ताजियादारी करना कैसा है


*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*📖कोशिश इल्म आम करने की✒*


          *🕌 "ताजियादारी"*
            *📑पोस्ट नम्बर -::1⃣*

🌟मुसलमानों में बहुत सारी बिदआत व खुराफात रिवाज़ पा चुकी हैं उलमा ए किराम ने उनके सद्दे बाब के लिए सई बलीग़ फरमाई मगर मुआशरा इन जरासिम से मुकम्मल पाक न हो सका ख़ुसूसन आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुद्देसा सिर्रूह ने अपने खून जिगर से इस्लामी इक्दार की आबयारी की और माहौल में फैली हुई बुराइयों के इलाज के लिए नुस्खे बताऐ ! अगर मुसलमान आलाहज़रत के फरमान पर अमल करें और उनकी पुकार पर लब्बैक कहें तो हमारा मुआशरा बुराइयों और बिदआत से पाक साफ हो सकता है ! *इसकी जिन्दा मिसाल मुहर्रम शरीफ की ताजियादारी है !* ताज़िया दर हकीकत रौजा शहीदे आज़म इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु की शबीह(हमशक्ल) था ! मगर लोगों ने मुख्तलिफ़ खुराफात जोड़ दिए जिससे ताज़िया की असल हकीकत रूपोश हो गई और नई तराश ख़राश का नाम ताज़िया पड़ गया ! इसकी हकीकत को जानने के लिए आलाहज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी की दर्द अंगेज़ तहरीर मुलाहिजा करें ! 

*🕌ताज़िया की हक़ीक़त और उसमें खुराफात"*

✨ताज़िया की असल इस क़दर थी की *रौज़ा ए पुर नूर हुज़ूर शहज़ाद ए गुलगूं क़ुबा हुसैन शहीद ज़ुल्म व जफा रज़िअल्लाहु तआला अन्हु* की सही नक्ल बना कर बनीयते तबर्रूक मकान में रखना, उसमें शरअन कोई हरज न था ! कि तस्वीर मकानात वगैरह ग़ैर जानदार की बनाना, रखना सब जाइज़ और ऐसी चीजें कि मुअज़्ज़माने दीन की तरफ मंसूब हो कर अज़मत पैदा करें उनकी तिम्साल बनीयत पास रखना क़तअन जाईज ! जैसे कई साल से अइम्म ए दीन व उलमा ए मोतमदीन *ना'अलैन शरीफैन हुज़ूर सैय्यदुल कौनैन सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम* के नख्शे बनाते, और उनके फवाइदे जलीला व मनाफे जज़ीला में मुस्तक़िल रिसाले तस्नीफ़ फरमाते !
*(📚फैज़ाने आलाहज़रत, सफा 258)*
*🔄जारी...*
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*📲9711933871*

*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
*📖कोशिश इल्म आम करने की✒*

          *🕌 "ताजियादारी"*
            *📑पोस्ट नम्बर -::2⃣*


📃1-: अव्वल तो ताज़िया में रौज़ ए मुबारक की नकल का ख्याल न रहा ! हर जगह नई नई तराश(बनावट) जिसे असली रौजा से कोई निस्बत(हुबहू) नही ! फिर किसी में परियां, किसी में बुराक, किसी में और बेहुदा चीजें फिर गली ब गली, कुचा ब कुचा ताज़िये को ग़म के लिए घुमाते फिरना और उनके इर्द गिर्द सीना पीटना और मातम करना और इस शोर में कोई इन तस्वीरों को झुक कर सलाम कर रहा है ! कोई इन ताजियों का तवाफ़ कर रहा जैसे काबा शरीफ का किया जाता है ! कोई इन ताजियों को सज्दा कर रहा है ! कोई इन "बिदअत"(दीन में कोई नई चीज़ पैदा करना) मआज़ल्लाह जलवागाहे इमाम हुसैन रज़िअल्लाहु तआला अन्हु समझ कर उन कागज और गत्तों अबरक  पन्नी से मुरादें माँगता, मिन्नतें मांगता है ! फिर बाजे, तमाशे, मर्दो-औरतों का रातों का मेल और इस तरह के बेहुदा खेल ! (अल्लाह की पनाह)

📃2-:  ग़रज़ *मुहर्रमुल-हराम* अगली शरीअतों से इस शरीअत पाक तक निहायत बा बरकत ठहरा हुआ था ! उन बेहूदा रस्म व रिवाज़ ने जाहिलाना और फासिकाना मेलों का ज़माना कर दिया ! फिर बिदअत(दीन में नई चीज़ पैदा करना) का ऐसा तुफान उठा की खैरात को भी बतौर खैरात न रखा ! दिखावा और घंमड एलानिया होता है ! फिर यह भी नही की सीधे मुहताजों के दें बल्कि छतों पर बैठ कर फेकेंगे ! रोटियां ज़मीन पर गिर रही, रिज़्क़ ए इलाही की बेअदबी हो रही ! पैसे फेंकतें हैं गिर कर गायब हो जाते हैं ! माल की बरबादी हो रही *लेकिन नाम हो गया की फलाँ सेठ "लंगर" करवा रहे हैं !*

*(📚फैज़ाने आलाहज़रत, सफा 258)*
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*🇮🇳"सिराते मुस्तक़ीम*
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             *🕌 "ताजियादारी"*
            *📑पोस्ट नम्बर -::3⃣*

🥁ताशे बाजे बजते चल रहे हैं तरह तरह के खेलों की धुम, बाज़ारी औरतों का हुजूम, शहवत(बद-निग़ाही) परोसती मेलों की रस्में और उसके साथ ख्याल कुछ और ! गोया की यह साख्ता तस्वीरें बऐनिहा हजरात शोहदा रिजवानुल्लाह तआला अलैहिम के जनाजे हैं ! ताजियों की कुछ पन्नी नोच कर उतार लेते हैं तो बाकी को तोड़ ताड़ कर दफन कर देते हैं ! अल्लाह तआला हजरात शोहदा ए करबला अलैहिमुर्रिज़वान वस्सना का, हमारे भाईयों को नेकियों की तौफ़ीक़ बख्शे और बुरी बातों से तौबा अता फरमाऐ ! 
*आमीन*

🕌अबकी ताज़ियादारी इस तरीका नामर्जिया का नाम है क़तअन बिदअत व नाजाईज व हराम है ! हाँ अगर अहले इस्लाम सिर्फ जाइज तौर पर हजरात शुहदाए किराम की मुक़द्दस रूह को इसाले सवाब करते तो किस क़दर महबूब था ! और अगर नज़रे शौक़ व मुहब्बत में नक्ल रौजा ए अनवर की जरूरत भी थी तो जाइज चीजों पर बस करते ! की सही नक्ल को तबर्रूक़ व ज्यारत अपने मकान में रखते और मातम नौहा(सीना पीट कर रोना) वगैरह बिदअत से बचते ! मगर अब ऐसी नकल में अहले बिदअत से मुशाबेहत और ताजियादारी की तोहमत का खदशा और आइंदा अपनी औलाद का या अहले एतक़ाद के लिए बिदअत में मुब्तला होने का खतरा है !

💎लिहाजा रौज़ ए अक्दस हुज़ूर सैय्यदुश्शोहदा की ऐसी तसवीर भी न बनाए बल्कि सिर्फ कागज़ के सही नख्शे पर कनाअत करे और उसे बक़स्दे तबर्रूक़ मम्नूअ चीजें मिलाऐ बगैर अपने पास रखें! जिस तरह हरमैन मोहतरमैन से काबा मुअज़्ज़मा और रौजा ए आलिया के नख्शे आते हैं !  
*📚(फतावा रज़विया, जिल्द 9, सफा 35,36)*
*📚(फैज़ाने आलाहज़रत, सफा 255)*
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             *🕌 "ताजियादारी"*
            *📑पोस्ट नम्बर -::4⃣*


🕌ताज़िया जिस तरह की आजकल राइज है जरूर बिदअत है ! जिस क़दर बात सुल्तान तैमुर ने की कि रौज़ ए मुबारक हज़रत इमाम रज़ि अल्लाहु तआला अन्हु की सही नक्ल तस्कीने(राहत) शौक़ को रखी वह ऐसी थी जैसी रौज़ ए मुनव्वरा व काबा मुअज़्ज़मा के नख्शे, उस वक़्त तक इस क़दर में हरज़ नही थी ! अब बवज्हे शबीह इसकी भी इजाज़त नही ! यह जो बाजे, ताशे, मरसिए, मातम, बुराक, परी की तस्वीरें, ताजिऐ से मुरादें माँगना, उसे झुक झुक कर सलाम करना, सज्दे करना वगैरह वगैरह बिदअत ए कसीरा उसमें हो गई है और अब उसी का नाम ताजिया दारी है, *यह जरूर हराम है !*

✨अलम ताज़िया तख्त में जो कुछ सर्फ होता है सब इसराफ और हराम है ! और ताजिए की नियाज लंगर का लुटाना, रोटीयों का ज़मीन पर फेंकना, पाँव के नीचे आना सब बेहुदा है ! हाँ नियाज के तौर पर सब बिदआत से बचकर हजरात शुहदाए किराम की नियाज करें तो ऐन बरकत व सआदत है ! 
*📚(फतावा रज़विया, जिल्द 9, सफा 458)*
*📚(फैज़ाने आलाहज़रत, सफा 255)*
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            *📑पोस्ट नम्बर -::5⃣*

*📜शहादत नामा पढ़ने का हुक्म*

🌟शहादत नामे नज़्म या नस्र जो आजकल अवाम में राइज हैं अक्सर रिवायते बातिला, बेसरोपा हिकायत, झूठी और मौजू बातों पर मुश्तमिल हैं ! ऐसे बयान का पढना, सुनना, वह शहादत नामा हो ख्वाह कुछ और मज्लिस ए मीलाद मुबारक में हो ख्वाह कहीं और मुतलकन हराम व नाजाईज है ! खुसूसन जबकि वह बयान ऐसे खुराफात(गैर शरई काम) को लिए हुऐ हो जिसमे अवाम(जनता) के अकाइद में नुकसान और खलल(रूकावट) पैदा हो तो फिर और भी कातिल जहर की तरह है ! इस सब चीजों पर नजर फरमा कर *हुज्जतुल इस्लाम इमाम "मुहम्मद ग़ज़ाली" कुद्देसा सिर्रहू वगैरह अइम्मा किराम ने हुक्म फरमाया कि शहादत नामा पढना हराम है !*
*📚(फैज़ाने आलाहज़रत, सफा 256)*
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             *🕌 "ताजियादारी"*
            *📑पोस्ट नम्बर -::6⃣*

*तज्दीदे ग़म और हुज़्न नाजाईज है*

🔹युंही जबकि उस से मक़सद ग़म परवरी और बनावटी मलाल हो तो यह नीयत भी शरअन पसंदीदा नही है ! शरीअत ए मुत्तहरा ने ग़म में सब्र व तस्लीम और मौजूदा ग़म को जितना जल्दी हो सके दिल से दुर करने का हुक्म दिया ! 

🔸अगर ग़म करने में कोई खूबी होती तो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की वफाते अक़्दस की ग़म परवरी सबसे जरूरी होती ! बेशक उलमा ने तसरीह की हर साल जो सैय्यदुश्शोहदा इमाम हुसैन का मातम किया जाता है मकरूह है और खास इस्लामी शहरों में इसकी अस्ल नही !

💠👉🏼हासिल यह है कि मीलाद मुबारक मे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की वफाते अक्दस का जिक्र पसंदीदा नही, हालाँकि हुज़ूर कि विलादत भी हमारे लिए खैर और वफात भी ! इसी तरह शहीद ए करबला इमाम हुसैन रदियल्लाहो तआला अन्हु के जिक्र ए शहादत वगैरह के बयान से गम परवरी और मलाल मक्सूद हो तो वो भी जाइज़ नही ! मुहर्रम शरीफ में शहादत नामा पढना भी जरूरी नही बल्कि उनके दीगर फजाइले जमीला और औसाफ़ ए हमीदा भी सही रिवायत के हवाले से बयान हो सकते हैं ! 
*📚(फतावा रज़विया, जिल्द 9, सफा 62,63)*
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*🕌 "ताजियादारी"*
            *📑पोस्ट नम्बर -::7*


*⭐मुहर्रम में ढोल बाजे यज़ीद की सुन्नत है*

🥁ढोल बाजे असीराने करबला और शोहदाए करबला के सरों को लेकर जब यजीदी दमिश्क पहुंचे और यज़ीद को इल्म हुआ तो उसने तमाम शहर साज़बाने और अहले शहर को खुशियां मनाने और घर से बाहर आकर तमाशा देखने का हुक्म दिया। यज़ीदी खुशियां मनाने लगे। एक दाबी-ए-रसूल हज़रत सहल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तिजारत के लिये शाम आये हुए थे। वह दमिश्क के करीब एक कस्बे से गुज़रे तो आपने देखा कि तमाम लोग खुशी करते ढोल और बाजे बजाते हैं। उन्होंने एक शख्स से इस खुशी मनाने की वजह पूछी तो लोगों ने बताया कि अहले ईराक ने सरे हुसैन यज़ीद को हदिया भेजा है। तमाम अहले शाम इसकी खुशी मना रहे हैं। हज़रत सहल ने एक आह भरी और पूछा कि सरे हुसैन कौन से दरवाजे से लायेंगे? कहा बाबुस्साअ से आप उसकी तरफ दौड़े और बड़ी दौड़ धूप के बाद अले बैत तक पहुंच गये। आपने देखा कि एक सर मुशाबा सरे *रसूल यानी रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरह)* नेजे पर चढ़ा है जिसे देखकर आप बे इख़्तेयार रो पड़े । अले बैत में से एक ने पूछा कि तुम हम पर क्यों रो रहे हो उन्होंने पूछा आपका नाम क्या है फ़रमाया मेरा नाम सकीना बिन्त हुसैन है उन्होंने फ़रमाया मैं आपके नाना का सहाबी हूं मेरे लायक जो ख़िदमत हो फ़रमाइये  फ़रमाया मेरे वालिद के सरे अनवर को सबसे आगे करा दो ताकि लोग उधर मुतवज्जह हो जाये और हम से दूर रहें। उन्होंने चार सौ दिरहम देकर सरे अनवर
तूरात से दूर कराया। 

*(📚सच्ची हिकायत हिस्सा,2 सपह,401)*

*📖सबक :: मुहर्रम में ढोल बजाना यज़ीदियों की सुन्नत है इसका बजाना हराम है*
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