10 मुहर्रम का सवाब

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*✨इमामे आली मकाम की नज़्रों-नियाज़ करना*

*🧉सबील लगाना, उनके लिये खिचड़ा पकाना और शर्तबत वगैरा पिलाना बाइसे सवाब व बरकत है*

🍶हज़रत सअद बिन उबादा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि वह सरकारे अक्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! मेरी मां का इन्तेकाल हो गया है तो उन के लिये कौन सा सदका अफज़ल है? हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया पानी (बेहतरीन सदका है, तो हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के इरशाद के मुताबिक) हज़रत सअद ने कुआं खुदवाया और (अपनी मां की तरफ मन्सूब करते हुए) कहा यह कुआं सअद की मां के लिये है (यानी इस का सवाब उन की रूह को मिले)।

*(📚मिश्कात शरीफः169)*

📜इस हदीस शरीफ से वाज़ेह तौर पर साबित हुआ कि हज़रत इमाम हुसैन और दीगर शुहदाए करबला रज़ियल्लाहु तआला अन्हुम को सवाब पहुंचाने की ग़रज़ से सबील लगाना और खिचड़ा वगैरा पकाना, फिर यह कहना कि खिचड़ा और सबील इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की है, शरअन कोई क़बाहत नहीं। जैसा कि जलीलुल कुद्र सहाबी हज़रत सअद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने कुंआं खुदवाने के बाद फरमाया कि यह कुआं सअद की मां के लिये है।

🍲और शाह अब्दुल अज़ीज़ मोहिद्दसे देहलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं कि जो खाना कि हज़राते हसनैन करीन को नियाज़ करें, उस पर फातेहा, कुल और दुरूद शरीफ पढ़ने से तबर्रुक हो जाता है और इस का खाना बहुत अच्छा है और इरशाद फरमाते हैं अगर मालीदा और चावलों की खीर किसी बुजुर्ग के लिये फातेहा कि लिये ईसाले सवाब की नियत से पका कर खिलाएं तो कोई मुज़ायका (हरज) नहीं जाइज़ है फिर चन्द सतर बाद फरमाते हैं अगर फातेहा किसी बुजुर्ग के नाम से किया गया, तो मालदारों को भी उस में से खाना जाइज़
*(📚फतावा अज़ीज़ियाः1/78)*

🕌अल्बत्ता ताज़िया का चढ़ा हुआ खाना और मिठाई वगैरा नहीं खानी चाहिये। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं:

हज़रत इमाम के नाम की नियाज़ खानी चाहिये और ताज़िया का चढ़ा हुआ न खाना चाहिये। फिर दो सतर बाद तहरीर फरमाते हैं ताज़िया पर चढ़ाने से हज़रत इमाम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की नियाज़ नहीं हो जाती और अगर नियाज़ देकर चढ़ाएं या चढ़ा कर नियाज़ दिलाएं तो उस के खाने से ऐहतराज़ चाहिये।

*(📚रिसाला ताज़िया दारी-5)*
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*📿फज़ाइले आशूरा💦*

🌪️आशूरा यानी मुहर्रम की दस्वीं तारीख़ बड़ी अज़्मतो-बुजुर्गी वाली और फज़्लो शर्फ वाली है। इस लिये बहुत से अहम वाकिआत इस तारीख से मुतअल्लिक हैं। हज़रत शैख अब्दुर रहमान सफूरी रहमतुल्लाहि तआला अलैह अपनी मशहूर किताब नुज्हतुल मजालिस में तहरीर फरमाते हैं 

📝कि इसी रोज़ आसमानो-जमीन और कलम की तख़्लीक हुई! हज़रत आदम व हव्वा अला निबिय्यना व अलैहिमस् सलातु वस्सलाम पैदा हुए और आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कबूल हुई! हज़रत नूह अलैहिस्सलाम की कश्ती जूदी पहाड़ पर लगी। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम मर्तबए खुल्लत से सरफराज़ किये गए। चालीस साल बाद हज़रत याकूब अलैहिस्सलाम से हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम मिले। हज़रत इद्रीस अलैहिस्सलाम आसमान पर उठाए गए। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम सेहत याब हुए। हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम मछली के पेट से निकले। हज़रत दाऊद अलैहिस् सलाम की तौबा कबूल हुई। हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम को सल्तनत अता हुई। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आसमान पर उठाए गए। हमारे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम का अक्द हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा से हुआ और इसी रोज़ कियामत भी काइम होगी।

*(📚नुज्हतुल मजालिसः1/181)*
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*साबित हुआ कि मुहर्रम की दस्वीं तारीख खुदाए तआला के नदीक बड़ी अज़्मत व फजीलत वाली है। इसी लिये आप ने अपने प्यारे हबीब जनाब अहमदे मुज्तबा मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की महबूब नवासे के लिये भी इसी तारीख को मुन्तख़ब फरमाया।*
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