सफहा न 167 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣1⃣*
*🗣नमाज की हालत में छिक आए तो किया करे*
*📖मस'अला::-* किसी को छिक आई और नमाज़ी ने उसको जवाब देते हुए यरहमोकल्लाह कहा तो नमाज फ़ासिद हो गई,
*📖मस'अला::-* नमाज़ी को हालते नमाज में छिक आए तो सुकूत करे यानी कुछ भी न कहे अगर अल हम्दो लिल्लाह कहे लिया तो नमाज में हर्ज़ नही लैकिन हालते नमाज में अल हम्दो लिल्लाहे न कहे बलिक नमाज से फारिग होने के बा हम्द करे ।!
*(📚मोमीन की नमाज पेज 252)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣2⃣*
*🗣नमाज़ी की हालत में कुछ अल्फ़ाज़ निकले तो किया करे*
*📖मस'अला::-* खुशी की खबर सुनकर अल हम्दोलिल्लाहे कहा या बुरी खबर सुनकर इन्ना लिल्लाहे व इन्ना ईलैहे राजेउन कहा तो नमाज फ़ासिद हो जाएगी
*📖मस'अला::-* छिक जमाही खासी और डकारने में जितने हूरफ अक्षर निकलते है वोह मजबूरन निकलते है और मजबूरन निकलने की वजह से मुआफ है, नमाज फ़ासिद नही होती।!
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा न 3 सफहा म 150 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣3⃣*
*📿नमाज की हालत में कुछ अल्फ़ाज़ निकले तो किया करे*
*📖मस'अला::-* अल्लाह तबारक व तआला का नामे जात अल्लाह या दूसरा कोइ सिफ़ाती नाम सुनकर जल्ला जलालहु कहा या हुजूरे अक़दस सरकारे दोआलम सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम का मुबारक नाम सुनकर सल्लल्लाहो तआला अलैहै वसल्लम कहा तो नामज़ फ़ासिद हो जाएगी
*📖मस'अला::-* नमाज की हालत में दर्द तकलीफ या मुसीबत की वजह से मुंह से 'आह' या' ओह' उफ' या 'तुफ' या 'हाए' अल्फाज़ शब्द निकले या आवाज़ से रोया और रोने में किसी तरह के हर्फ़ पैदा हुए ( यानी मुंह से निकले ) तो इन तमाम सूरतो में नमाज फासीद हो जाएगी और अगर रोने में सिर्फ आंसू निकले और अवाज़ तथा हर्फ़ न निकले तो हर्ज़ नही और अगर अल्लाह तआला के ख़ौफ़ डर से रोया और आवाज़ निकली तो नमाज फ़ासिद नही होगी,
*📖मस'अला::-* फुकने में अगर आवाज़ पैदा न होतो वोह मिस्ल सांस के है और उससे नमाज फ़ासिद नही होंगी मगर क़स्दन जान बूझकर फूंकना मकरूह है और अगर फुकने में दो ( 2 ) हर्फ़ पैदा हुऐ मस्लन 'उफ' या 'हुफ' या "तुफ' या 'हुश' तो नमाज फ़ासिद हो जाएगी
*( 📚मोमीन की नामज़ पेज 254 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣4⃣*
*📿नमाज़ की हालत में हँसना कैसा*
*📖मस'अला::-* नमाज़ में क़हक़हा लगाना यानी इतनी आवाज़ से हसना कि करीब वाला सुन सके तो नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी और नमाज़ फ़ासिद होने के साथ वज़ू भी टूट जाएगा ,
*📖मस'अला::-* अगर नमाज़ में इतनी पस्त धीमी आवाज़ से हंसा कि खुद ने सुना और करीब वाला नही सुन सका तो भी नमाज़ फ़ासिद हो गई अलबत्ता इस सूरत में वज़ू नही टूटेगा,
*( 📚मोमीन की नमाज़ सफहा 256 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣5⃣*
*🍶🍲नमाज़ की हालत में खाना पीना कैसा है*
*📖मस'अला::-* नमाज़ की हालत में खाना पीना मुत्लकन ( साहजिक ) नमाज़ फ़ासिद कर देता है, क़स्दन हो या भूल कर हो, थोडा हो या ज्यादा हो, यहां तक की अगर एक तिल भी वगैर चबाए भी निगल गया या कोई क़तरा बूंद, ड्राप चाहे वोह पानी का ही क़तरा हो उस के हल्क़ गले या मुंह में गया और उसने निगल लिया हल्क़ के नीचे उतार लिया तो नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी,
*📖मस'अला::-* दांतो के अंदर खाने अन्न की कोई चीज़ रहे गई थी और हालते नमाज़ में उसको निगल गया तो अगर वोह चीज़ चने चण की मिक़दार मात्रा से कम है तो नमाज़ फ़ासिद नही होगी अलबत्ता नमाज़ मकरूह होगी और अगर चने के बराबर या ज्यादा है तो नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी
*(📚मोमीन की नमाज़ )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣6⃣*
*📿अमले क़लील करने से नमाज़ फ़ासिद न होगी,*
*📖मस'अला::-* अमले क़लील करने से नमाज़ फ़ासिद न होगी, अमले क़लील से मुराद येह है कि ऐसा कोई काम करना जो आमाले नमाज़ से या नमाज़ की इस्लाह के लिये न हो और उस काम के करने वाले नमाज़ी को देखकर देखने वाले को गुमान गालिब न हो कि येह आदमी नमाज़ में नही बलिक शक व शुब्ह आशंका हो कि नमाज़ में हैं या नही ? तो ऐसा काम अमले क़लील है
*📖मस'अला::-* नमाज़ में अमले कसीर करना मुफसिदे नमाज़ है, अमले कसीर से मुराद येह है कि ऐसा कोई काम करना जो आमाले नमाज़ ( नमाज़ के कामो ) से न हो और न ही वोह अमल नमाज़ की इस्लाह के लिये हो, अमले कसीर की मुख्तसर और जामेअ तारीफ़ येह है कि ऐसा अमल करना कि उस काम को करने वाले नमाज़ी को दूर से देखकर देखने वाले को गालिब गुमान हो कि येह शख्स नमाज़ में नही तो वोह काम अमले कसीर है,
👉🏼नोट:- बाज़ लोग हालते नमाज़ में कौमा में सज़दा मे जाते वक़्त दोनो हाथो से पाजामा उपर की तरफ खीचते है या का'दा में बैठते वक़्त कुताँ या कमीज़ शर्ट का दामन सीधा करके गोंद में बिछाते है,इस हरकत आचरण से नमाज़ फ़ासिद हो जाने का अंदेशा है, कियुकि येह काम दोनो हाथो से किया जाता है,और इसका अमले कसीर में शुमार होने का इम्कान है लिहाजा इस चेषता से बचना लाज़मी और जरूरी है कियोंकि इससे नमाज़ मकरुंहे तहरीमी तो जरूर होती है और जो नमाज़ मकरुहे तहरीमी हो उस नमाज़ का ए आदा लाज़मी है
*(📚फतावा रजविया जिल्द न 3 सफहा न 416)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣7⃣*
*नमाज़ में आस्तीन किस तरह ऊपर करें*
*📖मस'अला::-* नमाज़ में आस्तीन उपर को इस तहर चढाना कि हाथो की कोहनी ( कोणी ) खुल जाए नमाज़ मकरुहे तहरीमी वाज़ेबुल ए आदा होंगी, अगर फिर से दोबारा नही पढ़ी तो गुनाहगार होगा
*📖मस'अला::-* आधी 1/2 कलाई से ज़यादा आस्तीन बाय , चढ़ाना भी मकरुहे तहरीमी है ख्वाह पहले से चढ़ी हुई हो या हालते नमाज़ में चढ़ाई हो
*📖मस'अला::-* बदन पर इस तरह कपड़ा लपेट कर नमाज़ पढ़ना कि हाथ भी बहार न हो मकरूहे तहरीमी है,
दोस्तो ऐसे मसाइल खूब सेर करते जाए किया पता किस की नमाज़ सही हो जाय और उसका सवाब आप को मिले,
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा न 140 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣8⃣*
*👓एक अहम मसअला जिससे लोग ग़ाफ़िल हैं*
*📖मस'अला::-* अगर ऐनक चश्मा का हल्का रिंग और किमे डंडीया सोने या चांदी की है तो ऐसी ऐनक ना जाइज़ है, ऐंसी ऐनक को पहनकर नमाज़ पढना सख्त मकरुहे है, और अगर ऐनक का हल्का या कीमे तांबे या अन्य धात की हो तो बेहतर येह है कि नमाज़ पढ़ने वक़्त उस ऐनक को उतार दे वर्ना नमाज़ खिलाफ अवला और किराहत से खाली नही,
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी जमाअत में शामिल होने की जल्दी में सफ के पीछे ही, अल्लाहो अकबर तक़बीरे तहरीमा कहे कर सफ में दाखिल हुआ तो उसकी नमाज़ मकरुहे तहरीमी हुई
*📖मस'अला::-* मर्द का सज़दे में हाथकी कलाईया ज़मीन पर बिछाना मकरुहे तहरीमी है *(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-6⃣9⃣*
*💍जिन चीज़ों को पहनना शरीअत में ना जाइज़ और मना है,*
*📖मस'अला::-* किसी वाज़िब को तर्क करना ,छोड़ना, मस्लन रुकूअ व सुज़ुद में पीठ को सीधी न करना या कौमा और जलसा में सीधा होने से पहले सज़दे में चले जाना वैगेरह से नमाज़ मकरुहे तहरीमी होगी,
*📖मस'अला::-* नमाज़ की हालत में नाक और मुंह को छुपाना यानी नाक और चेहरे को किसी कपड़े या चीज़ से छूपाना कि चेहरा और नाक नज़र न आए तो नमाज़ मकरुहे तहरीमी होगी,
*📖मस'अला::-* जिन चीज़ों को पहनना शरीअत में ना जाइज़ और मना है, उनको पहनकर नमाज़ पढ़ना मकरुहे तहरीमी है, मस्लन मर्द को चांदी की सिर्फ एक अंगुशतरी ( अंगुढ़ी Ring ) जो साढ़े चार ( 4-1/2 ) माशा ( 4.375 ग्राम ) से कम वजन और सिर्फ एक नंग ( 4.375 ग्राम ) की जाइज़ है, अगर किसी ने एक से ज़यादा अंगुढ़ी या एक अंगूठी मगर साढ़े चार माशा से जयादा वज़न की या एक से जयादा नंग की पहनकर अथवा सोने ( Gold ) की अंगूठी या सोने अथवा चांदी की ज़ंज़ीर ( Chain ) पहनकर नमाज़ पढ़ी तो उसकी नमाज़ मकरुहे तहरीमी होगी,
इसी तरह मर्द ने जनानी वज़अ या औरत ने मॉर्डना वज़अ मर्द ढब के कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ मकरुहे तहरीमी वाज़ेबुल ए आदा होगी फतावा रज़वीय शरीफ में है कि मजहबे सहीह पर ना जाइज़ कपड़ा पहन कर नमाज़ मकरुहे तहरीमी की उसे उतार कर फिर एआदा की जाए
*(📚फतावा रजविया, जिल्द न 9 जुज़ अव्वल सफहा न 56)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣0⃣*
*🕋सर्फ के मुतअल्लिक जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* मर्द की पहली सफ की जो इमाम के करीब है, वोह दुसरी सर्फ़ से अफजल है और दुसरी सर्फ तीसरी सर्फ से अफजल है, व अला हाज़ल क़यास,
*📖मस'अला::-* मुक़द्दम सर्फ का अफजल होना गैर नमाज़ ज़नाज़ा में है,और नमाजे ज़नाज़ा में आखिरी सर्फ अफजल है,
*📖मस'अला::-* किसी भी सफ में फर्जी खाली जगह रखना मकरुहे तहरीमी है, जब तक अगली सफ पूरी न करले दुसरी सफ हरगिज़ न बाधे,
*📖मस'अला::-* अगर पहली सफ में जगह खाली है और लोगों ने पिछली सफ बांध कर नमाज़ शुरू करदी है, तो पिछली सफ चीरकर भी अगली सफ में जाने की इजाजत है, लिहाज़ा उस पिछली सफ को चीरता हूआ जाए और अगली सफ की खाली जगह में खड़ा हो जाए ऐसा करने के लिये हदीस में आया है
की जो शख्स सफ में कुशादगी देखकर उसे बन्द कर दे उसकी मग़फेरत हो जाएगी।
*(📚 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 133)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣1⃣*
*🕋सफ से आठ या 9 साल के बच्चे को हटाना*
*📖मस'अला::-* अगर किसी सफ में आठ ( 8 ) नौ ( 9 ) बरस का या कोई नाबालिग ( कम उम्र का लड़का तन्हा खड़ा हो गया है, यानी मर्दो ( पुख्ता उम्र के की सफ के बीच मे एक ना बालिग लड़का खड़ा हो गया है, तो उसे हालते नमाज़ में हटा कर दूर नही कर सकते आज कल अकसर मस्जिदों में देखा गया है कि अगर मर्दो की सफ में कोई एक नाबालिग लड़का खड़ा हो गया है तो उसे एन नमाज़ की हालत में पीछे की सफ में धकेल देते है और उसकी जगह खुद खड़े हो जाते है, येह सख्त मना है फतावा रजविया में है कि
समजदार लड़का आठ नौ बरस का जो नमाज़ खूब जानता है अगर, तन्हा होतो उसे सफ से दूर यानी बीच मे फासला छोड़कर खड़ा करना मना है
फ इन्नस्सलातस - सबिय्यील - मुमय्येज़िल - लज़ी - यअ़क़लुस- सलाता - सहीहतन - क़तअ़न-व क़द - अमरन - नबिय्यो - सल्लल्लाहो - तअला - अलैहे - वसल्लमा - बे सद्दिल - फर्ज - वल - तरासे - फील - सुफुफे - व - नहा - अन - ख़िलाफेही - बे - नहयिश - शदीदे,
और येह भी कोई ज़रूरी उम्र नही की वोह सफ में बायें ही हाथ खड़ा हो, ओलोमा उसे सफ में आने और मर्दो के दरमियान खड़ा होने की साफ इजाज़त देते है, दुरे मुख्तार में है कि
लव - वाहिदन - दख़लस - सफ़का - मराकीयूल फलाह में है, कि इल लम - य कु न - ज म अ़। - मि न स - सि ब या ने - य कु मु स्स बि य्यो - बयनररिजाले बा ज़ बे इल्म जो यह ज़ुल्म करते है कि लड़का पहले से दाख़िले - नमाज़ है अब येह आए तो उसे निय्यत बांधा हुआ हटा कर किनारे एक साइड कर देते है और खुद बीच मे खड़े हो जाते है येह महज़ सपूण ( स्वरूप-Entirely ) जिहालत है इसी तहर येह खयाल मान्यता भी गलत और खता है कि लड़का बराबरा पास में खड़ा हो तो मर्द की नमाज़ नही होती, इस मान्यता की भी कोई अस्ल हकीक़त नही,
*(📚 मोमीन की नमाज़ पेज 320 )*
नोट: ये मसअला उस सूरत में है कि मर्दो की सफ में नाबालिग लड़का आगया हो लेकिन पहले से सफो को तरतीब देते वक़्त मर्दो की सफे मुकद्दम आगे रखे और बच्चों की सफे मर्दो की सफो के पीछे रखे कि सफो कि तरतीब देते वक़्त मर्दो और बच्चों को एक सफ में खड़ा नही होना चाहिये
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣2⃣*
*🕋सफ के जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* दूसरी सफ में कोई शख्स निय्यत बाध चुका है और नमाज़ की निय्यत बांधने के बाद उसे पहली सफ में खाली जगह नज़र आईं तो इजाजत है कि ऐन नमाज़ की हालत में चले और जाकर खाली जगह भर दे, येह थोड़ा चलना शरीअत का हुक्म मानने और शरीअत के हुक्म की बजा आवरी अमल करने के लिये वाकेअ हुआ है, एक सफकी मिक़दार ( मात्रा ) तक चल कर सफ की खाली जगह पुर करने भरने की शरीअत में इजाजत है, अलबत्ता अगर दो ( 2 ) सफ के फासले पर किसी सफ में जगह खाली है तो नमाज़ की हालत में चलकर उसे बन्द करने भरने न जाए क्योंकि येह चलना मशी ए कसीर ( ज़ियादा चलना हो जाएगा और हालते नमाज़ में दो ( 2 ) सफ के फासले जीतना चलना मना है
*(📚 मोमीन की नमाज़ 318 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣3⃣*
*🔥सफ तोड़ना हराम है,*
*मस'अला::-* सफ क़टअ करना ( तोड़ना/काटना ) हराम है, हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहु- तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है, मन - क़तआ - सफ् फन - क़तअ़हु - ल्लाहो
*📃तर्जुमा::-* जो सफ को क़तअ़ करे उसे अल्लाह क़तअ़ करे, वहाबी नज़दी गैर मुक़ल्लीद राफज़ी वगैरा अगर सफ के दरमियान खड़ा हो गया तो उसके खड़े होने से फ़स्ल जुदाई लाज़िम आएगा और सफ क़तअ़ होगी,
*📖मस'अल::-* इक़ामत तक़बीर खड़े होकर सुनना मकरूह है, यहा तक कि ओलोमा ए दिन ने फरमाया है कि अगर इक़ामत तक़बीरे हो रही हो और उस वक़्त कोई शख्स मस्ज़िद में आया, तो वोह जहा हो वही बैठ जाए और जब मुक़ब्बिर यानी तक़बीरे कहनेवाला हय्या - अलल - फलाह पर पहुचे उस वक़्त सब मुक़तड़ियो के साथ खड़ा हो जाए
*📖मस'अला::-* अगर किसी ने तन्हा अकैले फर्ज शरू कर दिये और उसके फर्ज शुरू करने के बाद जमाअत क़ाइम हुई, तो अगर तन्हा पढ़ने वाले ने पहली रकअत का सजदा न किया हो, तो उसे शरीअतें मुताहहरा हुक्म फरमाती है कि निय्यत तोड़ दे और जमाअत में शामिल हो जाए बल्कि यहा तक हुक्म है कि महरीब और फज्र में तो जब तक दुसरी रकअत का सजदा न किया हो तो निय्यत तोड़ कर जमाअत में मिल जाए और बाकी तीन ( 3 ) नमाज़ों यानी ज़ोहर अस्र और ईशा में अगर दो ( 2 ) रकअत भी पढ़ चूका होतो उन्हें नफ़् ल ढहेरा कर जब तक तीसरी ( 3 ) रकअत का सजदा न किया हो निय्यत तोड़कर जमाअत में शरीक हो जाए ।
*( 📚मोमीन की नमाज़ पेज 323)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣4⃣*
*🎩टोपी गिरने के मसअला*
*📖मस'अला::-* नमाज़ के दौरान सर से टोपी गिर जाए तो उठा लेना अफजल है, जब कि बार बार न गिरे और उठाने में अमल कसीर की हाज़त न पड़ें, वर्ना नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी, और अगर खुशुअ व खुज़ूअ तथा आज़ज़ी व इन्केसारी की नियत से सर बेरहना खुला रखना चाहे तो न उठाना अफजल उत्तम है,
*📖मस'अल::-* ! जब क़ा'दा में हाथ की उंगलियो को अपनी हालात पे छोड़ना या'नी उंगलियां न खुली हुई हो और न मिली हुई हो, क़ा'दा में उंगलियो से घुटने पकड़ना नही चाहिये बलिक उंगलिया रान पर घुटनो के करीब रखना चाहीये,
*📖मस'अला::-*! एक शख्स नमाज़ के का'दा' में अत्तहिय्यात पढ़ रहा था, जब वोह क़ल्म ए तशहहुद शहादत का कलमा के करीब पहुचा तब मुअज़िजन ने अज़ान में शहादतैन कही उस नमाज़ी ने अतहीय्यात पढ़ने के बदले अज़ान का जवाब देने की निय्यत से अशहदो अल ला इलाहा इल्लल्लाहो व अशहदो अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु कहा तो उसकी नमाज़ जाती रही
*(📚 मोमीन की नमाज़ पेज 121 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣5⃣*
*💐तमाम किस्म के मुक़्तदीयो के लिये जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* इमाम रुकूअ मे है और मुक़्तदी जमाअत में शामिल होना चाहता है तो सिर्फ तक़बीरे तहरीमा कहेकर रुकूअ में मिल सकता है, हाथ बाधने की अस्लन ( बिल्कुल ) हाज़त नही सिर्फ तक़बीरे तहरीमा कहकर रुकूअ में शामिल होने से सुन्नत यानी तक़बीरे रुकूअ फौत होगी, लिहाज़ा चाहिये कि सीधा खड़े होने की हालत में तक़बीरे तहरीमा कहे और अगर सना पढ़ने की फुरसत न हो यानी येह एहतेमाल हो कि अगर सना पढता हु तो इमाम रुकूअ से सर उठा लेगा तो ऐसी सूरत में सना न पढे बल्कि तक़बीरे तहरीमा के साथ फौरन दूसरी तक़बीरे कहकर रुकूअ में चला जाए और अगर मुक़्तदी को इमाम की आदत मालूम है कि रुकूअ में दैर लगाता है और मैं सना पढ़कर भी रुकूअ में शामिल हो जाऊंगा तो सना पढ़कर रुकूअ की तक़बीर कहता हुआ शामिल हो येह सुन्नत है,
तक़बीरे तहरीमा खड़े होने की हालत में कहनी फर्ज़ है कुछ ना वाकिफ अनजान जो येह करते है कि इमाम रुकूअ में है और येह जनाब जुके हुए तक़बीरे तहरीमा कहते हुए शामिल हो गए अगर इतना झुका हुआ है कि तक़बीरे तहरीमा ख़त्म पूरी करने से पहले हाथ फैलाए लम्बा करे तो हाथ घूटने तक पहुंच जाए तो नमाज़ न होगी इस बात का ख्याल रखना तवज़्ज़ो देना लाज़िम है
*📖मस'अला::-* आजकल उमूमन सामान्यता येह बात देखी जाती है कि ज़रा सी कमजोरी या मामूली बिमारी या बुढ़ापा की वजह से सिरे से बैठकर फर्ज नमाज़ पढ़ते है, हालांकि उन बैठकर नमाज़ पढ़नेवालों मेसे बहुत से ऐसे भी होते है कि हिम्मत करे तो पुरी फ़र्ज़ नमाज़ खड़े होकर अदा कर सकते है और इस अदा से न इनका मरज़ बीमारी बढ़े न कोई नया मरज़ लाहिक लागू हो और न ही गिर पड़ने की हालत हो, बारहा का मुशाहेदा अनुभव है कि कमज़ोरी और बीमारी के बहाने बैठकर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ने वाले खड़े रहकर काफ़ी देर तक इधर उधर की बाते करते होते है ऐसे लोगो को बेठकर फर्ज नमाज़ पढ़ना जाइज़ नही बल्कि इन पर फर्ज है कि खड़े होकर नमाज़ अदा करे
*📖मस'अला::;* अगर कोई शख़्स कमजोर या बीमार है लैकिन असा लकड़ी या खादिम या दीवाल पर टेक लगाकर खड़ा हो सकता है तो उस पर फर्ज़ है कि उन पर टेक लगा कर खड़ा होकर नमाज़ पढे
*( 📚मोमीन की नमाज़ 86)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣6⃣*
*💐तमाम किस्म के मुक़्तदीयो के लिये जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी ने इमाम से पहले रुकूअ या सज़दा किया मगर उसके सर उठाने से पहले ही इमाम रुकूअ या सज़दा में पहुंच गया तो मुक़्तदी का रुकूअ या सज़दा हो गया लैकिन मुक़्तदी को ऐसा करना हराम है
*📖मस'अला::-* किसी मुक़्तदीने इमाम से पहले कोई फै'ल इस तरह किया कि इमाम भी उस फेल में आ मिला मस्लन मुक़्तदी ने इमाम के रुकूअ करने से पहले रुकूअ कर दिया लैकिन मुक़्तदी अभी रुकूअ ही में था कि इमाम भी रुकूअ में आ गया और दोनों की रुकूअ में शिरकत साथ हो गई येह सूरत अगरचे सख़्त ना जाइज़ और ममनुअ है और हदिस शरीफ में इस पर शदीद वईद वारिद है मगर इस सूरत में यू भी नमाज़ हो जाएगी जबकि मुक़्तदी और इमाम की रुकूअ में मुशारेकत हो जाए,
और अगर इमाम अभी रुकूअ में न आने पाया था और मुक़्तदी ने रुकूअ से सर उठा लिया और फिर मुक़्तदी ने इमाम के साथ या बाद में इस फैल काए'आदा न किया तो मुक़्तदी की नमाज़ अस्लन न हुई कि अब फर्ज मुताबेअत की कोई सूरत न पाई गई लिहाजा फर्ज तर्क हुआ ( छुटा ) और नमाज़ बातिल नष्ट हो गई
*📖मस'अला::-* रुकूअ या सज़दे में मुक़्तदी ने इमाम से पहले सर उठा लिया और इमाम अभी रुकूअ या सज़दे में है तो मुक़्तदी पर वापस लोटना वाजिब है और वापस लौटने की वजह से येह दो ( 2 ) रुकूअ या दो ( 2 ) सज़दे शुमार नही होगे,
*( 📚मोमीन की नमाज़ पेज 359 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣7⃣*
*💐तमाम किस्म के मुक़्तदीयो के लिये जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::* चार ( 4 ) काम वोह है कि अगर इमाम उसे करे तो भी मुक़्तदी उसे न करे और इमाम का साथ न दे एक नमाज़ में कोई जाइद सज़दा किया दो ईदैन की नमाज़ में छे 6छः से जियादा तक़बीर तक़बिराते ईदैन कही 3 नमाजे जनाजा में पाच पांच तक़बीरे कही चार का'द-ए आखिरा करने के बाद इमाम जाइद रकअत के लिये खड़ा हो गया तो मुक़्तदी इमाम के साथ खड़ा न हो बल्कि इमाम के वापस लौटने का इन्तजार करे, अगर इमाम पाचवी रकअत के सज़दे से पहले लौट आए, तो मुक़्तदी इमाम का साथ दे और इमाम के साथ ही सलाम फेरे और इमाम के साथ ही सज़द ए सहव भी करे
और अगर इमाम ने पाचवी रकअत का सज़दा कर लिया और क़ा'दा में नही लौटा तो मुक़्तदी तन्हा "अकैले" सलाम फैर कर अपनी नमाज़ पूरी करले और अगर इमाम ने का'दा ए आखिरा ही नही किया था और पाचवी रकअत का सज़दा कर लिया तो सबकी नमाज़ फ़ासिद हो गई अगरचे मुक़्तदी ने अतहिय्यात पढ़ कर सलाम फैर लिया हो
*📖मस'अला::-* पाच काम वोह है कि अगर इमाम उसे न करे और छोड़ दे तो मुक़्तदी भी उसे न करे और इमाम का साथ दे एक तक़बिराते ईदैन यानी दोनो ईद की नमाज़ में जाईद तक़बीरे दी जाती है दो का'द ए उला यानी दो से जियादा रकअत वाली नमाज़ का पहला का'दा तीन सजद ए तिलावत चार सजद ए सहव पांच दुआ ए क़ुनूत जबकि रुकूअ फौत होने का अंदेशा हो वर्ना क़ुनूत पढ़ कर रुकूअ करे
*📖मस'अला::-* का'द-ए उला में इमाम तशहहूद अतहिय्यात जल्दी पढकर तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो गया और बा'ज़ कुछ मुक़्तदी तशहहूद पढ़ना भूल गए और इमाम के साथ खड़े हो गए, तो जिसने तशहहूद नही पढा था वोह बैठ जाए और तशहहूद पढकर इमाम की मुताबेअत करे अगरचे वापस बैठकर तशहहूद पढ़ने की वजह से रकअत फौत छूट जाए हो जाए,
*( 📚बहारे स शरीअत हिस्सा 3 सफहा 139)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣8⃣*
*♻तमाम किस्म के मुक़्तदीयो के लिये जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::-* हुक़्क़ा बीड़ी सिगरेट या तम्बाकु खाने पीने वाले के मुंह मे बदबू होने की हालत में नमाज़ मकरुहे है और ऐसी हालत में मस्जिद में जाना भी मना है जब तक मुह साफ न कर ले
*📖मस'अला::-* नमाज़ी के लिये मुस्तहब है कि हालते क़याम में अपनी नज़र सज़दा करने की जगह पर रखें
*📖मस'अला::-* क़याम में तरावोह बयनल क़दमैन या नी थोड़ी दैर एक पाव पर ज़ोर वजन रखना फिर थोड़ी दैर दूसरे पाव पर ज़ोर रखना सुन्नत है।!
*(📚फतावा रजविया जिल्द न 3 सफहा न 449)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-7⃣9⃣*
*🕋जमाअत से नमाज़ पढ़ने का ब्यान 👥*
🌸हुज़ूरे-अकदस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम ने हमेशा जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ी है और अपने सहाबा रदियल्लाहो तअला अन्हुम को भी हमेशा नमाज़ बा-जमाअत पढ़ने की ताकीद बार बार सूचना फरमाई है
📜हदीस शरीफ में है कि जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ना तन्हा अकैले नमाज़ पढ़ने से जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने की फजीलत और जमाअत को छोड़ने की वईद में अनेक हदीसे रिवायट की गई है जिन मेसे चन्द हदीस खिदमत है सत्ताईस दर्जा ज़ियादा फजीलत रखता है,
*💫जमाअत से नमाज़ पढ़ना इस्लाम की बड़ी निशानियों मेसे है जो किसी भी दीन धर्म मे न थी*
_✨जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने की फजीलत और जमाअत को छोड़ने की वईद में अनेक हदीसे रिवायट की गई है जिन मेसे चन्द हदीस खिदमत है_
📜हदीस इमाम तिरमिजी हजरत अनस रादिय्यल्लाहो तअला अन्हो से रावी कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि जो अल्लाह के लिये चालीस दिन बा-जमाअत नमाज़ पढे और तक़बीरे उला पाए, उसके लिये दो आज़ादिया है एक नार *जहन्नम की आग* से और दुसरी निफ़ाक़ से
📜हदीस सहीह मुस्लिम शरीफ में हजरत उस्मान रदीय्यल्लाहो तअला अन्हो से मर्वी है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि जिसने बा-जमाअत इशा की नमाज़ पढ़ी गोया उसने आधी रात क़याम किया यानी इबादत की नमाज़ पढ़ी और जिसने फज़्र की नमाज़ जमाअत से पढ़ी गोया उसने पूरी रात इबादत की
🌟हदीस इमाम बुखारी और इमाम मुस्लिम ने हज़रत अबू हुरैरह रदिय्यल्लाहो तअला अन्हो से रिवायत की कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि मुनाफिको पर सबसे जियादा गिरा नमाजे इशा और फज़्र है अगर वोह जानते कि इस मे क्या सवाब है ? तो घसीटते हुए आते और बेशक मैंने क़स्द इरादा किया कि नमाज़ क़ायम करने का हुकुम दु फिर किसी को हुकुम दु की लोगो को नमाज़ पठाए और मैं अपने हमराह साथ मे चंद लोगो को जिन के पास लकड़ियों के गटठे हो उन के पास ले जाऊ जो नमाज़ में हाज़िर नही होते और उनके घरों को जला दु
✨हदीस इमाम बुखारी इमाम मुस्लिम इमाम तिरमिजी, इमाम मालिक और इमाम नसाई हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रदिय्यल्लाहो तआला अन्हो से रावी की हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि जमाअत से नमाज़ पढना तन्हा नमाज़ पढ़ने से सताईस दर्जा बढ़कर है
💫हदीस अबु दावूद ने हज़रत अब्दुल्ला इब्ने मसउद रदिय्यल्लाहो तअला अन्हो से रिवायत की कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि जो शख्स अच्छी तरह तहारत करे मस्जिद को जाए तो जो क़दम चलता है हर कदम के बदले अल्लाह तअला नैकी लिखता है और दर्ज़ा बुलन्द करता है और गुनाह मिटा देता है
📜हदीस नसाई और इब्ने खुजयमा अपनी सहीह में हज़रत उस्मान गनी रादिय्यल्लाहो तआला अन्हो से रिवायात करते है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है जिसने कामिल सम्पूर्ण वुजु किया फिर फर्ज नमाज़ के लिये मस्जिद की तरफ चला और इमाम के साथ फर्ज नमाज़ पढ़ी उस के गुनाह बख्श दिये जाते है
*📖मस'अला::-* पाचो वक़्त की नमाज़ मस्जिद में जमाअत के साथ वाज़िब है एक वक़्त का भी बिला उज़्र तर्क गुनाह है
*( 📚मोमीन की नमाज़ पेज 305 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣0⃣*
*🕋जमाअत से नमाज़ पढ़ने का ब्यान 👥*
*📖मस'अला::-* क़याम की हालत में दोनों पाव के दरमियान चार उंगल का फासला अंतर रखना सुन्नत है और यही हमारे इमामे आ'ज़म से मन्कुल है।
*📖मस'अला::-* जिन नमज़ो में क़याम खड़ा होना फर्ज है उनमें तक़बीरे तहरीमा के लिये भी कयाम फर्ज है अगर किसी ने बैठकर अल्लाहो अकबर कहा फिर खड़ा हो गया तो उसकी नमज़ शुरू ही न हुई
*📖मस'अला::-* तक़बीरे तहरीमा में हाथ उठाते वक़्त उंगलियों को अपने हाल पर छोड देना चाहिये यानी उंगलियो को बिल्कुल मिलाना भी न चाहिये और ब:तकल्लुफ तकलीफ उठाकर कुशादा भी न रखना चाहिये और येह सुन्नत तरीका है!!
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 51)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣1⃣*
*🕋जमाअत से नमाज़ पढ़ने मुताल्लिक जरूरी मसाइल 👥*
*📖मस'अला::-* हर आकिल, बालिग, आजाद, और क़ादिर मर्द पर जमाअत से नमाज़ पढना वाजिब है बिला उज्र एक मरतबा भी छोडनेवाला गुनाहगार और मुस्तहिक़्के सज़ा है, और कई अनेक मरतबा तर्क करे तो फासिक और मरदुदुशशहादत, है यानी उसकी गवाही कबुल नही की जाएगी और उस को सख्त सज़ा दी जाएगी अगर उसके पड़ो सियो ने सुकुट किया यानी उसकी जमाअत को छोड़ने की आदत पर चप रहे तो वोह भी गुनाहगार हुए
*📖मस'अला::-* जुम्मा और ईदैन दोनो ईद की नमाज़ में जमाअत शर्त है तरावीह में जमाअत करना सुन्नते किफाया है नवाफिल और रमजान के इलावा वित्र में अगर तदाई के तौर पर जमाअत की जाए तो मकरुह है तदाई के माना येह है कि जमाअत करने का एलान हो और तीन से ज़ियादा मुक़्तदी हो
*📖मस'अल::-* सूरज गहेन ( ग्रहण ) की नमाज़ में जमाअत सुन्नत है और चांद गहन की नामज़ तदाई ( एलान ) के साथ जमाअत से मकरुहे है
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 130 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣2⃣*
*🕋जमाअत से नमाज़ पढ़ने मुताल्लिक जरूरी मसाइल 👥*
*📖मस'अला::-* एक इमाम और एक मुक़्तदी यानी दो आदमी से भी जमाअत क़ायम हो सकती है और एक से जियादा मुक़्तदी होने से जमाअत की फजीलत जियादा है मुक़्तदीयो की ता'दाद जितनी ज़ियादा होगी उतनी फजीलत जियादा होगी
*🌸हदीस::-* इमाम अहमद अबु दाऊद नसाई इब्ने खूजयमा और इब्ने हब्बान ने अपनी सहीह में हजरत उबई इब्ने का'ब रादिय्यल्लाहो त'आला अन्हो से रिवायात की कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि मर्द की एक मर्द के साथ नमाज़ तन्हा अकेले नमाज़ पढनेकी निस्बत जियादा पाकीज़ा है और दो के साथ ब निस्बत एक के जियादा अच्छी है और जितने ज़ियादा हो अल्लाह त'अला के नज़दीक जियादा महबूब है
*📖मस'अला::-* जुमआ और ईदैन यानी ईदुल फित्र और ईदुल अज़हा की नमाज़ की जमाअत के लिये कम से कम तीन मुक़्तदी का होना शर्त है दीगर अन्य नमज़ो की तरह एक या दो मुक़्तदी से जूमआ और ईद की नमाज़ क़ायम नही हो सकती जूमआ और ईदैन की नमाज़ की जमाअत के लिये इमाम के इलावा कम से कम तीन मर्द मुक़्तदीयो का होना जरूरी है अगर तीन मर्द से कम मुक़्तदी होंगे तो जूमआ और इदैन की जमाअत सहीह नही,
*📖मस'अला::-* अकेला मुक़्तदी मर्द अगरचे लड़का हो वोह इमाम के बराबर दाहनी जानिब खड़ा हो बाए या पिछे खडा होना मकरुह है और अगर दो मुक़्तदी हो तो इमाम के पीछे खड़े हो दो मुक़्तदीयो का इमाम के बराबर खड़ा होना मकरुहे तन्ज़ही है और दो से जियादा मुक़्तदीयो का इमाम के करीब खड़ा होना मकरुहे तहरीमी है
*(📚दुर्रे मुख्तार जिल्द 1 सफहा न 381)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣3⃣*
*🕋जमाअत से नमाज़ पढ़ने मुताल्लिक जरूरी मसाइल 👥*
*📖मस'अला::-* इमाम के साथ सिर्फ एक मुक़्तदी इमाम के बराबर खड़ा होकर जमाअत से नमाज़ पढ़ रहा है और दूसरा मुक़्तदी जमाअत में शामिल होने आया लैकिन वोह पहला मुक़्तदी पीछे नही हटता और न ही इमाम आगे बढ़ता है तो दूसरा मुक़्तदी पहले वाले मुक़्तदी को पीछे खींच ले और वोह बाद में आने वाला यानी दुसरा मुक़्तदी पहले मुक़्तदी को चाहे निय्यत बाधने से पहले खिंच ले चाहे तो निय्यत बाधने के बाद खिंचे दोनो सूरते जाइज़ है लैकिन निय्यत बाधने के बाद खीचना अवला ( उत्तम ) है।
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी को पीछे खीचने की परिस्थति में वाजेबूत तम्बीह बात येह है कि खीचना उसी को चाहिये जो जी इल्मी हो या नी इस मस'अले से। वाकिफ हो अगर पहला मुक़्तदी कि जिसको खिंचा जा रहा है वोह अगर मसाइल से ना वाकिफ अन्जान है और उसको इस तरह खीचने का मस'अला ही नही मा'लूम तो अगर उसको पीछे खिंचा तो वोह पीछे खीचने पर बौखला जाएगा और क्या है और क्यों खिंचाते हो ? वगैराह कोई जुम्ला वाकई धबराहट की वजह से उसके मुंह से निकल जाएगा और मुबादा ( खुदा न करे ) किना वाकिफ की वजह से उसकी नमाज़ फ़ासिद हो जाए, लिहाज़ा खिंचे नही इलावा अज़ी एक अहम ( आवश्यक ) और जरूरी नुक़्ता भी याद रखना चाहिये कि नमाज़ में जिस तरह अल्लाह तबारक व तअला और रसूलल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम के सिवा किसी दूसरे से कलाम करना मुफसिदे नमाज़ है इसी तरह अल्लाह और रसूल के सिवा किसी का हुक्म मानना भी नमाज़ को फ़ासिद कर देता है ,
*🌸लिहाज़ा*
अगर एक शख्स ने किसी नमाज़ी को पीछे खिंचा या इमाम को आगे बढ़ने को कहा और वोह नमाज़ी या इमाम कहने वाले का हुक्म मानकर अपनी जगह से आगे या पीछे हटा, तो उसकी नमाज़ जाती रही, अगरचे येह हुक्म देने वाला निय्यत बाध चुका हो और अगर हटने वाले ने कहने वाले के हुक्म का लिहाज न रखा और न उसके हुक़्म से कोई काम रखा बल्कि इस निय्यत से हटा कि शरीअत का हुक़्म है और शरीअत के मसअले के लिहाज से हरकत की तो नमाज़ में कुछ भी खलल नही इस लिये बेहतर येह है कि हटने का हुक़्म देने वाले के कहते ही फौरन हरकत न करे यानी न हटे बल्कि थोड़ा सा तअम्मुल करे और येह निय्यत कर के हरकत करे यानी हटे की इस कहने वाले के हुक्म से नही बल्कि शरीअत का हुक्म है इस लिये हट रहा हु ताकि ब: जाहिर गैर के हुक्म को मानने की सूरत न रहे
जब सिर्फ निय्यत का फर्क ( तफावुत ) होने से नमाज़ के फ़ासिद या दुरुस्त होने का मदार आधार है तो इस जमाने मे जबकि जमाने वालो पर जिहालत अझनता गालिब छाई हुई है और अजब तअज्जुब नही कि अवाम निय्यत के इस फर्क से अनजान होकर बिला वजह अपनी नमाज़े खराब कर ले लिहाजा दिन के इमामो ने फरमाया है कि गैर जी इल्म "जाहिल" को हरगिज न खिंचे और यहां जी इल्म से मुराद वोह है जो इस मसअले और निय्यत के फर्क से आगाह जानकार हो
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 132 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣4⃣*
*✨🌸नमाज़ के वाजिबात🌸✨*
*यानी जिन का करना नमाज़ की सेहत सहीह होने के लिये जरूरी है अगर इन वाजिबो मे से कोई एक वाजिब सहवन भूलकर छूट जाए तो सजद-ए-सहव करना वाजिब होगा और सजद ए सहव करने से नमाज़ दुरुस्त हो जाएगी*
🌸👉🏼अगर किसी एक वाजिब को क्स्दन जान बुजकर छोड़ दिया तो सजद ए सहव करने से भी नमाज़ सहीह न होगी नमाज़ का ए आदा यानी नमाज़ को दोबारा पढना वाजिब है
*नमाज़ में हस्बे ज़ेल ( निम्तलिखित ) वाजिब है: -*
📄वाजिब की तफसील हवाला
💫 1::- तकबीरे तहरीमा में लफज अल्लाहो अकबर कहना { दुरे मुख्तार }
💫 2 ::- सुर - ए - फातेहा पूरी पढना यानी पूरी सूरत से एक लफ्ज़ भी न छुटे
💫 3 ::- सुर - ए - फातेहा के साठ सूरत मिलाना या एक बड़ी आयत या तीन छोटी आयते मिलाना,
💫 4 ::- फर्ज नमाज़ की पहली दो रकाअतो में अल हम्दो के साथ सूरत मिलाना { बहारे शरीअत }
💫 5 ::- नफल सुन्नत और वीत्र नमाज़ कि हर ( प्रत्येक ) रकअत में अल हम्दो के साथ सूरत मिलान { बहारे शरीअत }
💫 6 ::- सुर - ए - फातेहा ( अल - हम्दो ) का सूरत से पहले होना
💫 7 ::- सूरत से पहले सिर्फ एक मरतबा अल - हम्दो शरीफ पढना
💫 8 ::- अल हम्दो शरीफ और सूरत के दरमियान फस्ल ( वक़फा-gap ) न करे यानी आमीन और बिस्मील्लाह के सिवा कुछ भी न पढे { बहारे शरीअत }
💫 9 ::- क़िरअ़त के बाद फौरन रुकूअ़ करना { रद्दुल मोहतार }
✨10 ::- कौ़मा यानी रुकूअ़ के बाद सीधा खड़ा होना
✨11 ::- हर एक रकअ़त में सिर्फ एक ही रुकूअ़ करना
💫 12 ::- एक सजदा के बाद फौरन दूसरा सजदा करना कि दोनों सजदों के दरमियान कोई रूक्न फासिल न { बहारे शरीअत }
💫13 ::- सजदा में दोनों पांव की तीन तीन उंगलियों के पेट जमीन से लगना { फतावा रजविया }
💫 14 ::- जल्सा यानी दोनो सजदों के दरमियान सीधा बैठना { बहारे शरीअत }
✨ 15 ::- हर रकअत में दो ( 2 ) मरतबा सजदा करना दो से ज़यादा सजदे न करना
💫16 ::- ता'दिले अरकान यानी रुकूअ सुजूद कौमा और जल्सा में कम से कम एक मरतबा सुब्हानल्लाह कहने के वक़्त की मिक़दार मात्रा ढहेरना
✨ 17 ::- दूसरी रकअत से पहले का'दा न करना यानी एक रकअत के बाद का'दा न करना और खड़ा होना
💫 18 ::- का'द ए उला अगरचे नफल नमाज़ में हो यानी दो रकअत के बाद { कादा करना }
💫 19 ::- काद ए उला और क़ाद ए आखिरा में पूरा तशहहूद अतहिय्यात पढना इस तरह कि एक लफज भी न छूटे
💫20 ::- फर्ज़ वित्र और सुन्नते मुअकेदा के क़ाद ए उला में तशहहूद के बाद कुछ भी न पढ़ना { फतावा रजविया }
💫21 ::- चार ( 4 ) रकअ़त वाली नमाज़ में तीसरी रकअत पर का'दा न करना और चौथी रकअ़त के लिये खड़ा हो जाना रद्दुल मोहतार
✨ 22 ::- हर जहरी नमाज़ में इमाम का जहुर ( बुलन्द ) आवाज़ से किरअ़त करना
💫 23 ::- हर सिरी नमाज़ में इमाम का आहिस्ता किरअ़त करना
✨24 ::- वित्र नमाज़ में दुआ ए कुनूत की तकबीर यानी अल्लाहो अकबर कहना
💫 25 ::- वीत्र में दुआ ए क़ुनूत
✨ 26 ::- ईद की नमाज़ में छे ( 6 ) जाइद( विशेष Extra ) तक़बीरे कहना { बहारे शरीअत }
💫27 ::- ईद की नमाज़ में दूसरी रकअत के रुकूअ में जाने के लिये अल्लाहो अकबर तक़बीरे कहना
✨ 28 ::- आयते सजदा पढ़ी होतो सजद ए तिलावत करना { फतावा रजविया }
( 29 ::- सहव गलती हुआ तो सजद ए सहव करना
✨ 30 ::- हर फर्ज और वाजिब का उसकी जगह स्थान पर होना
💫 31 ::- दो ( 2 ) फर्ज या दो ( 2 ) वाजिब अथवा किसी फर्ज़ या वाजिब के दरमियान तीन ( 3 ) तस्बीह सुब्हानल्लाह कहने के वक़्त की मिक़दार मात्रा जितना वकफा न होना
💫32 ::- जब इमाम किरअत पढे चाहे जहर बुलन्द आवाज से पढ़े चाहे आहिस्ता आवाज से पढ़े तब मुक़्तदी का चुप रहेना और कुछ भी न पढना
✨33 ::- किरअ़त के इलावा तमाम वाजिबात यानी वाजिब कामो में मुक़्तदी का इमाम की मुताबेअ़त अनुकरण करना
💫 34 ::- दोनो सलाम में लफज अस्सलाम कहना और अलैकुम कहना वाजिब नही
*( 📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣5⃣*
*✨🌸सजद-ए-सहव का ब्यान🌸✨*
🌹हर नमाजी से नमाज़ पढ़ते वक़्त कभी कभी ऐसी गलती हो जाती है कि नमाज़ ना तमाम और ना दूरस्त हो जाती है नमाज़ में पैदा शुदा इस नुक़्स को सजद ए सहव से दूर किया जा सकता है
❌गलती की वजह से पैदा शुदा नुक़्स सज़द ए सहव कर लेने से दूर हो जाता है और नमाज़ दुरुस्त हो जाती है
👇🏼👉🏼जिन गलतियों की वजह से सजद ए सहव वाजिब होता है वोह हस्बे जेल है
*( 1 ) नमाज़ में जो काम वाजिब है उन में से कोई एक या एक से जियादा वाजिब छूट जाए*
*( 2 ) किसी वाजिब को अदा करने में ताखीर हो*
*( 3 ) किसी वाजिब को अदा करने में फर्क वाकेअ हो यानी नमाज़ के कामो को तय शुदा तरतीब के खिलाफ ( विरुद्ध ) यानी उन कामो को क्रमानुसार अदा करने के बदले क्रम विरुध अदा करना*
*( 4 ) किसी फ़र्ज/रुक्न जरूरी हिस्सा के अदा करने में ताखीर विलम्ब करने से*
*( 5 ) किसी फ़र्ज/रुक्न को वक़्त से पहले अदा कर लेने से*
*( 6 ) किसी फ़र्ज/रुक्न को मुकरर्र दोबारा अथवा जाइद ज़ियादा मरतबा अदा करने से मस्लन दो मरतबा रुकूअ या तीन सज़दे कर लिये*
✨मुंदरजा वाला गलतियां अगर सहवन भूल कर हुई है तोही सज़द ए सहव से उसकी तलाफी हो सकती है अगर किसी ने अमदन जान बुज कर गलती की है तो अब सजद ए सहव से उस की तलाफी नीराकरण नही हो सकती नमाज़ का ए अदा यानी नमाज़ को अज सरे नौ दोबारा पढना होगा
🌸👉🏼अगर नमाज़ का कोई फ़र्ज छूटा है चाहे सहवन हो चाहे अमदन हो सजद ए सहव से उसकी तलाफी हरगिज नही हो सकती नमाज़ हर हाल में फासिद हो गई, उसको अर्ज सरे नौ पढनी होगी
जिन सूरतो में सजद ए सहव वाजिब होता है अगर सहव का सज़दा न किया तो नमाज़ वाज़ेबुल ए आदा होगी।
*✨🌸सजद ए सहव करने का तरीका🌸✨*
*📖मस'अला::-* सजद ए सहव करने का तरीका येह है की का'दा ए आखिरा में अतहिय्यात के बाद दाहेनी तरफ सलाम फैर कर दो सजदे करना फिर का'दा करने उसमे अतहिय्यात दरूदे इब्राहिम वगैरह पढ़कर दोनो तरफ सलाम फैरना चाहिये,
*(📚फिक़ह की तमाम किताबे बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 49 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣6⃣*
*✨🌸सजद-ए-सहव करने का तरीका🌸✨*
*📖मसअला::-* सजद-ए-सहव एक सलाम फैरने के बाद कर लेना चाहिये दूसरा सलाम फैरना मना है, अगर दोनों तरफ क़स्दन सलाम फैर दिए तो सजद-ए-सहव अदा न होगा और नमाज़ फिर से पढ़ना वाजिब है,
*📖मस'अला* सजद-ए-सहव के बाद जो का'दा है उसमें भी अतहिय्यात पढना वाजीब है उस का'दे में सिर्फ अतहिय्यात पढ़कर भी सलाम फैर सकता है लेकिन बेहतर येह है कि अतहिय्यात के बाद दरूद शरीफ पढे,
*✨🌸सजद-ए-सहव के मूतअल्लिक़ जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला* फर्ज और नफल दोंनों नमाज़ों में सजद-ए-सहव के वाजीब होने का एक ही हुक्म है यानी नफल नमाज़ में भी कोई वाजिब तर्क होने से छूटने से सजद-ए-सहव वाजीब है
*(📚आलमगीरी बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 50 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣7⃣*
*✨🌸सजद-ए-सहव करने का तरीका🌸✨*
*📖मस'अला::-* सजद-ए-सहव उस वक़्त वाजीब है कि वक़्त में गुंजाइश हो अगर वक़्त में गुंजाइश न हो मस्लन नमाज़े फज्र में गलती होने की वजह से
सजद-ए-सहव वाजीब हुवा नमाजी ने पहला सलाम फेरा और सजद-ए-सहव नही किया था कि आफताब तुलुअ़ कर आया ( सूयोदय हो गया ) तो सजद-ए-सहव साकित हो गया
*📖मस'अला::-* जुमुआ और दोनों ईंदो की नमाज़ में अगर सजद-ए-सहव वाजीब हुआ तो बेहतर येह है कि सजद-ए-सहव न करे क्योंकि अगर इमाम सजद-ए-सहव करता है और मजमअ़ कशीर है तो मुक़्तदीयो की कसरत ज्यादती की वजह से खब्त और एफतेनान का अंदेशा है यानी मुक़्तदीयो में गड़बड़ी और फित्ना होने का अंदेशा हो, तो ओलोमा ए किराम ने सजद-ए-सहव के तर्क करने छोड़ने की इजाज़त दी है बल्कि जूमआ और ईदकी नमाज में सजद-ए-सहव तर्क करना अवला यानी बेहतर है
*📖मस'अला* ता'दिले अरकान मस्लन कौमा रुकूअ़ के बाद सिधा खड़ा होना या जल्सा दोनो सजदो के दरमियान सीधा बैठना भुल जाने से भी सजद-ए-सहव वाजीब होता है'
*(📚 आलमगीरी बजरे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 50 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣8⃣*
*✨🌸सजद-ए-सहव करने का तरीका🌸✨*
*📖मस'अला::-* अगर एक नमाज़ में चंद ( एक से जियादा ) वाजीब तर्क हुए तो भी सिर्फ एक मरतबा ही सजद-ए-सहव करना काफी है
*📖मस'अला::-* कोई ऐसा वाजीब तर्क हुआ जो वाजेबाते-नमाज़ से नही है बल्कि उसका वाजीब होना अम्रे-ख़ारिज से है तो उस वाजीब के तर्क होने से सजद-ए-सहव नही मस्लन कुरआने-मजीद तरतीब के मुवाफिक पढना तिलावत के वाजिबो मे से है नमाज़ के वाजिबो से नही, अगर किसीने नमाज़ में ख़िलाफ़े-तरतीब क़ुरआने-मजीद पढा तो तिलावत का वाजीब तर्क हुआ लिहाज़ा सजद-ए-सहव वाजीब नही,
*📖मस'अला::-* अगर किसी ने नमाज़ में भुल कर खिलाफे-तरतीब कुरआने-मजीद पढा तो हर्ज नहीं और सजद-ए-सहव की जरुरत नही, और अगर क़स्डन ( जान बुज़कर ) ख़िलाफे - तरतीब पढा तो सख़्त गुनेगार होगा लैकिन नमाज़ फिर भी हो गई और सजद-ए-सहव की अब भी जरूरत नही, अलबत्ता तरतीब उल्टा कर नमाज़ में कुरआने-मजीद पढना हराम है, लिहाजा उस पर लाज़िम है कि तौबा करे,
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 88/132/437 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-8⃣9⃣*
*✨🌸सजद-ए-सहव करने का तरीका🌸✨*
*📖मस'अला::-* अगर नमाज़ में इमाम से सहव हुआ और सजद-ए-सहव वाजीब हुआ तो मुक़्तदी पर भी सजद-ए-सहव वाजीब है अगरचे कोई मुक़्तदी इमाम को सहव वाकेअ़ होने के बाद जमाअ़त में शामिल हुआ हो मिसाल के तौर पर इशा की नमाज़ के फर्ज के क़ा'द-ए-उला में इमाम ने अतहिय्यात के बाद दरूद शरीफ पढ़ लिया लिहाज़ा सजद-ए-सहव वाजीब हो गया अब अगर कोई मुक़्तदी तीसरी रकअत में यानी इमाम की गलती वाक़अ होने के बाद जमाअत में शामिल हुआ, जब भी उस मुक़्तदी पर सजद-ए-सहव है वोह मुक़्तदी भी इमाम के साथ सजद-ए-सहव करे बा'दूर यानी सजद-ए-सहव करने के बाद इमाम के सलाम फैरने के बाद अपनी नमाज़ पूरी करे
*📖मस'अला::-* अगर मुक़्तदी से ब:हालते-इक़्तेदा यानी इमाम के साथ पीछे नमाज़ पढ़ने की हालत में सहव वाक़ेअ हुआ यानी कोई भूल हुई तो मुक़्तदी को सजद-ए-सहव करना वाजीब ,नहीं और नमाज़ का एआ़दा भी उसके जिम्मे नही
*📖मस'अला::-* इमाम पर सजद-ए-सहव वाजीब न था और उसने भूल कर सजद-ए-सहव किया तो इमाम और उन मुक़्तदियो की नमाज़ हो जाएगी जिनकी कोई रकअत नही छुटी लैकिन मस्बुक यानी जिसकी कुछ रकअते छूटी हो और वोह मुक़्तदी जो सजद-ए-सहव में जाने के बाद जमाअत में शामिल हुए उन मुक़्तदियो की नमाज़ न हुई
*(📚 हवाला फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 634 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣0⃣*
*✨🌸रुकूअ और सजदे की गलतियाँ और सजद-ए-सहव💫🌹*
*📖मस'अला::-* क़ाद-ए-आखिरा में येह गुमान हुआ कि क़ा'द-ए-उला है और इसी गुमान में सिर्फ अतहिय्यात पढ़ कर खड़ा हो गया और रकअत शूरू कर दी और अगर उस रकअत का सजदा करने से पहले याद आ गया तो फौरन क़ा'दा की तरफ लौटे और क़ा'दा में बैठ जाए और बैठने के साथ ही फौरन सजद-ए-सहव में चला जाए, अतहिय्यात न पढे सजद-ए-सहव करने के बाद फिर अतहिय्यात दरूद दुआ वगैरह पढ़ कर सलाम फैर कर नमाज़ पूरी करे
*📖मस'अला::-* किसीने रुकूअ की जगह स्थान सजदा या सजदा की जगह रुकूअ किया तो सजद-ए-सहव वाजीब है
*📖मस'अला::-* अगर किसी ने एक रकअत में दो मरतबा रुकूअ किया तो सजद-ए-सहव वाजीब है क्योंकि एक रकअत में सिर्फ एक ही रुकूअ करना वाजीब है एक के बदले दो रुकूअ करने की वजह से वाजीब तर्क हुआ लिहाजा सजद-ए-सहव वाजीब हुआ
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 75 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣1⃣*
*❌रुकूअ और सजदे की गलतियाँ और सजद-ए-सहव*
*📖मस'अला::-* क़ाद-ए-आखिरा में येह गुमान हुआ कि क़ा'द-ए-उला है और इसी गुमान में सिर्फ अतहिय्यात पढ़ कर खड़ा हो गया और रकअत शूरू कर दी और अगर उस रकअत का सजदा करने से पहले याद आ गया तो फौरन क़ा'दा की तरफ लौटे और क़ा'दा में बैठ जाए और बैठने के साथ ही फौरन सजद-ए-सहव में चला जाए, अतहिय्यात न पढे सजद-ए-सहव करने के बाद फिर अतहिय्यात दरूद दुआ वगैरह पढ़ कर सलाम फैर कर नमाज़ पूरी करे
*📖मस'अला::-* किसीने रुकूअ की जगह स्थान सजदा या सजदा की जगह रुकूअ किया तो सजद-ए-सहव वाजीब है
*📖मस'अला::-* अगर किसी ने एक रकअत में दो मरतबा रुकूअ किया तो सजद-ए-सहव वाजीब है क्योंकि एक रकअत में सिर्फ एक ही रुकूअ करना वाजीब है एक के बदले दो रुकूअ करने की वजह से वाजीब तर्क हुआ लिहाजा सजद-ए-सहव वाजीब हुआ
*( 📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 75 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣2⃣*
*❌रुकूअ और सजदे की गलतियाँ और सजद-ए-सहव*
*📖मस'अला::-* इसी तरह किसीने एक रकअत में दो के बजाए बदले तीन सजदे किये तो सजद-ए-सहव वाजीब है
*📖मस'अला::-* अगर रुकूअ में सुब्हाना-रब्बीयल-अज़ीम' की जगह पर बदले सुब्हाना-रब्बीयल-आला कहे दिया या सजदे में सुब्हाना-रब्बीयल-आला के बदले सुब्हाना-रब्बीयल-अज़ीम' कहे दिया या रुकूअ से उठते वक़्त समिअल्लाहो-लेमन-हमेदह की जगह अल्लाहो-अकबर कह दिया तो सजद-ए-सहव की अस्लन ( सदंतर ) हाजत नही नमाज़ हो गई
*❌क़ा'दा की गलतियां और सजद-ए-सहव*
*📖मस'अला::-* फर्ज वित्र और सुन्नते-मोअकैदा नमाज़ के क़ा'द-ए-उला में तशहहूद ( अतहिय्यात ) के बाद अगर सिर्फ अल्लाहम्मा-सल्ले-अला-मुहम्मदिन' या अल्लाहम्मा-सल्ले-अला-सय्यदेना कहे लिया तो अगर येह कहना सहवन भूल कर है तो सजद-ए-सहव वाजीब है और अगर अमदन जान बुज कर है तो नमाज़ का एआदा करे और येह उस वजह से नही की दरूद शरीफ पढा बल्कि इस वजह से है कि तीसरी रकअत के क़याम में जो फर्ज है उसमे ताखीर विलंब हुई और फर्ज में ताखीर होने की वजह से सजद-ए-सहव लाजिम ( वाजीब ) होता है लिहाजा अगर किसी ने क़ा'द-ए उला अतहिय्यात के बाद कुछ भी नही पढा बल्कि अल्लाहम्मा-सल्ले-अला-मुहम्मदिन पढ़ने के वक़्त की मिक़दार चुप बैठा रहा तो भी सजद-ए-सहव वाजीब है,
*( 📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 53 और फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 636 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣3⃣*
*❌क़ा'दा की गलतियां और सजद-ए-सहव*
*📖मस'अला* नवाफिल और सुन्नते गैर मोअकेदा ( अस्र और इशा के फर्ज के पहले की सुन्नते ) में क़ाद-ए-उला में अतहिय्यात के बाद दरूद शरीफ और दुआ-ए मासुरा पढ़ने से भी सजद-ए-सहव वाजिब नही होगा बल्कि अतहिय्यात के बाद दरूद शरीफ वगैरह पढना मस्नून सुन्नत है
*📖मस'अला::-* अगर क़ाद-ए-उला में एक से जियादा चंद मरतबा तशहहूद अतहिय्यात पढा तो सजद-ए-सहव वाजीब है
*📖मस'अला::-* हर क़ा'दे में पूरा तशहहूद अतहिय्यात पढना वाजीब है अगर एक लफ्ज़ भी छुटा तो तर्के-वाजीब होने की वजह से सजद-ए-सहव वाजीब होगा चाहे नफल नमाज़ हो या फर्ज नमाज़ हो
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 53 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣4⃣*
*❌क़ा'दा की गलतियां और सजद-ए-सहव*
*📖मस'अला::-* अगर क़ा'दा में अतहिय्यात की जगह भूल कर सुर-ए-फातेहा पढ़ी तो सजद-ए-सहव वाजीब है,
*📖मस'अला::-* फर्ज वित्र या सुन्नते मोअकेदा का क़ा'द-ए-उला भूल गया और तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो गया अगर सीधा खड़ा हो गया तो अब क़ा'दा के लिये न लौटे बल्कि नमाज़ पूरी करे और आखिर में सजद-ए-सहव करे
*📖मस'अला::-* नफल नमाज़ का हर क़ा'दा काद-ए आखिरा है यानी फर्ज है अगर चार रकअत की निय्यत बांधकर नफल नमाज़ पढ़ रहा है और रकअत के बाद क़ा'दा करना भूल गया और तीसरी रकअत के लिये खड़ा हो गया अगरचे बिल्कुल सीधा खड़ा हो गया है तो जब तक उस रकअत का सज़दा न किया हो लौट आए और सजद-ए-सहव करे
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 52 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣5⃣*
*❌क़ा'दा की गलतियां और सजद-ए-सहव*
*📖मस'अला::-* इमाम के साथ जमाअत से नमाज़ पढ़ने वाला मुक़्तदी क़ा'द-ए-उला मैं बैठना भूल गया और तीसरी रकअत के लिये सीधा खड़ा हो गया तो जरूरी है कि वोह मुक़्तदी क़ा'दा में लौट आए और इमाम की मुताबेअत ( ताबेदारी ) करे ताकि इमाम की मुख़ालेफ़त का इरतेकाब न हो
👉🏼नोट इस मुक़्तदी को अकैले सजद-ए-सहव करने की जरूरत नही इमाम के साथ दोनो सलाम फैरकर नमाज़ पूरी करे
*📖मस'अला::-* फर्ज नमाज़ में अगर क़ा'द-ए-आखिरा भूल गया और खड़ा हो गया तो जब तक उस रकअत का सजदा नही किया क़ा'दे में वापस लौट आए और सजद-ए-सहव करे और अगर उस रकअत का सजदा कर लिया तो सजदे से सर उठाते ही वोह फर्ज अब नफल में मुन्तक़िल हो गए लिहाजा मगरिब के इलावा और ( अन्य ) नमज़ो में एक रकअत मजीद मिलाए ताकि रक़ाअतो की त'दाद ताक न रहे बल्कि शुफअ यानी जुफत हो जाए मिसाल के तौर पर ज़ोहर की नमाज़ के फर्ज के आखरी क़ा'दा में बैठना भूल गया और पांचवी रकअत का सजदा कर लिया तो अब एक रकअत मजीद मिलाए यानी छटी रकअत भी पढ़े अब येह तमाम की तमाम रकाअते नफल के हुक्म में है, छै: रकअत पूरी करके सजद-ए-सहव करे लैकिन अगर मगरिब की नमाज़ में आख़िरी का'दा भूल गया और चौथी रकअत के लिये खड़ा हो गया तो ( 4 ) रकअत पर इक्तिफा करे और पांचवी न मिलाए,
*📖मस'अला::-* अगर इमाम क़ाद-ए-आखिरा तशहहूद की मिक़्दार करने के बाद भूल कर खड़ा हो गया तो मुक़्तदी उसका साथ न दे बल्कि बैठे हुए इंनतज़ार करे कि इमाम क़ा'दा में वापस लौट आए अगर इमाम क़ा'दा में वापस लौट आया तो मुक़्तदी उसका साथ दे और अगर इमाम वापस न लौटा और मजीद रकअत का सजदा कर लिया तो मुक़्तदी सलाम फैर कर नमाज़ पूरी कर दे
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 52 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣6⃣*
*🛺मुसाफिर की नमाज का बयान*
🌸हर शख्स को कही न कही सफर करने का इत्तेफाक होता है, नमाज़ एक ऐसा फरीज़ा है कि हजर हो या सफर हर हालत में उसे अदा करना है अलबत्ता सफर की नमाज़ में रिआयत दी गई है और सफर में क़स्र' नमाज़ पढ़ने की आसानी दी गई है,
🚉सफर की हालात में ज़ोहर अस्र और इशा यानी चार ( 4 ) रकअत वाली फर्ज नमाज़ में क़स्र करने का हुक़्म है यानी चार रकअत फर्ज के बदले दो रकअत फर्ज पढ़ने का हुक्म है हालते सफर में सुन्नते पूरी पढ़ी जाएगी और अगर अजलत है तो सुन्नतें माफ है
⚜शरअन वोह शख्स व्यक्ति मुसाफिर है जो तीन दिन की राह तक जाने के इरादे से अपनी बस्ती से सफर करने के लिये बाहर निकला हो तीन दिन की राह से मुराद साढ़े सत्तावन ( 57-1/2 ) मील की मुसाफट है यानी कोई शख्स अपनी बस्ती से साढ़े सत्तावन मील ( 57-1/2 की मुसाफट के सफर को रवाना हुआ वोह मुसाफिर है और वोह क़स्र नमाज़ पढ़ेगा,
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 76 फ़तवा रजविया जिल्द 3 सफहा 667 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣7⃣*
*🚉मुसाफिर की नमाज का बयान*
📪साढे सत्तावन मील ( 57-1/2 Mile ) के 92,54 किलोमीर होते है मुन्दरजा जैल ( निम्नलिखित ) हिसाब मुलाहिजा फरमाए:-
🏍 1 mile = 1.60934 k.m.
✨ 57.mile = 92.53705 k.m. = say 92.54 k.m सफर में नमाज क़स्र करने के तअल्लुकसे चन्द अहादीसे-करीमा पेशे-खिदमत है:-
*📜ह़दीस::-* बुखारी शरीफ और मुस्लिम शरीफ में उम्मुल मो'मेनिन हज़रत सय्येदेतुना आ़एशा सिद्दिका रदिय्यल्लाहो तअला अन्हा से मर्वी है फरमाती है क़ि नमाज़ दो रकाअत फर्ज की गई, फिर हुज़ूरे-अक़दस सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लमने हिजरत फरमाइ तो चार कर दी गए और सफर की नमाज उस पहले फर्ज पर रखी गइ
*📜हदीस::-* सहीह मुस्लिम में हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से रिवायात है वोह फरमाते है कि अल्लाह तबारक व तआला ने नबी ए करीम सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लम की ज़बानी ( द्वारा ) हजर ( घर पर हाजिर होना ) में चार रकअत फर्ज फ़रमाई और सफर में दो रकअत फर्ज की
*📜हदीस::-* इब्ने माज़ा ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हो से रिवायात की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो तआला अलैही वसल्लमने सफर की नमाज दो ( 2 ) रकअते मुकर्रर फ़रमाई और येह पूरी है कम नही यानी अगरचे ब-जाहिर दो रकअते कम हो गई मगर सवाब में येह दो रकअते चार के बराबर है
*(📚मोमिन की नमाज़)*
🔄अगली पोस्ट में सफर की नमाज के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाइल
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣8⃣*
*🚉मुसाफिर की नमाज का बयान*
*📖मस'अला::-* मुसाफिर पर वाजीब है कि वोह क़स्र नमाज़ पढे यानी चार रकअत फर्ज वाली नमाज़ में सिर्फ दो (रकअत फर्ज पढे अगर दीद-ओ-दानिस्ता ( जान बुज कर ) सवाब ज़ियादा मिलने की निय्यत से पूरी नमाज़ पढ़ेगा तो गुनाहगार और अज़ाब का हकदार होगा हुजूरे-अक़दस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि, ( सदक़तून-तसद्दकुल्लाहो-बेहा-अ़लयकुम-फ अक़बेलू-सदक़तहु ) तरजुमा वोह सदक़ा है यानी आसानी है अल्लाह तआ़ला तुम पर सदक़ा आसानी फरमाता है तो अल्लाह का सदक़ा कुबूल स्वीकार करो
*📖मस'अला::-* जिस शख्स पर शरअ़न क़स्र है और उसने जिहालत ( अझानता-ignorance ) की वजह से पूरी नमाज़ पढ़ी तो उस पर मुवाखे़जा़ है और उस नमाज़ को फिर से पढ़ना वाजीब है
*📖मस'अला::-* सिर्फ ज़ोह्र असर और इशा के फर्जों में क़स्र है फजर और मग़रिब के फर्ज़ों में क़स्र नही इलावा अज़ी सुन्नतों में भी क़स्र नही अगर मुसाफिर सुन्नते पढे तो पूरी पढे अलबत्ता ख़ौक और रवा रवी यानी सफर की जल्दी की हालात में सुन्नते माफ है अम्न और इत्मीनान की हालात में सुन्नतें पढ़ी जाए और पूरी पढ़ी जाए
*(📚आलमगीर बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 78 )*
🔄अगली पोस्ट में सफर की नमाज के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाइल
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-9⃣9⃣*
*🚉मुसाफिर की नमाज का बयान*
*📖मस'अला::-* अपने मक़ाम से 57'1/2 मील ( 92,54 K.m. ) के फासले ( अंतर पर अलल इत्तेसाल जाने और वहां जाकर पन्द्रह दिन ढहेरने का इरादा न हो तो क़स्र करे अगर अपने मक़ाम से साढ़े सत्तावन ( 57'1/2 ) मील के फासले पर अलल इत्तेसाल यानी मुतवातिर जाना मक़सूद नही बल्कि राह माग में कही ठहेरने हुए जाना मक़सूद है या जहां जा रहा है वहा पन्द्रह दिन कामिल ठहेरने का इरादा है तो अब वोह मुसाफिर के हुक़्म में नही लिहाज़ा वोह पूरी नमाज़ पढे
*📖मस'अला::-* अगर किसी जगह जाने के दो रास्ते हो एक से शरई सफर की मूसाफट अंतर है और दूसरे से नही तो जिस रास्ते से जाएगा उसका ए'तबार है अगर नज़दीक वाले रास्ते से गया तो मुसाफिर नही और अगर दूर वाले रास्ते से गया तो मुसाफिर है अगर चे दूर वाला रास्ता इखितयार करने में उसकी कोई सहीह गरज भी न हो
इस मस'अले को मुन्दरजा जैल मिसाल से समझें
फर्ज करो ,कि शब्बीर और तौसीफ नाम के दो शख्श पोरबन्दर से धोराजी गए लैकिन दोनो ने अलग - अलग रास्ते इख्तियार ,किए इन दोनों रास्तोमे से एक रास्ता छोटा यानी कम मुसाफत का है और दूसरा लम्बा है
*(📚मोमिन की नमाज़)*
🔄अगली पोस्ट में सफर की नमाज के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाइल
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣0⃣*
*🚉मुसाफिर की नमाज का बयान*
*📖मस'अला::-* साढ़े सत्तावन 571/2 मील ( 92,54 k.m. ) की मूसाफत अलल इत्तसाल
तय करने से आदमी शरअन मुसाफिर हो जाता है येह हुक़्म मुत्लक है फिर चाहे उस का सफर जाइज़ काम के लिये हो या ना-जाइज़ काम के लिये हो हर हाल में उस पर मुसाफिर के अहेकाम नियम जारी होंगे लागू होंगे
*📖मस'अला::-* साढ़े सत्तावान मील ( 92,54 ,K.m. ) या उस से जियादा की मूसाफत के सफर की गरज़ इरादे से रवाना होनेवाला अपने शहर की आबादी से बाहर होते ही उस पर मुसाफिर के अहेकाम नाफिज़ हो जा जाएगे, अपने शहर की आबादी से बाहर निकल कर वोह क़स्र नमाज पढ़ेगा और जहां जा रहा है वहा पन्द्रह दिन या जियादा ढहेरने की निय्यत और इरादा है फिर भी दौराने सफर माँग में वोह क़स्र नमाज़ ही पढेगा और जहां जा रहा है उस मक़ाम की आबादी आते ही मुक़ीम हो जाएगा और अब वोह पूरी नमाज़ पढ़ेगा,
*📖मस'अला ::-* अगर सफर के टुकडे करता हुआ चला और उन टुकड़ो मेसे कोई टुकड़ा 571/2 मील ( 92.54 k.m. ) का या उससे ज़ियादा की मूसाफत का नही तो इस तरह अगर सैकड़ो मिल का सफर करेगा जब भी वोह मुसाफिर के हुक़्म में नही मिसाल के तौर पर एक शख्स बम्बई से रवाना हुआ 75 किलोमीटर पर एक शहर में एक दिन क़याम किया और अपना काम किया फिर वहां से चला और वहां से अस्सी किलोमीटर के फासले पर आए हुए दूसरे शहर में ढहेरा और अपना काम किया इस तरह वोह ढहेरता हुआ सफर करता रहा राह के कई मक़ाम पर ढहेरा और अपना काम अंजाम दिया और इस तरह सफर करते हुए वोह अपने सफर के आगाज़ के मक़ाम से सैकड़ो मील दूरी तक पहुच गया इसके बावजूद भी शरअत वोह मुसाफिर के हुक्म में नही वोह अपनी नमाज़ पूरी पढ़ेगा उसे क़स्र करना जाइज़ नही
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 77 )*
🔄अगली पोस्ट में सफर की नमाज के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाइल
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣1⃣*
*🚘सफर की नमाज़ के मुताल्लिक जरूरी मसाईल*
*📖मस'अला::-* सफर करने वाले पर शरअन मुसाफिर के अहेकाम नियम- सिर्फ उस सूरत में नाफ़िज़ होंगे जब कि उसकी निय्यत सच्चे अजुम और इरादे पर महमुल हो अगर किसी मक़ाम पर पहुंच कर पन्द्रह दिन या ज्यादा ढहेरने की निय्यत भी की और उसे मालूम है कि मुजे पन्द्रह दिन से पहले यहां से चला जाना है तो येह निय्यत न हुई बल्कि महज तखय्युल हुआ मिसाल के तौर पर एक शख्स हज के इरादे से जिलहिज्ज़ह महीने की पहली तारीख को मक्का मोअज़्जमा पाहुचा और उसने मक्का मोअज़्जमा में 15 दिन ढहेरने की निय्यत की तो उस की निय्यत का एतबार नही क्योंकि उसे नौ ( 9 ) और दस 10 जिल हिज्जा को अरफ़ात मिना और मुजदल्फा नाम के मकाम में अरकाने हज्ज अदा करने के लिये मक्का मोअज़्जमा से जरूर निकलना पड़ेगा मक्का मोअज़्जमा में पन्द्रह दिन मुत्तसिल ढहेरना मुमिकन ही नही इस सूरत में उसे क़स्र नमाज़ पढ़नी होगी, अलबत्ता अरफ़ात और मीना से वापसी के बाद निय्यत करे तो सहीह है
*📖मस'अला::-* इसी तरह साडे सत्तावान मील ( 92.54 K.m. ) से कम अंतर तक जाने का अजुम है और घर से निकले वक़्त साडे सत्तावान मील की निय्यत की ताकि आबादी से निकलते ही असना-ए-राह से ही क़स्र नमाज़ की सहूलियत की इजाजत मिल जाए तो येह निय्यत नही बल्कि ख्याल बन्दी है इस सूरत में उसे क़स्र नमाज़ की इजाजत नही
*📖मस'अला::-* मुसाफिर अपने काम के लिये किसी ऐसे मक़ाम पर गया जो शरअन सफर की मुसाफत पर है यानी साढ़े सत्तावान मील ( 92.54 K.m. ) या उससे जियादा के फासले पर है और वहां उसने पन्द्रह ( 15 ) दिन ढहेरने की निय्यत नही की बल्कि पन्द्रह दिन से कम ढहेरने की निय्यत की क्युकी उसे गुमान और उम्मीद थी कि मेरा काम दो चार दिन में हो जाएगा और उसका इरादा येह है कि काम हो जाते ही चला जाऊँगा और उसका काम आज हो जाएगा,,, कल हो जाएगा कि सूरत में है ओर आज/कल.... करते करते.....अगले साल दो साल भी गुजर जाए जब भी वोह मुसाफिर है मुक़ीम नही लिहाजा क़स्र करे।
*(📚 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 80 )*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣2⃣*
*🚘सफर की नमाज़ के मुताल्लिक जरूरी मसाईल*
*📖मस'अला::-* अगर किसी ने अपने वतने-अस्ली से दूसरी जगह मस्कन किया और अपने बीवी बच्चो को भी उस मस्कन मे आरज़ी तौर पर अपने साथ रखा है तो वोह जगह उसके लिये वतने-अस्ली के हुक्म में नही, लिहाज़ा वोह जब भी वहां आएगा और पन्द्रह दिन से कम ढहेरने की निय्यत करेगा तब उस पर क़स्र नमाज़ वाजीब है वोह नमाज़ पूरी नही पढ़ेगा और अगर 15 दिन या ज्यादा ढहेरने की निय्यत है तो अब मुक़ीम है लिहाज़ा अब वोह पूरी नमाज़ पढ़ेगा उसके लिये क़स्र जायज़ नही
*(📚 फतावा रजविया जिल्द 3 सफ़ह, 669 )*
*📄इस मस'अले को मिसाल से समजे*
नईम बम्बई का बाशिन्दा है उसे नागपूर शहर में एक ढेंका मिला है जो दो साल की मुद्दत के लिये है और
नईम को अपने ढेके की मुद्दत तक नागपुर में रहेना जरूरी है लिहाजा नईमने अपने बीवी और बच्चों को भी आरज़ी तौर पर अपने साथ नागपुर मुन्तक़िल कर दिया और वोह अपने परिवार के साथ नागपुर में रहेंने लगा और अपने ढेके का काम करने लगा,
नईम को दिल्ली के एक व्यापारी ताजिर से कुछ रकम लेनी बाकी थी लिहाज़ा वोह अपनी रकम की वसूली के लिये अपने आरज़ी वतन नागपुर से दिल्ली गया दिल्ली की पार्टीने नईम से मा'जेरत करते हुए कहा कि इस वक़्त तो आपके पेमेन्ट का प्रेबन्ध नही हो सकता बल्कि आठ दिन के बाद आपको पेमेन्ट कर सकता हु लिहाजा आप एक हफ्ते के बाद आने की तकलीफ करे नईम के उस ताजिर *व्यपारी* के साथ पुराने और गाठ सम्बन्घ थे इस लिये एक हफ्ते के बाद आने का वादा तय करके दिल्ली से नागपुर वापस आ गया,
अब नईम नागपुर में एक हफ्ता ही ढहेरेगा क्योंकि हस्बे'वा'दा एक हफ्ते के बाद उसे दोबारा दिल्ली जाना है उस एक हफते के नागपुर के क़याम के दौरान नईम क़स्र नमाज़ पढ़ेगा हालांकि वोह नागपुर में अपने मकाम पर अपने बीवी बच्चों के साथ हैं लैकिन नागपुर उसका आरज़ी मस्कन है और नईम अपने आरज़ी मस्कन में दिल्ली जाने के तय शुदा *निश्चित प्रोग्राम* की वजह से सिर्फ एक हफ्ता ही ढहेरने वाला है लिहाजा वोह मुक़ीम नही बल्कि मुसाफिर के हुक्म में है इसलिए उसे क़स्र नमाज़ पढ़नी होगी क्योंकि आरज़ी मस्कन बतने-अस्ली के हुक्म में नही है बल्कि बतने इक़ामत के हुक्म में है !!
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी रहेगा*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣3⃣*
*🚗सफर की नमाज़ के मुताल्लिक जरूरी मसाईल*
*⚜वतन के अक़साम और अहेकाम*
*⤵वतन की 2 किस्में हैं*
*1 वतने अस्ली 2 वतने इक़ामत*
*📜वतने अस्ली::-* वोह जगह है जहां उसकी पैदाइश हुई हो जिस जगह उसके घर *परिवार* के लोग यानी बीवी बच्चे मुस्तकिल *क़यामी* तौर पर रहते हो और उस जगह पर उसने दायमी सुकुनत क़याम कर ली और येह इरादा है कि इसी जगह दायमी रहूंगा और यहां से नही जाऊंगा,
*📜वतने-इक़ामत* वोह जगह है जहां मुसाफिर ने पन्द्रह दिन या उससे ज़ियादा ढहेरने का इरादा किया हो और वहां पर वोह हंगामी तौर पर ढहेरा हो
*📖मस'अला::-* अगर किसी शख्स की दो बीविया अलग अलग शहरों में मुस्तकली तौर पर रहेती हो वोह दोनो जगह ( शहर ) उसके लिये वतने-असली है इन दोनों जगह पहुंच ते ही वोह मुक़ीम हो जाएगा और वोह नामज़ पूरी पढ़ेगा
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 83)*
*📖मस'अला:::-* अगर कोई शख्स अपने घर परिवार के लोगो को वतने-अस्ली से लेकर चला गया और दूसरी जगह सुकूनत इख्तियार कर ली और पहली जगह में उसका मकान और अस्बाब वगैरह बाकी है तो वोह पहला मकान भी उसके लिये वतने-अस्ली है और दूसरा मकान भी वतने - अस्ली है यानी दोनो मकान वतने-अस्ली के हुक्म में है
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 84 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣4⃣*
*🚗सफर की नमाज़ के मुताल्लिक जरूरी मसाईल*
*♻वतन के अक़साम और अहेकाम*
*📖मस'अला::-* बालिग शख्स के वालिदैन किसी शहर में रहेते हो और वोह शहर उस बालिग़ की जाए-पैदाइश नही और उस शहर में उसके बीवी बच्चे भी न हो तो वोह जगह शहर उस के लिये वतन नही
*📖मस'अला::-* औरत बियाह कर शादी करके सुसराल में रहेने लगी तो अब उसका मायका *मा बाप का घर* उसके लिये वतने-अस्ली न रहा यानी अगर सुसराल 57,54 ( 92.54 k.m. ) की मुसाफ़त पर है और वोह सुसराल से अपने मायके आई और पन्द्ररा दिन या ज्यादा ढहेरने की निय्यत न हो तो क़स्र पढे,
*(📚 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 84 )*
*📖मस'अला::-* वतने-इक़ामत दूसरे वतने-इक़ामत को बातिल कर देता है यानी एक जगह 15 दीन के इरादे से ढहेरा फिर दूसरी जगह उतने दिन ढहेरने चला गया तो पहली जगह अब वतने-इक़ामत न रही बल्कि दूसरी जगह वतने -इक़ामत बन गई फिर चाहे इन दोनो जगहों के दरमियान शरई मुसाफ़त-सफर हो या न हो।
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 84 )*
*⬇इस मस'अले को मिसाल से समझें*
👤यूसुफ पोरबन्दर का रहेने वाला है, वोह पोरबंदर से राजकोट ( 180 k.m. ) पन्द्ररा दिन ढहेरने के इरादे से गया राजकोट में पन्द्ररा दिन ढहेर कर वोह राजकोट से ही चालीस किलोमीटर के फासले पर आए हुए शहर गो गोंडल गया और गोंडल में पन्द्ररा दिन ढहेरने की निय्यत की तो अब राजकोट उसका वतने-इक़ामत न रहा बल्कि गोंडल वतने-इक़ामत बन गया,
*( 📚मोमिन की नमाज़ )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣5⃣*
*🚗सफर की नमाज़ के मुताल्लिक जरूरी मसाईल*
*♻वतन के अक़साम और अहेकाम*
*📖मस'अला::-* वतने-इक़ामत वतने-अस्ली से बातिल हो जाता है मस्लन सुहैल अहमद बम्बई का रहेने वाला है सुहैल अहमद बम्बई से अहमदाबाद आया और अहमदाबाद में पन्द्ररा दिन ढहेरने की निय्यत करके अहमदाबाद को वतने-इक़ामत बनाया और पूरी नमाज़ पढता था पांच 5 दीन के बाद उसे किसी जरूरी काम से सिर्फ एक दिन के लिये बम्बई जाना पड़ा सुहैल अहमद के बम्बई आते ही अहमदाबाद उसके लिये वतने-इकमत की हैसियत से बातिल हो गया सुहैल बम्बई में अपना काम निपटाकर छठ्ठे दिन फिर अहमदाबाद वापस आ गया तो पहले के जो पांच दिन वोह अहमदाबाद में ढहेरा था वोह बातिल हो गए अगर अब दूसरी मरतबा अहमदाबाद आकर 15 दिन से कम ढहेरने का इरादा है तो अब वोह मुकीम नही अब अहमदाबाद उसके लिये वतने इक़ामत नही लिहाज़ा क़स्र नमाज़ पढे और अगर दूसरी मरतबा अहमदाबाद आकर पन्द्ररा दिन या ज्यादा ढहेरने का इरादा है तो अब वोह मुकीम है नमाज़ पूरी पढे
*( 📚बहारे शरीअत हस्स 4 सफहा 84 )*
*📖मस'अला::-* वतने इक़ामत सफर से भी बातिल हो जाता है मस्लन शाहुल हामिद कालीकट केराला का बाशिन्दा है वोह कारोबार के सिलसिले में बम्बई आया और बम्बई में एक महीना ढहेरने की निय्यत की लिहाजा बम्बई उसके लिये वतने-इक़ामत बन गया और वोह पूरी नमाज़ पढता था इस तरह बीस दिन गुज़र गए 21 वे दिन शाहुल हामिद के किसी दोस्त की शादी की बारात बम्बई से सुरत जा रही थी दोस्त के इस्रार की बजह से शाहुल हामिद भी बारात के साथ सूरत गया सुबह बारात के साथ सूरत गया और रात में फिर बम्बई वापस आ गया इस सफर की वजह से अब बम्बई शाहुल हमीद के लिये वतने-इक़ामत न रहा सूरत से वापस बम्बई आकर अब शाहुल हमीद को दस दिन के बाद अपने वतने-अस्ली कालीकट वापस जाना है लिहाजा सूरत से वापस आने के बाद शाहुल हमीद बम्बई में जो दस दिन ढहेरेगा उन दस दिनों में नमाज़ क़स्र करेगा
*( 📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 670 )*
*📖मस'अला::-* मुसाफिर अपने सफर से अपने वतने-अस्ली पहुचते ही सफर ख़त्म हो गया और वोह मुकीम हो गया अगरचे इक़ामत की निय्यत न की हो अगरचे वतने-अस्ली में सिर्फ एक दिन के लिये ढहेरे नमाज़ पूरी पढे!!
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 84 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣6⃣*
*⛴दरियाई और हवाई सफर बस और दीगर सावरियो के सफर में नमाज़ पढ़ने के अहेकाम*
🚇 चलती हुई सवारी पर नमाज़ पढ़ने के मसाइल को अच्छी तरह समज ने के लिये अहम जरूरी ज़ुजया नियम का याद रखे कि नमाज़ की दूरस्ती के लिये सवारी वाहन का एस्तेकरार-अलल अद शर्त है यानी सवारी का जमीन पर ढहेरना शर्त है अगर सवारी जमीन पर तो है मगर ढहेरी हुई नही है जैसे चलती हुई ट्रेन या ढहेरी हूई तो है मगर जमीन पर नही बल्कि पानी पर है जैसे किनारे पर लगी हुई कश्ती या नाव तो इन पर बिला उज्र नमाज़ सहीह नही'
सिर्फ किनारे से दूर और बीच समन्दर में चलती हुई कश्ती या बहरी जहाज पर ही चलती हुई हालत में नमाज़ सहीह है इन नमाज़ो का के एआदा नही
⛵किनारे से लगी हुई कश्ती या बहरी जहाज में जो जमीन पर टिके न हो या चलती हुई ट्रेन में फर्ज वित्र और सुन्नते - फर्ज पढ़ी तो उसका एआदा यानी उसको लौटाना यानी दोबारा पढना लाज़िम है,,
*📃चलती और ढहेरी हुई सवारी पर नमाज़ पढ़ने के मसाइल*
*📖मस'अला::-* किनारे से मिलो दूर चलने वाले जहाज़ या कश्ती ख्वाह लंगर किए हुए हो उन पर नमाज़ जाइज़ है और जो जहाज़ या कशती किनारे पर ढहेरे हुए होते है अगर वोह पानी पर हो जमीन से टिके न हो तो उन ढहेरे हुए जहाज़ कश्ती नाव वगैरह में फर्ज वित्र और फर्ज की सुन्नते न हो सकेगी।
*(📚फतावा रजविया जिल्द 2 सफह, 196 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣7⃣*
*⛴दरियाई और हवाई सफर बस और दीगर सावरियो के सफर में नमाज़ पढ़ने के अहेकाम*
*📖मस'अला::* चलती हुई कशती पर बैठकर नमाज़ पढ़ सकता है जबकि चक्कर आने का गुमान-गालिब हो
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 69)*
*📖मस'अला::-* चलती हुई कश्ती पर नमाज़ पढे तो तक़बीरे-तहरीमा के वक़्त किब्ला की तरफ मुह करे और जैसे जैसे कश्ती गुमटी जाए येह नमाजी भी अपना मुंह फैरता चला जाए अगरचे वोह नफल नमाज पढ़ रहा हो
*(📚 बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 50 )*
*📖मस'अला::* दो कश्तिया बाहम एक दूसरे के साथ बंधी हुई है एक पर इमाम है और दूसरी पर मुक़्तदी है तो इक्तिदा सहीह है और अगर जुदा हो तो इक्तिदा सहीह नही,
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 112)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣8⃣*
*⛴दरियाई और हवाई सफर बस और दीगर सावरियो के सफर में नमाज़ पढ़ने के अहेकाम*
*📖मस'अला::* किनारे पानी पर ढहेरी हुई कश्ती से उतर कर जो शख्स खुश्की जमीन पर नमाज़ पढ़ सकता है उसकी ऐसी कश्ती पर नमाज़ होगी ही नही
क्योंकि वोह कश्ती पानी पर ढहेरी हुई इस्क़िरार -अलल यानी जमीन पर ढहेरी हुई नही और सेहते-नमाज़ के लिये इस्क़िरार अलल अदँ शर्त है
*📖मस'अला::* कभी कभी ऐसा होता है कि कश्ती किसी बदरगाह पर ढहेरी कश्ती में काम करने वाले कश्ती से नीचे उतर कर ख़ुश्की में नमाज़ पढना चाहते है लैकिन उस बदरगाह के हुक्म और हुकूमत के मन्तजेमिन कश्ती से उतरने नही देते ऐसी सूरत में कश्ती वालो के लिये हुक्म है कि वोह कश्ती पर ही पज़गाना नमाज़ पढ़ ले और फ़िर जब मौका मिले तब उन सब नमाज़ों का एआदा करे फतावा रजविया शरीफ में है कि
🏖किनारे पर ढहेरे हुए जहाज़ों पर नमाजे पंजगाना पाचो वक़्त के फर्ज वित्र व सुन्नते फ़ज़्र भी नही हो सकते कि उनका इस्तेकरार ढहेरना पानी पर है और इन नमाज़ों की शर्त-सेहत इस्तेकरार अलल अद्र मगर बहालते तअ़ज्जुर यानी उज़्र होने की हालत में
✨इस सूरत में अगर जबरन न उतर ने देते हो तो पज़गाना पढे और उतरने के बाद सब का एआदा करे ले-अन्नल-मानेआ़-मिन जेहतिल-इबादे
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 757 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣0⃣9⃣*
*⛴दरियाई और हवाई सफर बस और दीगर सावरियो के सफर में नमाज़ पढ़ने के अहेकाम*
*📖मस'अला::* इसी तरह चलती ट्रेन बस और दीगर सवारियों में अगर खड़ा होकर नमाज़ पढना मुम्किन नही तो बैठकर नमाज़ पढले लैकिन फिर बाद में नमाज़ का एआदा करे
*(📚फतावा रजविया जिल्द 1 सफहा 627)*
🚂जब चलती हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ है तो चलती हुई ट्रेन और दीगर अन्य सवारियों पर नमाज़ पढना क्यों मना है ? इस सवाल का तसल्ली बख्श जवाब और इस मस'अले की वजाहत
📃एक अहम तहकीक और जुज़या कि वजाहत कारेईन-किराम की ख़िदमत में मस'अले की इफहाम समजाने की निय्यते सालेह से अर्ज ख़िदमत है समन्दर में चलती हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ है जबकि चलती हुई ट्रेन में नमाज़ पढना मना है इसी तरह रेल्वे स्टेशन या किसी मकाम, पर ढहेरी हुई ट्रेन पर नमाज़ पढना जाइज़ है जबकि किनारे ( सागर का किनारा पर ढहेरी हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ नही
हो सकता है कि किसी के दिल मे येह शुब्ह और दिमाग़ में येह सवाल पैदा होने का इम्कान है कि
जब चलती हुई कश्ती पर नमाज़ पढना जाइज़ है तो चलती हुई ट्रेन पर भी पढना जाइज़ होना चाहिये
✨इसी तरह जब स्टेशन पर या किसी मकाम पर ढहेरी हुई ट्रेन पर नमाज़ पढना जाइज़ है तो किनारे पर ढहेरी हुई कश्ती पर भी नमाज़ पढना जाइज़ होना चाहिये।,,
*↕इसका जवाब येह है कि :-*
🚇चलती हुई ट्रेन पर नमाज़ पढना इस लिये जाइज़ नही कि ट्रेन जमीन पर तो जरूर है लैकिन चलने की वजह से उसका जमीन पर इस्तेकरार-बिल-कुल्लिया नहीं है लिहाज़ा नफसे इस्तेकरार नही और नमाज़ की सेहत के लिये सवारी वाहन का इस्तेकरार-अलल-अर्द यानी जमीन पर ढहेरना होना शर्त है
🛥ब खिलाफ चलती हुई कश्ती कि उससे नीचे उतरना मुम्किन ही नही अगर बिल-फर्ज मान लो कि चलती हुई कश्ती को रोक लिया जाए फिर भी उस का ढहेरना पानी पर होगा न कि जमीन पर इलावा अज़ी बीच समन्दर में कश्ती से उतर कर पानी पर नमाज़ पढना मुम्किन ही नही लिहाजा कश्ती का चलना और ढहेरना दोनों बराबर है यानी कश्ती के चलने और, ढहेरना दोनो सूरतो में कश्ती का इस्तेकरार थमना जमीन के बदले पानी पर है लैकिन अगर ट्रेन रोक ली जाए तो वोह जमीन पर ही ढहेरिगी और मिस्ले तख्त हो जाएगी और इस्तेकरार कामिल के साथ जमीन पर ढहेरगी
🏖किनारे पर ढहेरी हुई कश्ती पर नमाज़ पढना इस लिये जाइज़ नही कि किनारे पर लगी या बधी हुई कश्ती अगरचे जमीन से मुल्हीक मिली हुई है लैकिन इसके बावजूद भी वोह सिथर नही होती क्योंकि वोह पानी पर ही होती है और पानी की हरकत हिलना डुलना के साथ साथ वोह भी हरकत करती है और इस्तेकरार सिथरता नही होता पानी जमीन से मुतसिल होने की वजह से भी
इस्तेकरार हासिल नही हो सकता और कश्ती से नीचे उतरना भी दुशवार कठीन-नही लिहाजा कश्ती से उतरकर जमीन पर नमाज़ पढना लाजिम है
💫इस मस'अले की तहकीक में इमामे इश्क़ मुहब्बत मुजदिदे दिनों मिल्लत आला हजरत इमाम अहमद रज़ा मुहदीश बरेलवी रदिय्यल्लाहो तआला अन्हु ने फिकह की मशहूर मारूफ किताबे मस्लन
📖दुर्रे मुख्तार - गुन्या शरहे मुन्या - रद्दुल मोहतार - बहरूर राइक - फतावा जहिरिया - फतावा हिनिदया - आलमारी - मोहित इमाम सरखसी - फ़त्हु- क़दीर वगैरह के हवालों से इल्म के दरिया बहा दीए है फतावा रजविया शरीफ की एक इबारत पेश ख़िदमत है
🚤चलती कश्ती से अगर जमीन पर उतरना मयस्सर हो तो कश्ती में पढना जाइज़ नही बल्कि इन्दत -तहीकीक अगरचे कश्ती किनारे पर ढहेरी हो मगर पानी पर हो और जमीन तक न पहुचीं हो और येह किनारे पर उतर सकता है तो कशती में नमाज़ न होगी कि उसका इस्तेकरार ढहेरना पानी पर है और पानी जमीन से मुतसिल ब इत्तेसाल क़रीब लगा हुआ होना क़रार ढहेरना नही जब इस्तेकरार की इन हालतों में नमाजे जाइज़ नही होती जब तक जमीन पर इस्तेकरार और वोह भी बिल कुल्लिया न हो तो चलने की हलातमे कैसे जाइज़ हो सकती है कि नफसे- इस्तेकरार ही नही ब खिलाफ कशती रवा चलती हुई जिस से नुज़ूल मयस्सर उतरना मुम्किन न हो कि अगर उसे रोकेंगे भी तो इस्तेकरार पानी पर होगा न कि जमीन पर लिहाज़ा सैरो-वुक़ूफ़ चलना और ढहेरना बराबर लैकिन अगर रेल ट्रेन रोक ली जाए तो जमीन पर ही ढहेरेगी और मिस्ले तख्त हो जाएगी
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 44 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
〰〰〰〰〰〰
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣0⃣*
*⛴दरियाई और हवाई सफर बस और दीगर सावरियो के सफर में नमाज़ पढ़ने के अहेकाम*
*📖मस'अला::* हवाई जहाज़ अगर उद्दे पर ढहेरा हुआ है तो उस पर इस्तेकरार अलल अर्द के ज़ुजया की बिना पर नमाज़ सही है और अगर हवाई जहाज फिज़ा में परवाज़ कर रहा है तो भी उसमे नमाज़ दुरुस्त है फिज़ा में उड़ते हुए हवाए जहाज पर नमाज़ दुरुस्त होना समन्दर में चलती हुई कशती पर नमाज़ पढ़ने की तरह है जिस तरह चलती हुई कश्ती को रोक कर पानी पर उतर कर नमाज़ पढ़ना मुम्किन नही इसी तरह उड़ते हुए हवाई जहाज से बाहर आकर फिज़ा में मुअल्लक होकर नमाज़ पढना मुम्किन नही लिहाज जिस तरह समन्दर में चलती हुई कशती पर नमाज़ पढ़ना दुरुस्त है उसी तरह फिज़ा में उडते हुए हवाई जहाज में भी नमाज़ दुरुस्त है
*(📚नुजूहतूल कारी शरहे सहीहहुल बुखारी जिल्द 2 सफहा 375)*
*📖मस'अला::* अगर बस या मोटर कार से सफर कर रहा है और उसको रोक कर नमाज़ पढ़ने का इख्तियार है तो रोक कर निचे उतर कर नमाज़ पढले और अगर स्टेट ट्रान्सपोर्ट या किसी अन्य निजी ट्रान्सपोर्ट की बस से सफर कर रहा है और उसको रोकना अपने इख्तियार में नही तो जहां बस ढहेरे वहां के बस अड्डे पर उतर कर नमाज़ पढ़ ले और अगर बस किसी मकाम पर ढहेरने के इन्तजार में नमाज़ का वक़्त निकल जाने का इम्कान और ख़ौफ़ सदेंह है तो चलती हुई बस में ही नमाज़ पढले अगर बस जमे भीड़ न होने की वजह से वुसअत है और खड़े होकर और खड़े होकर मुम्किन नही तो बैठकर रुकूअ व सुजूद करके नमाज़ पढ़ सकता है तो इस तरह पढ़ ले और अगर बस में भीड़ है और येह अपनी नशिस्त बैठकर से खड़ा या हिल नही सकता है तो अपनी सीट पर बैठे हूए इशारे से पढ़ ले और हर हालते चलती हुई बस पर पढ़ी गई नमाज़ का बाद में एआदा जरूरी है
*📖मस'अला::* अगर मज़कूरा सूरत से बस में नशिस्त पर बैढे हूए इशारे से नमाज़ पढ़ने का इत्तेफाक हो और अगर वुज़ू है तो बेहतर है अगर वुज़ू नही तो तयम्मुम कर ले और "तयम्मुम करने के लिये कही जाने की जरूरत नही बस की खिड़की बारी से हाथ बाहर निकाल कर बस की बोदी की बाहर सतह की लोहे की चादर पर हाथ फिरा ले यानी जब लगा ले बस के चलने की बजह से रास्ते का गदो गुबार उस पर लगा हुआ होता है उस गदो गुबार से तयम्मुम हो सकता है
*(📚 मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣1⃣*
*⛴दरियाई और हवाई सफर बस और दीगर सावरियो के सफर में नमाज़ पढ़ने के अहेकाम*
*📖मस'अला::* अगर मुसाफिर मुक़्तदी ने मुक़ीम इमाम की इक़्तेदा की तो अब वोह इमाम की इक़्तेदा में चार 4 रकअत ही पढे यानी पूरी नमाज़ पढे
*(📚 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 82 )*
*📖मस'अला::-* मुसाफिर इमाम ने चार 4 रकअत वाली नमाज़ यानी ज़ोहर असर और इशा में मुक़ीम स्थानीय मुक़्तदीयो की इमामत की तो मुसाफिर इमाम दो 2 रकअत पर सलाम फैर दे और इमाम के सलाम फैरने के बाद मुक़्तदी अपनी बाकी नमाज़ पूरी करे और इन दोनों रकअतो में मुत्ल्क सदंतर कि़रअ़त न करे यानी हालते क़याम में कुछ न पढे बल्कि इतनी दैर कि सुर-ए-फातेहा पढ़ी जाए महज़ खामौश खड़े रहे
*(📚 बहारे शरीअत हिस्सा 4 सफहा 82 )*
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 395 )*
*➡नोट :-* मुक़ीम मुक़्तदी मुसाफिर इमाम के सलाम फैरने के बाद अपनी बाकी नमाज़ किस तरह पढे उसके तफसीली हम ने पोस्ट नम्बर 106/107 में लिख दिया गया है!
*📖मस'अला::-* मुसाफिर इमाम ने इक़ामत की निय्यत किए वगैर यानी कम से कम पन्द्रह 15 दिन ढहेरने की निय्यत किए बगैर चार 4 रकअत पूरी पढ़ी तो गुनेगार होगा और उसकी इक़्तेदा करने वाले मुक़ीम मुक़्तदीयो की नमाज़ बातिल हो जाएगी
*( 📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 669 )*
*📖मस'अला::-* अगर मुसाफिर इमाम मुकिमीन स्थानिक लोगो की इमामत करे तो उसे चाहिये कि नमाज़ शुरू करते वक़्त अपना मुसाफिर होना जाहिर कर दे और अगर मुसाफिर इमाम ने नमाज़ शुरू करते वक़्त अपना मुसाफिर होना जाहिर न किया तो अपनी क़स्र नमाज़ पूरी करने के बाद कहे दे कि मैं मुसाफिर हु तुम अपनी नमाज़ पूरी कर लो बल्कि शुरू में कहे
दिया है जब भी बाद में कहे दे ताकि जो लोग नमाज़ शुरू होने के वक़्त मौजूद न थे और बाद में जमाअत में शामिल हुए है उन्हें भी मालूम हो जाए क्योंकि सेहते इक़्तेदा के लिये शर्त है कि
मुक़्तदी को इमाम का मुक़ीम या मुसाफिर होना मालूम हो चाहे नमाज़ शुरू करते वक़्त मालूम हो चाहे बाद में मालूम हो!!
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
〰〰〰〰〰〰
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣2⃣*
*👤नमाजी के आगे से गुज़रने के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाईल*
*📖मस'अला::* नमाज़ी के आगे से गुजरना बहुत सख्त गुनाह है नमाज़ी के आगे से गुजरने वाला गुनेगार होता है नमाज़ी की नमाज़ में कोई ख़लल नुकसान नही आता
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफह 157)*
*नमाज़ी के आगे से गुजरने की सख्त मुमानेअ़त है हदीसो में इस पर सख्त वईदे वारिद है मस्लन*
🔥हदीस इमाम अहमद हज़रत अबी जहीम रदिय्यल्लाहो तअला अन्हो से रिवायात करते है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है अगर नमाज़ी के आगे से गुजरने वाला जानता कि उस पर कितना गुनाह है तो चालीस बरस खड़ा रहेना उस गूजर जाने से उसके हक़ में बेहतर था
🌸हदीस इब्ने माजा की रिवायत में हज़रत अबू हुरैरह रदीय्यल्लाहो तअला अन्हो से है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि..... लव-या'लमो-अहदोकुम-मा-लहू-फी-अंय-यमुर्रा-बयना-यदा-अखीहे-मो'तरेज़न-फीस्सलाते-काना-ले-अंय-युकी़मा-मिअता-आ़मीन-ख़यरूल-लहू-मिनल-खुतवति-लती-ख़ताहा़'' ( तर्जुमा ) अगर कोई जानता कि अपने भाई के सामने नमाज़ में आड़े होकर आगे से गुजरने में कितना गुनाह है तो सो ( 100 ) बरस खड़ा रहना उस एक क़दम चलने से बेहतर समझता
💫हदीस अबू बकर इब्ने अबी शयबा अपनी मुसन्नफ में हज़रत अब्दुल हमीद बिन अब्दुर्रहमान रदीय्यल्लाहो तअला अन्हो से रावी कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि लव-या'लमुल-मरो - बयना - यदल - मुस्ल्ली -ल - अहब्बो - अंय - यकसरा - फखज़ोहू - वला - यमूरो - बयना - यदयहि .. ( तर्जुमा ) अगर नमाज़ी के आगे से गुजरने वाला जानता कि इस तरह गुजरना कितना बड़ा गुनाह है तो चाहता कि उस की रान टूट जाए मगर नमाज़ी के सामने से न गुजरे
*(📚 तीनो हदीसे ब: हवाला : फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 316 / 317)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣3⃣*
*👤नमाजी के आगे से गुज़रने के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाईल*
*📖मस'अला::-* अगर कोई शख्स मकान या छोटी मस्जिद में नमाज़ पढता हो तो दीवारे किब्ला ( पशिचम तरफ की दीवार- तक उसके आगे से गुजरना निकलना जाइज़ नही जब कि बीच मे सुत्रा न हो
अगर कोई शख़्स सहेरा मैदान या बड़ी मस्जिद में नमाज़ पढता हो तो उसके आगे से सिर्फ मौज-ए- सुजूद ( सज़दा करने की जगह ) तक निकलने की इजाजत नही उससे बाहर के हिस्से से गुज़र सकता है मौज-ए-सुजूद के येह मा'नी है कि आदमी जब क़याम में अपनी निगाह को खास सज़दा करने की जगह यानी जहां सज़दे में उसकी पैसानी ललाट- होगी वहां जमात है और अगर जब सामने कोई रोक न हो तो जहां निगाह जमाता है वहा से कुछ आगे को निगाह बढ़ती है तो निगाह आगे बढ़ कर जहां तक जाए वोह सब जगह मौज-ए-सुजूद में शामिल है उस जगह के अन्दर नमाज़ी के आगे से निकलना हराम है और उससे बाहर जाइज़ है
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 158)*
*📖मस'अला::-* मस्जिदुल हरम शरीफ यानी खाना-ए -क़ा'बा में नमाज़ पढ़ने वाले नमाज़ी के आगे से तवाफ़ करने वाले लोग गुजर सकते है
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 160 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣4️⃣*
*👤नमाजी के आगे से गुज़रने के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाईल*
*📖मस'अला::-* नमाज़ी के सामने सूत्रा नही और कोई शख्स उस नमाज़ी के आगे से गुजरना चाहता है या सूत्रा है मगर कोई शख्स सूत्रा और नमाज़ी के दरमियान से गुजरना चाहता है तो नमाज़ी को रुखंसत ( इजाजत ) है कि उसे गुजरने से रोके चाहे सुब्हानल्लाह कहे या बड़ी आवाज़ जह्र से क़ीरअत करे या हाथ या सर या आंख के इशारे से मना करे इससे जियादा की इजाजत नही मस्लन गुजरने वाले के कपड़े पकड़ कर जतकना या मारना अगर नमाज़ की हालत में ऐसा किया तो अ़मले क़सीर हो जाएगा और नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 160)*
*📖मस'अला::-* औरत नमाज़ पढ़ रही है और कोई व्यकित उसके आगे से गुजरना चाहता है तो नमाज़ पढ़ने वाली औरत उस गुज़रने वाले व्यकित को तस्फीक़ से मना करे यानी अपने दाहिने हाथ की उंगलियां बाये हाथ की हथेली की पुशत पर मार कर आवाज़ पैदा कर के गुजरने वालो को मुतनब्बेह सचेत करे और उसे गुजरने से रोके!
*(📚मोमिन नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣5️⃣*
*💎मर्द और औरत की नमाज़ का फ़र्क़*
✨जिस तरह बालिग़ मर्द पर नमाज़ फर्ज है इसी तरह बालिग़ औरत पर भी नमाज़ फ़र्ज है
👉🏻 हैज़ और निफ़ास के बाद जो खून आता है डेलीवेरी की हालत में औरत को नमाज़ पढना मना है इन दिनों में औरत को नमाज़ माफ है और इन "दिनों की नमाज़ की कज़ा भी नही,
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 2 सफहा 82 )*
🚻मर्द और औरत के नमाज़ पढ़ने के तरीक़े मे भी फर्क है वोह फर्क ज़ैल में मरकुम है क़ारेईन किराम एक नज़र में मर्द और औरत की नमाज का फर्क आसानी से समज लेंगे
*मर्द के लिये किया हुकुम है*
*औरत के लिये किया हुकुम है?*
कहा फर्क है - तकबीरे तहरीमा में
*मर्द के लिये हुकुम*
1:- अपनी हथेलियां आस्तीन के बाहर रखे
2 :- अपने दोनों हाथ कानो तक उढाए
*औरत के लिये हुकुम*
1:- अपनी हथेलिया आस्तीन या चादर के अंदर छुपा कर रखे
2 :- अपने दोनों हाथ सिर्फ मूढो तक उठाए
*✨क़याम में कहा फर्क है मर्द और औरत के लिये*
*मर्द के लिये हुकुम*
1 :- नाफ के नीचे हाथ बाधे
2:- दाये हाथ की हथेली बाये हाथ की हथेली के जोड़ पर रखे और छिंन्गलीया छोटी उंगली- और अंगुठा को कलाई के इर्द गिर्द फरते हलका की शक्ल में रखे और दाये हाथ की बीच की तीनों उंगलियों को बाये हाथ कि कलाई की पुष्ट पर बिछा दे
*औरत के लिये हुकुम*
1:- पिस्तान के नीचे हाथ बाधे
2:- बाये हाथ की हथेली को पिस्तान के नीचे रखकर उसकी पुश्त पर दाये हाथ की हथेली रखे,
*🚻रुकूअ़ के लिये मर्द औरत के लिये हुकुम*
*मर्द के लिये किया हुकुम*
1:- पूरा जुके इस तरह की अगर पीठ पर पानी का प्याला भर कर रख दिया जाए तो ढहेर जाए इतनी पीठ बिछाए,
2 :- अपना सर पीठ के महाज़ में रखे न नीचा झुकाए न ऊचा
3 :- हाथों पर टेक लगाए यानी वज़न दे
4 :- घुटनो को हाथों से पकड़े
5 :- धुतनो पर हाथ रख कर उंगलिया खूब खुली हुई और कुशादा रखे
6 :- अपनी टांग मुत्लक़ न झुकाए बल्कि सीधी रखे
*अब औरत के लिये किया हुकुम*
1:- सिर्फ इतना झुके कि हाथ धुतनो तक पहुच जाए पीठ को झुका कर न बिजाई
2 :-अपना सर पीठ के महाज़ से ऊंचा उठाए रखे
3:- हाथों पर टेक न लगाए यानी वजन न दे
4 :- हाथों को धुतनो पर सिर्फ रखे और घुटने पकड़े नही
5 :- हाथों की उंगलियां कुशादा न करे बल्कि मिली हुई रखे
6:- अपनी टागे झुकी हुई रखे मर्दो की तरह सीधी न रखे
*सज़दा में मर्द और औरत के लिये किया हुकुम है*
*मर्द के लिये हुकुम*
1:- फैल कर और कशादा हो कर सज़दा करे
2 :- बाजू को करवट से पेट को रान से और रान को पिंन्डलियों से जुदा रखे
3 :- कलाइयां और कोहनियां जमीन पर न बिछाए बल्कि हथेलियां जमीन पर रखकर कलाइयां और कोहनिया ऊपर को उठाए रखे
*औरत के लिये किया हुकुम*
1:- सिमट कर सज़दा करे
2:- बाजू को करवट से पेट को रान से रान को पिंन्डलियों से और पिंन्डलियों को जमीन से मिलादे
3:- कलाइयां और कोहनियां जमीन पर बिछाए यानी जमीन से लगाए !
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣6️⃣*
*🚻मर्द और औरत की नमाज़ का फ़र्क़*
*✨जल्सा और क़ा'दा में मर्द औरत के लिये फर्क किया है*
*मर्द के लिये हुकुम*
1:- अपना बाया लेफ्ट क़दम बिछा कर उस पर बैठे और दाया क़दम इस तरह खड़ा रखे कि तमाम उंगलियां किब्ला की तरफ हो
2 :- अपनी हथेलिया रान पर रखे और उंगलिया अपनी हालात पर छोड़ दे यानी उंगलिया न कशादा खुली रखे और न मिली हुई रखे
*✨औरत के लिये किया हुकुम*
1:- दोनो पाव दायीं तरफ निकाल दे और बाये सुरीन यानी चुतरा कुला-के बल जमीन पर बैठे
2 :- अपनी हथेलियां रान पर रखे और उंगलिया मिली हुई रखे
*🌸नमाज़ के आगे से गुजरने वाले को मुतनब्बे सचेत करना मर्द और औरत के लिये किया हुकुम ?*
*मर्द के लिये हुकुम*
1:- नमाज़ पढ़ रहा है और कोई शख्स आगे से गुजरे तो सुब्हानल्लाह कहे कर उस गुजरने वाले को मुतनब्बेह यानी सचेत करे
*✨औरत के लिये किया हुकुम*
1 :- नमाज़ पढ़ रही है और कोई व्यक्ति आगे से गुजरे तो हाथ पर हाथ मार कर मुतनब्बेह करे इस को शरइ इस्तेमाल में तस्फीक कहते है यानी औरत तस्फीक करे
नमाज़े फज्र में किया हुकुम मर्द और औरत के लिए
*मर्द के लिये हुकुम*
1 :- नमाज़े फ़ज्र में अस्कार तक ताखीर करना मुस्तहब है यानी इतना उजाला हो जाएकी जमीन रोशन हो जाए और आदमी एक दूसरे को आसानी से पहचान ले
*औरत के लिये किया हुकुम*
1 :- फज्र की नमाज़ गुलस यानी अव्व्ल वक़्त
अंधेरे में पढ़े
2 :- औरत फ़ज्र की नमाज़ मर्दो की जमाअत क़ाइम होने से पहले यानी उजाला फैलाने से पहले पढे बाकी तमाम नमाज़ों में मर्द की जमाअत का इन्तजार करे यानी मर्दो की जमाअत हो जाने के बाद पढे
*नमाज़े जुम्मा व ईदैन में मर्द औरत के लिये किया हुकुम*
*मर्द के लिये हुकुम*
1 :- मर्द पर जुमा की नमाज़ फज्र है और ईदैन कि नमाज़ वाजीब है
*नमाज़े जुम्मा व ईदैन औरत के लिये किया हुकुम*
1 :- औरत पर जुम्आ व ईदैन की नमाज़ नही
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣7️⃣*
*🚻मर्द औरत की नमाज़ का फ़र्क़*
_*✨जरूरी तम्बीह और मसाइल*_
*📖मस'अला::-* औरत भी खड़ी होकर ही नमाज़ पढे जिन नमाज़ों में यानी फ़र्ज वाजीब और सुन्नते मोअकैदा में मर्दो पर क़याम फ़र्ज है उन नमाज़ों में औरतो पर भी क़याम फ़र्ज है अगर बिला उज़्र शरई उन नमाज़ों को बैठ कर पढेगी तो नमज़ नही होगी
*📖मसअला::-* तमाम रकअते खड़ी होकर पढे एक रकअत खड़ी होकर और बाकी रकअत बैठ कर पढ़ेगी तो उन रकअतो में क़याम का फर्ज तर्क होगा लिहाजा नमाज़ न होगी
👉🏻 *नोट ::-* हमारी कुछ कम इल्म मा बहेने फ़र्ज वाजिब और सुन्नते मोअकैदा नमाज़ में भी तमाम या बाज कुछ रकअते बैठ कर पढती है उनकी नमाज़ नही होती लिहाजा ऐसी नमाज़ की क़ज़ा करे और आइन्दा के लिये तौबा करे और हमेशा खड़े होकर लाज़मी तौर पर नमाज़ पढ़ने की आदत डालें
📃शरई उज़्र के बगैर बैठ कर नमाज़ पढना जाइज़ नही क़याम यानी खड़े होकर नमाज़ पढ़ने के मुतअल्लिक़ जो अहेकाम मर्दो के लिये है वोह तमाम अहेकाम औरतो पर भी लाजमी है नफल नमाज़ बगैर किसी उज़्र के भी बैठ कर पढ़ सकती है
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣8️⃣*
*📃कुछ जरूरी मसाइल✒️*
*📖मस'अला::* सोते हुए आदमी को नमाज़ के लिये जगाना जाइज़ है बल्कि जरूरी है
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 198)*
*📖मस'अला::* हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तअला अलैहे वसल्लम का मुबारक नामे पाक मुख्तलिफ जलसों में जितनी मरतबा ले बोले या सुने हर मरतबा दरूद शरीफ पढना वाजीब है अगर दरूद शरीफ नही पढ़ेगा तो गुनेगार होगा और सख्त वईदो में गिरफ्तार होगा
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 3 सफहा 81)*
*📖मस'अला::* जो शख्स सिर्फ वजीफा पढे और नमाज़ न पढे वोह फ़ासिक़ है और मुरतकिबे कबाइर ( बड़े गुनाह करने वाला- है उसका वज़ीफ़ा उस के मुंह पर मारा जाएगा ऐसो ही के मुतअल्लिक़ हदीस शरीफ में इरशाद फरमाया गया है कि बहुतेरे ( बहुत क़ुरआन पढ़ते है और क़ुरआन उन्हें लानत करता है!
*(📚फतावा राजवीया जिल्द 3 सफहा 82)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣1⃣9️⃣*
*🎑मस्जिद के सेहन के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::* अगर किसी ने क़सम खाई कि मस्जिद से बाहर नही जाऊंगा और वोह क़सम खाने वाला मस्जिद के सेहन में आया तो हरगिज़ कसम तोड़ने वाला न हुआ
*📃नोट:-* इस मस'अले से साबित हुआ कि मस्जिद का सेहन मस्जिद के हुक्म में है मस्जिद का सेहन खारिजे - मस्जिद यानी मस्जिद से जुदा और मस्जिद से अलग के हुक्म में नही वर्ना मस्जिद के सेहन में आते ही क़सम टूट जानी चाहिये'
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 3 सफहा 576)*
*📖मस'अला::* मो'तकिफ़ ( ए'तेफाक में बैठने वाले ) को ए'तेफाक की हालत में मस्जिद के सेहन में आना जाना बैठना रहेना यकीनन जाइज़ और रवा है
*📃नोट :-* इस मस'अले से भी येह साबित हुआ कि मस्जिद का सेहन भी मस्जिद के हुक्म में है अगर मस्जिद का सेहन मस्जिद के हुक्म में न होता तो मो'तफिक को ए'तेफाक की हालत में मस्जिद के सेहन में आना जाना बैठना रहना वगैरह मना होता
*( 📚 मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣0️⃣*
*🎑मस्जिद के सेहन के मुतअल्लिक़ जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::* मस्जिद का सेहन जुजूवे मस्जिद यानी मस्जिद का ही हिस्सा है मस्जिद के सेहन में नमाज़ पढना मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के हुक्म में है मस्जिद के पेट हुए *( ढके-)* हिस्से को यानी छत वाले हिस्से को मस्जिदे शतवी यानी मौसमे सर्मा की मस्जिद और सेहन को मस्जिदे सयफी यानी मौसम गर्मा की मस्जिद कहते है
*(📚फतावा राजवीया जिल्स 3 हिस्सा 582 )*
*📖मस'अला::* मस्जिद के अन्दुरुनी हिस्से और बैरूनी हिस्से यानी सेहन में नमाज़े जनाज़ा पढ़ने की शरअन इजाज़त नही
*(📚फतावा राज़वीया जिल्द 3 सफहा 582 )*
*📖मस'अला::* मस्जिद का हुजरा फिना ए मस्जिद है और फिना ए मस्जिद के लिये मस्जिद का हुक्म है !
*(📚फतावा राज़वीया जिल्द 3 सफहा 594 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣1️⃣*
*🧹मस्जिद के अदबो-एहतेराम के शरई अहेकाम☑️*
*📖मस'अला::* नापाक तेल मस्जिद में जलाना जाइज़ नही
*(📚फतावा रज़वीया जिल्द 3 सफहा 598 )*
*📖मस'अला::* मस्जिद का चिराग घर नही ले जा सकते और तिहाई ( 1/ 3 ) रात तक चिराग जला सकते है अगरचे जमाअत हो चुकी हो ज़ियादा की इजाजत नही मस्जिद के चिराग़ से क़ुतुब बीनी और दसो-तदरीस ( दिन का इल्म सीखना सिखाना तिहाई ( 1/3) रात तक तो मुत्लकन कर सकते है उसके बाद इजाजत नही
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 9 सफहा 734 )*
*📖मस'अला::* मस्जिद का कूड़ा कचरा जाड़ कर के ऐसी जगह न डाले जहां बे अदबी हो
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 184 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣2️⃣*
*☑️मस्जिद के अदबो-एहतेराम के शरई अहेकाम❌*
*📖मस'अला::* मुबाह बाते भी मस्जिद में करने की इजाजत नही और आवाज बुलन्द करना भी जाइज़ नही
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 185 )*
*📖मस'अला::-* दुन्यावी बातो के लिये मस्जिद में जाकर बैठना हराम है मस्जिद में दुनिया का कलाम बात चीत नेकियों को ऐसा खा जाता है जैसे आग लड़की को येह तो मुबाह बातो का हुक्म है फिर अगर बाते खुद बुरी हो तो वोह सख्त हराम दर हराम और मोजिबे अज़ाबे शदीद है यानी कष्ट दायक शिक्षा का कारण है
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 3 सफहा 603 )*
*📖मस'अला::-* शोरो शर धोधात-करना भी मस्जिद में हराम है और दुन्यावी बातो के लिये मस्जिद में बैठना हराम है और नमाज़ के लिये जा कर दुन्यावी तजकेरा मस्जिद में मना है !
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣3️⃣*
*☑️मस्जिद के अदबो-एहतेराम के शरई अहेकाम❌*
*📖मस'अला::* दुनिया की बात जब कि फी नफसेही मुबाह और सच्ची हो मस्जिद में बिला जरूरत करनी हराम है हदीस शरीफ में है कि जो लोग मस्जिद में दुनिया की बाते करते है उन के मूह से वोह गंदी बु-ए-बद निकलती है कि जिससे फरिश्ते ( तकलीफ पाने की वजह से ) अल्लाह तअला के हुजूर उनकी शिकायत करते है एक रिवायात में है कि एक मस्जिद अपने रब के हुज़ूर शिकायत करने चली कि लोग मुज़ में दुनिया की बाते करते है राह माग में फरिश्ते उसे आते मिले और बोले कि हम उन को हलाक करने को भेजे गए है!
*➡️नोट::-* अफसोस है कि इस जमाने में लोगो ने मस्जिदो को चौपाल यानी पंचायत घर या मुसाफ़िर खाना बना रखा है यहां तक कि कुछ लोगो को मस्जिदो में गालिया बकने लड़ते जगरते ओर हंगामा करते देखा जाता है!
*(📚हवाला फतावा राजवीया जिल्द 3 सफहा 403)*
*📖मस'अला::* मस्जिद में हंसना क़ब्र में अंधेरी लाता है मस्जिद में हसने की सख्त मुमानेअत मनाई वारिद है!
*(📚अहकामें शरीअत हिस्सा 1 मस'अला 31 सफहा 7)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣4️⃣*
*☑️मस्जिद के अदबो-एहतेराम के शरई अहेकाम❌*
*📖मसअला::* मस्जिद को रास्ता बनाना यानी उस मेसे होकर गुजरना ना जाइज़ है अगर इस कि आदत करे तो फासिक है
📿कुछ मस्जिदे इस तरह होती है कि उसके दो ( 2 ) दरवाजे होते है एक दरवाज़ा एक तरफ की गली या सड़क पर होता है और दूसरा दरवाजा दूसरी तरफ की गली या रोड पर पड़ता है कुछ लोग एक गली से दूसरी गली में जाने के लिये मस्जिद के एक दरवाज़े से धुस कर दूसरे दरवाजे से निकल ते है ताकि उनको येह रास्ता की वजह से लम्बा राउन्ड न लेना पड़े येह शरअन मना और नाजाईज है
*(📚बहारे शरीअत हिस्सा 3 सफहा 182)*
*📖मस'अला::* मस्जिद में ना समज बच्चों और पागलो को ले जाना मना है इब्ने माज़ा ने हज़रत मकहुल से और अब्दुर्र ज़् जा़क ने अपनी मुसन्नफ में उन्ही से और उन्हो ने हज़रत मआज़ा इब्ने जबल रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायात फ़रमाई है कि हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है
💕जन्नेबू - मसाजिदकुम - सिबयानकुम - व - मजानीनकुम - व - शराअकुम - व - बयअकुम - व - खु सू मातकुम - व - रफआ़ - अस्वातकुम'
📖 { तर्जुमा ) अपनी मस्जिदों को बचाओ अपने ना समज बच्चों और मजनूनो पागल- के जाने से और खरीदो-फरोख्त से और जगडो और आवाज़ बुलन्द करने से
⁉️ना समज बच्चों और पागलो को मस्जिद में ले जाने की मुमानेअत की वजह येह है कि उनको पेशाब पाखाने का शउर भान नहीं होता लिहाजा मस्जिद का फ़र्श नजासत नापाकी से मुलविवस गंदा- होने का एहतेमाल शक्यता-है इलावा अर्ज़ी उनके शोरो गुल और लगवियात का भी इम्कान रहता है!
*(📚फतावा रज़वीया जिल्द 3 सफहा 403 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣5️⃣*
*☑️मस्जिद के अदबो-एहतेराम के शरई अहेकाम❌*
*_🌟मस्जिद में सोया था और एहतेलाम हो गया तो किया करे_*
*📖मस'अला::* मस्जिद में कोई शख्स सोया हुआ था और उसे एहतेलाम हो गया तो उस पर फ़र्ज है कि मस्जिद से फौरन निकल जाए क्योंकि जनाबत नापाकी की हालत में मस्जिद में ढहेरना हराम है युही जनाबत की हालात में मस्जिद में चलना भी हराम है लिहाजा उस पर वाजीब है कि फौरन अपनी जगह पर ही तयम्मुम कर ले उसे सिर्फ इतनी ही देर ढहेरने की इजाजत है जितनी दैर समय मे वोह तयम्मुम कर सके इलावा अर्ज़ी उसे एक लम्हा भी तयम्मुम करने में ताखीर करना रवा नही कि इतनी दैर बिला जरूरत जनाबत की हालत में मस्जिद
में ढहेरना होगा और येह हराम है
📜लिहाजा अगर उसके क़रीब कोई मिट्टी का बरतन रखा हुआ है और दीवार क़दम भर दूर है तो वाजीब है कि उसी बरतन से फौरन तयम्मुम कर ले और अगर दीवार क़रीब है और बरतन दूर है तो दीवार से तयम्मुम कर ले और अगर दीवार और बरतन दोनो दूर है तो जहां वोह बैठा है उस जगह की जमीन से तयम्मुम कर ले उसे इजाजत नही कि जनाबत की हालत में सरक खिसक कर दीवार तक जाए बल्कि मस्जिद की जमीन से ही तयम्मुम कर ले
✨अल गरज ! जो जल्द हो सके वोह करे और तयम्मुम करने के बाद फौरन मस्जिद से निकल जाए अगर मस्जिद में चन्द दरवाजे है तो वोह दरवाजा इख्तियार करे जो करीब तर हो
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 1 सफहा 636)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣6️⃣*
*☑️मस्जिद के अदबो-एहतेराम के शरई अहेकाम❌*
*📖मस'अला::* मस्जिद में हद्स यानी रीह ख़ारिज करना गैर मो'तफिक को मकरूह है उसे चाहिये कि ऐसे वक़्त मस्जिद से बाहर चला जाए और मस्जिद से बाहर जाकर रिह ख़ारिज करके फिर वापस चला आए कुछ लोगो की रिह में बु-ए-शदीद होती है ऐसे लोगो को ऐसे वक़्त में मस्जिद में बैठना जाइज़ नही कि बु-ए-बद *दुगन्ध* से मस्जिद को बचाना वाजीब है
*(📚 फतावा राजवीया जिल्द 6 सफहा 393)*
*📖मस'अला::* मस्जिद की छत पर बिला जरूरत नमाज़ पढ़ने की इजाजत नही कि मस्जिद की छत पर जरूरत के बगैर चढ़ना ममनूअ और बे अदबी है और गर्मी का बहाना सुना नही जाएगा हा अगर नमाजियों की कसरत भीड़ की वजह से नीचे का तबका भर जाए और लोगो को नमाज़ पढ़ने के लिये जगह नही तो इस सूरत में मस्जिद की छत पर नमाज़ पढ़ने की इजाजत है
*(📚फतावा राज़वीया जिल्द 6 सफहा 420/448 )*
*📖मस'अला::* मस्जिद के एहाता के अन्दर दरख़्तों पेड़ से या मस्जिद की मिल्क के दरख़्तों मेसे किसी दरख़्त का फल या फूल कीमत अदा किए बगैर खाना या लेना जाइज़ नही
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 3 सफहा 602 और जिल्द 6 सफहा 450)*
*📖मस'अला::* मस्जिद में मसारीफे खैर यानी नेक कामो के लिये चन्दा करना जाइज़ है जब कि किसी किस्म की चपकलश यानी दंगा और हुजूम न हो और चन्दा करने में कोई बात मस्जिद के अदब के खिलाफ न हो मस्जिदो में मसारिफे खैर के लिये चन्दा करने का जवाज़ जाइज़ होना सहीह हदीसो से साबित है इसी तरह मस्जिद में वअज़ की भी इजाजत है जब कि वाईज़ आलिम और सुन्नी सहीहुल अक़ीदा हो
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 422/426)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣7️⃣*
*☑️मस्जिद के अदबो-एहतेराम के शरई अहेकाम❌*
*किस को मस्जिद में आने से रोका और निकाला जाएगा ?*
*📖मस'अला::* जो शख्स मुजी तकलीफ पहुंचाने वाला हो कि नमाजियों को तकलीफ देता है या बुरा भला कहता है और शरीर है और उसके जरिए द्वरा शर का अंदेशा रहेता है तो ऐसे शख्स को मस्जिद में आने से मना करना जाइज़ है और कोई गुमराह और बद मज़हब मस्लन वहाबी नज़दी देवबन्दी राफ़ज़ी गैर मुक़ल्लीद नेचरी तफजिली नदवी तब्लीगी वगैरह मस्जिद में आकर नमाज़ियों को बहकाता है और अपने नापाक मज़हब और अक़ीदों की तरफ बुलाता है तो उसे मना करना और मस्जिद में आने से रोकना वाजीब है
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 3 सज़्फहा 582)*
*📖मस'अला::* दफ ए फ़ित्ना व फसाद ब:क़दरे क़ुदरत फ़र्ज है यानी लड़ाई ज़गड़े को यथा शकित रोकना फ़र्ज है और मुफसीदो लड़ने वालों और मुज़ियो को ब:शर्त इस्तेताअत मस्जिद से रोका जाएगा अमदतूल कारी शरह सहीह बुखारी शरीफ और दुरे मुख्तार शरीफ में है कि *युम्नओ़ - कुल्लो - मूज़िन - व - लव - बे - लिसाने हि* तर्जुमा मस्जिद से हर मुजी को रोका जाएगा अगर चे वोह अपनी ज़बान से इज़ा पहुंचाता हो
*(📚फतावा रजवीया जिल्द 3 सफहा 583 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣8️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*📖मस'अला::* अगर नाजिस जगह पर ऐसा बारीक कपड़ा बिछा कर नमाज़ पढ़ी कि वोह कपड़ा सतर अंग ढापने के काम मे नही आ सकता यानी उसके नीचे की चीज जलकती होतो नमाज़ न होंगी और शीशा काच पर नमाज़ पढ़ी और उसके निचे नजासत है अगरचे नुमाया स्पष्ट हो तो भी नमाज़ हो जाएगा
*(📚बहारे शरीअत)*
*📖मस'अला::* अगर मौटा कपड़ा नजिस जगह पर बिछाकर नमाज़ पढ़ी और नजासत खुश्क सुखी हुई है कि कपड़े में जजुब शोषण नही होती और नजासत् की रंगत और बदबू महेसूस नही होती तो नमाज़ हो जाएगी कि येह कपड़ा नजासत और नमाजी के दरमियान फासिल हो जाएगा
*👉🏻नोट अगर पाक और साफ जगह मयस्सर उपलब्ध है तो नाजिस जगह पर कपड़ा बिछाकर नमाज़ न पढे मज़कूरा मस'अला मजबूरी की सूरत का है*
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣2️⃣9️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*नमाज़ की छ:6* शर्ते है और वोह मुन्दरजा जैल निम्न लिखित है
*शराइते नमाज़*
( 1 ) तहारत
( 2 ) सतरे-औरत✔️
( 3 ) इस्तक़बाल
( 4 ) वक़्त
( 5 ) निय्यत
( 6 ) तहरीमा तकबीर
*👉🏻1 नमाज़ की पहली शर्त तहारत वह हमने पहले ही वजह करदी है*
*🔎अब नमाज़ की दूसरी ( 2 ) शर्त सतरे औरत*
✨प्रथम हम सतरे औरत का अर्थ समजे सतर यानी छुपाना यानी मर्द और औरत के बदन का वोह हिस्सा जिस को खोलना या खुला रखना मा'यूब है और उस हिस्से को छुपाना लाज़मी और जरूरी है लिहाजा अब सतरे औरत का अर्थ येह हुआ कि मर्द और औरत के शरीर का वोह भाग कि जिस पर पर्दा वाजीब है और जिसको खोलना या खुला रखना ऐब और शर्म का बाइस कारण है औरत को औरत छुपाने की चीज इस लिये कहते है कि वोह वाकई वास्तव में छुपाने की चीज है यानी औरत औरत है
📜हदीस इमाम तिरमिजी ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदिय्यल्लाहो त'अला अन्हो से रिवायात की हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि औरत औरत है यानी छुपाने की चीज है जब वोह निकलती है तब शैतान उसकी तरफ जाकता देखता है
बदन का वोह हिस्सा जिसका छुपाना फ़र्ज है उस हिस्से का नमाज़ की हालत में छुपा होना शर्त है
☑️सतरे औरत के तअल्लुक से जरूरी मसाइल
*📖मस'अला::* सतरे औरत हर हाल में वाजीब है चाहे नमाज़ में हो या न हो तन्हा हो किसी के सामने बिला शरई उज्र कारण के ब्लिक तन्हाई में भी अपना हिस्सा ए सतर खोलना जाइज़ नही लोगो के सामने या नमाज़ में सतरे औरत बिल इजमाई तमाम उम्मत के एक मत से फ़र्ज है
*📖मस'अला::* इतना बारीक कपड़ा कि जिस से बदन चमकता हो यानी बदन नज़र आता हो सतर के लिये काफी नही इससे अगर नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ न होगी
*(📚फतावा रजवीया जिल्द ,3 सफ़ह,1)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1⃣3️⃣0️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की दूसरी 2 शर्त सतरे औरत*
*📖मस'अला::* मर्द के लिये नाफ़ के नीचे से धुटनो के नीचे तक का बदन औरत है यानी उसका छुपाना लाज़मी है बल्कि फ़र्ज है नाफ़ उसमे दाखिल गिनती में नही और धुटने उसमे दाखिल है
*📖मस'अला::* औरत के लिये पूरा बदन औरत है यानी उसका छुपाना फ़र्ज है लैकिन मुह की टकली यानी चेहेरा दोनो हाथकी हथेलिया और दोनों पाव के तल्वे औरत नही यानी हालते नमाज़ में औरत का चेहरा दोनो हथेलिया और दोनों तल्वे खुले होंगे तो नमाज़ हो जाएगी
*📖मस'अला::* मर्द के जिस्म का जो हिस्सा शरअन औरत है उस हिस्सा ए बदन को आठ *8* हिस्सो में तक़सीम किया गया है और हर हिस्सा अलग अलग अजुव अंग में शुमार किया जाएगा और उनमें से किसी एक उजुव की चौथाई *1/4* जितना हिस्सा खुल गया तो नमाज़ फ़ासिद हो जाएगी
*(📚फतावा रजविया जिल्द न 3 सफहा न 2 )*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣1️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की दूसरी 2 शर्त सतरे औरत*
*📖मस'अला::* अगर नमाजीने मज़कूरा अंगों में से किसी एक अंग की चौथाई जान बूझकर खोली अगरचे फौरन छुपा लिया और तीन मरतबा सुब्हानल्लाह कहने के वक़्त की मिक़दार तक खुला न रहेने दिया तब भी उसकी नमाज़ अंग के चौथाई *1/4* हिस्से के खुलने के वक़्त ही फौरन फ़ासिद हो गई
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा न 1)*
*📖मस'अला::* अगर नमाज शुरू करते वक़्त वणनीय अंगों मेसे किसी अंग की चौथाई खुली है यानी इसी हालात में तकबीरे तहरीमा अल्लाहो अकबर कहि तो उसकी नमाज़ मूनअकिद कायम ही न हुइ
*📖मस'अला::* औरत का वोह दुप्पटा के जिससे बालो की सियाही चमके दिखाई दे मुफसिदे नमाज़ है
*(📚फतावा रजवीय जिल्द न 2 सफहा न 1)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣2️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की दूसरी 2 शर्त सतरे औरत*
*📖मस'अला::* औरत का चेहरा अगरचे औरत नही है लैकिन गैर महरम के सामने चेहरा खोलना मना है और उसके चेहरे की तरफ नज़र करना और देखना गैर महरम मर्द के लिये जाइज़ नही
*📖मस'अला::* सतरे औरत का अर्थ येह है कि नमाज़ी अपने सतर को दूसरे लोगो से इस तरह छुपाए कि उसके जिस्म की तरफ आमतौर सामान्यता से नज़र करने से उसका सतर जाहिर न हो तो मआज़ल्लाह अगर किसी लुच्चे नालायक ने किसी नमाज़ी का सतर झुक कर देख लिया तो नमाज़ी की नमाज़ हो जाएगी नमाज़ में कुछ फर्क नही आएगा अलबत्ता झुक कर देखने वाला शरीअती शख्स सख्त गुनेगार होगा
*➡️नोट:-* आजकल लोगो मे एक गलत मसअला येह राइज है कि अगर तहबन्द लूंगी के नीचे चड्डी या अंडर वियर नहीं पहना तो नमाज़ नही होती येह बात बिल्कुल गलत है नमाज़ हो जाती है
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣3️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*1 ) तहारत*
*2 ) सतरे-औरत*
*3 ) इस्तक़बाल✔️*
*4 ) वक़्त*
*5 ) निय्यत*
*6 ) तहरीमा तकबीर*
*✅ 1/2 नमाज़ की शर्त हमे वजाहत करदी है*
अब नमाज़ की तीसरी शर्त इस्तक़बाले किब्ला
🕋इस्तक़बाले-किब्ला यानी नमाज़ में किब्ला खाना ए का'बा की तरफ मुह करना का'बा कि तरफ मुंह होने का अर्थ येह है कि चेहरे की सतह सपाती का कोई जूज अंश का'बा की दिशा में वाकेअ हो
👤अगर नमाज़ी का चेहरा का'बे की सम्त दिशा से थोड़ा हटा हुआ है लैकिन उसके चेहरे का कोई जुज़ का'बा की तरफ है तो उसकी नमाज़ हो जाएगी और उसकी मिक़दार 45 दर्ज़ा डिग्री नियुक्ति की गई है यानी 45 दर्जा से कम इन्हेराफ फिरना गुमना है तो नमाज़ हो जाएगी और 45 दर्जा से ज़ियादा इन्हेंराफ है तो नमाज़ नही होगी।
*(📚फतावा रजविया जिल्द न 3 सफहा न 12)*
🕋खाना ए का'बा से 45 दर्जा से कम इन्हेंराफ की सूरत में नमाज़ हो जाएगी इस को आसानी से समजने के लिये नीचे दिये गये नक़्शे को मुलाहिजा फरमाई
🔽 नक़्शे की समझ🔽
( 1 )
( 3 ) ( 2 )
↖️ 🔼 ↗️
*नमाज़ी*
👉🏼अगर नमाज़ी का चेहरा तीर
न. *1* की सम्त में है तो ऐन खान ए क़ा'बा की तरफ उसका मुह है दाये तीर न . *2* और बाये तीर न. *3* की तरफ अगर नमाज़ी झुका या गुमा तो जब तक उसका चेहरा तीर न. *2* और तीर. *3* के दरमियान है वोह जहते क़ा'बा में है उसकी नमाज़ होंगी और अगर वोह ज़ियादा गुमा यहां तक कि उसका चेहरा न. *2* और तीर न. *3* से बढ़ गया यानी *45* दर्जा से बढ़ गया तो अब वोह का'बे की जहत दिशा से बाहर निकल गया और उसकी नमाज़ न होगी
*📖मस'अला::* हमारा किब्ला खाना-ए क़ा'बा है खाना-ए क़ा'बा के किब्ला होने से मुराद सिर्फ बिना-ए क़ा'बा यानी क़ा'बा शरीफ की सिर्फ इमरात् का ही नाम नही बल्कि वोह फिज़ा है जो उस बिना इमरात की महाजात में सातवी जमीन से अर्श तक का जो विस्तार है वोह किब्ला ही है
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣4️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की तीसरी शर्त इस्तक़बाले*
*📖मस'अला::* अगर किसी ने बुलन्द पहाड़ पर या गहरे कुवे में नमाज़ पढ़ी और का'बे की दिशा में मुह किया तो उसकी नमाज़ हो जायेगी हालांकि क़ा'बा की इमारत की तरफ तवज़्ज़ो न हुई लैकिन फिजा की तरफ पाई गई
*📖मस'अला::* अगर कोई शख्श ऐसी जगह पर है कि वहां किब्ला की शनाख्त पहचान न हो न वहां कोई ऐसा मुसलमान है जो उसे किब्ला की दिशा बता दे न वहां मस्जिद मेहराब है न चांद सूरज सितारे निकले हुए हो या निकले हुए तो हो मगर उसको इतना इल्म नही कि उनसे सहीह दिशा मालूम कर सके तो ऐसे शख्स के लिये हुक़्म है कि वोह तहरी करे यानी अच्छी तरह सोचे और जिधर किब्ला होने पर दिल जमे उधर ही मुह करके नमाज़ पढले उसके हक में वही किब्ला है
*📖मस'अला::* तहरी करके सोचकर किब्ला तय करके नमाज़ पढ़ी नमाज़ पढ़ने के बाद मालूम हुआ कि किब्ला की तरफ नमाज़ नहीं पढ़ी थी तो अब दुबारा पढ़ने की जरूरत नही नमाज़ हो गई।
*(📚 फतावा रजविया जिल्द ,1 सफ़ह, 661)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣5️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की तीसरी शर्त इस्तक़बाले*
*📖मस'अला::* तहरी करके सोचकर किब्ला तय करके नमाज़ पढ़ी नमाज़ पढ़ने के बाद मालूम हुआ कि किब्ला की तरफ नमाज़ नहीं पढ़ी थी तो अब दुबारा पढ़ने की जरूरत नही नमाज़ हो गई।
*(📚फतावा रजविया जिल्द 1 सफ़ह 66)*
*📖मस'अला::* अगर वहा कोई शक्स किब्ला की दिशा जानेवाला था लैकिन इसने उससे दरयाफ्त नही किया और खुद गौर करके किसी एक तरफ मुह करके नमाज़ पढ़ ली तो अगर किब्ला की तरफ मुह था तो नमाज़ हो गई वर्ना नही
*📖मस'अला::* अगर नमाज़ी ने बिला उज्र किब्ला से क़सदन इरादे से सीना फैर दिया अगरचे फौरन ही फीर किब्ला की तरफ हो गया उसकी नमाज़ फ़ासिद हो गई और अगर बिना इरादे के फीर गया और तीन तस्बीह पढ़ने के वक़्त की मिक़दार तक उस का सीना किब्ला से फिरा हुआ रहा तो भी उसकी नमाज़ फ़ासिद हो गई।
*📖मस'अला::* अगर नमाज़ी से किब्ला ने सीना नही फैरा बल्कि सिर्फ चेहरा फेरा तो उस पर वाजीब है कि अपना चेहरा फौरन किब्ला की तरफ कर ले इस सूरत में उसकी नमाज़ फ़ासिद न होगी बल्कि हो जाएगी लैकिन बिला उज्र ऐसा करना मकरूर है
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣6️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼नमाज़ की कि चौथी शर्त वक़्त और निय्यत*
⏰जिस वक़्त की नमाज़ पढ़ी जाए उस नमाज़ का वक़्त होना
🌟फजर की नमाज़ का वक़्त तुलूए फ़ज़्र यानी सुबहें सादिक से तुलूअ आफताब सूर्योदय तक है
✨ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त आफताब का निसकूँन्हार मध्यान्ह से ढलने से शुरू होता है और उस वक़्त तक रहेता है कि हर चीज का साया उसके साय ए असली से दोचंद दोगुना हो जाए
⛅नमाज़े असर का वक़्त ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त खत्म होते ही शुरू होता है और आफताब गुरुब होने तक रहेता है
🌔मगरिब की नमाज़ का वक़्त ग़ुरूब आफताब से लेकर ग़ुरूब शफ़क़ तक रहेता है
☄️इशा की नमाज़ का वक़्त गुरुबे शफ़क़ से तुलु ए फ़ज़्र तक रहेता है
➡️नोट:- हर वक़्त की नमाज़ के बयान में वक़्त के तअल्लुक से मुफ़्सस्ल मसाइल बयान किए जाएगे
*✍🏼नमाज़ की पांचवी शर्त निय्यत*
*यानी नमाज़ पढ़ने की निय्यत होनी चाहिए*
📜हदीस बुखारी और मुस्लिम ने अमीरूल मो'मेंनीन सय्येदुना फारूके आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायात कि की हुज़ूरे अक़दस रहमते आलम सल्लल्लाहो तआला अलैहे वसल्लम इरशाद फरमाते है कि
इन्नमल आ'मालो - बिन - निय्यात - व - ले कुल्ले - अम्रइम - मा - नवा
📃तरजुमा अमलो का मदार निय्यत पर है और हर शख्स के लिये वोह है जो उसने निय्यत की
निय्यत के तअल्लुक से जरूरी मसाइल
*📖मस'अला::* निय्यत दिल के पक्के इरादे को कहते है महज सिर्फ जानना निय्यत नही जब तक कि इरादा न हो
*📖मस'अला::* जबान से निय्यत करना मुस्तहब है नमाज़ की निय्यत के लिये अरबी भाषा मे निय्यत की तखसिस विशिष्टता नही किसी भी भाषा मे निय्यत कर सकता है अलबता अरबी जबान में निय्यत करना अफजल है..!
*(मोमिन की नमाज़📚)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣7️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼नमाज़ की कि चौथी शर्त वक़्त और निय्यत*
*📖मस'अला::* अहवत येह है कि तकबीर तहरीमा अल्लाहो अकबर कहते वक़्त निय्यत हाज़िर हो
*📖मस'अला::* निय्यत में जबान का ए तबार नही बल्कि दिल के इरादे का ही ए तबार महत्व है मस्लन ज़ोहर की नमाज़ का क़स्डन इरादा किया और जबान से असर का लफ्ज निकला तो भी ज़ोहर की ही नमाज़ अदा होगी
*📖मस'अला::* निय्यत का अदना दर्जा येह कि अगर उस वक़्त कोई पूछे कि कौन सी नमाज़ पढता है ? तो फैरन बिला तउम्मुल विलम्ब बता सके कि फला वक़्त की फला नमाज़ पढता हु और अगर ऐसा जवाब दे कि सोच कर बताऊगा तो नमाज़ न हुई
*(📚मोमिन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣8️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की चौथी शर्त वक़्त और पांच वी निय्यत*
*📖मस'अला::* नफल नमाज़ के लिये मुतल्क नमाज़ की निय्यत काफी है अगरचे नफल निय्यत में न कहे
*📖मस'अला::* फ़र्ज नमाज़ में निय्यते फ़र्ज जरूरी है मुतल्क नमाज़ की निय्यत काफी नही।
*📖मस'अला::* फ़र्ज नमाज़ में येह भी जरूरी है कि उस खास नमाज़ की निय्यत करे मस्लन आज की ज़ोहर की या फला वक़्त की फ़र्ज नमाज़ पढता हु
*📖मस'अला::* फ़र्ज नमाज़ में सिर्फ इतनी निय्यत करना कि आज की फ़र्ज नमाज़ पढता हु काफी नही बल्कि नमाज़ को मुतअय्यन करना होगा कि आज की ज़ोहर या आज की इशा की फ़र्ज नमाज़ पढता हु वगैरा
*(📚 मोमीन की नमाज़ )*
*➡पोस्ट जारी है...*
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣3️⃣9️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की चौथी शर्त वक़्त और पांच वी निय्यत*
*📖मस'अला::* वाजीब नमाज़ में वाजीब की निय्यत करे और उसे मुतअय्यन भी करे मस्लन नमाज़े ईदुल फित्र इदुद दुहा वित्र नज़र नामजे तवाफ़ वगेरा
*📖मस'अला::* सुन्नत नफल ओर तरावीह में असह येह है कि मुतल्क नमाज़ की निय्यत करे लैकिन एहतियात येह है कि तरावीह की या सुन्नते वक़्त की या क़यामुल लैल की निय्यत करे तरावीह के इलावा बाकी सुन्नतों में भी सुन्नत की या नबी ए करीम सल्लल्लाहो त्अला अलैहे वसल्लम की मुताबेअत की निय्यत करे
*📖मस'अला::* निय्यत में रकअत की तादाद सख्या की जरूरत नही अलबता अफजल है अगर ता'दादे रकअत में गलती वाकेअ हुई मस्लन तीन रकअत फ़र्ज ज़ोहर की या चार *4* रकअत फ़र्ज मगरिब की निय्यत की और ज़ोहर की चार रकअते पढ़ी ओर मगरिब की तीन रकअते पढ़ी तो नमाज़ हो गई।
*(📚 मोमीन की नमाज़ )*
*➡पोस्ट जारी है...*
🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣0️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की चौथी शर्त वक़्त और पांच वी निय्यत*
*📖मस'अला::-* येह निय्यत करना कि मुह मेरा किब्ला की तरफ है शर्त नही अलबत्ता येह जरूरी है कि किब्ला से इन्हेराफ और ए'राज की निय्यत न हो
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी ने इक़्तेदा करने की निय्यत से येह निय्यत की कि जो इमाम की नमाज़ है वही मेरी नमाज़ तो जाइज़ है
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी को इमाम की इक़्तेदा की निय्यत भी जरूरी है
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी ने अगर सिर्फ नमाज़े इमाम या फर्ज़े इमाम की निय्यत की लैकिन इमाम की इक़्तेदा का क़स्द इरादा न किया तो उसकी नमाज़ न हुई
*📖मस'अला::-* इमाम की इक़्तेदा की निय्यत में येह इल्म मालूम होना जरूरी नही कि ईमाम कोन है या उम्र है सिर्फ येह निय्यत काफी है कि इस इमाम के पीछे
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣1️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✨शराइते नमाज़*
*📖मस'अला::* अगर मुक़्तदी ने येह निय्यत की कि ज़ैद की इक़्तेदा करता हु और बाद में मालूम हुआ कि इमाम ज़ैद नही बल्कि उम्र है तो इक़्तेदा सहीह नही।
*📖मस'अला::* इमाम को मुक़्तदी कि इमामत करने की निय्यत करना जरूरी नही यहां तक कि अगर इमाम ने येह क़स्द किया कि में फला शख्स का इमाम नही हु और उस शख्सने इस इमाम की इक़्तेदा की तो नमाज़ हो जाएगी
*📖मस'अला::* अगर किसी की फ़र्ज नमाज़ क़ज़ा हो गई हो और वोह नमाज़ की क़ज़ा पढ़ता हो तो क़ज़ा नमाज़ पढ़ते वक़्त दिन और नमाज़ का तअय्यून करना जरूरी है मस्लन फला दिन की फला नमाज़ की क़ज़ा इस तहर निय्यत होना जरूरी है अगर मुतलकन किसी वक़्त की क़ज़ा नमाज़ की निय्यत की और दिन का तअय्यून न किया या सिर्फ मुतलकन क़ज़ा नमाज़ की निय्यत की तो काफी नही
*📖मस'अला::* अगर किसी के जिम्मे बहुत सी नमाज़े बाकी है और दिन तथा दिनाक भी याद न हो और उन नमाजों की क़ज़ा पढ़नी है तो उसके लिये निय्यत का आसान तरीका येह है कि सब मे पहली या सब मे पिछली फला नमाज़ जो मेरे जिम्मे है उसकी क़ज़ा पढता हु
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 624)*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣2️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*शराइते नमाज़*
*( 1 ) तहारत*
*( 2 ) सतरे-औरत*
*( 3 ) इस्तक़बाल*
*( 4 ) वक़्त*
*( 5 ) निय्यत*
*( 6 ) तहरीमा तकबीर✔️*
*➡️1/2/3/4/5 नमाज़ की शर्त हमे वजाहत करदी है*
⚡अब नमाज़ की छटी शर्त तकबीर तहरिमा यानी अल्लाहु अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना,
*⚰️नमाज़े जनाज़ा में तकबीरे तहरिमा रुक्न है बाकी नमाज़ों में शर्त है*
*✨नमाज़ के फर्ज़ों का बयान*
📃ये वोह फराइज है जो नमाज़ के अन्दर किये जाने की वजह से दाख़िली फराइज है इन फराइज को अदा किये बगैर नमाज़ होंगी ही नही अगर इन मेसे एक काम भी क़स्दन जानबूज़ कर या सहवन भूलकर छूट जाए तो सजद-ए-सहव करने से भी नमाज़ न होगी बल्कि अर्ज सरे नौ फिर से पढना जरूरी है
*📝नमाज़ के कुल मिलाकर सात 7 फराइज नमाज़ है*
*( 1 ) तकबीर-तहरिमा✔️*
*( 2 ) क़याम खड़ा होना*
*( 3 ) क़ीरअत*
*( 4 ) रुकूअ*
*( 5 ) सज़दा*
*( 6 ) क़ा'द-ए-आखिरा*
*( 7 ) खुरुज-बे-सुन्एही*
अब नमाज़ के सात फराइज की क्रमवार तफसील और इन फराइज के तअल्लुक़ से शरई मसाइल और अहेकाम पेशे ख़िदमत है
*❄️नमाज़ का पहला फ़र्ज : तकबीर तहरिमा*
💎हकीकत येह फर्ज नमाज़ के शराइत से है मगर चुकी नमाज़ के अफआल कामो से इसको बहुत ज्यादा इत्तेसाल जोदाण है इस वजह से इसका शुमार नमाज़ के फराइज में भी हुआ है
🗣️तकबीर तहरिमा यानी अल्लाहो अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना हालांकि नमाज़ के दीगर अन्य अरकान की अदायगी और इन्तेकाल यानी एक रुकूअ से दूसरे रुकूअ में जाते वक़्त भी अल्लाहो अकबर कहा जाता है लैकिन सिर्फ नमाज़ शुरू करने के वक़्त जो अल्लाहो अकबर कहा जाता है वही तकबीर तहरिमा है और वोह फ़र्ज है इसको छोड़ने से नमाज़ नही होगी नमाज़ के दीगर अरकान की अदायगी के वक़्त जो अल्लाहो अकबर कहा जाता है उसे तकबीर-इनितकाल कहा जाता है
✨नमाज़ के तमाम शराइत यानी तहारत सतरे औरत इसितकबाले-किब्ला वक़्त और निय्यत का तकबीर तहरिमा कहने के पहले पाया जाना जरूरी है अगर अल्लाहु अकबर कह चुका और कोई शर्त मफकुड़ गाइब है तो नमाज़ क़ाइम ही न हुई
*👤तकबीर तहरिमा के मुताल्लिक जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला:'* जिन नमज़ो में क़याम खड़ा होना फर्ज है उनमें तकबीर तहरिमा के लिये भी क़याम फ़र्ज है अगर किसी ने बैठकर अल्लाहु अकबर कहा फिर खड़ा हो गया तो उसकी नमाज़ शुरू ही न हुई l
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣3️⃣*
*👤तकबीर तहरिमा के मुताल्लिक जरूरी मसाइल*
✨इमाम को रुकूअ में पाया और मुक़्तदी तकबीर तहरिमा कहता हुआ रुकूअ में गया और तकबीरे तहरिमा उस वक़्त खत्म की कि अगर हाथ बढ़ाए लम्बा करे तो धुटने तक पहुच जाए तो उसकी नमाज़ न हुई
👥बाज कुछ लोग इमाम को रुकूअ में पा लेने की गरज से जल्दी जल्दी रुकूअ में जाते हुए तकबीर तहरिमा कहते है ओर जुकने की हालत में तकबीरे तहरिमा कहते है उनकी नमाज़ नही होती उनको अपनी नमाज़ फिर से दोबारा पढ़ती चाहिये
*(📚फतावा रजविया जिल्द न 3 सफह 393)*
✨नफल नमाज़ के लिये तकबिरे तहरिमा रुकूअ में कही तो नमाज़ न हुई और अगर बैठ कर कही तो हो गई
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣4️⃣*
*✨नमाज़ का पहला फ़र्ज तकबीर तहरिमा*
*📖मस'अला::* जो शख्स तकबीर के तलफफुज पर क़ादिर नहो मस्लन गुगा मुगा हो या किसी वजह से जुबान बंध हो गई हो उस पर तलफफुज यानी मुह से बोलना वाजीब नही दिल मे इरादा काफी है यानी दिल मे कह ले
*📖मस'अला::* पहली रकअत का रुकूअ मिल गया तो तकबीरे उला यानी तकबीरे तहरिमा की फजीलत मिल गई
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरिमा में अल्लाहो अकबर का जुमला वाकय कहना वाजीब है
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा के लिये दोनो हाथों को कानो तक उठाना सुन्नत है
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा में हाथ उठाते वक़्त उंगलियों को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिये यानी उंगलियों को बिल्कुल मिलाना भी न चाहिये और ब:तकल्लुफ तक्लीफ उठाकर कशादा खुली भी न रखना चाहीये और येह सुन्नत तरीका है
*📖मस'अला::* तकबीर तहरीमा कहते वक़्त हथेलियों और उंगलियों के पेट किब्ला रु होना सुन्नत है
*📖मस'अला::* दोनो हाथों को तकबीर कहने से पहले उठाना सुन्नत है
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा के वक़्त सर न जुकान बल्कि सीधा रखना सुन्नत है
*📖मस'अला::* औरत के लिये सुन्नत येह है कि तकबीरे तहरीम में हाथ सिर्फ मूढो कंधों तक उठाए
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा के बाद फौरन हाथ बांध लेना सुन्नत है हाथ को लटकाना नही चाहिये बल्कि तकबीर तहरीमा कहने के फौरन बाद दोनों हाथों को कान से हटा कर नाफ़ डूटी के नीचे बाध लेना चाहिये
{ नोट :- } बाज लोग तकबीरे तहरीमा कहने के बाद हाथों को सीधा कर के लटकाते है फिर हाथ बाधते है ऐसा नही करना चाहीये
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣5️⃣*
*📄नमाज़ के फर्ज़ों का बयान*
*📖मस'अला::* इमाम का तक़बीरे-तहरीमा और तकबीर-इनितक़ाल बुलन्द आवाज़ से कहना सुन्नत है मोमीन की नमाज़
*📖मस'अला::* अगर कोई शख्स किसी उज़्र की वजह से सिर्फ एक हाथ ही कान तक उठा सकता है तो एक ही हाथ कान तक उठाए
*📖मस'अला::* मुक़्तदी और अकैले नमाज़ पढ़ने वाले को तक़बीरे-तहरीमा जहर बुलन्द आवाज़ से कहने की जरूरत नही सिर्फ इतनी आवाज़ जरूरी है कि खुद सुने
*📖मस'अला::* तक़बीरे-तहरीमा के वक़्त हाथ उठाना सुंन्नते मोअकैदा है हाथ उठाना तर्क करने छोड़ देने की आदत से गुनेगार होगा तकबीरे तहरीमा में हाथ न उठाने से नमाज़ मकरूह होगी
*📖मस'अला::* अगर इमाम तक़बीर-इनतेक़ाल याने अल्लाहो अकबर बुलन्द आवाज़ से कहना भूल गया और आहिस्ता कहा तो सुन्नत तर्क हुई क्योंकि अल्लाहो अकबर पूरी बुलन्द आवाज़ से कहना है नमाज़ में कराहते तन्जीही आई मगर नमाज़ हो गई
*(📚फतावा राजवीया न 3 सफहा न 147)*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣6️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
💫यानी नमाज़ में खड़ा होना और क़याम की कमी की ज़ानीब हद येह है कि अगर हाथ फेलाए लम्बा करे तो धुतनो तक हाथ न पहुचे और पूरा क़याम येह है कि सीधा खड़ा हो
👤क़याम की मिक़दार मात्रा इतनी दैर तक है जितनी देर तक किरअत है यानी जितनी द किरअत फ़र्ज है इतनी देर के लिये क़याम भी फ़र्ज है इसी तरह जितनी देर किरअत वाजीब है इतनी देर के लिये क़याम वाजीब है और जितनी देर किरअत सुन्नत है इतनी दैर की लिये क़ायम सुन्नत है
✨मज़कूरा वणनीय हुक्म पहली रकअत के सिवा अन्य रकअतो का है पहली रकअत में फ़र्ज क़याम में तक़बीरे-तहरीमा की मिक़दार भी शामिल हो गई और सुन्नत क़याम में सना तअव्वल और तस्मिया की मिक़दार शामिल हों गई
*🌸क़याम के तअल्लुक़ से जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::* फ़र्ज वित्र ईदैन और फ़र्ज की सुन्नत इन तमाम नमाज़ों में क़याम फ़र्ज है अगर बिला उज़्र सहीह येह नमाज़े बैठकर पढ़ेगा तो नमाज़ न होगी
*📖मस'अला::* एक पाव पर खड़ा होना यानी दुसरे पाव को ज़मीन से उठा हुआ रखकर क़याम करना मकरुहे तहरीमी है अगर किसी उज़्र मजबूरी की वजह से ऐसा किया तो हर्ज़ नही,
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣7️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
*📖मस'अला::* अगर कुछ दैर के लिये भी खड़ा हो सकता है, अगरचे इतना ही की खड़ा होकर अल्लाहु अकबर कह ले तो फर्ज है कि खड़ा होकर इतना ही कह ले फिर बैठ जाए,
*📖मस'अला::* आज कल येह बात देखी जाती है कि ज़रा सी कमजोरी या मामूली बिमारी या बुढ़ापा की वजह से सिरे से बैठकर फर्ज नमाज़ पढ़ते है, हालांकि उन बैठकर नमाज़ पढ़नेवालों मेसे बहुत से ऐसे भी होते है कि हिम्मत करे तो पुरी फ़र्ज़ नमाज़ खड़े होकर अदा कर सकते है और इस अदा से न इनका मरज़ बीमारी बढ़े न कोई नया मरज़ लाहिक लागू हो और न ही गिर पड़ने की हालत हो, बारहा का मुशाहेदा अनुभव है कि कमज़ोरी और बीमारी के बहाने बैठकर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ने वाले खड़े रहकर काफ़ी देर तक इधर उधर की बाते करते होते है ऐसे लोगो को बेठकर फर्ज नमाज़ पढ़ना जाइज़ नही बल्कि इन पर फर्ज है कि खड़े होकर नमाज़ अदा करे
*📖मस'अला::* अगर कोई शख़्स कमजोर या बीमार है लैकिन असा लकड़ी या खादिम या दीवाल पर टेक लगाकर खड़ा हो सकता है तो उस पर फर्ज़ है कि उन पर टेक लगा कर खड़ा होकर नमाज़ पढे
*(📚फतावा रज़वीय जिल्द 3 न 43)*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣8️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
*📖मस'अला::* कश्ती पर सवार है और वोह चल रही है तो बैठकर चलती हुई कश्ती में नमाज़ पढ़ सकता है यानी जबकी चक्कर आने का गुमाने गालिब हो इस तरह चलती ट्रेन बस और अन्य सवारियों में अगर खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठकर नमाज़ पढ़ सकता है लैकिन बाद में एआदा करे यानी फिर वे नमाज़ पढे
*📖मस'अला::* क़याम की हालत में दोनो पाव के दरमियान चार उंगल का फासला अंतर
रखना सुन्नत है और यही हमारे इमामे आ'ज़म से मनकुल है
*📖मस'अला::* नमाज़ी के लिये मुस्तहब है कि हालते क़याम में अपनी नज़र सज़दा करने की जगह पर रखे
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣9️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
*मस'अला::* क़याम में मर्द हाथ यु बांधे कि नाफ़ के नीचे दाये हाथ की हथेली बाये हाथ की कलाई के जोड़ पर रखे और छिंन्गलिया *सबसे छोटी उंगली टचली आगूठी* तथा अंगूठा कलाई के ईद गिर्द हल्का राउंड की शक्ल में रखे और बीच की तीनों उंगलियों को बाये हाथ की कलाई की पुश्त पर बिछा दे
💍औरत बायीं हथेली सीना पर पिस्तान के नीचे रखकर उस की पुश्त पीठ पर दायीं हथेली रखे
*📖मस'अला::* खड़े होकर पढ़ने की क़ुदरत होतो भी नमाजे नफल बैठकर पढ़ सकते है मगर खड़े होकर पढना अफजल है हदीस शरीफ में है कि बैठकर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े होकर पढ़ने वाले की निस्फ आधी है और अगर किसी उज़्र की वजह से बैठकर पढ़ी तो सवाब में कमी न होगी आजकल अवाम में रिवाज़ पड़ गया है कि नफल नमाज़ बैठ कर पढ़नी चाहिये और शायद नफल नमाज़ बैठकर पढ़ना अफजल गुमान करते है लेकिन येह खयाल गलत है नफल नमाज़ भी खड़े होकर पढना अफजल है और खड़े होकर पढ़ने में दुगना सवाब है अलबत्ता अगर बगैर किसी उज़्र भी नफल नमाज़ बैठकर पढ़ी तो भी नमाज़ बिला किसी किस्म प्रकार की कराहट के हो जाएगी मगर सवाब आधा हासिल होगा
🌸हुज़ूर पुर नूर रहमते आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने नफल नमाज़ बैठकर अदा फ़रमाई लैकिन साथ मे येह भी फरमाया कि में तुमारी मिस्ल समान यानी तुम जैसा नही हु मेरा सवाब खड़े होकर ओर बैठकर पढ़ने में दानों में यकसां बराबर है तो उम्मत के लिये खड़े होकर पढना अफजल और दूना सवाब है और बैठकर पढ़ने में भी कोई ए'तराज नही
*📖मस'अला::* बैठकर नफल नमाज़ अदा करने में रुकूअ इस तरह करना चाहिये कि पैशनी झुक कर धुटनो के मुकाबिल सामने आ जाए और रुकूअ करने में *सुरीन कुल्ला* उठाने की हाजत नही बैठकर नमाज़ पढ़ने में रुकूअ करते वक़्त सुरीन उठाना मकरूहे-तन्जीही है
*(📚फतावा रजवीया जिल्द न 3 सफह,51, 69 )*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्म आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣0️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✍🏼अब नमाज़ की चौथी शर्त वक़्त और पांच वी निय्यत*
*📖मस'अला::-* येह निय्यत करना कि मुह मेरा किब्ला की तरफ है शर्त नही अलबत्ता येह जरूरी है कि किब्ला से इन्हेराफ और ए'राज की निय्यत न हो
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी ने इक़्तेदा करने की निय्यत से येह निय्यत की कि जो इमाम की नमाज़ है वही मेरी नमाज़ तो जाइज़ है
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी को इमाम की इक़्तेदा की निय्यत भी जरूरी है
*📖मस'अला::-* मुक़्तदी ने अगर सिर्फ नमाज़े इमाम या फर्ज़े इमाम की निय्यत की लैकिन इमाम की इक़्तेदा का क़स्द इरादा न किया तो उसकी नमाज़ न हुई
*📖मस'अला::-* इमाम की इक़्तेदा की निय्यत में येह इल्म मालूम होना जरूरी नही कि ईमाम कोन है या उम्र है सिर्फ येह निय्यत काफी है कि इस इमाम के पीछे
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣1️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*✨शराइते नमाज़*
*📖मस'अला::* अगर मुक़्तदी ने येह निय्यत की कि ज़ैद की इक़्तेदा करता हु और बाद में मालूम हुआ कि इमाम ज़ैद नही बल्कि उम्र है तो इक़्तेदा सहीह नही।
*📖मस'अला::* इमाम को मुक़्तदी कि इमामत करने की निय्यत करना जरूरी नही यहां तक कि अगर इमाम ने येह क़स्द किया कि में फला शख्स का इमाम नही हु और उस शख्सने इस इमाम की इक़्तेदा की तो नमाज़ हो जाएगी
*📖मस'अला::* अगर किसी की फ़र्ज नमाज़ क़ज़ा हो गई हो और वोह नमाज़ की क़ज़ा पढ़ता हो तो क़ज़ा नमाज़ पढ़ते वक़्त दिन और नमाज़ का तअय्यून करना जरूरी है मस्लन फला दिन की फला नमाज़ की क़ज़ा इस तहर निय्यत होना जरूरी है अगर मुतलकन किसी वक़्त की क़ज़ा नमाज़ की निय्यत की और दिन का तअय्यून न किया या सिर्फ मुतलकन क़ज़ा नमाज़ की निय्यत की तो काफी नही
*📖मस'अला::* अगर किसी के जिम्मे बहुत सी नमाज़े बाकी है और दिन तथा दिनाक भी याद न हो और उन नमाजों की क़ज़ा पढ़नी है तो उसके लिये निय्यत का आसान तरीका येह है कि सब मे पहली या सब मे पिछली फला नमाज़ जो मेरे जिम्मे है उसकी क़ज़ा पढता हु
*(📚फतावा रजविया जिल्द 3 सफहा 624)*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~*
*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣2️⃣*
*💎नमाज़ की शर्तो का ब्यान📝*
*शराइते नमाज़*
*( 1 ) तहारत*
*( 2 ) सतरे-औरत*
*( 3 ) इस्तक़बाल*
*( 4 ) वक़्त*
*( 5 ) निय्यत*
*( 6 ) तहरीमा तकबीर✔️*
*➡️1/2/3/4/5 नमाज़ की शर्त हमे वजाहत करदी है*
⚡अब नमाज़ की छटी शर्त तकबीर तहरिमा यानी अल्लाहु अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना,
*⚰️नमाज़े जनाज़ा में तकबीरे तहरिमा रुक्न है बाकी नमाज़ों में शर्त है*
*✨नमाज़ के फर्ज़ों का बयान*
📃ये वोह फराइज है जो नमाज़ के अन्दर किये जाने की वजह से दाख़िली फराइज है इन फराइज को अदा किये बगैर नमाज़ होंगी ही नही अगर इन मेसे एक काम भी क़स्दन जानबूज़ कर या सहवन भूलकर छूट जाए तो सजद-ए-सहव करने से भी नमाज़ न होगी बल्कि अर्ज सरे नौ फिर से पढना जरूरी है
*📝नमाज़ के कुल मिलाकर सात 7 फराइज नमाज़ है*
*( 1 ) तकबीर-तहरिमा✔️*
*( 2 ) क़याम खड़ा होना*
*( 3 ) क़ीरअत*
*( 4 ) रुकूअ*
*( 5 ) सज़दा*
*( 6 ) क़ा'द-ए-आखिरा*
*( 7 ) खुरुज-बे-सुन्एही*
अब नमाज़ के सात फराइज की क्रमवार तफसील और इन फराइज के तअल्लुक़ से शरई मसाइल और अहेकाम पेशे ख़िदमत है
*❄️नमाज़ का पहला फ़र्ज : तकबीर तहरिमा*
💎हकीकत येह फर्ज नमाज़ के शराइत से है मगर चुकी नमाज़ के अफआल कामो से इसको बहुत ज्यादा इत्तेसाल जोदाण है इस वजह से इसका शुमार नमाज़ के फराइज में भी हुआ है
🗣️तकबीर तहरिमा यानी अल्लाहो अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना हालांकि नमाज़ के दीगर अन्य अरकान की अदायगी और इन्तेकाल यानी एक रुकूअ से दूसरे रुकूअ में जाते वक़्त भी अल्लाहो अकबर कहा जाता है लैकिन सिर्फ नमाज़ शुरू करने के वक़्त जो अल्लाहो अकबर कहा जाता है वही तकबीर तहरिमा है और वोह फ़र्ज है इसको छोड़ने से नमाज़ नही होगी नमाज़ के दीगर अरकान की अदायगी के वक़्त जो अल्लाहो अकबर कहा जाता है उसे तकबीर-इनितकाल कहा जाता है
✨नमाज़ के तमाम शराइत यानी तहारत सतरे औरत इसितकबाले-किब्ला वक़्त और निय्यत का तकबीर तहरिमा कहने के पहले पाया जाना जरूरी है अगर अल्लाहु अकबर कह चुका और कोई शर्त मफकुड़ गाइब है तो नमाज़ क़ाइम ही न हुई
*👤तकबीर तहरिमा के मुताल्लिक जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला:'* जिन नमज़ो में क़याम खड़ा होना फर्ज है उनमें तकबीर तहरिमा के लिये भी क़याम फ़र्ज है अगर किसी ने बैठकर अल्लाहु अकबर कहा फिर खड़ा हो गया तो उसकी नमाज़ शुरू ही न हुई l
*(📚मोमीन की नमाज़)*
*➡पोस्ट जारी है...*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
_आओ इल्में दींन आम करें_
*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣3️⃣*
*👤तकबीर तहरिमा के मुताल्लिक जरूरी मसाइल*
✨इमाम को रुकूअ में पाया और मुक़्तदी तकबीर तहरिमा कहता हुआ रुकूअ में गया और तकबीरे तहरिमा उस वक़्त खत्म की कि अगर हाथ बढ़ाए लम्बा करे तो धुटने तक पहुच जाए तो उसकी नमाज़ न हुई
👥बाज कुछ लोग इमाम को रुकूअ में पा लेने की गरज से जल्दी जल्दी रुकूअ में जाते हुए तकबीर तहरिमा कहते है ओर जुकने की हालत में तकबीरे तहरिमा कहते है उनकी नमाज़ नही होती उनको अपनी नमाज़ फिर से दोबारा पढ़ती चाहिये
*(📚फतावा रजविया जिल्द न 3 सफह 393)*
✨नफल नमाज़ के लिये तकबिरे तहरिमा रुकूअ में कही तो नमाज़ न हुई और अगर बैठ कर कही तो हो गई
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣4️⃣*
*✨नमाज़ का पहला फ़र्ज तकबीर तहरिमा*
*📖मस'अला::* जो शख्स तकबीर के तलफफुज पर क़ादिर नहो मस्लन गुगा मुगा हो या किसी वजह से जुबान बंध हो गई हो उस पर तलफफुज यानी मुह से बोलना वाजीब नही दिल मे इरादा काफी है यानी दिल मे कह ले
*📖मस'अला::* पहली रकअत का रुकूअ मिल गया तो तकबीरे उला यानी तकबीरे तहरिमा की फजीलत मिल गई
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरिमा में अल्लाहो अकबर का जुमला वाकय कहना वाजीब है
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा के लिये दोनो हाथों को कानो तक उठाना सुन्नत है
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा में हाथ उठाते वक़्त उंगलियों को अपने हाल पर छोड़ देना चाहिये यानी उंगलियों को बिल्कुल मिलाना भी न चाहिये और ब:तकल्लुफ तक्लीफ उठाकर कशादा खुली भी न रखना चाहीये और येह सुन्नत तरीका है
*📖मस'अला::* तकबीर तहरीमा कहते वक़्त हथेलियों और उंगलियों के पेट किब्ला रु होना सुन्नत है
*📖मस'अला::* दोनो हाथों को तकबीर कहने से पहले उठाना सुन्नत है
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा के वक़्त सर न जुकान बल्कि सीधा रखना सुन्नत है
*📖मस'अला::* औरत के लिये सुन्नत येह है कि तकबीरे तहरीम में हाथ सिर्फ मूढो कंधों तक उठाए
*📖मस'अला::* तकबीरे तहरीमा के बाद फौरन हाथ बांध लेना सुन्नत है हाथ को लटकाना नही चाहिये बल्कि तकबीर तहरीमा कहने के फौरन बाद दोनों हाथों को कान से हटा कर नाफ़ डूटी के नीचे बाध लेना चाहिये
{ नोट :- } बाज लोग तकबीरे तहरीमा कहने के बाद हाथों को सीधा कर के लटकाते है फिर हाथ बाधते है ऐसा नही करना चाहीये
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
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*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣5️⃣*
*📄नमाज़ के फर्ज़ों का बयान*
*📖मस'अला::* इमाम का तक़बीरे-तहरीमा और तकबीर-इनितक़ाल बुलन्द आवाज़ से कहना सुन्नत है मोमीन की नमाज़
*📖मस'अला::* अगर कोई शख्स किसी उज़्र की वजह से सिर्फ एक हाथ ही कान तक उठा सकता है तो एक ही हाथ कान तक उठाए
*📖मस'अला::* मुक़्तदी और अकैले नमाज़ पढ़ने वाले को तक़बीरे-तहरीमा जहर बुलन्द आवाज़ से कहने की जरूरत नही सिर्फ इतनी आवाज़ जरूरी है कि खुद सुने
*📖मस'अला::* तक़बीरे-तहरीमा के वक़्त हाथ उठाना सुंन्नते मोअकैदा है हाथ उठाना तर्क करने छोड़ देने की आदत से गुनेगार होगा तकबीरे तहरीमा में हाथ न उठाने से नमाज़ मकरूह होगी
*📖मस'अला::* अगर इमाम तक़बीर-इनतेक़ाल याने अल्लाहो अकबर बुलन्द आवाज़ से कहना भूल गया और आहिस्ता कहा तो सुन्नत तर्क हुई क्योंकि अल्लाहो अकबर पूरी बुलन्द आवाज़ से कहना है नमाज़ में कराहते तन्जीही आई मगर नमाज़ हो गई
*(📚फतावा राजवीया न 3 सफहा न 147)*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣6️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
💫यानी नमाज़ में खड़ा होना और क़याम की कमी की ज़ानीब हद येह है कि अगर हाथ फेलाए लम्बा करे तो धुतनो तक हाथ न पहुचे और पूरा क़याम येह है कि सीधा खड़ा हो
👤क़याम की मिक़दार मात्रा इतनी दैर तक है जितनी देर तक किरअत है यानी जितनी द किरअत फ़र्ज है इतनी देर के लिये क़याम भी फ़र्ज है इसी तरह जितनी देर किरअत वाजीब है इतनी देर के लिये क़याम वाजीब है और जितनी देर किरअत सुन्नत है इतनी दैर की लिये क़ायम सुन्नत है
✨मज़कूरा वणनीय हुक्म पहली रकअत के सिवा अन्य रकअतो का है पहली रकअत में फ़र्ज क़याम में तक़बीरे-तहरीमा की मिक़दार भी शामिल हो गई और सुन्नत क़याम में सना तअव्वल और तस्मिया की मिक़दार शामिल हों गई
*🌸क़याम के तअल्लुक़ से जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::* फ़र्ज वित्र ईदैन और फ़र्ज की सुन्नत इन तमाम नमाज़ों में क़याम फ़र्ज है अगर बिला उज़्र सहीह येह नमाज़े बैठकर पढ़ेगा तो नमाज़ न होगी
*📖मस'अला::* एक पाव पर खड़ा होना यानी दुसरे पाव को ज़मीन से उठा हुआ रखकर क़याम करना मकरुहे तहरीमी है अगर किसी उज़्र मजबूरी की वजह से ऐसा किया तो हर्ज़ नही,
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣7️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
*📖मस'अला::* अगर कुछ दैर के लिये भी खड़ा हो सकता है, अगरचे इतना ही की खड़ा होकर अल्लाहु अकबर कह ले तो फर्ज है कि खड़ा होकर इतना ही कह ले फिर बैठ जाए,
*📖मस'अला::* आज कल येह बात देखी जाती है कि ज़रा सी कमजोरी या मामूली बिमारी या बुढ़ापा की वजह से सिरे से बैठकर फर्ज नमाज़ पढ़ते है, हालांकि उन बैठकर नमाज़ पढ़नेवालों मेसे बहुत से ऐसे भी होते है कि हिम्मत करे तो पुरी फ़र्ज़ नमाज़ खड़े होकर अदा कर सकते है और इस अदा से न इनका मरज़ बीमारी बढ़े न कोई नया मरज़ लाहिक लागू हो और न ही गिर पड़ने की हालत हो, बारहा का मुशाहेदा अनुभव है कि कमज़ोरी और बीमारी के बहाने बैठकर फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ने वाले खड़े रहकर काफ़ी देर तक इधर उधर की बाते करते होते है ऐसे लोगो को बेठकर फर्ज नमाज़ पढ़ना जाइज़ नही बल्कि इन पर फर्ज है कि खड़े होकर नमाज़ अदा करे
*📖मस'अला::* अगर कोई शख़्स कमजोर या बीमार है लैकिन असा लकड़ी या खादिम या दीवाल पर टेक लगाकर खड़ा हो सकता है तो उस पर फर्ज़ है कि उन पर टेक लगा कर खड़ा होकर नमाज़ पढे
*(📚फतावा रज़वीय जिल्द 3 न 43)*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣8️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
*📖मस'अला::* कश्ती पर सवार है और वोह चल रही है तो बैठकर चलती हुई कश्ती में नमाज़ पढ़ सकता है यानी जबकी चक्कर आने का गुमाने गालिब हो इस तरह चलती ट्रेन बस और अन्य सवारियों में अगर खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठकर नमाज़ पढ़ सकता है लैकिन बाद में एआदा करे यानी फिर वे नमाज़ पढे
*📖मस'अला::* क़याम की हालत में दोनो पाव के दरमियान चार उंगल का फासला अंतर
रखना सुन्नत है और यही हमारे इमामे आ'ज़म से मनकुल है
*📖मस'अला::* नमाज़ी के लिये मुस्तहब है कि हालते क़याम में अपनी नज़र सज़दा करने की जगह पर रखे
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣4️⃣9️⃣*
*👤नमाज़ का दूसरा फ़र्ज क़याम*
*मस'अला::* क़याम में मर्द हाथ यु बांधे कि नाफ़ के नीचे दाये हाथ की हथेली बाये हाथ की कलाई के जोड़ पर रखे और छिंन्गलिया *सबसे छोटी उंगली टचली आगूठी* तथा अंगूठा कलाई के ईद गिर्द हल्का राउंड की शक्ल में रखे और बीच की तीनों उंगलियों को बाये हाथ की कलाई की पुश्त पर बिछा दे
💍औरत बायीं हथेली सीना पर पिस्तान के नीचे रखकर उस की पुश्त पीठ पर दायीं हथेली रखे
*📖मस'अला::* खड़े होकर पढ़ने की क़ुदरत होतो भी नमाजे नफल बैठकर पढ़ सकते है मगर खड़े होकर पढना अफजल है हदीस शरीफ में है कि बैठकर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े होकर पढ़ने वाले की निस्फ आधी है और अगर किसी उज़्र की वजह से बैठकर पढ़ी तो सवाब में कमी न होगी आजकल अवाम में रिवाज़ पड़ गया है कि नफल नमाज़ बैठ कर पढ़नी चाहिये और शायद नफल नमाज़ बैठकर पढ़ना अफजल गुमान करते है लेकिन येह खयाल गलत है नफल नमाज़ भी खड़े होकर पढना अफजल है और खड़े होकर पढ़ने में दुगना सवाब है अलबत्ता अगर बगैर किसी उज़्र भी नफल नमाज़ बैठकर पढ़ी तो भी नमाज़ बिला किसी किस्म प्रकार की कराहट के हो जाएगी मगर सवाब आधा हासिल होगा
🌸हुज़ूर पुर नूर रहमते आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने नफल नमाज़ बैठकर अदा फ़रमाई लैकिन साथ मे येह भी फरमाया कि में तुमारी मिस्ल समान यानी तुम जैसा नही हु मेरा सवाब खड़े होकर ओर बैठकर पढ़ने में दानों में यकसां बराबर है तो उम्मत के लिये खड़े होकर पढना अफजल और दूना सवाब है और बैठकर पढ़ने में भी कोई ए'तराज नही
*📖मस'अला::* बैठकर नफल नमाज़ अदा करने में रुकूअ इस तरह करना चाहिये कि पैशनी झुक कर धुटनो के मुकाबिल सामने आ जाए और रुकूअ करने में *सुरीन कुल्ला* उठाने की हाजत नही बैठकर नमाज़ पढ़ने में रुकूअ करते वक़्त सुरीन उठाना मकरूहे-तन्जीही है
*(📚फतावा रजवीया जिल्द न 3 सफह,51, 69 )*
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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*🕌नमाज़ के फजाईल व मसाईल*
*📑पोस्ट नम्बर::-1️⃣5️⃣0️⃣*
*🗣️किरअत के तअल्लुक से जरूरी मसाइल*
*📖मस'अला::* सूरह फातेहा अल-हम्दो शरीफ पूरी पढना यानी सातो 7 आयते मुस्तक़िल पूरा पढ़ना वाजीब है सुर ए फातेहा मेसे एक आयात बल्कि एक लफ्ज शब्द को छोड़ना तर्क वाजीब है
*📖मस'अला::* सूरते फातेहा पढ़ने में अगर एक लफ्ज भी भूल से रहे जाए तो सज़द-ए-सहव करे
*📖मस'अला::* सुर-ए-फातेहा' के साथ सूरत मिलाना वाजीब है यानी एक छोटी सी सूरत या तीन छोटी आयते या एक बड़ी आयत जो तीन छोटी आयतों के बराबर हो
*(📚मोमीन की नमाज़)*
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