करामत ए सहाबा

🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम ग्रुप:
*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 001_

_*“सहाबी”*_

💫जो मुसलमान बहालते ईमान हुज़ूर अनवर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम की मुलाक़ात से सरफ़राज़ हुए और ईमान पर ही उन का खात्मा हुआ उन खुश नसीब मुसलमान को “सहाबी” कहतें हैं ! उन सहाबियों की तादाद 1 लाख ज़्यादा है ! चुनांचे हज़रत इमाम बैहकी की रिवायत है कि हज्जतुल विदाअ में एक लाख चौबीस हज़ार सहाबा ए किराम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के साथ हज के लिए मक्का मुकर्रमा में जमा हुए ! और कुछ दूसरी रिवायतों से पता चलता कि हज्जतुल विदाअ में सहाबा ए किराम की तादाद 1 लाख 24 हज़ार थी(वल्लाह अअलम)
*📚(ज़रकानी ज़िल्द 3, सफा 106)*

✨तमाम उम्मत और बड़े बड़े उलमा का इस पर इत्तेफ़ाक़ है की सहाबा ए किराम “अफ़ज़लूल औलिया” हैं ! यानी कयामत तक के तमाम औलिया अगरचे वह दर्जा ए विलायत की अज़ीम तरीन मंजिल पर पहुँच जाएं मगर हरगिज़ हरगिज़ किसी सहाबी की दर्जा ए विलायत को नही पहुँच सकते ! अल्लाह तआला ने अपने महबूब हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम के शमए नुबूवत के परवानों को मर्तबा ए विलायत का बलंद मकाम अता फ़रमाया है ! और उन बुलन्द तरीन हस्तियों को बड़े बड़े करामतों से सरफ़राज़ फ़रमाया ! 
*➡जारी रहेगा....*
*(इस उनवान पर बहुत से अज़ीम सहाबियों की अज़ीम करामतों का ज़िक़्र पढें और अपने क़ल्ब को मुनव्वर करें !)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 002_

*“अशरह मुबशरह”*

♻यूं तो हुज़ूर सलल्ललाहु अलैही वसल्लम ने अपने बहुत से सहाबियों को अलग अलग वक़्त में जन्नत की खुशखबरी दी और दुनिया ही में उन के जन्नती होने का ऐलान फ़रमा दिया ! मगर दस ऐसे बड़े और ख़ुशनसीब सहाबा ए किराम हैं जिनको आप ने मस्जिद ए नबवी के मिम्बर शरीफ़ पर खड़े होकर एक साथ उनका नाम लेकर जन्नती होने की खुशखबरी सुनाई ! तारीख़ में उन खुश नसीबों का लक़ब “अशरह मुबशरह” है, जिनकी मुबारक़ फेहरिस्त यह है!

*1⃣::- हज़रत अबू बक्र सिद्दीक़*
*2⃣::- हज़रत उमर फ़ारूक़*
*3⃣::- हज़रत उस्मान गनी*
*4⃣::- हज़रत अली मुर्तज़ा*
*5⃣::- हज़रत तल्हा बिन उबैदुल्लाह*
*6⃣::- हज़रत जुबैर बिन अव्वाम*
*7⃣::- हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़*
*8⃣::- हज़रत सअद बिन अबी वक़ास*
*9⃣::- हज़रत सईद बिन ज़ैद*
*🔟::- हज़रत अबू उबैदह बिन जर्राह*
रज़ियल्लाहु अन्हुम अज़मईन
*📚(तिर्मिज़ी जिल्द 3, सफा 216)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 003_
  *✨एक पारसी जवान का किस्सा✨*

🗓अहदे फारूकी में एक जवान आबिद था, अमीरुल-मुमिनीन उस से बहुत खुश थे, दिन भर
मस्जिद में रहता, बाद इशा बाप के पास जाता, राह में एक औरत का मकान था ! वह उस पर आशिक हो गई ! हमेशा अपनी तरफ मुतवज्जेह करना चाहती जवान नजर न फरमाता, एक शब कदम ने लजिश की ! साथ हो लिया दरवाजे तक गया, जब अन्दर जाना चाहा खुदा याद आया और बेसाख़्ता यह आयते करीमा जुबान से निकली...

*डर वालों को जब कोई झपट शैतान की पहुँचती है खुदा को याद करते हैं उसी वक्त उनकी आँखें खुल जाती हैं*


📄आयत पढते ही गश खा कर गिरा, औरत ने अपनी कनीज के साथ उठा कर उसके दरवाजे पर डाल दिया ! बाप मुन्तज़िर था आने में देर हुई देखने निकला, दरवाजे पर बेहोश पड़ा पाया ! घर वालों को बुला कर अन्दर उठवाया ! रात गये होश आया, बाप ने हाल पूछा, कहा खैर है, कहा बता दे नाधार किस्सा ! 

⚜बाप बोला जाने पिदर, वह आयत कौन सी है ? जवान ने फिर पढ़ी पढ़ते ही गशी आई ! जुम्बिश दि मुर्दा पाया, रात ही को नहला कर कफना कर दफन कर दिया !  सुबह को अमीरुल मुअमीनीन ने खबर पाई बाप से ताजियत और खबर न देने की शिकायत की ! अर्ज की या अमीरुल मुअमिनीन रात थी ! 

👑फिर अमीरुल-मुमिनीन हमराहियों को लेकर कब्रस्तान पर तशरीफ ले गये ! और जवान का नाम लेकर फरमाया::- ऐ फलां जो अपने रब के पास खड़े होने का डर करे इसके लिए दो बाग हैं !  

🌸जवान ने कब्र में से आवाज़ दी:: *ए उमर मुझे मेरे रब ने यह दौलते उज्मा जन्नत में दोबारा अता फरमाई !*
*📚(इब्ने असाकिर, फतावा रज्वीया, जिल्द 4, सफ़ा 222)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 004_

*👑शैखैन(हज़रते अबु बकर व उमर रदियल्लाहु अन्हु) का दुश्मन कुत्ता बन गया*

_💎हज़रत इमाम मसगफरी रहमतुल्लाह अलैह::-_ एक बुजुर्ग से नकल करते हैं कि मैंने मुल्के शाम में एक ऐसे इमाम के पीछे नमाज़ अदा की जिस ने नमाज़ के बाद हज़रत अबू बकर व उमर के हक में बद दुआ की ! जब दूसरे साल मैं ने उसी मस्जिद में नमाज़ पढ़ी तो नमाज़ के बाद इमाम ने हज़रत अबू बकर व उमर के हक में बेहतरीन दुआ मांगी ! मैंने नमाजियों से पूछा कि तुम्हारा पुराना इमाम का क्या हुआ ? 

❓तो लोगों ने कहा कि आप हमारे साथ चल कर उसको देख लीजिए ! मैं जब उन लोगों के साथ एक मकान में पहुँचा तो यह देख कर मुझ को बड़ी इब्रत हुई कि एक कुत्ता बैठा हुआ है और उस की दोनों आँखों से आँसू जारी हैं। मैंने उस से कहा कि तुम वही इमाम हो जो हज़राते शैखैन के लिए बद दुआ किया करता था ! तो उस ने सर हिला कर जवाब दिया कि हाँ!
*(शवाहिदुन्नबुवा सफ़ा 156)*

*अल्लाहु अक्बर*
_*सुब्हानल्लाह !* कितनी बड़ी है शान सहाबा-ए-किराम की ! खास कर यारे गारे रसूल हज़रत अमीरूल मोमिनीन अबू बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु की !_
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 005_

*हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

*माँ के पेट में क्या है ?*

✨हज़रते उरवह बिन जुबैर बयान करते है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक
वफ़ात में अपनी साहबजादी उम्मुल मोमिनीन हज़रते आइशा सिद्दीका रज़ियल्लाहु अन्हा को वसीयत फरमाते हुए इरशाद फरमाया कि मेरी प्यारी बेटी ! आज तक मेरे पास जो मेरा माल था वह आज वारिसों का माल हो चुका है और मेरी औलाद में तुम्हारे दोनों भाई अब्दुर्रहमान व मुहम्मद और तुम्हारी दोनों बहनें हैं इस लिये तुम लोग मेरे माल को कुरआन मजीद के हुक्म के मुताबिक तकसीम करके अपना अपना हिस्सा ले लेना ! 

💎यह सुन कर हज़रते आइशा ने अर्ज किया कि अब्बा जान:: मेरी तो एक ही बहन ''बीबी असमा'' हैं यह मेरी दूसरी बहन कौन है ? आप ने इरशाद फ़रमाया कि मेरी बीवी ‘‘बिन्ते खारजा'' जो हामिला है। उस के पेट में लड़की है। वह तुम्हारी दूसरी बहन है ! चुनान्चे ऐसा ही हुआ कि लड़की पैदा हुई जिनका नाम “उम्मे कुलसूम'' रखा गया !
*📚(तारीखुल खुलफा सफ़ा 57)*

👆🏼इस हदीस के बारे में हज़रत अल्लामा ताजुद्दीन सबकी अलैहिर्रहमा ने तहरीर फ़रमाया कि इस हदीस से अमीरूल मोमिनीन हज़रते अबू बकर सिद्दीक की दो करामतें साबित होती हैं।

1⃣::- यह कि आप को वफात से पहले यह इल्म हो गया था कि मैं इसी मरज़ में दुनिया से कूच करूंगा ! इसलिए वक्ते वसियत आप ने यह फरमाया कि मेरा माल आज मेरे वारिसों का माल हो चुका है ! 

2⃣::- यह कि हामला के पेट में लड़का है या लड़की और जाहिर है कि उन दोनों बातों का इल्म यकीनन गैब का इल्म है जो बिला शुब्हा व बिल यकीन पैगम्बर के जानशीन हज़रत अमीरूल मोमिनीन अबू बकर सिद्दीक़ की दो बड़ी करामतें हैं! 
*📚(करामाते सहाबा, सफा 32)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 006_

*हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

👑खलीफ़-ए-दोम जानशीने पैग़म्बर हज़रत उमर फारूके आज़म की कुन्नियत “अबू हफ्स”और लक्ब “फारूके अअज़म” है! आप कुरैश के सरदारों में अपनी ज़ाती व खानदानी मर्तबा के लिहाज़ से बहुत ही मुमताज़ हैं ! आठवें पुश्त में आप का खानदानी सज़रा रसूलुल्लाह के शजर-ए-नसब से मिलता है ! आप वाकिआ फील के तीन साल बाद मक्का मुकर्रमा में पैदा हुए और ऐलाने नुबूवत के छठे साल सत्ताइस(27) साल की उम्र में मुशर्रफ बा इस्लाम हुए ! जब कि एक रिवायत में है कि आप से पहले कुल उन्तालीस (39) आदमी इस्लाम कुबूल कर चुके थे ! आप के मुसलमान हो जाने से मुसलमानों को बे हद खुशी हुई और उन को एक बहुत बड़ा सहारा मिल गया ! यहाँ तक कि हुजूर रहमते आलम ने मुसलमानों की जमाअत के साथ खाना-ए-कअबा की मस्जिद में खुल्लम-खुल्ला नमाज़ अदा फ़रमाई ! 

✨आप तमाम इस्लामी जंगों में मुजाहिदाना शान के साथ कुफ्फ़ार से लड़ते रहे और पैग़म्बरे इस्लाम की तमाम इस्लामी कामों और सुलह व जंग वगैरह की तमाम मनसूबा बन्दियों में हुजूर सुलताने मदीना के वज़ीर व मुशीर की हैसियत से वफादार साथी रहे ! अमीरूल मुमिनीन हज़रत अबू बकर सिद्दीक ने अपने बाद आप को ख़लीफ़ा चुना और दस साल छ: महीना चार दिन आप ने तख्ते खिलाफ़त पर रौनक अफरोज़ होकर जानशीनी रसूल की तमाम ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह अन्जाम दिया ! 

🗓26 ज़िलहिज्जा 23 हिजरी बुध के दिन नमाज़े फज्र में अबू लूलू फीरोज़ मजूसी काफिर ने आप के पेट में खन्जर मारा और आप यह ज़ख़म खा कर तीसरे दिन शर्फे शहादत से सरफ़राज़ हो गए ! बवक्ते वफ़ात आप की उम्र शरीफ़ तिरसठ(63)साल की थी !  हज़रत सुहेब ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और रौज़ए मुबारका के अन्दर हज़रत सिद्दीके अकबर के पहलूए अनवर में मदफून हुए !
*📚(तारीखुल खुलफा व अज़ालतुल ख़िफा वगैरह)*
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 45)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 007_

*हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

*⛵दरिया के नाम खत📄*

📜रिवायत है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रते उमर फारूक के दौरे ख़िलाफ़त में एक मर्तबा मिस्र का दरियाए नील सूख गया !,मिस्र के रहने वालों ने मिस्र के गवर्नर अम्र बिन आस से फरियाद की और यह कहा कि मिस्र की तमाम तर पैदावार का दारो मदार उसी दरियाए नील के पानी पर है ! ऐ अमीर! अब तक हमारा यह दस्तूर रहा है कि जब कभी भी यह दरया सूख जाता था, तो हम लोग एक खूबसूरत कंवारी लड़की को इस दरिया में ज़िन्दा दफन करके दरिया की भेंट चढ़ाया करते थे तो यह दरिया जारी हो जाया करता था, अब हम क्या करे ? 

🎩गवर्नर ने जवाब दिया कि अरहमुहिमीन और रहमतुल लिलआलमीन का रहमत भरा दीन हमारा इस्लाम हरगिज़ हरगिज़ कभी भी इस बे रहमी और ज़ालिमाना काम की इजाज़त नहीं दे सकता इस लिए तुम लोग इन्तजार करो ! मैं दरबारे ख़िलाफ़त में ख़त लिख कर पूछता हूँ। वहाँ से जो हुक़्म मिलेगा हम उस पर अमल करेंगे ! चुनान्चे एक कासिद गवर्नर का ख़त लेकर मदीना मुनव्वरा दरबारे खिलाफ़त में हाजिर हुआ ! अमीरूल मोमिनीन ने गवर्नर का खत पढ़ कर दरियाए नील के नाम एक खत तहरीर फ़रमाया जिस का मजमुन यह था कि:: 

*📄ऐ दरियाए नील! अगर तू खुद बखुद जारी हुआ करता था तो हम को तेरी कोई जरूरत नहीं है और अगर तू अल्लाह तआला के हुक्म से जारी होता था तो फिर अल्लाह तआला के हुक्म से जारी हो जा !*

👑अमीरूल मोमिनीन ने इस खत को कासिद के हवाला फरमाया और हुक्म दिया कि मेरे इस ख़त को दरियाए नील में दफन कर दिया जाए ! चुनान्चे आप के फरमान के मुताबिक गवर्नर मिस्र ने उस खत को दरियार नील के सूखे बालू में दफन कर दिया ! खुदा की शान कि जैसे ही अमीरूल मोमिनीन का ख़त दरिया में दफन किया गया ! फौरन ही दरिया का पानी बहना लग गया और फिर कभी सूखा नही ! 
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 48)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 008_

*हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*

*✨लोगों की तकदीर में क्या है❓*

🌸अब्दुल्लाह बिन मुस्लेमा कहते हैं कि हमारे कबीला का एक वफद अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हो की बारगाहे ख़िलाफ़त में आया ! तो उस जमाअत में “इश्तर” नाम का एक शख्स भी था ! अमीरूल मोमिनीन उस को सर से पैर तक बार-बार गरम निगाहों से देखते रहे ! फिर मुझ से पुछा कि क्या यह शख़्स तुम्हारे ही कबीला का है ? मैंने कहा कि “जी हाँ” !  उस वक्त आप ने फ़रमाया कि खुदा उस को तबाह करे और उस के फितने व फ़साद से इस उम्मत को महफूज़ रखे ! अमीरूल मोमिनीन की इस दुआ के बीस साल बाद जब बागियों ने हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हो को शहीद किया तो यही ‘‘इशतर'' उस बागी गरोह का एक बहुत बड़ा लीडर था !
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 54)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 009_

*हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*


*🤲🏻दुआ की मकबूलियत🤲🏻*

💎अबू हदबा हमसी का बयान है कि जब अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हो को यह खबर मिली कि इराक के लोगों ने आप के गवर्नर को उस के मुंह पर कंकरियाँ मार कर जलील व रुस्वा करके शहर से बाहर निकाल दिया है तो आप को इस खबर से इन्तेहाई तक्लीफ और बेचैनी हुई, और आप बहुत ही गज़बनाक होकर मस्जिदे नबवी में तशरीफ ले गए और उसी गुस्से की हालत में आप ने नमाज़ शुरू कर दी लेकिन चूंकि आप बहुत ही गुस्से से परीशान थे, इस लिए आप को नमाज़ में सहव हो गया और आप इस रन्जो ग़म से और भी ज्यादा बे ताब हो गए और इन्तेहाई रन्जो ग़म की हालत में आप ने यह दुआ मांगी कि:: 

*🕋या अल्लाह कबील-ए-सकीफ़ के लोंडे(हज्जाज बिन यूसुफ़ सफी) को उन लोगों पर मुसल्लत फ़रमा दे जो जमाना-ए-जाहलियत का हुक्म चला कर उन इराकियो के नेक और बुरे किसी को भी न बख्शे !*

✨चुनान्चे आप की यह दुआ कुबूल हो गई और अब्दुल मलिक बिन मरवान अमवी के दौरे हुकूमत में हज्जाज बिन यूसुफ़ सक़फी इराक का गवर्नर बना और उस ने इराक के रहने वालों पर जुल्म व सितम का ऐसा पहाड़ तोड़ा कि इराक की जमीन बिलबिला उठी ! हज्जाज बिन यूसुफ़ सकफी इतना जालिम था कि उस ने जिन लोगों को रस्सी में बांध कर अपनी तलवार से कत्ल किया उन मकतूलों की तादाद एक लाख या उस से ज्यादा ही है, और जो लोग उस के हुक्म से कत्ल किए गए उन की गिनती का तो शुमार ही नहीं हो सका ! 

🌸हज़रत इब्ने रबीआ मुहद्दिस ने फ़रमाजया कि जिस वक्त अमीरूल मोमिनीन ने यह दुआ मांगी थी उस वक्त हज्जाज बिन यूसुफ़ सकफ़ी पैदा भी नहीं हुआ था ! 
*📚(इज़ालतुल ख़िफ़ा मकसद नम्बर 2, स 172)*
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 56)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 010_

*हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*


*🌸कब्र में बदन सलामत🌸*

👑वलीद बिन अब्दुल मलिक अमवी के दौरे हुकूमत में जब रौज़ए मुनव्वरा की दीवार गिर पड़ी और बादशाह के हुक्म से दोबारा बनाने के लिए बुनियाद खोदी गई तो अचानक बनियाद में एक पाँव नजर आया ! लोग घबरा गए और सब ने यही ख्याल किया कि यह हुजूर नबी अकरम का पैर अक़दस है ! लेकिन जब उरवा बिन जुबैर सहाबी ने देखा और पहचाना फिर क़सम खा कर यह फ़रमाया कि यह हुजूरे अनवर का मुकद्दस पाँव नहीं है ! बल्कि यह अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर का कदम शरीफ़ है तो लोगों की घबराहट और बेचैनी में कुछ सूकुन हुआ ! 
*📚(बुखारी शरीफ़ जिल्द 1, स 186)* 

*💎तबसेरा::-* बुख़ारी शरीफ़ की यह रिवायत इस बात की जबरदस्त शहादत है कि कई औलिया-ए-किराम के मुकद्दस जिस्मों को कब्र की मिट्टी सालों गुजर जाने के बाद भी नहीं खा सकती ! बदन तो बदन उन के कफ़न को भी मिट्टी मैला नहीं करती! औलिया-ए-किराम का यह हाल है तो भला हज़राते अम्बिया अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम का क्या हाल होगा !  फिर हुजुर सय्यदुल अम्बिया ख़ातिमुन नबिईन शफीउल मुजनबीन के जिस्मे अतहर का क्या कहना ? जब कि वह अपनी क़ब्रे अनवर में जिस्मानी जिन्दगी के साथ जिन्दा हैं !

📜जैसा कि हदीस शरीफ़ में आया है:- 
*तरजुमा- (यअनी अल्लाह तआला के नबी जिन्दा है और उन को रोजी भी दी जाती है!)*
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 57)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 011_

*हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु*
 

*🌸चादर देख कर आग बुझ गई🔥* 

📜रिवायत में है कि आप की खिलाफ़त के दौर में एक मर्तबा अचानक एक पहाड़ के गार से एक बहुत ही खतरनाक आग जाहिर हुई जिस ने आस-पास की तमाम चीजों को जला कर राख का ढेर बना दिया ! जब लोगों ने दरबारे ख़िलाफ़त में फ़रियाद की तो अमीरूल मोमिनीन ने हज़रत तमीम दारी रज़ियल्लाहु अन्हो को अपनी चादर मुबारक अता फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया कि तुम मेरी यह चादर ले कर आग के पास चले जाओ ! चुनान्चे हज़रत तमीम दारी इस पाक चादर को लेकर रवाना हो गए और जैसे ही आग के करीब पहुँचे, फौरन वह आग बुझने और पीछे हटने लगी ! यहाँ तक कि वह गार के अन्दर चली गई और जब यह चादर ले कर गार के अन्दर दाखिल हो गए तो वह आग बिल्कुल ही बुझ गई और फिर कभी भी जाहिर नहीं हुई !
*📚(इज़ालतुल खिफा मकसद नम्बर 2, सफ़ा 172)*
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 58)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 012_


*हज़रते उस्माने गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हो*


🌸ख़लीफ़-ए-सोम अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्मान बिन अफ्फान की कुन्नियत ‘‘अबू अम्र” और लकब ‘‘जुन नूरैन”(दो नूर वाले) है ! आप कुरैशी हैं और आपका नसब नामा यह है, उस्मान बिन अफ्फान बिन अबिल आस बिन उमय्या बिन अब्दे शमस बिन अब्दे मुनाफ ! आप का खानदानी शजरा “अब्दे मनाफ़” पर रसूलुल्लाह के नसब नामा से मिल जाता है ! आप ने शुरू इस्लाम ही में इस्लाम कुबूल कर लिया था और आप को आप के चचा और दूसरे खानदानी काफिरों ने मुसलमान हो जाने की वजह से बहुत सताया ! 

✨आप ने पहले हबशा की तरफ़ हिजरत फ़रमाई, फिर मदीना मुनव्वरा की तरफ़ हिजरत फ़रमाई ! इस लिए आप “साहिबुल हिजरतैन”(दो
हिजरतों वाले) कहलाते हैं ! और चूँकि हुजूरे अकरम की दो बेटियाँ एक-एक करके आप के निकाह में आई इस लिए आप का लकब “जुन नूरैन”है ! आप जंगे बद्र के अलावा दुसरे तमाम इस्लामी जेहादों में कुफ्फार से जंग फरमाते रहे ! जंगे बद्र के मौकों पर उन की जौजा मुहतरमा जो रसूलुल्लाह की साहबजादी थीं सख़्त बीमार हो गई थीं ! इस लिए हुजूरे अकदस ने उन को जंगे बद्र में जाने से मना फ़रमा दिया लेकिन उन को मुजाहिदीने बद्र में शुमार फ़रमा कर माले गनीमत में से मुजाहिदीन के बराबर हिस्सा दिया और अजरो सवाब की खुशखबरी भी दी ! 

👑हज़रत अमीरूल मोमिनीन उमर फारूके आज़म रज़ियल्लाहु अन्हो की शहादत के बाद आप खलीफा चुने गये और बारह बरस तक तख़्ते ख़िलाफ़त को सरफ़राज़ फ़रमाते रहे ! आप के दौरे ख़िलाफ़त में इस्लामी हुकूमत की सरहदों में बहुत ज्यादा फैलाव हुआ और अफ्रीका वगैरह बहुत से देश कब्जा में आ कर ख़िलाफ़ते राशिदा के जेरे नगीं हुए ! 82 बरस की उम्र में मिस्र के बागियों ने आप के मकान का घेराव कर लिया और।12 ज़िल हिज्जा या 18 जिल हिज्जा 35 हिजरी जुमा के दिन उन बागियों में से एक बद नसीब ने आप को रात के वक्त इस हाल में शहीद कर दिया कि आप कुरआने पाक की तिलावत फ़रमा रहे थे और आप के खून के चन्द कतरात कुरआन शरीफ की आयत पर पड़े ! आप के जनाज़ा की नमाज़ हुजूरे अकदस के फूफ़ी ज़ाद भाई हज़रत जुबैर बिन अवाम रज़ियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई और आप मदीना मुनव्वरा के क़ब्रस्तान जन्नतुल बकीअ में मदफून हैं !
*📚(तारीखुल खुलफा व इज़ालतुल खिफा वगैरह)*
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 59)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 013_

*हज़रते उस्माने गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हो*

*जिना कार आँखें*

👑अल्लामा ताजुद्दीन सबकी अलैहिर्रहमा ने अपनी किताब “तबकात” में तहरीर फ़रमाया है कि एक शख्स ने रास्ता चलते हुए एक अजनबी औरत को घूर घूर कर गलत निगाहों से देखा ! उस के बाद यह शख़्स अमीरूल मोमिनीन हज़रत उसमाने गनी रज़ियल्लाहु अन्हो की ख़िदमते अकदस में हाज़िर हुआ ! उस शख्स को देख कर हज़रत अमीरूल मोमिनीन ने निहायत ही पुर जलाल लहजे में फ़रमाया कि :: 
*तुम लोग ऐसे हालत में मेरे सामने आते हो कि तुम्हारी आँखों में जिना के असरात होते हैं ! उस आदमी ने(जल भुन कर) कहा कि रसूलुल्लाह के बाद आप पर वही उतरने लगी है ? आप को यह कैसे मालूम हो गया कि मेरी आँखों में जिना के असरात हैं ? अमीरूल मोमिनीन ने इरशाद फ़रमाया कि मेरे ऊपर वही तो नहीं नाज़िल होती है ! लेकिन मैं ने जो कुछ कहा है यह बिल्कुल ही कौले हक और सच्ची बात है और खुदावन्दे कुद्दुस ने मुझे एक ऐसी फरास्त (नूरानी बसीरत) अता फरमाई है जिस से में लोगों के दिलों के हालात वे ख्यालात को मालूम कर लेता हूँ।* 
*📚(हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 862, व इज़ालतुल खिफा मकसद 2, स 227)*
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 60)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 014_

*हज़रते उस्माने गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हो*

*अपने मदफन की खबर*

💎हज़रत इमाम मालिक अलैहिर्रहमा ने फरमाया कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हो एक मर्तबा मदीना मुनव्वरा के कब्रस्तान जन्नतुल बकीअ के उस हिस्सा में तशरीफ ले गए जो ‘‘हिश्शे कोकव” कहलाता है, तो आप ने वहाँ खड़े होकर एक जगह पर यह फरमाया कि जल्द ही यहाँ एक नेक शख्स दफन कर दिया जाए गा ! चुनांचे उस के बाद ही आप की मकाने शहादत हो गई और बागियों ने आप के जनाजा मुबारका के साथ इस कदर हुल्लड़ बाज़ी की कि आप को न रोज ए मुनव्वरा के करीब दफन किया जा सका न जन्नतुल बकी के उस हिस्सों में मदफन किया जा सका जो बड़े सहाबा का कब्रस्तान था ! बल्कि सब से दर के अलग थलग “हिश्शे कोकव” में आप दफन किए गए !  जहाँ कोई सोच भी नहीं सकता था कि यहाँ अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्मान की कब्र मुबारक बनेगी क्योंकि उस वक्त तक वहाँ कोई कब्र था ही नहीं।
*📚(इज़ालतुल खिफा मकसद 2, सफ़ा 227)*
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 60)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 015_

*हज़रते उस्माने गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हो*

*शहादत के बाद गैबी आवाज़* 

✨हज़रत अदी बिन हातिम सहाबी का बयान है कि हज़रत अमीरूल मोमिनीन उस्मान गनी की शहादत के दिन मैंने अपने कानों से सुना कि कोई शख्स बलन्द आवाज से यह कह रहा था: 
*👑हज़रत उस्मान बिन अफ्फान को राहत और खुश्बू की खुशखबरी दो और न नाराज होने वाले रब की मुलाकात की खुश्ख़बरी सुनाओ और खुदा की बख्शीश और खुशी की भी बशारत दे दो !* 

💎हज़रत अदी बिन हातिम फ़रमाते हैं कि मैं उस आवाज़ को सुन कर इधर उधर नज़र दौड़ाने लगा और पीछे मुड़ कर भी देखा मगर कोई शख्स नज़र नहीं आया ! 
*📚(शवाहिदुन्नबुवा, सफा 158)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 017_

*हज़रते उस्माने गनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हो*

*हाथ में कैंसर*

👑हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रावी हैं कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्माने गनी मस्जिदे नबवी शरीफ के मिंबर अकदस पर खुतबा पढ़ रहे थे कि बिल्कुल ही अचानक बदनसीब और शैतान सिफत इन्सान जिस का नाम “जहजाह गिफारी” था खड़ा हो गया और आप के दस्ते मुबारक से छड़ी छीन कर उस को तोड़ डाला ! आप ने अपने इल्म व हया की वजह से उस को कोई पकड़ नहीं फ़रमाई लेकिन खुदा तआला की कहहारी व जब्बारी ने उस बे-अदबी और गुस्ताखी पर उस मरदूद को यह सजा दी कि उस के हाथ में कैंसर का मरज़ हो गया और उस का हाथ कुल सड़ कर गिर पड़ा और वह यह सजा पा कर एक साल के अन्दर ही मर गया ! 
*📚(हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन, जिल्द 2, सफा 862)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 018_

*हज़रते अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हो*

✨हज़रत अली मुर्तजा ख़लीफ़-ए-चहारूम जानशीने रसूल व जौजे बतूल हज़रत अली बिन अबी तालिब की कुन्नियत ‘‘अबुल हसन'' और ''अबू तुराब'' है ! आप हुजूरे अकदस के चचा अबू तालिब के बेटे हैं ! आमुल फील के तीस बरस बाद जब कि हुजूरे अकरम की उम्र शरीफ तीस बरस की थी 13 रजब को जुमा के दिन हज़रते अली खानए कुअबा के अन्दर पैदा हुए !  

🌸आप की वालिदा माजिदा का नाम हज़रत फातिमा बिन्ते असद है ! आप ने अपने बचपन ही में इस्लाम कुबूल कर लिया था और हुजूरे अरकम के जेरे तरबियत हर वक्त आप की इमदाद् व नुसरत में लगे रहते थे ! आप मुहाजिरीने अव्वलीन और अशरए मुबशेरा में अपने कई खुसूसी दरजात के लिहाज़ से बहुत ज्यादा मुमताज़ हैं ! जंगे बद्र, जंगे उहुद, जंगे खन्दक आदि तमाम इस्लामी लड़ाइयों में अपनी बे पनाह बहादुरी के साथ जंग फ़रमाते रहे और कुफ्फारे अरब के बड़े बड़े नामवर बहादुर और सूरमा आप की मुकद्दस तलवार जुल फ़िकार की मार से मकतूल हुए ! 

👑अमीरूल मोमिनीन हज़रत उस्मान गनी की शहादत के बाद अन्सार व मुहाजिरीन ने आप के दस्ते हक परस्त पर बैअत करके आप को अमीरूल मोमिनीन चुना और चार बरस आठ माह नो दिन तक आप मस्नदे खिलाफ़त को सर फ़राज़ फ़रमाते रहे ! 17 रमज़ान 40 हिजरी को अब्दुर्रहमान बिन मुल्जिम खारजी मरदूद ने नमाजे फज्र को जाते हुए आप की मुकद्दस पेशानी और नूरानी चेहरे पर ऐसी तलवार मारी जिस से आप सख्त तौर पर जख्मी हो गए और दो दिन जिन्दा रह कर जामे शहादत से सैराब हो गए और कुछ किताबों में लिखा है कि 19 रमज़ान जुमा की रात में आप जख्मी हुए और 21 रमज़ान की रात इतवार आप की शहादत हुई !(वल्लाहु तआला अलम) आप के बड़े बेटे हज़रत इमाम हसन ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और आप को दफ्न फ़रमाया !
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 67-68)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*
*_“करामत-ए-सहाबा”_*
_पोस्ट न. 019_

*हज़रते अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हो*


*फालिज वाला अच्छा हो गया* 

👑अल्लामा ताजुद्दीन सबकी ने अपनी किताब “तबकात” में ज़िक्र फरमाया है कि एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली अपने दोनों बेटे हज़रत इमाम हसन व इमाम हुसैन के साथ हरम कअबा में हाजिर थे कि बीच रात में अचानक यह सुना कि एक शख़्स बहुत ही गिड़ गिड़ा कर
अपनी जरूरत के लिए दुआ मांग रहा है और खूब खूब रो रहा है! आप ने हुक्म दिया कि उस शख्स को मेरे पास लाओ ! वह शख्स इस हाल में हाज़िरे खिदमत हुआ कि उस के बदन की एक करवट
फालिज ज़दा थी और वह जमीन में घसीटता हुआ आप के सामने आया ! आप ने उस का किस्सा पूछा तो उस ने अर्ज किया ऐ अमीरूल मोमिनीन! मैं बहुत ही बे बाकी के साथ किस्म किस्म के गुनाहों में ने होकर उस को दिन रात व्यस्त रहता था और मेरा बाप जो बहुत ही नेक और पाबन्दे शरीअत मुसलमान था बार बार मुझ को टोकता और गुनाहों से मना करता रहता था ! 

📜मैं ने एक दिन अपने बाप की नसीहत से नाराज होकर उस को मार दिया और मेरी मार खा कर मेरा बाप तक्लीफ व गम में डूबा हुआ हरमे काबा आया और मेरे लिए बद दुआ करने लगा ! अभी उस की दुआ खत्म भी नहीं हुई थी कि बिल्कुल ही अचानक मेरी एक करवट पर फालिज का असर हो गया और मैं ज़मीन पर घिसट कर चलने लगा ! इस गैबी सज़ा से मुझे बड़ी इबरत हासिल हुई और मैं ने रो रो कर अपने बाप से अपने जुर्म की माफी माँगी और मेरे बाप ने अपनी शफ़कते पिदरी (बाप की मुहब्बत) से मजबूहोकर मुझ पर रहम खाया और मुझे माफ कर दिया और कहा की बेटा चल! जहाँ मैं ने तेरे लिए बद दुआ की थी उसी जगह अब मैं तेरे लिए सेहत व सलामती की दुआ मांगूंगा ! 

✨चुनान्चे मैं अपने बाप को ऊँटनी पर सवार करके मक्का मुअज्जमा ला रहा था कि रास्ते में बिल्कुल अचानक ऊँटनी एक मकाम पर बिदक कर भागने लगी और मेरा बाप उस की पीठ पर से गिर कर दो चट्टानों के बीच हलाक हो गया और अब मैं अकेला ही हरमे कअबा में आकर दिन रात रो रो कर खुदा तआला से अपनी तन्दुरूस्ती के लिए दुआएं मांगता रहता हूँ ! अमीरूल मोमिनीन ने सारी दास्तान सुन कर फरमाया कि ऐ शख्स! अगर वाकई तेरा बाप तुझ से खुश हो गया था तो इतमीनान रखें कि खुदा वन्दे करीम भी तुझ से खुश हो गया है ! उस ने कहा कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! मैं क़सम खा कर कहता हूँ कि मेरा बाप मुझ से खुश हो गया था ! अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली ने उस शख्स की हालत पर रहम खा कर उस को तसल्ली दी और चन्द रकअत नमाज़ पढ़ कर उस की तन्दुरूस्ती के लिए दुआ मांगी ! 

💎फिर फ़रमाया ऐ शख़्स उठ खड़ा हो जा ! यह सुनते ही वह बिला तकल्लुफ उठ कर खड़ा हो गया और चलने लगा ! आप ने फरमाया कि ऐ शख्स! अगर तू ने कसम खा कर यह न कहा होता कि तेरा बाप तुझ से खुश हो गया तो में हरगिज़ तेरे लिए दुआ न करता !
*📚(करामात ए सहाबा, सफा 68-69)*
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*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*

*करामत ए सहाबा*
*हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु*
*पोस्ट नम्बर 20*

*💫दरै खैबर का वजन🚪* 

✨जंगे खैबर में जब घमसान की जंग हाने लगा तो हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हो की ढाल कट कर गिर पड़ी तो आप ने जोशे जिहाद में आगे बढ़ कर किला खैबर का फाटक उखाड़ डाला और उस के एक किवाड़ का ढाल बना कर उस पर दुश्मनों की तलवारों को रोकते थे ! यह किवाड़ इतना भारी और वजनी था कि जंग के खातमे के बाद चालीस आदमी मिल कर भी उस को न उठा सके ! 
*📚(ज़रानी जि 2, स 230)*

*📖तबसेराः* क्या फातेहे खैबर के उस कारनामे को इन्सानी ताकत की कार गुजारी कहा जा सकता ह ै? हरगिज़ हरगिज़ नहीं। यह इन्सानी ताकत का कारनामा नहीं है, बल्कि यह रूहानी ताकत का एक कारनामा है जो सिर्फ अल्लाह वालों ही का हिस्सा है जिस को आम तौर पर करामत कहा जाता है !

*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*

*💫मैं कब वफ़ात पाऊँगा💫* 

🌸हज़रत फुजाला विन फुज़ाला इरशाद फरमाते हैं कि एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली एक मकाम में बहुत सख़्त बीमार हो गए तो मैं अपने वालिद के साथ उन को अयादत(मरीज़ को देखने के लिए जाना) के लिए गया ! बातचीत के दौरान मेरे वालिद ने अर्ज किया ऐ अमीरूल मोमिनीन ! आप इस वक्त ऐसी जगह बीमारी की हालत में ठहरे हैं ! अगर इस जगह आप की वफ़ात हो गई तो कबीलए “जहीनिया'' के गंवारों के सिवा और कौन आप की तजहीज़ व तकफीन करेगा ? इस लिए मेरी गुजारिश है कि आप मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ ले चलें क्यों कि वहाँ अगर यह हादसा हुआ तो वहाँ आप के जाँ निसार मुहाजिरीन व अन्सार और दूसरे मुकद्दस सहाबा आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ेंगे और यह मुकद्दस हस्तियाँ आप के कफ़न व दफ़न का इन्तज़ाम करेंगी ! 

🌟यह सुन कर आप ने फ़रमाया ऐ फुजाला! तुम इत्मीनान रखो कि में अपनी इस बीमारी में हरगिज़ हरगिज़ वफ़ात नहीं पाऊंगा। सुन लो उस वक्त तक हरगिज़ हरगिज़ मेरी मौत नहीं आ सकती जब तक कि मुझे तलवार मार कर मेरी इस पेशानी और दाढ़ी को खून से रंगीन न कर दिया जाए ! 
*📚(इज़ालतुल खिफा मकसद 2, स 273)*

*चुनांचे ऐसा ही एक बदबख़्त ने फ़ज़र के वक़्त मस्जिद में हज़रत अली की परेशानी पर तलवार से ऐसा वॉर किया कि आपका चेहरा व दाढ़ी खून से तर हो गए और आप इस जख्म में विसाल फ़रमा गए !*

*🇮🇳सिराते मुस्तक़ीम*

*करामत ए सहाबा*
*हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु*
*पोस्ट नम्बर 022*


*कौन कहाँ मरेगा और कहाँ दफन होगा*

🌟हज़रत असबअ रज़ियल्लाहु अन्हो कहते हैं कि हम लोग एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ सफ़र में मैदाने करबला के अन्दर ठीक उस जगह पहुँचे जहाँ आज हज़रत इमाम हुसैन की क़ब्रे अनवर बनी हुई है, तो आप ने फ़रमाया कि उस जगह आगे ज़माने में एक आले रसूल का काफिला ठहरे गा और इस जगह उन के ऊँट बंधे हुए होगे ! और इसी मैदान में जवानाने अहले बैत की शहादत होगी और इसी जगह उन शहीदों को मदफ़न बने गा और उन लोगों पर आसमान व जमीन रोएँगे ! 
*📚(इज़ालतुल खिफा मकसद 2, सफ़ा 273, बहवाला अल-रियाजुन्नसरह)*

*⭐तबसेराः* रिवायत बाला से पता चलता है कि औलिया अल्लाह को कश्फ के जरिए बरसों बाद होने वाले वाकिआत और लोगों के हालात यहाँ तक कि लोगों की मौत और मदफ़न की कैफियात का इल्म हासिल हो जाता है, और यह हकीकत में इल्मे गैब है जो अल्लाह तआला के अता फरमाने से औलिया-ए-किराम को हासिल हुआ करता है और यह औलिया-ए-किराम की करामत हुआ करती है !

*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
*👑हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु*
_पोस्ट नम्बर 023_


*🏠गिरती हुई दीवार थम गई💨*

_♻हज़रत इमाम जाफर सादिक रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान हैं कि एक मर्तबा अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु एक दीवार के साए में एक मुकद्दमा का फैसला फ़रमाने के लिए बैठ गए ! मुकद्दमा के बीच में लोगों ने शोर मचाया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन! यहाँ से जाइए यह दीवार गिर रही है ! आप ने निहायत सुकून व इत्मीनान के साथ फ़रमाया कि मुकद्दमा की कारवाई जारी रखो ! अल्लाह तआला बेहतरीन हाफ़िज़ व मददगार व देखने वाला है !_

🔹चुनान्चे इत्मीनान के साथ आप इस मुकद्दमा का फैसला फरमा कर जब वहाँ से चल दिए तो फौरन ही वह दीवार गिर गई ! 
*_📚(इज़ालतुल खिफ़ा, मकसद 2, सफ़ा 273)_*

*📖तबसेरा::-* यह रिवायत इस बात की दलील है कि खुदा वन्दे कुद्दुस अपने औलिया-ए-किराम को ऐसी ऐसी रूहानी ताकतें अता फरमाता है कि उन के इशारों से गिरती हुई दीवारें तो क्या चीज़ हैं बहते हुए दरियाओं की रवानी भी ठहर जाती है ! सच है कोई अन्दाज़ा कर सकता है उस के ज़ोर बाजू का ?

*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*

*करामत ए सहाबा*
*हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु*
*पोस्ट नम्बर 024*


*फ़रिश्तों ने चक्की चलाई*

✨हज़रत अबूज़र गिफारी का बयान है कि हुजूर अकदस ने मुझे हज़रत अली को बुलाने के लिए उन के मकान पर भेजा तो मैं ने वहाँ यह देखा कि उन के घर में चक्की किसी चलाने वाले के खुद ब खुद चल रही है ! जब मैं ने बारगाहे रिसालत में इस अजीब करामत का तज्किरा किया तो हुजूर अकदस ने इरशाद फरमाया कि ऐ अबूज़र! अल्लाह तआला के कुछ फरिश्ते ऐसे भी हैं जो जमीन में सैर कर रहते हैं। अल्लाह तआला ने उन फ़रिश्तों की यह भी डियुटी फरमा दी है कि वह मेरे आल की इमदाद व इआनत करते रहें ! 
*📚(इज़ालतुल खिफा, मकसद 2, सफ़ा 273)*

*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
*👑हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु*
_पोस्ट नम्बर 024_


*🔥आपको झूठा कहने वाला अंधा हो गया* 

💫अली बिन जाज़ान का बयान है कि अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक मर्तबा कोई बात इरशाद फरमाई तो एक बद नसीब ने निहायत ही बे बाकी के साथ यह कह दिया कि ऐ अमीरूल मोमिनीन आप झूठे हैं ! आप ने फ़रमाया कि ऐ शख्स! अगर मैं सच्चा हूँ तो ज़रूर तू अज़ाबे इलाही में गिरफ्तार हो जाएगा ! इस गुस्ताख़ ने कह दिया कि आप मेरे लिए बद दुआ कर दीजिए ! मुझे उस की परवा नहीं है उस के मुँह से उन लिफाज़ का निकलना था कि बिलकुल ही अचानक वह शख्स दोनों अाखों का अंधा हो गया और इधर उधर हाथ पावं मारने लगा ! 
अल्लाहु अकबर!
*📚(इज़ालतुल खिफ़ा, मकसद 2, सफ़ा 273)*

*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
*👑हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु*
_पोस्ट नम्बर 025_


*शौहर, औरत का बेटा निकला* 

👑अमीरूल मोमिनीन हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु घर से कुछ दूर एक मस्जिद के पहलू में दो मियाँ बीवी रात भर झगडा करते रहे !  सुबह को अमीरूल मोमिनीन ने दोनों को बुला कर झगडे का सबब पूछा ! शौहर ने अर्ज किया ऐ अमीरूल मोमिनीन। मैं क्या करू ? निकाह के बाद मुझे इस औरत से बे इन्तेहा नफरत हो गई ! यह देख कर बीवी मुझ से झगड़ा करने लगी ! फिर बात बढ़ गई और रात भर लडाई होती रही ! 

👥आप ने तमाम दरबारियों को बाहर निकाल दिया और औरत से फ़रमाया कि देख मैं तुझ से जो सवाल करू उस का सच सच जवाब देना ! फिर आप ने फ़रमाया कि ऐ औरत! तेरा नाम यह है तेरे बाप का नाम यह है ! औरत ने कहा कि बिल्कुल ठीक ठीक आप ने बताया ! फिर आप ने फ़रमाया कि ऐ औरत! तू याद कर कि तु ज़िना कारी से हामला हो गई थी ! और एक मुद्दत तक तू और तेरी माँ इस हमल को छुपाती रही ! जब पेट का दर्द शुरू हुआ तो तेरी माँ तुझे उस घर से बाहर ले गई और जब बच्चा पैदा हुआ तो उस को एक कपड़े से लपेट कर तू ने मैदान में डाल दिया !  इत्तेफाक से एक कुत्ता उस बच्चे के पास आया तेरी मां ने उस कुत्ते को पत्थर मारा लेकिन वह पत्थर बच्चे को लगा और उसका सिर फट गया तो तेरी माँ को बच्चे पर रहम आ गया और उसने बच्चे के ज़ख्म पर पट्टी बाँधी फिर तुम दोनों वहाँ से भाग खड़ी हुई ! उसके बाद उस बच्चे की तुम दोनों को कुछ भी खबर नही मिली क्या यह वाकिआ सच है ?

✨औरत ने कहा कि हाँ ऐ अमीरूल मोमिनीन! यह पूरा वाकिआ हर्फ बहर्फ सही है ! फिर आपने फ़रमाया कि ऐ मर्द! तू अपना सर खोल कर उस को दिखा दे ! मर्द ने सर खोला तो उस पर ज़ख़्म का निशान मौजूद था ! उस के बाद अमीरूल मोमिनीन ने फ़रमाया कि ऐ औरत! यह मर्द तेरा शौहर नहीं है बल्कि यह तेरा बेटा है तुम दोनों अल्लाह तआला का शुक अदा करो कि उसने तुम दोनों को हराम कारी से बचा लिया ! अब तू अपने इस बेटे को ले कर अपने घर चली जा ! 
*📚(शवाहिदुनबवा, सफा 161)*

*📖तबसेराः* ऊपर की मुस्तनद करामत को बगौर पढ़िए और ईमान रखिए कि खुदावन्दे कुद्दुस के औलिया-ए-किराम आम इन्सान की तरह नहीं हुआ करते बल्कि अल्लाह तआला अपने उन
बन्दों को ऐसे ऐसे रूहानी ताकतों का बादशाह बल्कि राह देता है कि उन बुजुर्गों के कब्जे और उन की रूहानी ताक़त कुदरतों के बुलन्द मर्तब तक किसी बड़े से बड़े फ़लसफ़ा व फुहम की भी रसाई नहीं हो सकती खुदा की कसम !

*🇮🇳“सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
*👑हज़रत तल्हा बिन उबैदुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु*
_पोस्ट नम्बर 026_


🌹आप का नाम नामी भी अशरह मुबश्शेरह की फेहरिस्ते गिरामी में है ! मक्का मुकर्रमा के अन्दर खानदान कुरैश में आप की पैदाइश हुई ! माँ बाप ने ''तलहा'' नाम रखा मगर दरबारे नुबुवत से उन को "फय्याज़'' व "जव्वाद'' व 'खेर' के मुअज्ज़ज़ अलकाब अता हुए ! 

🕋जमाअते सहाबा में से पहले ईमान लाने वाले की लाइन में हैं ! उन के इस्लाम लाने का वाकिआ यह है कि यह तिजारत के लिए बसरा गए तो वहाँ के एक ईसाई पादरी ने उन से दरयाफ्त किया कि क्या मक्का में ‘‘अहमद नबी' पैदा हो चुके हैं ? उन्होंने हैरान होकर पूछा ! कौन अहमद नबी ?" 

⛪पादरी ने कहा:- अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब वह नबी आखिरूजमा हैं, और उन की नुबुवत के जहूर का यही जमाना हो और उन की पहचान का निशान यह है कि वह मक्का मुकर्रमा मेंपैदा होंगे और खुजूरों वाले शहर(मदीना मुनव्वरा) की तरफ हिजरत करेंगे ! 

♻चूँकि उस वक्त तक हुजूरे अकरम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लमने अपनी नुबुवत का ऐलान नहीं फ़रमाया था ! इस लिए हज़रत तलहा ने पादरी को नबी आखिरूज्ज़माँ खातिमुन्नबीईन के बारे में कोई जवाब न दे सके !

*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
*👑हज़रत तल्हा बिन उबैदुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु*
_पोस्ट नम्बर 026_


🌹आप का नाम नामी भी अशरह मुबश्शेरह की फेहरिस्ते गिरामी में है ! मक्का मुकर्रमा के अन्दर खानदान कुरैश में आप की पैदाइश हुई ! माँ बाप ने ''तलहा'' नाम रखा मगर दरबारे नुबुवत से उन को "फय्याज़'' व "जव्वाद'' व 'खेर' के मुअज्ज़ज़ अलकाब अता हुए ! 

🕋जमाअते सहाबा में से पहले ईमान लाने वाले की लाइन में हैं ! उन के इस्लाम लाने का वाकिआ यह है कि यह तिजारत के लिए बसरा गए तो वहाँ के एक ईसाई पादरी ने उन से दरयाफ्त किया कि क्या मक्का में ‘‘अहमद नबी' पैदा हो चुके हैं ? उन्होंने हैरान होकर पूछा ! कौन अहमद नबी ?" 

⛪पादरी ने कहा:- अहमद बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब वह नबी आखिरूजमा हैं, और उन की नुबुवत के जहूर का यही जमाना हो और उन की पहचान का निशान यह है कि वह मक्का मुकर्रमा मेंपैदा होंगे और खुजूरों वाले शहर(मदीना मुनव्वरा) की तरफ हिजरत करेंगे ! 

♻चूँकि उस वक्त तक हुजूरे अकरम सल्ललाहु तआला अलैहि वसल्लमने अपनी नुबुवत का ऐलान नहीं फ़रमाया था ! इस लिए हज़रत तलहा ने पादरी को नबी आखिरूज्ज़माँ खातिमुन्नबीईन के बारे में कोई जवाब न दे सके !

*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
*👑हज़रत तल्हा बिन उबैदुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु*
_पोस्ट नम्बर 027_


*एक कब्र से दूसरी कब्र में*

💫शहादत के बाद आप को बसरा के करीब दफन कर दिया गया मगर जिस मकाम पर आप की कब्र शरीफ बनी वह गढ्ढे में था !  इस लिए कब्र मुबारक कभी कभी पानी में डूब जाती थी !आप ने एक शख्स को बार बार ख्वाब में आकर अपनी कब्र बदलने का हुक्म दिया ! चुनान्चे उस शख्स ने हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से अपना ख्वाब बयान किया तो आप ने दस हजार दिरहम में एक सहाबी का मकान खरीद कर उस में क़ब्र खोदी और हज़रत तलहा रज़ियल्लाहु अन्हु की मुकद्दस लाश को पुरानी कब्र में से
निकाल कर उस कब्र में दफ़न कर दिया ! काफी मुद्दत गुज़र जाने के बावजूद आप का मुकद्दस जिस्म सलामत और बिल्कुल ही तरो ताज़ा था।
*📚(किताब अशरए मुबश्शेरा, सफा 245)*

*📖तबसेरा::-* गौर फरमाइए कि कच्ची कब्र जो पानी में डूबी रहती थी ! एक मुद्दत गुज़र जाने के बावजूद एक वली और शहीद की लाश खराब नहीं हुई ! तो हज़रात अंबिया खास कर हुजूर सैय्यदुल अंबिया के मुकद्दस जिस्म को कब्र की मिट्टी भला किस तरह ख़राब कर सकती है ?
 
♻यही वजह है कि हुजूरे अकरम ने इरशाद फरमाया: *अल्लाह तआला ने अंबिया के जिस्मों को जमीन पर हराम फरमा दिया है कि जमीन उन को कभी खा नहीं सकती !*

✨इसी तरह इस रिवायत से इस मसला पर भी रोशनी पड़ती है, कि शोहदा-ए-किराम अपने जिन्दगी की जरूरतों के साथ अपनी अपनी कब्रों में जिन्दा हैं, क्यों कि अगर वह ज़िन्दा न होते तो कब्र में पानी भर जाने से उन को क्या तकलीफ होती ? रिवायत से यह भी मालूम हुआ कि शुहदा-ए-किराम ख्वाब में आकर जिन्दों को अपने हालात व कैफियात से बा-खबर करते रहते हैं ! क्योंकि खुदा तआला ने उन को यह कुदरत अता फरमाई है कि वह ख्वाब या बेदारी में अपनी कब्रों से निकल कर ज़िन्दों से मुलाकात और बात कर सकते हैं ! 

✔अब गौर फरमाइए कि जब शहीदों का यह हाल है और उन की जिस्मानी ज़िन्दगी की यह शान है तो फिर हज़रात अंबिया-ए-किराम खास कर हुजूर सैय्यदुल अंबिया की जिस्मानी जिन्दगी और उन का कब्ज़ा और उन के इख़्तियार व इकतदार का क्या आलम होगा ? गौर फरमाइए कि वहाबियों के पेशवा मोलवी इस्माईल देहलवी ने अपनी किताब तकवियतुल ईमान में यह मज़मून लिख कर कि ''हुजूरे अकरम-मर कर मिट्टी में मिल गए''(नउजुबिल्लाह) कितना बड़ा जुर्म और बहुत बड़ा जुल्म किया है। अल्लाहु अकबर! उन बे अदबों और गुस्ताखों ने अपने नोके क़लम से रसूल के आशिकों के दिलों को किस तरह मजरूह व जख्मी किया है उस को बयान करने के लिए हमारे पास अलफाज नहीं हैं !

*🇮🇳“सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
_पोस्ट नम्बर::- 028_

*👑हजरत जुबैर बिन अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु*

🌸यह हुजूरे अकदस की फूफी सफिया के बेटे हैं ! इस लिए यह रिश्ते में शहंशाहे मदीना के फूफी ज़ाद भाई और हजरत सैय्यदा ख़दीजा के भतीजे और हज़रत अबू बकर सिद्दीक के दामाद हैं ! यह भी अशरे मुबश्शेरा यअनी उन दस खुशनसीब सहाबा-ए-किराम में से हैं जिन को हुजूरे अकरम ने दुनिया ही में जन्नती होने की खुशखबरी सुनाई !(जिसकी सरे फ़ेहरिस्त हमने पोस्ट नम्बर 2 में भेज दी थी) बहुत ही बलन्द कामत, गोरे और छरेरे बदन के आदमी थे ! 

✨अपनी वालिदा माजिदा की बेहतरीन तरबियत की बदौलत से निडर, मेहनती, बलन्द हौसला और निहायत ही पक्के नियत की बदौलत बचपन ही में पक्के इरादे और सोलह बरस की उम्र में उस वक्त इस्लाम कुबूल किया ! अभी 6 या 7 आदमी ही इस्लाम लाए हुए थे ! इस्लामी लड़ाइयों में अरब के बहादुरों के मकाबले में आप ने उस मुजाहिदाना बहादुरी का मुजाहिरा किया की तवारीख़ जंग में उस की मिसाल मिलनी मुश्किल है ! आप जिस तरफ़ तलवार लेकर बढ़ते कुफ्फार के परे के परे काट कर रख देते ! 

🌹आप को हुजूरे अकदस ने जंगे खंदक के दिन ‘‘हवारी”(मुखलीस व जाँ निसार दोस्त) का खिताब अता फरमाया ! आप जंगे जमल से बेज़ार होकर वापस तशरीफ ले जा रहे थे कि अम्र बिन जरमोज़ ने आप को धोका दे कर शहीद कर दिया ! शहादत के वक़्त आप की उम्र शरीफ 64 बरस की थी ! सन् 36 हिजरी में सफ्वान में आप की शहादत हुई ! पहले यह वादी “अलसबाअ” में दफन किए गए मगर फिर लोगों ने उन की मुकद्दस लाश को कब्र से निकाला और पूरे इज्जत व एहतराम के साथ लाकर आप को शहर बसरा में सुपुर्द खाक किया ! जहाँ आपकी कब्र शरीफ मशहूर जियारत गाह है !
*📚(अकमाल सफ़ा 595)*

*🇮🇳“सिराते मुस्तक़ीम”*

*करामत ए सहाबा*
_पोस्ट नम्बर::- 029_

*👑हजरत जुबैर बिन अव्वाम रज़ियल्लाहु अन्हु*

*🗡बा करामत बरछी*

⚔जंगे बद्र में सईद बिन आस का बेटा “उबैद” सर से पावों तक लोहे का लिबास पहने हुए कुफ्फार की जमाअत में से निकला और निहायत ही घमन्ड और गुरूर से यह बोला कि ऐ मुसलमानो! सुन लो कि मैं “अबू करश” हूँ। उस की यह घमन्डी ललकार सुन कर हज़रत जुबैर बिन अव्वाम जोरो जिहाद में भरे हुए मुकाबले के लिए अपनी सफ़ से निकले मगर यह देखा कि उस की दोनों आँखों के सिवा उस के बदन का कोई हिस्सा ऐसा नहीं है जो लोहे में छुपा हुआ न हो ! 

🗡आप ने ताक कर उस की आँख में इस जोर से बरछी मारी कि बरछी उस की आँख को छेदती हुई खोपड़ी की हड्डी में चुभ गई और वह लड़खड़ा कर जमीन पर गिरा और फौरन मर गया ! हज़रत जुबैर ने जब उस की लाश पर पाव रख कर ताकत से बरछी को खींचा तो बड़ी मुश्किल से बरछी निकली लेकिन बरछी का सिरा मुड़ गया था ! यह बरछी एक बा करामत यादगार बन कर बरसों तक तबर्रुक बनी रही ! 

🌸हुजूरे अकदस ने हज़रत जुबैर से यह बरछी तलब फ़रमाई और उस को अपने पास रखा ! फिर आप के बाद खुलफा-ए- राशदीन के पास यके बाद दीगरे जाती रही और यह हज़रात इज़्ज़त व इहतेराम के साथ उस बरछी की खास हिफ़ाज़त फ़रमाते रहे ! फिर हज़रत जुबैर के बेटे हजरत अब्दुल्लाह बिन जुबैर के पास आगई ! यहाँ तक कि सन 73 हिजरी में जब बनू उमैया के जालिम गवर्नर हज्जाज बिन यूसुफु सकफी ने उन को शहीद कर दिया तो यह बरछी बनू उमैया के कबज़ा में चली गई ! फिर उस के बाद लापता हो गई ! 
*📚(बुखारी शरीफ़, ज़ि 2, सफ़ा 570, गज़व-ए-बद्र)*

*📖तबसेरा::-* बुखारी शरीफ की यह हदीसे पाक हर मुसलमान दीनदार को झंझोड़ कर खबरदार कर रही है कि बुजुर्गाने दीन व उलमा-ए-सालहीन की छड़ी, कलम, तलवार, तसबीह, लिबास, बरतन आदि सामानों को याद गार के तौर पर बतौर तबर्रुक अपने पास रखना हुजूरे अकदस और खुलफा-ए-राशदीन की मुकद्दस सुन्नत है ! गौर फरमाइए कि हजरत जुबैर की बरछी को तबरूक बना कर रखने में हुजूरे अकरम और आप के खुलफा-ए-राशदीन ने किस कदर एहतेमाम किया और किस किस तरह इस बरछी का एजाज व इकराम किया !

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